The Author Prabodh Kumar Govil Follow Current Read साहेब सायराना - 2 By Prabodh Kumar Govil Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Conflict of Emotions - 14 Conflict of Emotions (The emotional conflict of a girl towar... Wings of Tomorrow - 12 Chapter 12:- School day 1Part 1The morning sun streamed brig... THE BOY WHO LOVED IN SILENCE - 7 The First Look, The First StepShe stood near her classroom,... BACKROOMS : THE ORIGIN - 3 "Sir i can explain that atleast please hear me for a second... My Paranormal Incidents - 4 Chapter 4. Someone close to me I was in 8 or 9th grade when... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Prabodh Kumar Govil in Hindi Fiction Stories Total Episodes : 40 Share साहेब सायराना - 2 (545) 3.4k 7k दिलीप कुमार की शूटिंग देखने की इस ख्वाहिश के उजागर होते समय टीन एज में कदम रखती बेटी की आंखों की चमक ने नसीम बानो को भीतर से कहीं गुदगुदा दिया। उन्हें वो दिन याद आ गए जब उन्हें भी एक फ़िल्म की शूटिंग देखते हुए ही फ़िल्मों में काम करने का चस्का लगा था। मां नसीम बानो के दिमाग़ में एक नई हलचल शुरू हो गई। क्या बेटी की ये ख्वाहिश आम बच्चों की तरह इम्तहान से फारिग होकर फ़िल्म देखने या शूटिंग देखने जैसी आम ख्वाहिश है या फ़िर कहीं भीतर ही भीतर बेटी के दिमाग़ में मां की तरह ही ख़ुद भी फ़िल्मों से जुड़ने का चस्का तो जगह नहीं पा रहा! अगर ऐसा हो भी तो इसमें हैरानी की बात क्या? देश भर के लाखों लड़के- लड़कियां स्क्रीन की चमकती दुनिया का हिस्सा बनने की चाहत रखते ही हैं। फ़िर अगर मशहूर स्टार नसीम बानो की लाड़ली बिटिया भी इस चकाचौंध में पैर रखने का सपना क्यों न देखे। सायरा ख़ुद भी तो संगमरमर की किसी मूर्ति की तरह ख़ूबसूरत और चुलबुली लड़की ठहरी। लेकिन उन दिनों फिल्मों में लड़कियों का काम करना अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। जो लड़की कैमरे के सामने अभिनय करने को तैयार हो जाती थी उसे लोग ललचाई नज़रों से देखने लग जाते थे। तमाम फ़िल्म यूनिट भी यही समझती थी कि जो लड़की कैमरे के सामने नाच- गाकर ढेरों मर्दों के छिपे अरमान जगायेगी वही तो फ़िल्म को भी कामयाब बनाएगी। उन पर चांदी बरसाएगी। लड़की को नाम मिलेगा और फिल्मकार को नामा! उस ज़माने में लड़की के बड़ी होते ही उसके परंपरा वादी मां- बाप बस यही कोशिश करते थे कि किसी एक लड़के को ये पसंद आ जाए तो उनकी जान छूटे। उसके साथ इसकी जीवन डोर बांध कर इसके हाथ पीले करें और इससे छुटकारा पाएं। ऐसे में जो लड़की हज़ारों लड़कों को पसंद आने के लिए घर से निकल पड़ती थी वो भला मां- बाप को कैसे स्वीकार होती। लेकिन अभिनेत्री मां के लिए बिटिया को शूटिंग दिखाने की ख्वाहिश पूरी करना भला कौन सा मुश्किल था। जबकि सोहराब मोदी जैसे नामी - गिरामी एक्टर के साथ उसकी ख़ुद की फ़िल्म पुकार बेहद कामयाब रही थी। दिलीप कुमार भी उन दिनों के. आसिफ़ के साथ उनकी भव्य व महत्वाकांक्षी फ़िल्म "मुगले आज़म" में व्यस्त थे। मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर के साथ भव्यता से फिल्माए जा रहे सलीम और अनारकली के इस शाहकार ने बनने से पहले ही तूफ़ान उठा लिए थे। बेटी सायरा बानो को साथ लेकर नसीम बानो हिंदुस्तान की धरती पर कदम रखते ही इसी मुगले आज़म फ़िल्म के सेट पर सायरा को ले जाने के लिए अपने साथियों को निर्देश देने में लग गईं। मुश्किल से दो दिन बीते कि एक दिन फिल्मिस्तान के सेट पर नसीम की मोटर रुकी। दोपहर का समय था। स्टूडियो में बाहर तो सन्नाटा था पर भीतर से शूटिंग की चहल- पहल सुनाई दे रही थी। पर ये क्या? दिलीप कुमार तो स्वयं सामने से चले आ रहे थे और चेहरे का मेकअप उतार कर अपनी कार में बैठने वाले थे। उनकी शूटिंग ख़त्म हो चुकी थी। - ओह ! दिलीप के दुआ सलाम का ये जवाब दिया नसीम बानो ने। पर दिलीप कुमार नसीम बानो के पीछे- पीछे आती उनकी तेरह बरस की गोरी- चिट्टी बिटिया की अनदेखी नहीं कर सके। बिटिया इंगलैंड में पढ़ती थी और स्कूली परीक्षा ख़त्म होने के बाद अभी- अभी हिंदुस्तान वापस आई थी। दिलीप कुमार ये जान कर अंदर से भीग गए कि लड़की ने अपनी मम्मी नसीम आपा से उन्हें शूटिंग दिखाने का वादा लिया है। वो भी दिलीप कुमार की शूटिंग! ‹ Previous Chapterसाहेब सायराना - 1 › Next Chapter साहेब सायराना - 3 Download Our App