भाग 20
अभी तक आपने पिछले भाग में पढ़ा की मिनी की कस्टडी को लेकर नीना देवी और नियति के वकील के बीच बहस चल रही है। जज साहब इत्मीनान से ध्यान पूर्वक दोनों पक्षों की बात सुन रहे थे। खुराना भी बहुत बड़े देश के जाने माने वकील संतोष साल्वे भी अदालत में मौजूद थे। रस्तोगी अपना पॉइंट जज साहब के सामने रख चुका था। अब आगे पढ़े।
कोर्ट अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा था। दोनो पक्ष अपना अपना पॉइंट बड़ी ही कुशलता से रख रहे थे।
अब रस्तोगी को इंतज्ञार था बस नीता के आने का। बस उसकी गवाही ही बची थी। और उसी पर केस का पूरा दारोमदार था।
तभी अचानक नीता कोर्ट में आ गई। रस्तोगी ने उनको गवाही के लिए बुलाया। पूरे केस का रुख पलटने में नीता का बयान तुरुप का इक्का साबित होगा ये रस्तोगी और मुझे पूरा यकीन था। कस्टडी नियति को ना देने कि जो वजह नीना देवी के वकील ने बताई थी की, नीता के बयान से वो दोनों वजहें समाप्त हो जाती। नीता कोर्ट में आई और विटनेस बॉक्स में जाकर अपना परिचय जज साहब को बड़े ही सम्मान के साथ दिया।
नीना को ये तो पता था की नीता उससे नाराज है। उसे लगा हमेशा की तरह कुछ दिन बाद वो सामान्य हो जायेगी और फिर से घर आने जाने लगेगी। ऐसा पहले भी हो कई बार हो चुका था। नियति का पक्ष लेने पर नीता को कई बार भला बुरा सुनना पड़ा था। और नीना की बातों को बड़ी बहन का अधिकार समझ कर नीता नजर अंदाज का देती। पर इस बार बात इतनी दूर तक चली जायेगी ये नीना को अंदाजा नहीं था। नीना ये भी अच्छे से जानती थी की नीता मिनी से ज्यादा दिन दूर नही रह पाएगी। पर नीता…! उसकी खुद की छोटी बहन उसके खिलाफ कोर्ट में खड़ी हो जायेगी ये उसने सपने में भी नही सोचा था!!!
नीता सिर्फ कोर्ट ही नही आई बल्कि नियति के पक्ष में अपना बयान भी दिया। साथ ही नीता ने कहा, "जज साहब नियति ने पति को खोने के बाद बहुत दुख झेला है। खुद संघर्ष कर अपने पैरो पर खड़ी हुई है। इतनी बड़ी बिजनेस फैमिली की बहू होने के बाद भी कभी कोई अधिकार नही मांगा। मेरे कोई संतान नहीं है। मैं नियति के पति मयंक को ही अपना बेटा मानती थी। और अब नियति और मिनी ही मेरी फैमिली है। अभी खुराना साहब ने कहा कि नियति मिनी की परवरिश उस तरीके से करने में सक्षम नहीं है जिस तरह से अभी हो रही है। एक बात और की उसके जॉब पर जाने पर मिनी की देख भाल कौन करेगा?" कुछ पल के लिए नीता रुकी, फिर से बोलना शुरू किया, "मेरे पास ईश्वर की कृपा से सब कुछ है। मैं उसी तरह परवरिश करने में नियति का सहयोग कर सकती हूं। जैसे की अभी तक मिनी की परवरिश होती आई है। उसके जॉब पर जाने पर, उसकी घर पर ना रहने पर मैं मिनी की देखभाल करूंगी….. कोई कोर कसर नहीं रहने दूंगी। इसका विश्वाश मैं इस अदालत और जज साहब को दिलाना चाहूंगी।" नीता ने बड़े ही आत्म विश्वास के साथ ये सब कुछ कहा।
जज साहब को नीता की बात तर्क संगत लग रही है, उनके हाव भाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था की वो नीता की बातों से संतुष्ट है।
जज साहब नीता की बातों से संतुष्ट थे फिर भी अपना जो थोड़ा बहुत शक था उसे दूर कर लेना जरुरी समझा और नीता से प्रश्न किया, " मिसेज नीता ..! अगर इतनी बड़ी जिमेदारी लेने के बाद कल को आपके पति ने एतराज किया… या आपका ही इरादा कुछ समय बाद बदल गया तो…? इस मासूम बच्ची के साथ गलत नही हो जायेगा?"
नीता ने बिना एक पल गवाए फौरन जवाब दिया, "अगर अदालत या जज साहब को मेरी बातों का सबूत चाहिए तो मैं अपना बंगला, प्रॉपर्टी सब कुछ नियति के नाम करने को तैयार हूं। आप जब भी आदेश देंगे मैं ये सब कुछ नियति के नाम कर दूंगी। आप समझते ही होंगे इतना बड़ा फैसला कोई भी औरत अकेले नहीं ले सकती।और जब मैं इतना बड़ा फैसला ले रही हूं तो जाहिर है मेरे पति को किसी भी फैसले पर एतराज नहीं होता होगा।"
नीता का दृढ़ निश्चय जज साहब को प्रभावित कर गया। पर जज साहब केस के हर पहलू , हर छोटी बड़ी बात को समझ लेना चाहते थे इसी लिए वो बोले, "नियति मैडम...पर मैं अपनी तरफ से कुछ नही कह रहा पर इनका कोई तो कसूर होगा, कुछ तो गलती होगी, जो नीना देवी ने इन्हे खुद से और बच्ची से दूर कर रक्खा है। कोई तो वजह होगी।"
नीता ने लंबी सांस ले उल्टा जज साहब से ही सवाल कर ते हुए कहा, "जज साहब आपने दुनिया नही देखी क्या….? इसमें आश्चर्य क्या है….? अपने भारतीय समाज की यही तो विडंबना है। एक लड़की शादी कर अपना घर द्वार, मां बाप, सब छोड़ कर पति के घर को अपनाती है और उसे ही अपना घर मान कर, परिवार मान कर नया जीवन शुरू करती है। पर दुर्भाग्य वश यदि पति को कुछ हो जाए, वो इस दुनिया से चला जाए तो वही परिवार उसे बेघर करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। आप उस औरत के लिए सोचिए ..? एक तो पति के जाने का गम दूसरा ससुराल में अपमान…. तिरस्कार!! इसमें कुछ भी तो नया नही है। यही सब कुछ नियति के साथ भी हुआ है। कोढ़ में खाज की स्थिति हो जाती है यदि दोनो का प्रेम विवाह हुआ हो तो। मयंक ने नियति से प्रेम विवाह किया था। नियति को मेरी बहन बिलकुल पसंद नहीं करती थीं । नीना दीदी ने सिर्फ पुत्र को कहीं खो ना दे …? इस बेटे के खोने के डर से ही नियति को बहू के रूप में स्वीकार किया था। अब जब मयंक नही है तो वो नियति को क्यों झेलें ? मयंक का जाना एक विडंबना थी। नीना देवी मेरी सगी बड़ी बहन है। पर मैं भी इनका एक और अत्याचार एक मासूम लड़की पर नही सह सकती। आखिर मैं भी एक नारी हूं। मैं अपनी आंखे के आगे ये सब होते अब और नहीं देख सकती।
इस कारण मैने नियति का साथ देने का फैसला किया।
मैं एक मां को अपनी बच्ची के लिए तड़पते और नही देख सकती।"
जज साहब अभी विचार कर रहे थे की नीना देवी ने खुराना को पास बुलाया और उनके कान में कुछ कहा। उसके बाद खुराना ने जज साहब से नीना देवी को बयान देने को विटनेस बॉक्स में बुलाने की इच्छा जाहिर की। कहा "जज साहब नीना देवी भी अपना पक्ष रखना चाहती है।" जज साहब ने परमिशन दे दी।
नीना देवी विटनेस बॉक्स में आईं और जज साहब का अभिवादन कर कहना शुरू किया, "जज साहब मैं एक मां हूं और मां का दर्द समझती हूं पर इस लड़की में मां वाली कोई बात ही नही दिखी मुझे जो मैं इसे बच्ची सौप दूं । मिनी मेरे बेटे की आखिरी निशानी है। मैं इसे किसी गैर जिम्मेदार हाथों में नही दे सकती। इसी कारण मैने इसे बच्ची से दूर कर दिया। इसके लक्षण अच्छे नहीं थे शुरू से ही । पहले मेरे बेटे को वश में कर शादी कर ली। जब ऊब गई तो गाड़ी में पता नही ऐसा क्या किया की मेरा बेटा चला गया। अब इसने किसी दूसरे को भी अपने वश में कर रक्खा है।" (नीना ने खुराना से मेरे बारे में सारे मालूमात कर लिए थे। उसके दिमाग में एक शातिर चाल चल रही थी। मेरे और नियति के संबंध का लांछन लगा कर नियति को चरित्रहीन साबित करना चाहती थी।)
फिर मेरी ओर इशारा कर बोली, "शायद यही प्रणय है, नियति के अगले टाइम पास। ये भी आज अपना कीमती समय लेकर यहा आए है। अब मुझे नही पता क्यों? (रहस्यमी मुस्कान के साथ नीना देवी बोली)
अब आप ही बताइए मैं कैसे अपनी पोती इस… लड़की को सौप दूं?"
रस्तोगी ने तुरंत ऑब्जेक्शन किया, कहा "मेरी क्लाइंट के चरित्र पर ऐसे कीचड़ नही उछाल सकती नीना देवी।"
जज साहब ने भी कड़े शब्दों में नीना देवी को बिना सबूत कोई भी लांछन नियति पर लगाने से मना किया।
आगे की कहानी में पढ़े क्या नियति के पक्ष में नीता का बयान देना असरदार साबित हुआ? क्या नीता के बयान ने केस का रुख पलट दिया..? क्या नीना देवी के आरोपों को जज साहब ने कोई अहमियत दी? पढ़े अगले भाग में।