आज तड़के ही उठ बैठी थी राधा, उथ बैठी क्या पूरी रात सोई ही नहीं थी, मन में एक अजीब किस्म की बेचैनी थी और आंखें बार बार भर आती थीं। 
उठ कर उसने अपने पति की तरफ़ देखा, जो शायद बड़ी गहरी नींद में सो रहे थे। कुछ देर अपलक वो समीर को देखती रही, उसकी आंखें फ़िर डबडबा आयीं थीं । अपनी चुन्नी के कोने से अपनी आंखों को पोंछते हुए वो भारी मन से उठी । जब तक वो नहा कर बाथरूम से बाहर निकली तब तक समीर भी जाग गया था। अपने गीले बालों को झटकते हुए उसने समीर की तरफ़ देखा, जो उसे एक टक देखे जा रहा था। लेकिन राधा दूसरे कमरे में चली गयी।
दोनों चुप थे किसी से कोई बात नहीं कर रहा था। कोर्ट आज उनके तलाक़ का फैंसला सुनाने वाली थी और कुछ घँटों में वो दोनों एक दूसरे से हमेशां के लिये अलग हो जाएंगे ।
जज ने अपना फैंसला सुनाते हुए तलाक की मंजूरी दे दी थी । 
तभी अपनी भरी आंखों से कोर्ट रूम से बाहर निकलते हुए राधा ने कहा
राधा - अब तो तलाक़ हो गया
          तुमसे मेरा रास्ता जुदा हो गया
          अब तो बहुत ख़ुश होगे ना तुम
          अकेले आराम से रह लोगे तुम
समीर  - ऐसा ना कहो, तुम्हारी याद बहुत आएगी            
            तन्हाइयों में ये बड़ा सताएगी
राधा - तुम्हें पता है ना रसोई में दालें कहां रखी हैं
          तुम्हें राजमा बहुत भाते हैं वो अलग रखी है
          तुम्हारी पसंद की सब दालें भर दी थीं
          सब्ज़ियां भी दो तीन दिन की काट कर रख दी थीं 
समीर -   मग़र तुम्हें तो पता है मुझे कुछ   आता नहीं था
             जब तक तुम थीं खाना मैं कभी बनाता नहीं था
राधा -  कुछ समय बाद शादी कर लेना
           ज़िन्दगी को अपनी बदल लेना
समीर -   तुम जानती हो ये मुमकिन न होगा
             घर तुम्हारा है तुम्हारा ही रहेगा
राधा -  घर पत्नी से होता है फ़िर भी ऐसा क्यूं 
           औरत को ही छोड़ना पड़ता है घर क्यूं
           मग़र क्यूं मुझे अपने से अलग कर दिया
           अपने ही घर से बेदखल कर दिया
समीर -  तुम लड़ती बहुत थी मुझसे 
            लगा प्यार नहीं करती थीं मुझसे...
            मगर तुम अब अकेली कैसे रहोगी
            सारे काम अकेले कैसे करोगी...
राधा - तुम्हें क्या ! बस तुम आबाद रहना
          गये वक़्त को ना तुम याद करना
          तुम्हें याद है परसों हमारी शादी की सालगिरह है.....
समीर  - तुम यूँ पीछे क्यों हो रही हो ?
            क्या तुम रो रही हो ?
राधा - मैं तो तुमसे कितना प्यार करती थी
          तुम्हारा कितना ख़याल रखती थी
          ये घर मेरा था जो कभी
          किसी और का हो जाएगा
          घर का था जो वो बेगाना हो जाएगा
          छोड़ो, रात को अलार्म लगा के सोना
          अब कभी मैं ना उठाउंगी खुद ही तैयार होना 
समीर -  नहीं मैं तुम बिन रह नहीं पाऊंगा
            तुम बिन अकेला मैं मर जाऊंगा
            तलाक़ के कागज़ जला आओ
            और मेरी बाहों में समा जाओ
राधा - कितना सताया है तुमने
          बहुत रुलाया है तुमने
          दोबारा ऐसा किया तो घर छोड़ कर नहीं जाऊंगी          
          मैं तुम्हारी बाहों में ही मर जाऊंगी
          मुझे कभी खुद से जुदा ना करना
          गंवारा नहीं मुझे घुट घुट के मरना
समीर -  मुझसे भूल हो गई मेरा इंसाफ कर दो
            घर अपना संभालो मुझे माफ़ कर दो
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