badri vishal sabke hain - 7 in Hindi Fiction Stories by डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना books and stories PDF | बद्री विशाल सबके हैं - 7

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बद्री विशाल सबके हैं - 7

बद्री विशाल सबके हैं

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

धीरू ने लौट कर अपनी ड्यूटी ज्‍वाइन कर ली ।

मार्च के महीने में तीन –चार दिन की छुट्टियां पड़ीं । उसके साथी घूमने जा रहे थे ,उससे भी प्रस्‍ताव किया, वह तैयार हो गया ।सब जगह निश्चित नहीं कर पा रहे थे ,तो धीरू के प्रस्‍ताव पर सहमति बन गई।

वे सब नौजवान थे नई नौकरी थी उस हिसाब से फूलों की घाटी पास थी उनकी सीमा में थी फिर धीरू हो आया था अत: सब दोस्‍त आश्‍वस्‍त थे।

अभी मौसम खुशनुमा था सर्दी जा रही थी गर्मी आई न थी ।

बिब्‍बो धीरू को देख कर आश्‍चर्य चकित हो गई ।

बिब्‍बो –‘ कैसे ?’

धीरू –‘मैं तुमसे मिले बिना रह न सका इस लिए चला आया ,अब मैं जॉब में हूं । ‘

बिब्‍बो -‘ तो !’और उसके चेहरे पर मुस्‍कान खेलने लगी ।

धीरू-‘ मुझे तुम से कुछ कहना है ।’

बिब्‍बो –‘ क्‍या बोलो ?’

धीरू-‘मैं तैयार..... मैं केवल वायदा नहीं कर रहा अभी शादी को तैयार जब तुम.... कहो ।जैसे कहो......... ।‘

धीरू बात करते करते हांफने लगा उसकी सांस तेज चलने लगी वह ठीक से बात नहीं कर पा रहा था

बिब्‍बो -‘ अरे !बाप रे बाप, बस, बस, इतनी जल्‍दी नहीं, थोड़ा ठंडे हों, इतना जोश ठीक नहीं, होश न खोएं शांत हों ।’

वह अंदर जा कर एक गिलास पानी ले आई देते हुए बोली –‘ थोड़ा ठंडे हो लें ऐसी बातें केवल जोश से नहीं होतीं सोच विचार लें अभी आप आराम करें दोस्‍तों के साथ घूमें फिरें हम फिर बात करेंगे ।’

धीरू बिब्‍बो के भाई से मिला ।

धीरू-‘ अब आप कैसे हैं ?’मुझे पहिचाना? मैं अपने बाबा व पिता जी के साथ आया था ।’

भाई –‘ हां अच्‍छी तरह याद है । अब चलने फिरने में कोई तकलीफ नहीं पर जब तब चोट कसकती है ।

धीरू –‘तो मेरे साथ चलें देहरादून में दिखा लें। मैं आजकल वहीं काम करता हूं ।

भाई इतनी हमदर्दी लोग तो केवल मौखिक सहानुभूति दर्शाते हैं ।

धीरू –‘ मुझे अपना ही समझें न हो तो अपना बना लें । मैं भी गुज्‍जर । ‘

भाई –‘अच्‍छा तो यह बात है ।‘

---------‘ हम लोगों के पास दहेज नहीं है ।शहरी धूमधाम से शादी नहीं कर पाते । आप के घर वाले शायद पसंद करें न करें हमें इससे ज्‍यादा पढ़ा लिखा दामाद नहीं मिलेगा पर आप सोच लें जिंदगी भर की बात है बाद में पछताएं नहीं ।’

धीरू-‘ मैने सोच लिया । आप मेरे साथ चलें । आप को डॉक्‍टर को दिखवा दूंगा । जहां मैं काम करता हूं वह जगह आप देख लें मन भर लें ।‘

भाई-‘ बस, बस चलिए बाबा से बात करते हैं ।‘

भाई व धीरू बाबा के पास

भाई –‘ बाबा ये धीरू हैं इनके बाबा व पिता जी आपसे मिलने आए थे ये बिब्‍बो का रिश्‍ता मांग रहे हैं ।‘

बाबा –‘ छोरे से क्‍या बात करूं उन दोनों में से कोई होता तो बात होती ।‘

बाबा –‘ तू समझ ले अच्‍छा बिब्‍बो से तो पूंछ ।‘

भाई –‘ मैं उसे बुलाए लाता हूं ।‘

भाई बिब्‍बो को आवाज लगाते हुए –‘ बिब्‍बो ....बिब्‍बो ....

बिब्‍बो के आने पर

बाबा –‘ये छोरा तेरी बात कर रहा है । मैं क्‍या कहूं बोल ।‘

बिब्‍बो नीचे देखते मौन खड़ी रही

बाबा –‘बोल तो मैं हां कह दूं ?’

बिब्‍बो फिर भी मौन रही ।

तो भाई बोला –‘ फिर मत कहियो ।’

तब बिब्‍बो बोली आप देख लो और जाने लगी ।

बाबा धीरू को सम्‍बोधित करते हुए –‘ भाई तुम्हारे बाबा और पिता तैयार हैं ?’

धीरू –‘ हां तभी तो वे आपसे मिले थे ।’

बाबा –‘ तो ठीक है मैं तैयार पर रसम तो तभी होगी जब वे आवेगे आप उनसे मेरी बात कराओ । ‘

धीरू ने बड़ा जोर लगाया पर इससे आगे बात न हो सकी बाबा टस से मस न हुए ।

बाबा-‘अगर राजी हैं तो उन्‍हे बुलाएं ना राजी हैं तो बताओ यहां नहीं आ सकते तो ये सुजान(बिब्‍बो का भाई ) चला जाएगा इससे बात करा दो । बेटे शादी ब्‍याह की बात ऐसे नहीं होती मैं तुम्‍हारी बात मानता हूं पर एक बार उनसे बात तो हो जाए उनका जबाब मिल जाए ।’

लौटते में दोस्‍त कह रहे थे यार धीरू तुमने बताया नहीं कि लड़की की बात है । तुमने लड़की पटाई हम सब मिल कर बाबा को पटाएंगे ।

एक साथी बोला धीरू भाई –‘ क्‍या बात है वे कह रहे हैं तो पिताजी को ले आते ।’

धीरू –‘ यही तो प्रॉब्‍लम है ।’

साथी-‘क्‍या पिता जी तैयार नहीं ।’

धीरू –‘पिता जी तो तैयार हैं ।’

साथी –‘ फिर क्‍या बात है बताओ ?’

धीरू –‘ मम्‍मी तैयार नहीं पिता जी बिना उनकी सहमति के आएंगे नहीं घर में मम्‍मी का टेरर है ।’

सब दोस्‍त साथी हंस पड़े-‘ तो यार हम सब को अपने घर ले चलो हम तेरी मम्‍मी को मनाएंगे दोस्‍त होते काहे के लिए हैं तूने सब कुछ कर लिया अब हमारा भी कमाल देखो ।’

धीरू-‘ तुम सब मेरी मम्‍मी को नहीं जानते ।’

साथी-‘ अरे यार हम अपनी मम्‍मी को तो जानते हैं सब मम्‍मी एक सी ही होतीं हैं तुम ले तो चलो तुम्‍हारा काम हो जाएगा ।’ धीरू सुनिश्चित तो नहीं था पर बोला –‘ ठीक है ये भी कर के देखेंगे ।’

डा.अहमद साहब पूरी टीम के साथ लौटे यात्रा सफल रही सब प्रसन्‍न थे ।डा. अहमद ने वहां से लाए प्रसाद के पैकेट बनवाए जो अधितर मेवा ही था। पैकेट सारे स्‍टाफ में बांटे गए, कम्‍पाडंडर पाठक जी को भी एक पैकेट मिला। उन्‍होंने सबके सामने तुरंत ही माथे से लगाया ,छोटे- छोटे पैकेटे थे कुछ लो गों ने तो वहीं खोल कर खा लिए, पर पाठक जी घर ले आए। श्रीमती से कहा –‘बच्‍चों में बांट देना।’ अगले दिन जब खाना खाने बैठे, तो श्रीमती जी खीर ले आईं, वे भोजन के अंत में खाने लगे, सहसा याद आया ,-‘अहमद साहब का प्रसाद बच्‍चों में बांट दिया?’ तो पठकाइन बोलीं –‘बच्‍चों ने तो नहीं खाया मैने सारे मेवे खीर में डाल दिए थे।’ पाठक जी की खीर तब तक थोड़ी सी ही रह गई थी। उनका हाथ रूक गया। फिर पूरी खा कर कुल्‍ला कर ते बोले –‘चलो, बद्री विशाल सबके हैं।’

एक दो साल बाद की बात है,। एक दिन पटेल साहब के पास उनके परिचित पार्टी के क्षेत्रीय नेता आए बोले-‘ पटेल साहब चुनाव होने वाले हैं अपने क्षेत्र के विधायक शुक्‍ल जी फिर खड़े होंगे ।’

पटेल साहब –‘हां वे तो तीन बार से लगातार विधायक हैं फिर मिनिस्‍टर हैं करेला और नीम चढ़़ा।’

नेता जी –‘पर क्षेत्र के लोग तो असंतुष्‍ट हैं किसी का धेले का काम नहीं करते पूरे क्षेत्र में उनके दलाल फैले हुए हैं सब डिपार्टमेंटों से कमीशन बंधा है।’

पटेल साहब-‘ हां सो तो है इस बार नेता जी आप कोई मजबूत केन्‍डीडेट उतारो शायद बात बन जाए । ‘

नेता जी –‘इसी बारे में तो आपसे बात करने आए हैं ।’

पटेल साहब –‘मेरे से जो बन पड़ेगा करूंगा, चलो किस के पास चलना है, मैं चलूंगा आप के साथ ।’

नेता जी –‘ किसी के पास नहीं चलना, मैने पार्टी में बात कर ली है, कल सब की मीटिंग हो गई, मीटिंग में प्रीतम सिंह ने आपका नाम सुझाया, सब ने एक राय हां कह दी, तो सबकी तरफ से मैं आपसे बात करने आया हूं ।’

पटेल साहब –‘पंचों की बात सर माथे, पर क्‍या जमानत जब्‍त करानी है ,पार्टी की नाक कटेगी सो अलग ,कहां मिनिस्‍टर कहां मैं ,साहब मेरे पास न इतना पैसा है न व्‍यवस्‍था , न लट्ठ ,आप लोग एक बार दुबारा विचार कर लें ,फिर पछताएं नहीं ,कोई दूसरा बेहतर केन्‍डीडेट मिले तो अच्‍छा रहेगा ढूंढ लें ।’

नेता जी –‘ सब सोच विचार लिया है तब आपके पास आए हैं सब एक राय हैं । ‘

पटेल साहब –‘ सब एक राय हैं तो पंचों की बात सिर माथे मैं होली में कूदने को तैयार चाहे जो हो आप सबसे बाहर थोड़े ही हूं ।’

नेता जी –‘ तो प्रस्‍ताव बना कर कल ही दिल्‍ली राष्‍ट्र अध्‍यक्ष केन्‍द्रीय कमेटी पर भेज दें ।आपकी स्‍वीकृति मिल गई धन्‍यवाद ।’ पटेल साहब मुस्‍कराए ।