कहानी - आखिरी खत
प्रकृति की गोद में बसा झारखंड राज्य का एक छोटा सा शहर झुमरीतलैया .यहीं के सैनिक स्कूल में पढ़ता था एक लड़का सागर .सागर एक मेघावी छात्र था .वह चाहता तो रांची या हजारीबाग़ के प्राइवेट या मिशनरी स्कूल में भी पढ़ सकता था .पर उसे बचपन से ही सेना में जाने का मन था .
सागर के पिता गुप्ताजी झुमरीतलैया के निकट कोडरमा शहर में रहते थे .उनका अपना कपड़े का व्यापार था .सागर की एक छोटी बहन थी सिया .सिया कोडरमा के एक स्कूल में पढ़ती थी .उसी स्कूल में एक लड़की शैली पढ़ती थी जो सिया की प्रिय सहेली थी .दोनों के घर एक की गली में आस पास ही थे .
शैली काफी सुन्दर थी .छुट्टी के दिनों में शैली अक्सर सिया के घर आती , देर तक दोनों बातें करती थीं .अक्सर दोनों एक ही थाली में खाना भी खाती थीं .
छुट्टियों में सागर भी हॉस्टल से अपने घर आ जाता था .अक्सर वह भी शैली से मिलता और बातें करता .वह धीरे धीरे उसकी और आकर्षित होने लगा . सागर भी हैंडसम और स्मार्ट था .ग्यारहवीं पास करते करते उसका बदन सैनिकों की तरह गठीला हो गया . शैली भी उसकी पर्सनालिटी से उतनी ही आकर्षित हुई . वे दोनों कभी छुप कर प्यार की बातें करते और अपने भविष्य के सपने बुनते .यह बात दोनों के घर वालों को पता थी .मानसिक रूप से सागर के माता पिता तैयार थे कि सागर की पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों की शादी कर देंगे . पर शैली के माता पिता निर्णय नहीं ले पा रहे थे .उन्हें दामाद का सेना में जाना पसंद नहीं था .
सिया तो कभी शैली को छेड़ती हुए बोलती " मैं अभी से तुम्हें भाभी कहूं ? "
" धत , पगली है क्या ? " शरमा के वह बोलती
देखते देखते सागर ने प्लस 2 पास कर लिया .वह नेशनल डिफेन्स अकादमी में दाखिले के लिए टेस्ट भी दे चुका था .वैसे तो सैनिक स्कूल ख़ास कर इस अकादमी के लिए बच्चों को तैयार करते हैं .सागर को अकादमी की लिखित परीक्षा पास करने में कोई कठिनाई नहीं हुई .
अब सागर को सर्विस सेलेक्शन बोर्ड के कठिन इंटरव्यू और मेडिकल फिटनेस का सामना करना था .सागर को इंटरव्यू और मेडिकल दोनों में बड़े आराम से सफलता मिली .अब उसे निर्णय लेना था कि वह सेना के तीनों अंगों , जल , थल और वायु सेना , में किस अंग में जाना चाहेगा .सागर ने थल सेना को पसंद किया .
कुछ दिनों में उसे नेशनल डिफेन्स अकादमी खड़गवासला , पुणे के लिए जाना था .जाने के कुछ दिन पहले सागर और शैली मिले .शैली बहुत उदास थी .वह बोली " मुझे बहुत डर लग रहा है .तुमने सेना की नौकरी क्यों चुनी ?"
" अरे सेना में काम करना गर्व की बात है .लाखों लोग देश की सेना में हैं .अगर सभी भय से सेना में नहीं जाएँ तो आखिर देश की सुरक्षा कौन करेगा ."
" फिर भी , पापा को यह पसंद नहीं है .ज्यादा फ़िक्र इसी बात को लेकर है ."
" मुझे अकादमी से पास आउट करने की देर है .फिर मैं अंकल को मना लूंगा ."
" मुझे पापा के स्वभाव से डर लगता है .नहीं माने तो ? "
" अरे नहीं कैसे मानेंगे .नहीं माने तो मैं तुम्हें भगा कर ले जाऊँगा ."
" छिः , क्या ऐसा सही होगा ? " वह शरमा कर बोली
" यू नो ,एवरीथिंग इस फेयर इन लव एंड वार ."
सागर अकादमी में चला गया . उसका तीन साल की कठिन पढ़ाई और फिजिकल ट्रेनिंग का कोर्स था .सागर अक्सर शैली को पत्र लिखता और शैली भी उसके पत्र के उत्तर देने में विलम्ब नहीं करती .बीच में छुट्टी में सागर कभी झुमरीतलैया आता तो दोनों मिलते ,प्यार की बातें करते .
तीन साल बाद सागर डिफेन्स अकादमी से पास कर चुका था .इधर शैली हज़ारीबाग़ के संत कोलम्बस कॉलेज में बी .ए .में पढ़ रही थी .सागर उससे मिलने गया .शैली ने कहा " अपने पापा से बोलो न हमारी शादी की बात करें मेरे पापा से .हालांकि समाज के नियम के अनुसार तो उन्हें बात करनी चाहिए तुम्हारे पापा से .पर मैं जानती हूँ वे ऐसा नहीं करेंगे ."
" डोंट वरी . मैं पापा से बात करूंगा .वैसे मैं भी सीधे अंकल से बात कर सकता हूँ ."
सागर के पिता गुप्ताजी ने शैली के पिता से दोनों की शादी की चर्चा चलाई तो उन्होंने कहा " अभी तो सागर शादी कर ही नहीं सकता है .अभी उसकी ट्रेनिंग बाकी है .हम उसके बाद बात करते हैं ."
उन्होंने सीधे तौर पर इंकार भी नहीं किया था , इसलिए शैली और सागर दोनों अभी भी आशान्वित थे कि शादी की राह में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए .
सागर एक साल की अंतिम ट्रेनिंग के लिए इंडियन मिलिट्री अकादमी देहरादून गया .इस अकादमी में आने वाले GC कहलाते हैं - जेंटलमैन कैडेट .
देखते देखते एक साल भी गुजर गया .आज उसका पासिंग आउट पैरेड था .वह कमीशन पाकर लेफ्टिनेंट बना .इस अवसर पर उसके माता , पिता और बहन भी आये थे . उसे शैली के आने की उम्मीद थी , पर बहन सिया ने बताया कि उसके पिता ने नहीं आने दिया .
लेफ्टिनेंट की पोस्टिंग पूर्वोत्तर सीमा पर हुई .वहां ज्वाइन करने के पहले वह झुमरीतलैया आया था .गुप्ताजी ने शैली के पिता से शादी की बात की .फिर वह टालते हुए बोले " अभी तो उसे बॉर्डर पर जाना है .इतनी जल्दी छुट्टी मिलने से रही .उसे आने दीजिये , मैं देखता हूँ ."
सागर के जाने के बाद से शैली के पिता ने बेटी के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया .उन्होंने एक लड़के
वाले से जल्दी ही बात पक्की भी कर ली .
इधर सागर और शैली के बीच पत्राचार चलता रहा . दुर्भाग्यवश छः महीने के बाद आतंकियों द्वारा बिछाए गए माईन्स ब्लास्ट में उसे वीरगति प्राप्त हुई .उसका पार्थिव शरीर अंतिम क्रिया के लिए झुमरीतलैया लाया गया .शैली का रो रो कर बुरा हाल था .बार बार वह बेहोश हो जाती , उसे नींद की दवा देकर सुलाना पड़ता था .
सागर का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ सम्पन्न हुआ .कुछ ही दिनों बाद शैली के पिता ने उसकी शादी तय कर दी .वह तो बहुत दुखी थी ,कुछ दिन और टालना चाहती थी .पर सभी ने समझाया .सागर के पिता गुप्ताजी और सिया सभी ने समझाया कि अब सागर ही नहीं रहा तो किस बात की देरी है .
शैली की शादी रांची के एक सहायक प्रोफ़ेसर अलख से ठीक हुई .उसके माता पिता ने समझाया कि शादी के पहले सागर के सारे पत्र नष्ट कर दे .उसने सागर का आखिरी खत छोड़ कर बाकी सभी पत्रों को नष्ट भी कर दिया .
शैली की शादी हो गयी .वह रांची अपने पति के पास आ गयी .अलख कठोर स्वभाव का आदमी था .उसे शैली और सागर की प्रेम कहानी भी पता थी . फिलहाल सब ठीक चल रहा था .जल्द ही शैली गर्भवती हुई .
एक दिन डॉक्टर के यहाँ जाने के लिए अलख शैली का मेडिकल फाइल खोज रहा था .शैली बाथ रूम में थी .
शैली के वार्डरोब से फाइल निकालने के समय , एक पेपर जमीन पर गिर पड़ा .वह उठा कर पढ़ने लगा .
शैली जब बाथ रूम से निकली तब वह पत्र पढ़ ही रहा था .उसके चेहरे पर क्रोध की झलक दिखने लगी .
शैली ने पूछा " क्या पढ़ रहे हो ? "
" तुम्हारे एक्स बॉयफ्रेंड का प्रेम पत्र है .लो तुम भी देख लो ."
शैली तो जानती थी कि उसमें क्या लिखा है .इस अंतिम पत्र में सागर ने लिखा था " डार्लिंग डोंट वरी .तुम्हारे पापा हमारी शादी के लिए तैयार हों या न हों , आई डैम केयर .जैसे पृथ्वीराज चौहान अपनी संगीता को उठा ले गए थे , मैं भी तुम्हें हासिल कर के ही दम लूंगा . यू नो ,एवरीथिंग इस फेयर इन लव एंड वार ."
उस दिन के बाद से अलख के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था .वह अब शैली के सामीप्य से भी दूर भागने लगा था . बेगाना जैसा बर्ताव करता हालांकि सीधे तौर पर कुछ बोलता नहीं था .शैली के पूछने पर वह " कुछ नहीं " कह कर टाल देता था .
शैली ने उसे भरोसा दिलाया और कहा " उस पत्र में ऐसा तो कुछ भी नहीं था .मैं उस बेचारे के साथ आजतक अकेले कहीं बाहर भी नहीं गयी .बस उसकी एकमात्र आखिरी निशानी समझ कर रख लिया था इस खत को."
" उस के साथ तुमने क्या क्या किया मैं देखने गया था क्या ? लगता है मौका नहीं मिलने का अफ़सोस है अभी तक , शायद उसे भी रहा हो .पर वह बेचारा था कि नहीं , कौन जानता है ? "
" प्लीज एक शहीद के बारे में ऐसा नहीं कहो ."
समय का चक्र तीव्र गति से घूम रहा था .शैली की शादी के आठवें महीने में ही शैली को एक पुत्र हुआ .उसके प्रसव में काफी जटिलताएं आयी थीं . अलख का शक अब काफी गहरा हो गया था .उसने तो लगभग तय कर लिया था कि यह बच्चा उसका नहीं हो सकता है .हालांकि डॉक्टर ने डिस्चार्ज के समय कहा था " अलख , आप भाग्यशाली हैं .बहुत मुश्किल से या यों कहें कि चमत्कार ही है कि आपकी पत्नी और बेटा दोनों सुरक्षित हैं .शैली ने प्रिमी ( प्री मच्योरेड ) बेबी को जन्म दिया है .आपका बेटा समय से करीब छः सप्ताह पहले ही दुनिया में आया है .मुबारक हो . बच्चे के सही ग्रोथ के लिए शुरू के कुछ साल उस पर विशेष ध्यान देना होगा ."
इधर ध्यान देना तो दूर वह गलती से ही उनके सामने आता था .अलख की बेरुखी देख कर शैली बहुत दुखी थी .वह अपने बेटे के साथ मैके झुमरीतलैया चली गयी .अलख ने उनकी कोई खबर तक नहीं ली .एक बार शैली ने फोन कर कहा " एक बार अपने बेटे को आकर देखो तो सही .अमर नाम रखा है उसका ."
" वह मरे या अमर रहे मुझे कुछ नहीं लेना देना है .वह मेरा खून है ही नहीं ."
" खबरदार , ऐसी बात जुबान पर दोबारा नहीं आनी चाहिए ."
अलख ने अपनी पत्नी और बेटे से कोई संपर्क नहीं रखा .उलटे एक साल होते होते तलाक का नोटिस भी भेज दिया .शैली ने भी बिना देर किये तलाक पर अपनी सहमति दे दी .दो साल के अंदर उनका तलाक हो गया .
अलख ने दूसरी शादी कर ली .वह अपनी नयी बीबी के साथ मजे में था .महीने साल दर साल बीतते गए .इस बीच अलख दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर था .
लगभग बीस साल बाद अमर मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज दिल्ली में सेकंड ईयर में पढ़ रहा था .एक दिन वह अपने एक दोस्त के साथ अपनी मोटरसाइकिल से कॉलेज जा रहा था . रास्ते में एक जगह भीड़ देख कर उसने मोटरसाइकिल रोक दिया .उसने देखा कि एक आदमी खून से लथपथ सड़क पर कराह रहा था और लोग उसे घेर कर खड़े खड़े तमाशा देख रहे थे . एक ने कहा " एक कार वाले ने टक्कर मारी और भाग गया ."
अमर ने उन लोगों से जरा दूर हटने को कहा और बोला " और आपलोग तमाशा देख रहे हैं . यह तो बुरी तरह जख्मी है , इसे हवा आने दें ."
फिर अपने दोस्त को मोटरसाइकिल देकर बोला " तुम कॉलेज चलो , मैं इन्हें लेकर ऑटो या टैक्सी से मेडिकल कॉलेज आता हूँ ."
एक ऑटोवाला मुश्किल से तैयार हुआ और बोला " मैं बस अस्पताल ड्राप भर कर दूंगा .मेरे ऑटो का नंबर कहीं दर्ज नहीं होना चाहिए ."
" तुम चलो तो सही .हमें ड्राप कर तुम चलते बनना ."
अमर उस व्यक्ति को लेकर अस्पताल पहुंचा .काफी खून निकल चुका था .घायल व्यक्ति को फ़ौरन ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया .उसे खून की जरूरत थी .अमर ने अपना ब्लड ग्रुप चेक किया .दोनों के ग्रुप मिलते थे .इसके अतिरिक्त उसके कुछ और दोस्तों ने भी मिलकर खून दिया .उधर एक्सीडेंट केस था .कैजुअल्टी में पुलिस ने अमर का बयान लिया और कहा कि आगे जरूरत पड़ी तो आपको पुलिस से सहयोग करना होगा .
अलख का ऑपरेशन सफल रहा .करीब एक महीने बाद उसे अस्पताल से छुट्टी देते समय डॉक्टर ने कहा " आप लकी हैं .समय पर अस्पताल पहुँच गए .काफी खून बह चुका था .वह तो हमारा ही एक स्टूडेंट था जो आपको यहाँ सीरियस हालत में लेकर आया था .उसने अपना खून तक दिया ."
अलख की दूसरी पत्नी भी वहीँ थी .उसने कहा " हम उस लड़के से मिलकर उसका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं ."
" उसका पता बता दें ." अलख ने कहा
" नाम पता तो आप कैजुअल्टी के रजिस्टर से ले सकते हैं ."
लगभग तीन घंटे बाद अलख और उसकी पत्नी अमर के घर पर गए , साथ में उसके लिए गिफ्ट भी रख लिया . अलख को दूसरी पत्नी से कोई संतान नहीं थी .
अमर ने उन्हें अंदर बिठाया .अलख उसके चेहरे को गौर से देखे जा रहा था .अमर का चेहरा बहुत कुछ अलख से मिलता था .तब तक अलख की नजर टेबल पर रखे एक औरत की फोटो पर गयी . उसने अमर से पूछा " यह औरत कौन है ? "
" यह मेरी माँ है ."
तब तक शैली भी वहीँ आ चुकी थी .उसे देख कर अलख बोला " शैली तुम , यह हमारा बेटा है ? "
" हमारा नहीं , सिर्फ मेरा ."
" मुझे माफ़ नहीं करोगी ? "
अमर बोला " आप हमें माफ़ कर दें . प्लीज मेरी माँ को और कष्ट न पहुंचाएं और यहाँ से चले जाएँ . "
अलख और उसकी पत्नी दोनों जाने लगे तो अमर बोला " आप यह सब अपना सामान लेते जाएँ ."
" यह तो मैं तुम्हारे लिए उपहार लाया था .मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो ."
" मेरे लिए माँ का आशीर्वाद ही काफी है .आप अपने उपहार ले जा कर गरीबों में बाँट दें ."
अलख अपनी पत्नी के साथ जा रहा था .अमर या शैली ने उन्हें मुड़ कर एक बार देखा तक नहीं .
समाप्त