Lakshmi in Hindi Horror Stories by Chandani books and stories PDF | लक्ष्मी

Featured Books
Categories
Share

लक्ष्मी

लक्ष्मी

मधरापुर गांव में सौरभ नाम का एक गरीब किसान रहता था। वो बहोत महेनत करता था फ़िर भी मुश्किल से थोड़ा बहोत अनाज उगा पाता था। उसके खेत फलद्रुप तो थे पर शायद उसकी किस्मत ही फूटी हुई थी। उसके बैल भी बहोत वृद्ध थे। कभी कभी तो सौरभ खुद कुछ नहीं खाता और जो मिलता वो अपने दोनों बैलों को खिला देता।

मां बाप मज़दूरी करते करते चल बसे। जवान बहन ने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर ली अब उस छोटी सी खोली में सौरभ अकेला ही अपना जीवन जैसे तैसे गुज़ार रहा था।

उसकी ज़मीन बहोत बड़ी थी। वहां पेड़ पौधे भी थे। सौरभ के खेत में घेहू, ज्वार और बाजरे की खेती होती थी। पर अच्छी फ़सल कभी नहीं आती थी। एक दिन गांव के एक वृद्ध गांधी चाचा सौरभ के घर से गुज़र रहे थे। उन्हों ने देखा कि सौरभ की स्थिति बहोत दयनीय है और वो काफ़ी दुबला पतला हो गया है। गांधी चाचा घर में गए और सौरभ से उसके हालचाल पूछे तब सौरभ ने अपने पापा के पुराने दोस्त गांधी चाचा को अपनी सारी आपबीती बताई। दरअसल सौरभ के पिता दिपकलाल बड़े ही विचित्र स्वभाव के थे और उस कारण से उनकी ज्यादा किसी से नहीं बनती थी। और उनके मरने के बाद सौरभ से भी ज्यादा कोई बात नहीं करता था। पर गांधी चाचा दिपकलाल के अच्छे मित्र थे और उनके बारे में सब जानते भी थे। सौरभ की परिस्थिति में सुधार हो इस लिए उन्हों ने सौरभ को अतित की सारी बाते बताई।

दिपकलाल गांव का बहोत कपटी इंसान था। वो खेती के साथ साथ जमीन गिरवी और ले बेच का धंधा भी करता था। उसने एक लक्ष्मी ताई की ज़मीन गिरवे रखी थी और उससे दुगना ब्याज भी वसूल रहा था। लक्ष्मी बहोत गरीब थी ऊपर से बेसहारा क्योंकि वो एक किन्नर थी। उसके पास अपना कहने वाला कोई नहीं था। उस बिचारी की आख़िर क्या गलती थी? पैसों की जरूरत उसे उसके पिता माता भाई बहन जो भी कहो उसके समान एक बूढ़े भानुलाल को केंसर से बचाने के लिए थी। पर अफ़सोस की वो नहीं बच पाए। उस किन्नर का एक मात्र सहारा वो भानुलाल ही थे जिन्होंने उस किन्नर को पनाह दी थी तब जब बचपन में उसके सगे मां बाप ने उसे ठुकरा दिया था। पर जब किन्नर दीपकलाल को पैसे लौटा ना सकी तो उस कपटी दिपकलाल ने लक्ष्मी को सिर्फ़ एक महीने की महोलत दी। पर केंसर पर हुए खर्च के पैसे एक अनपढ़ किन्नर कैसे जमा करती?

दीपकलाल ने उस बेसहारा लक्ष्मी के हालत समझने की जगह उसकी सारी ज़मीन हड़प ली और उसके बगल में जो उसका घर था वो घर भी खाली करने को बोल कर गया। लक्ष्मी के लिए वो घर नहीं पर भानुलाल की यादें थी, एक जमापूंजी थी। दूसरे दिन दीपकलाल ने देखा के जिस लक्ष्मी के खेत पर उसने कब्ज़ा किया था उसी खेत के एक पेड़ पर लटककर लक्ष्मी ने आत्महत्या कर ली। उस पेड़ के नीचे से एक चिट्ठी भी मिली थी जिस में लक्ष्मी ने साफ लिखा था कि, " मैं मरना नहीं चाहती पर मेरे पास ये दीपकलाल ने कोई और विकल्प भी नहीं छोड़ा। कुछ मोहलत मिल जाती तो आज शायद ये खेत और घर... मैं अपनी नज़र के सामने मेरे पिता समान भानुलाल जी का घर किसीको नहीं सौंप सकती इसी लिए जा रही हूं। पर ये मेरी हार नहीं मेरी जीत होगी। क्योंकि आज से दीपकलाल की उल्टी गिनती शुरू। छोडूंगी नहीं मैं उसके परिवार में एक को भी ये मेरी हाय है।"

उस हादसे के बाद दीपकलाल के जीवन में अंधेरा फेलना शुरू हो गया था। उसके सारे पैसे, खेत, ज़मीन घर सब कुछ धीरे धीरे कर उसकी जुएं की लत ने उससे छीन गया। उसके पास बचा था वो था बस लक्ष्मी का खेत और मकान जिसे वो चाहकर भी नही बेच पाया क्योंकि उसके पास रहने की और काम करने की वो एक मात्र जगह बची थी। उपर से लक्ष्मी के श्राप के कारण उस खेत में ज्यादा फ़सल भी नहीं आती थी। कुछ ही समय में दीपकलाल यानी तुम्हारे पिता और उनकी पत्नी विमला दोनों किसी बीमारी में ग्रस्त रहने लगे और तड़प तड़प कर मर गए। तुम तब बहुत छोटे थे पर तुम्हें ये तो याद होगा की तुम्हारी बहन ने कितने संघर्ष के साथ तुम्हें पढ़ाया और फ़िर वो भी चल बसी। इन सब के पीछे लक्ष्मी ही है।

अब बारी तुम्हारी है। लक्ष्मी का मोक्ष तब ही होगा जब खेत के उस बरगद के पेड़ के नीचे किसी किन्नर के हाथ से मां अंबे की स्थापना हो और खेत में काम करने के लिए किन्नरों को स्थान दिया जाए और गांव में भानुलाल और लक्ष्मी की प्रतिमा चबूतरे के पास बनवाई जाए। और गांव में किन्नरों की एक बड़ी पाठशाला बने ताकि कोई किन्नर अनपढ़ ना रहे जिससे उसे ज़मीन बेचनी पड़ी और लक्ष्मी की तरह...

तुम ये सब करोगे ना सौरभ?

गांधी चाचा की बात सुन सौरभ ने तुरंत हामी भरी। और वचन दिया की वो सब करेगा। तब गांधी चाचा वहां से जाने लगे। जाते गांधी चाचा की चाल देख सौरभ डर गया। क्योंकि उसकी चाल ना कोई बूढ़े जैसी ना कोई लड़की जैसी ना ही मरदाना। उसकी चाल एक किन्नर जैसी थी। और उसके पैरों की उंगलियां पीछे की तरफ और एड़ी सौरभ की तरफ थी। ये देख वो डर गया। कुछ बोलता उससे पहले गांधी चाचा पीछे मुड़े। सौरभ ने देखा उनका चेहरा कुछ अलग और भयानक लग रहा था। दांत आड़े टेढ़े तो कुछ लंबे थे, नाखून लंबे लंबे बाल सफेद घने और किन्नरों वाली अदा। तब ही गांधी चाचा बोले।

"क्यूं रे लड़के डरता है मुझसे? अरे मैं कुछ नहीं करेगी तुझे। क्यूंकि तु मेरा बच्चा है पहले। अगले जन्म में तु एक किन्नर था। दीपकलाल ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया बस अब तु इस किन्नर को मुक्ति दिलाना। चलती ही मैं।" सौरभ समझ गया था के वो उल्टे पैर वाली और कोई नहीं पर लक्ष्मी ही थी।

सौरभ के पास ना पैसे थे और न ही कोई ज़ेवर। उसकी तो एक ही मिलक्त थी और वो उसके दो बूढ़े बैल, जिन्हें वो अपनी जान से भी ज्यादा चाहता था। उसने दोनों को बेच दिया ये सोच की क्या पता उनका भी भला हो जाए। वैसे तो बैल वृद्ध थे पर भगवान की कृपा से अच्छे दाम मिले और उसके बाद उसने लक्ष्मी के कहने के मुताबिक सब किया और अंबे मां को स्थापित भी किया। उस वक्त उसने देखा कि लक्ष्मी उल्टे पैर वहां से जा रही थी और बोलती गई भगवान तुम्हें रिद्धि सिद्धि दे।

फ़िर क्या एक किन्नर का आशीर्वाद था। बैल भी वापस आ गए, किन्नरों को खेत में काम भी दिया, लक्ष्मी के नाम से गांव में पाठशाला भी बनी और चबूतरे के पास बड़ी प्रतिमा भी लगी लक्ष्मी की और भानुलाला जी की।

सौरभ की दिन प्रतिदिन प्रगति होती रही। एक सुंदर लड़की से उसकी शादी हुई, गांव में सब उसे मान देने लगे, देखते ही देखते उसके ६ खेत हो गए जहां अच्छी फसल होती थी। उसने कभी अपने पापा की तरह अनीति से काम नहीं किया।

किन्नर का आशीर्वाद था और रिद्धि सिद्धि दोनों मिल गई।

***