कुछ साल पहले की बात है,छत्तीसगढ़ में एक छोटा सा कस्बा है जिसका नाम पेन्ड्रा है,पेन्ड्रा फलों के लिए बहुत मशहूर है,वहाँ आम की बहुत सारी किस्मों के बगीचें हैं,शरीफे और जामुन भी बहुत ही अच्छी किस्मों के होते हैं,बहुत ही प्यारा सा कस्बा है,वहाँ के लोंग बड़े मिलनसार हैं,कस्बा ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन वहाँ का रेलवें स्टेशन बहुत ही बड़ा और सुन्दर है,उसे पेन्ड्रा स्टेशन नहीं पेन्ड्रा रोड कहते हैं,चूँकि बिलासपुर जिला बहुत ही विकसित था और पुराने समय में अंग्रेजों का हेडक्वार्टर हुआ करता था तो बिलासपुर से आने-जाने वाली रेलगाड़ियाँ पेन्ड्रा रोड से होकर गुजरतीं थीं,इसलिए शायद उसका नाम पेन्ड्रा रोड रख दिया गया होगा...
वहाँ की रेलवें कालोनी भी बहुत बड़ी हैं,अंग्रेजों के जमाने के बहुत बड़े बड़े घर बने हैं,रात में तो उस काँलोनी मंजर एकदम भूतिया सा लगता है,तभी वहाँ किशनलाल गुप्ता का सेक्शन इंजीनियर के पद पर स्थानान्तरण हुआ,छोटी सी जगह थी इसलिए किशनलाल जी बहुत खुश थे कि ज्यादा काम नहीं होगा,उनके अण्डर में केवल छः ही छोटे छोटे स्टेशन आते थें,उन्हें आँफिस का मोबाइल,लैपटॉप,और वाँकी-टाँकी दिया गया,जिससे स्टेशन का का कार्य करने में आसानी हो।।
छोटी सी जगह और इतना बड़ा बाग-बगीचे वाला बंगले जैसा घर तो उनकी पत्नी और बच्चे भी बहुत खुश हुए क्योकिं बड़े शहर की घुटन और भीड़ से वें सब एक छोटी और शान्तिप्रिय जगह पहुँचे थे तो उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था,बगीचें में झूला भी था और फलों से लदे हुए पेड़,सब्जियाँ और फूलों से सँजी हुई क्यारियाँ घर की शोभा बढ़ाती थीं,सबसे बड़ी बात मैन गेट पर मधुमाल्ती की बेल लटकती थी जिसकी खुशबू से रात को पूरा घर महक जाता था।।
किशनलाल जी को उस घर में आएं अभी दो तीन रोज ही हुए थी कि एक रात किशनलाल जी की नाइट ड्यूटी लग गई जो कि अक्सर रेलवे वालों की ड्यूटी लगती रहती है,किशनलाल जी ने अपनी पत्नी संगीता से कहा कि सावधान रहना और सभी दरवाज़े ठीक से बंद कर लेना,आँफिस के लोंग बता रहें थे कि रेलवे कालोनी में बहुत चोरियाँ होती हैं , बच्चों से कहो कि रात को बाहर ना निकले और पीछे जो आँगन है वहाँ पर भी ना जाएं क्योकिं आँगन की दीवार ज्यादा बड़ी नहीं है और जो बाहर आम का पेड़ है उसकी डाली हमारे आँगन की ओर झुकी है हो सकता है उसी के सहारे कोई भीतर आ जाएं...
संगीता बोली...
आप जाइए,मैं ठीक से ध्यान रखूँगी।।
और फिर किशनलाल जी रेलवें स्टेशन चले गए,करीब रात के बाहर बजे बारिश होने लगी तभी संगीता को याद आया कि पीछे आँगन में कपड़े फैलें हैं ऐसा ना हो बारिश से भींग जाएं,चूँकि पेन्ड्रा में आस पास बहुत जंगल है तो वहाँ अक्सर बारिश होती रहती है।।
संगीता ने पीछे का दरवाजा खोला और आँगन में आ गई,उसने आँगन की लाइट नहीं जलाई ,आँगन में पानी के लिए एक सीमेंट की हौज़ बनी थी और वहीं पर नल भी लगा था,आँगन से लगी हुई बाँयीं ओर रसोई थी और दाँयी ओर लगा हुआ बाथरुम था,तभी संगीता ने रस्सी पर पड़ी अपनी साड़ी उठाई तो उसे लगा की हौज़ की एक साइड की दीवार पर कोई बैठा है,उसने फौरन लाइट जलाई तो उसे वहाँ पर कोई नहीं दिखा उसने सोचा उसके मन का वहम होगा,
उसने ज्यों ही कपड़े उठाकर आँगन का दरवाजा बंद करना चाहा तो उसने देखा कि आँगन की बाहर वाली दीवार पर कोई लड़की उसकी ओर पैर लटका कर बैठी है,उसका पूरा चेहरा उसके लम्बों बालों से ढ़का है केवल उसके पैर दिख रहे हैं जो कि उल्टे हैं,संगीता ने देखा तो डर गई फिर वो लड़की मकड़ी की तरह उस दीवार पर रेंगती हुई ना जाने कहाँ गायब हो गई।।
संगीता के तो जैसे होश ही उड़ गए और उसने भीतर आकर अपने दोनों बच्चों को ये बात बताई तो बच्चे ये सुनकर हँसने लगे और बोले कि आपके मन का वहम होगा।।
ऐसे ही दो दिन बीते तो एक रात किशनलाल जी का बेटा शान्तनु बाँथरूम गया,पता नहीं उसे क्या सूझी वो बाहर आँगन में ऐसे ही टहलने आ गया तभी उसकी नज़र आम के पेड़ की डाली पर पड़ी उसने देखा कि कोई लड़की उस डाल पर उकड़ूँ बैठी है,उसका चेहरा नहीं दिख रहा,उसके लम्बें बालों से ढ़का हुआ है,शान्तनु ने देखा तो चीख पड़ा,उसकी चीख सुनकर सब जाग उठे और आँगन में आएं,तब तक तो वो लड़की गायब हो चुकी थी।।
सबने शान्तनु से उसके चीखने का कारण पूछा तो उसने सबकुछ बता दिया,तब संगीता भी बोली कि उसने भी उस लड़की को देखा था,अब किशनलाल जी ने ये बात आँफिस में बताई तो आँफिस के लोगों ने बताया कि आपसे पहले जो सेक्शन इन्जीनियर उस घर में रहते थे तो उनकी एक जवान इकलौती लड़की थी,वो किसी को चाहती थी और उससे शादी करना चाहती थी,
लेकिन घरवालों ने शादी करवाने से मना कर दिया क्योकिं वो अभी बालिग नहीं हुई थी और इस बात से नाराज होकर उस लड़की ने जह़र खा लिया,चूँकि वो उस रात ज़हर खाकर आँगन में आ गई थी और रातभर वहीं पड़ी रही ,सुबह उसी आँगन में उसकी लाश मिली थी तो शायद उसकी ही आत्मा भटकती हो और आप लोगों को दिखी हो शायद उस घर मे भूत हो।
तब किशनलाल जी को पूरी बात समझ में आई और उन्होंने वो सरकारी बड़ा घर छोड़ दिया फिर वही पास में किराएं के मकान में रहने लगें।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....