रात बारह बजे काली पहाड़ी पर बने, मातृभारती फाइवस्टार क्लब में पार्टी का आयोजन हुआ,सभी नए पुराने विलेन को न्यौता पहुँचा....
सबसे ज्यादा जल्दी मची थी रंजीत साहब को ,तो वो सबसे पहले पहुँच गए वहाँ,वैसे भी उन्हें अपने कपड़ो के विषय में ज्यादा नहीं सोचना पड़ता,उनका पहनावा ही ऐसा है वेलबाँटम पैंट, बड़े बड़े काँलर वाली शर्ट,जिनके आगें से दो तीन बटन खुले हुए होते हैं और उन खुले बटनों से झाँकता हुआ उनका बालों से भरा सीना,जिसे वो खुजाते हुए दाखिल होते हैं,बेतरतीब तरीके से लड़कियों को निहारते हैं जैसे कि बिल्कुल कच्चा चबा जाएंगें,
फिर हाजिर हुए प्राण साहब,हाथ में सिगार लेकर और रंजीत साहब से बोले....
बर्खुरदार! तुम पहले ही हाजिर हो गए....
रंजीत साहब बोले,जी हाँ।।
फिर हाजिर हुए गब्बर सिंह और उन्होंने जैसे ही देखा कि रंजीत साहब और प्राण साहब हाजिर हो चुके हैं तो वें बोले....
कितने आदमी हो?
केवल दो! सुअर के बच्चों! इतनी बड़ी पार्टी और केवल दो लोंग,मातृभारती ने बुलाया,फिर भी नहीं आ पाएं...
गब्बर सिंह की बात सुनकर रंजीत साहब को गुस्सा आ गया और वें बोलें...
ऐ...जुबान सम्भाल के बात कर,ये तेरा रामगढ़ नहीं है और ये कौन सी वर्दी पहनकर आया है तू,पार्टी में आया था तो थोड़े दाँत ही माँज लेता,तुझे यहाँ घुसने किसने दिया?
ऐ ...पता है सरकार कित्ता ईनाम रखें हैं हम पर,दूर दूर गाँव में जब बच्चे रात को सोते नहीं हैं तो उनकी माँऐ कहतीं हैं,सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा,गब्बर सिंह ने कहा...
हाँ...हाँ....मालूम है...मालूम है....पूरे दस हजार,इत्ता तो हम पान खाकर थूँक देते हैं,रंजीत साहब बोलें....
ऐ...ज्यादा मत बोला,ठाकुर बलदेव सिंह का हश्र क्या हुआ था ? याद है ना,बेटा हाथ कट जाऐगे तो सीना खुजाने के काबिल नहीं रहोंगे,गब्बर सिंह बोला।।
रंजीत साहब ने इतना सुना तो मौनव्रत ले लिया।।
फिर हाजिर हुए प्रेम चोपडा़ साहब....
उन्हे देखकर गब्बर ने पूछा....
कौन हैं बे! तू!
प्रेम नाम है मेरा.....प्रेम चोपड़ा,प्रेम साहब बोले।।
ओ...चोपड़ा मेरा खोपड़ा मत खा,तेरा नाम प्रेम किसने रखा,तेरी शकल को देखकर तुझसे प्रेम नहीं नफरत होती है,रंजीत साहब बोले।।
ऐ...चुप कर ,तू पहले अपनी शर्ट के बटन बंद कर फिर बात करना,प्रेम साहब बोले....
तभी सफेद़ लिबास़ और सफेद़ जूतों में अपने आजू बाजू दो गुण्डों के साथ किसी ने एण्ट्री मारी और बोला....
कौन झगड़ रहा है? पीटर ! शूट हिम!
वें अजीत साहब थे...
वो तो हम बातें कर रहें थे,झगड़ नहीं रहे थें,प्रेम साहब बोलें।।
तो ठीक है,अजीत साहब बोले....
तभी किसी ने कहा...मोगैम्बो खुश हुआ
सभी ने पीछे मुड़कर देखा तो अमरीश पुरी साहब शान-ओ-बान के साथ दो बार्बी डाँल जैसी लड़कियों की कमर में अपने दोनों हाथ डाले चले आ रहे थें,उन्हें देखकर सबकी बोलती बंद हो गई....
फिर बारी बारी से शक्तिकपूर,सदाशिव अमरावपुरकर,पुनीत इस्सर,शेट्टी,मैक मोहन,गुल्शन ग्रोवर,शाकाल,डैनी और अनुपम खेर सभी हाजिर हुए....
सबकी दारू-शारू चल रही थी और सब साथ साथ कमसिन बालाओं के नृत्य का आनंद उठा रहें थे....
तभी गले में मफलर डाले और पतली पतली मूँछों वालों शख्स ने क्लब में प्रवेश किया....
उन्हें देखते ही सबके चेहरों का रंग उड़ गया....
फिर वो शख्स बोले....
घबराइएं नहीं हम कुछ नहीं चाहते,हम तो बस इतना चाहते थे कि आप हमारा स्वागत पान-पराग से करें....
उनकी बात सुनकर मोगैम्बो साहब बोले....
ओहो....हमें क्या मालूम? कि आप भी पान पराग के शौकीन है ये लीजिए पान पराग...,
पान पराग....पान मसाला...पान पराग...
दारू पीने के बाद तो उसकी जरूरत आप सबको भी पड़ेगी,नहीं तो आप लोंग की बीवियाँ घर में घुसने नहीं देंगीं...
तभी रंजीत ने उस शख्स पर चाकू फेंक कर मारा...
लेकिन उस शख्स ने चाकू अपनी मुट्ठी मे लेकर कहा....
जानी....! ये चाकू है लग जाए तो खून निकल आता है.....
मुझे पहले ही मालूम हो गया था कि तुम इन्सपेक्टर राजकुमार हो....रंजीत बोला।।
हाँ! तभी तुम सब विलेन्स को एक जगह इकट्ठा किया गया और तुम्हारी दारू में बेहोशी की दवा मिलाई गई है जिससे हम तुम सबको एक साथ पकड़ सकें और इस काम में हमारी मदद मातृभारती जी ने की है....
इतना सुनकर सब धीरे धीरे बेहोश होने लगें और इन्सपेक्टर राजकुमार ने सबको एक साथ जेल में डलवा दिया...🙏🙏😀😀
समाप्त....
सरोज वर्मा.....