Kaun hai khalnayak - Part 3 in Hindi Love Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | कौन है ख़लनायक - भाग ३

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कौन है ख़लनायक - भाग ३

दूसरे दिन अजय और प्रणाली के आने के बाद भी रुपाली प्रियांशु के साथ कैंटीन चली गई। अजय और प्रणाली आपस में कुछ बात कर रहे थे। तभी वह चुपचाप से निकल गई।

उसने प्रियांशु से कहा, "चलो कैंटीन चलते हैं।"

सुधीर भी उनके साथ में ही था।

जैसे ही अजय का ध्यान गया उसने पूछा, "अरे प्रणाली! रुपाली कहाँ है?"

"मालूम नहीं अभी तो यहीं थी, पूरी क्लास तो खाली है। चलो शायद कैंटीन निकल गई होगी।"

अजय और प्रणाली जब कैंटीन आए तो यह देख कर दंग रह गए कि रुपाली उन्हें बिना कुछ कहे प्रियांशु के साथ कैंटीन आ गई थी और समोसे खा रही थी। प्रणाली और अजय को उसका ऐसा करना थोड़ा अजीब लगा पर उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

अजय ने कहा, "क्या हुआ रुपाली बिना बोले…"

"अरे अजय बहुत जोर की भूख लगी थी इसलिए मैं आ गई। चलो आ जाओ तुम दोनों भी।"

प्रणाली थोड़ा-थोड़ा समझ रही थी कि बात कुछ और ही है। इसी तरह से अब हर रोज़ ही होने लगा। तीन-चार दिन तक रुपाली का ऐसा व्यवहार देखकर अजय चिंतित हो गया। उसे लगा कहीं देर ना हो जाए। उसे आज ही रुपाली को अपने दिल की बात बता देनी चाहिए।

उसने अगले दिन रुपाली से कहा, "रुपाली तुम क्यों उस प्रियांशु के साथ इतनी दोस्ती बढ़ा रही हो? हमें छोड़ कर उसके साथ अकेले कैंटीन चली जाती हो? क्या पुराने दोस्तों का साथ तुम्हें अब पसंद नहीं?"

"कैसी बात कर रहे हो अजय? तो क्या हुआ कि मैं उसके साथ कैंटीन चली गई। नया आया है वह हमारी क्लास में, इतनी कर्टसी तो दिखानी चाहिए ना? तुम्हारे साथ भी तो मैं कैंटीन जाती हूँ ना।"

"अच्छा तो अब तुम मेरे साथ उसकी तुलना करोगी?"

"अरे अजय तुम नाहक ही इतना गुस्सा हो रहे हो? क्या हो गया जो मैं कैंटीन चली गई और अच्छे से बात कर ली।"

"अच्छा चलो छोड़ो, यह बताओ शाम को फ्री हो? कॉलेज के बाद घर जाते समय मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। "

"नहीं अजय आज तो मैं प्रियांशु के साथ कैफ़े हाउस जाने वाली हूँ।"

"क्या? कैफ़े हाउस क्यों?"

"कैफ़े हाउस क्यों जाते हैं अजय? कॉफी पीने और क्या।"

"नहीं रुपाली आज तुम्हें मेरे साथ ही चलना होगा। मुझे बहुत ज़रूरी बात करना है।"

"तो अभी कह दो ना अजय, क्या बात करना है?"

"नहीं रुपाली, तुम्हें हमारी दोस्ती की कसम।"

"अरे बाप रे इतना ही ज़रूरी है, तो ठीक है अजय, मैं प्रियांशु को मना कर देती हूँ।"

"हाँ ठीक है।"

बहुत हिम्मत इकट्ठी करके अजय ने अपने आपको तैयार किया, वह बोलने के लिए जो प्यार उसने अपने मन मंदिर में छुपा कर रखा था। वह प्यार जो वह रुपाली से बेइंतहा करता था, पर बोलने से डरता था।

रुपाली ने प्रियांशु को मैसेज कर दिया कि आज वह उसके साथ कैफ़े नहीं आएगी। प्रियांशु ने इस बात को एकदम सामान्य रूप से लेते हुए रिप्लाई कर दिया, "ठीक है कोई बात नहीं।"

रुपाली को उसका ऐसा मैसेज अच्छा नहीं लगा पर वह कर भी क्या सकती थी। कॉलेज ख़त्म होने के बाद रुपाली और अजय साथ में निकले।

अजय ने कहा, " तुम्हें कॉफी पीना था ना, चलो कैफ़े चलते हैं।"

"हाँ ठीक है अजय चलो, तुम क्या कहना चाहते हो जल्दी बताओ? मुझे बेचैनी हो रही है।"

"दो मिनट सब्र करो रुपाली कैफ़े हाउस आ ही गया है।"

वह दोनों कैफ़े हाउस पहुँच गए। वहां अजय ने कहा, "रुपाली शायद मुझे बहुत पहले ही तुमसे यह कह देना चाहिए था।"

"क्या कह देना चाहिए था अजय? जो कहना है अभी कह दो ना, सोच क्या रहे हो?"

"रुपाली मैं…मैं…मैं"

"क्या मैं…मैं कर रहे हो अजय! बोलो ना?"

"रुपाली मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, बहुत प्यार करता हूँ रुपाली। तुम्हारे बिना एक पल भी जीने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकता।"

रुपाली सीधे उठ कर खड़ी हो गई, "अजय तुम यह क्या कह रहे हो? तुम मेरे इतने अच्छे दोस्त हो। मैं भी तुम्हें बहुत-बहुत प्यार करती हूँ लेकिन केवल एक दोस्त की हैसियत से।"

"क्या तुम किसी और से…?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है अजय।"

लेकिन अजय कोई बच्चा तो था नहीं। उसे रुपाली का प्रियांशु की तरफ़ आकर्षित होना साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। लेकिन यह आकर्षण प्यार में ना बदल जाए इसलिए उसने अपने दिल की बात उसे बता दी।

अजय ने कहा, "देखो रुपाली, हम दोनों एक दूसरे को बचपन से जानते हैं, समझते हैं। मैं तुम्हें इतना प्यार दूँगा कि तुम सोच भी नहीं सकती।"

"अजय प्लीज़ ऐसी बातें मत करो। मैं अपना इतना अच्छा दोस्त खोना नहीं चाहती।"

"…तो क्या मैं यह समझुं कि मैंने तुम्हारे सामने अपना दिल खोल कर रखने में देर कर दी।"

"अजय सवाल देर का नहीं है। मैंने कभी तुम्हारे लिए उस तरह सोचा ही नहीं।"

"तुम इस तरह दुःखी होकर मुझे भी प्लीज़ दुःखी मत करो अजय। वैसे भी दोस्ती से अच्छा रिश्ता भला और कोई होता है क्या?"

अजय का दिल टूट गया। उसका उदास उतरा हुआ चेहरा देखकर रुपाली भी दुःखी हो रही थी किंतु वह तो अपने दिल के हाथों मजबूर थी। अजय जाने के लिए जैसे ही मुड़ा, रुपाली ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा, "अजय हमारी दोस्ती जैसी थी वैसी ही रहेगी ना?"

रत्ना पांडे वडोदरा गुजरात

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः