काव्य संग्रह के अंतर्गत यह दूसरा भाग आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। जिसमें पहली कविता में एक नारी की मनोदशा और उसके अनुभव का वर्णन है और दूसरी कविता में एक फौजी जो देश की रक्षा करते हुए सीमा पर शहीद हो जाता है उसकी पत्नी की क्या दशा और व्यथा होती है जब उसके पति का पार्थिव शरीर उसके घर -आँगन में आता है। तीसरी कविता एक प्रेम आधारित कविता है। आशा है आप उचित प्रतिक्रिया देकर मुझे और लिखने के लिए प्रोत्साहित अवश्य करेंगे।
तुम खुली हवा में घूमने वाले
मैं पिंजरे में बंद बटेर हूँ
कहते तो है सब देवी मुझकों
पर में गृह मंदिर में कैद हूँ।
मेरा दर्द तुम क्या समझोगे
ये दर्द दिन का नहीं अमरता है
इक दिन जरा ठहरो घर पे
क्यों मन तेरा नहीं लगता है?
सिर्फ रूप मेरा देखते हो
वासना से भरे पड़े हो
देखी नहीं कहीं भी नारी
जाती वहीं है नजर तुम्हारी।
पूछा कभी बहन से तुमने
कौनसा है कष्ट तुम्हें
बहन बेचारी करें ही क्या जब
कंस सा ही भाई मिले।
उर में अपने अश्रु छुपाए
होठों पे मुस्कान रखती हूँ
पुत्र, पिता, परिवार सबके लिए
उपवास अनेक भी रखती हूँ।
छोटी सी दिनचर्या में
आराम कभी न करती हूँ
यम से भी जो भिड़ जाए
सावित्री सा दिल रखती हूँ।
निज वेदना के सागर में डूबी
पर का उद्धार पर करती हूँ
जितने भी हो कष्ट मुझे पर
वरदान तुम्हें सब देती हूँ।
नन्दलाल सुथार "राही"
२
(शहीद की पत्नी)
*शहीद की पत्नी*
(शहीद का पार्थिव शरीर घर में आने पर उसकी पत्नी का रुदन गीत)
तुम आओगे घर आँगन में
मैंने द्वार सजा के रखा था
तुम आ भी गए घर आँगन में
पर क्यूँ हार चढ़ाए रखा था?
तुम थे जब वृहत पहाड़ो में
हम तो थे घर-गलियारों में
तुम हिम खंडों से दबे हुए
हम घर में अनल का ताप लिए।
नहीं गुजरा अब तक एक बसंत
ना होली हमनें मनाई संग
तुम इतनी जल्दी दौड़ गए
मुझकों क्यों अकेली छोड़ गए?
कुछ सपने थे मेरे अपने
संग तेरे थे पूरे करने
सपना था सपना टूट गया
पर अपना भी क्यूँ रूठ गया!
इक इक पल मुश्किल से काटा
मैंने तो घर के कोने में
पर इससे बड़ा दुःख क्या होगा
तो मिला है तुमको खोने में।
जब वचन दिए तूने मुझकों
जीवन भर साथ निभाओगे
चले गए तुम हो जहाँ अब
भला मुझकों कब बुलाओगे?
( *नन्दलाल सुथार"राही" , जैसलमेर, राजस्थान*)
बड़ी खूबसूरत
बड़ी खूबसूरत ये प्यारी सुबह है
मैं तेरा हूँ सूरज तू मेरी किरण है।
है तू मेरी जन्नत तू मेरी सब कुछ है
मैं फूल हूँ तेरा तू खुश्बू मेरी है।
ये सर्दी की राते तो लम्बी बड़ी है
तू पास न मेरे ये कैसा सितम है।
मुझे याद आये तेरा मुस्कुराना
मैं बादल हूँ तेरा तू बारिश मेरी है।
लिखू मैं कविता यादों में तेरी
मैं शायर हूँ तेरा तू गजल मेरी है।
तू मेरी सीमा मैं तुझसे बंधा हूँ
मैं तेरा हूँ कृष्णा तू राधा मेरी है।
बड़ी खूबसूरत......
नन्दलाल सुथार"राही"