Aisa Kyoc - 3 in Hindi Science-Fiction by Captain Dharnidhar books and stories PDF | ऐसा क्यों ? - 3

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ऐसा क्यों ? - 3

तिलक लगाने के पीछे का रहस्य-

हमारे शरीर में तीन नाड़ियां हैं इड़ा पिंगला सुषुम्ना ये नाड़ियां मूलाधार से रीढ के साथ ऊपर चलती हैं किन्तु सुषुम्ना दोनों भ्रकुटियों के मध्य जिसे आज्ञाचक्र भी कहते है वहां आकर फिर सहस्रार चक्र में जाती है । आज्ञाचक्र में तिलक लगाने से सुषुम्ना को ऊर्ध्वगामी होने में सहायता मिलती है । आज्ञाचक्र का स्थान गर्म होता है इस स्थान पर चंदन का तिलक लगाने से ज्ञान की वृद्धि होती है इस लिए इस स्थान पर तिलक लगाया जाता है । तिलक स्त्री-पुरूष दोनों को लगाना चाहिए किन्तु महिलाएं तो इसे अनिवार्य रूप से लगाती है । महिलाओ में आजकल तिलक के स्थान पर रेडीमेड बिंदी लगाई जाती है जिसे सुहाग से भी जोड़कर देखा जाने लगा है ।

माला में मनके 108 ही क्यों ?

पृथ्वी के चारों ओर के आकाशीय भाग को 360° अंश में ज्योतिष में विभाजित कर रखा है । 30° अंश की एक राशि इस तरह 12 राशियां हुई । इन 12 राशियों में अर्थात 360° अंशों में 27 नक्षत्र होते हैं ।

माला के मनके सत्ताईस नक्षत्रों के चरणों के ही प्रतीक हैं --

एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं इस लिए 27×4= 108 की संख्या हो जाती है । अतः माला का मनका भी आकाश के नक्षत्र की तरह ही घूमता है । हाथ की माला का जप पूरे आकाशीय वृत्त का घूम जाना मानते है ।

आसन कुशा का क्यों पवित्र होता है -

कुशा कुचालक है इसमे नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने की अद्भुत शक्ति होती है इसलिए कुशा को ग्रहण के सूतक लगने से पहले घर मे खाद्य पदार्थ मे व पानी के मटके में डाल देते है ताकि ग्रहण की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त किया जा सके । श्राद्ध तर्पण में इसकी पवित्री बनायी जाती है ताकि तर्पण पवित्रता के साथ सम्पन्न हो सके ।
कुशा की उत्पत्ति को लेकर पुराणों मे एक कहानी प्रचलित है । जब वराह का रूप धारण कर विष्णु भगवान ने हिरण्याक्ष को मारा था और पृथ्वी को पुनः उसकी कक्षा मे स्थापित किया था तब वराह भगवान ने अपने शरीर को हिलाकर अपने रोमो का त्याग किया था उनसे ही कुशा की उत्पत्ति हुई है ।

कुशा के जल से स्नान करना शरीर की शुद्धि के साथ साथ नकारात्मक ऊर्जा से अपने आपको बचाना भी है ।

कुशा की यज्ञोपवित पहन ने से ब्रह्मचर्य के पालन करने में सहायता मिलती है इसलिए ही श्री हनुमान जी कुशा की जनेऊ पहनते हैं -- "कांधे मूंज जनेऊ साजे "
कुशासन पर बैठकर जप करते हैं तो जप से बनी ऊर्जा पृथ्वी में नही जाती । साधना सफल होती है । ऋषि मुनियों की कुटिया में चटाई कुशा की बनी होती थी ।

गर्मी से बचने के लिए कुटिया में चारों तरफ कुशा लगी हो तो गर्मी नही लगती । पक्के घरों में रहने वाले लोग भी घर में कुटिया बनाने लगे है किन्तु इनका लक्ष्य सुन्दरता व गर्मी से बचाव ही है । कुशा से आध्यात्मिक लाभ एवं सांसारिक लाभ दोनों प्राप्त हो जाते है ।
गुरूकुल में कुटिया पत्तों की व कुशा की बनी होती थी ।
कभी ऐसी कुटिया मे बैठकर देखेंगे तो कुशा की भीनी भीनी गंद मन को बहुत आनंदित करेगी ।

क्रमश- नये विषय के साथ