Nidar - 5 in Hindi Children Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | निडर - 5

Featured Books
  • One Step Away

    One Step AwayHe was the kind of boy everyone noticed—not for...

  • Nia - 1

    Amsterdam.The cobbled streets, the smell of roasted nuts, an...

  • Autumn Love

    She willed herself to not to check her phone to see if he ha...

  • Tehran ufo incident

    September 18, 1976 – Tehran, IranMajor Parviz Jafari had jus...

  • Disturbed - 36

    Disturbed (An investigative, romantic and psychological thri...

Categories
Share

निडर - 5



कहानी अब तक

गट्टू भाई राजा से मिलते हैं । राजा उनकी बात सुनने के लिए दरबार में लेकर आते हैं और अपने पास बैठने के लिए स्थान देते हैं ।
अब आगे

राजा राज दरबार में राज सिंहासन पर बैठे हुए थे । महामात्य भी अपने स्थान पर बैठे हुए थे । कुछ अमात्य और सभासद भी बैठे हुए थे । कुछ अमात्य सैनिकों की चिकित्सा व्यवस्था के लिए गये थे । उनके साथ सेनापति भी सैनिकों की चिकित्सा व्यवस्था में लगे हुए थे ।
गट्टू भाई बहुत ध्यान से राज दरबार को देख रहे थे, राज दरबार की सजावट बहुत ही भव्य थी।

राजा— “बालक तुम अब सुनाओ तुम युद्ध करने क्यों आये। लेकिन तुम मुझे सबसे पहले यह बताओ कि तुम्हारे सैनिक कहॉं है । हमने तुम्हें बिलकुल अकेले देखा है,फिर तुमने अकेले हमारी सेना को युद्ध में शिकस्त दी ?”

गट्टू भाई— “महाराज मैं घर से अकेला ही चला था परंतु रास्ते में मुझे दोस्त मिलते गये, जिन्होंने मेरी समस्या को सुनते हुए मेरा साथ देना स्वीकार किया; और मेरे साथ आते गये ।अब उन्होंने ही आपके सैनिकों के साथ युद्ध लड़ा; मैंने तो अभी कुछ भी नहीं किया ।

राजा— “परंतु तुम्हारे दोस्त है कहॉं और कौन है ?”

गट्टू भाई— “मेरे कुछ दोस्त मेरी गाड़ी में है और कुछ अभी भी मेरे साथ ही है ।”

राजा आश्चर्य चकित होकर—

“परंतु तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हारी गाड़ी में कोई नहीं था और यहाँ भी तुम अकेले ही हो, फिर तुम्हारे साथ कौन है ।”

गट्टू भाई— महाराज मेरी गाड़ी में मेरी दोस्त चींटियाँ और मधुमक्खियाँ थीं और मेरे साथ इस समय ऑंधी तूफ़ान, धुआँ, आग और वर्षा है जो मेरे कान में हैं।”

राजा और राज्य सभासद सभी आश्चर्य चकित थे,उन्होंने कहा—

“यह सब तुम्हारे मित्र है, आश्चर्यजनक, यह सब तुम्हारे मित्र कान में कैसे आये? यह तो बहुत आश्चर्य जनक है ।”

गट्टू भाई— महाराज मैं दिखाता हूँ । मित्र ऑंधी, तूफ़ान और अग्नि देव, धुआँ और वर्षा रानी अब बाहर निकल कर महाराज को अपनी उपस्थिति दिखा दीजिए; लेकिन किसी का नुक़सान मत कीजिएगा ।”

तभी राज दरबार में ज़ोरों की ऑंधी तूफ़ान चलने लगा, बारिश भी होने लगी, पूरा अंधेरा हो गया, धुआँ से सबका दम घुटने लगा । उस बारिश के बीच आग के शोले दहक रहे थे। आग की लपटें दिखाई दे रही थी ।

राजा आश्चर्य चकित होकर बोले— “अपनी माया समेट लो बालक, मैंने तुम्हारे मित्रों को देख लिया ।”

क्षण भर में वातावरण पहले के समान ही हो गया । ऑंधी तूफ़ान और वर्षा रानी एवं अग्नि,गट्टू भाई के कान में पुनः स्थान बना चुके थे ।

राजा— “अब आग, धुआँ , ऑंधी तूफ़ान और वर्षा तुम्हारे कान में रह सकते हैं तो तुम्हारी गाड़ी में चींटियाँ, मधुमक्खियाँ भी अवश्य होंगी । जो सत्य के मार्ग पर चलते हैं,उनका प्रकृति भी साथ देती है , मैं इस बात को मानता हूँ।
अब तुम मुझे यह बताओ कि तुम यहाँ युद्ध करने क्यों आये थे ?”

गट्टू भाई— “महाराज जैसा कि आप भी जानते हैं इस वर्ष बारिश नहीं हुई । सभी खेत सूख चुके थे ।किसी के खेत में अनाज उत्पन्न नहीं हुआ । किसान के लिए,खुद के लिए ही भोजन पूरा नहीं था, ऐसे में आपका कर कैसे चुकाया जाता।राज्य को देने वाला कर कोई भी राज्य वासी नहीं चुका पाये ।ऐसे में राज्य कर्मचारी जाकर जबरन कर वसूली कर रहे थे । उन्हें जहॉं जो क़ीमती सामान दिखाई दिया जबरन ले लिया । मेरे घर में कृषि कार्य हेतु सिर्फ़ एक जोड़ी बैल और एक हल था ।मेरी मॉं के बहुत गिड़गिड़ाने के बाद भी राज्य कर्मचारी नहीं पसीजे और वे हल-बैल लेकर आ गये । अब हम खेती कैसे करेंगे, हम तो इस वर्ष भी कृषि कार्य नहीं कर पायेंगे । बस इसलिए मैं अपने हल- बैल प्राप्त करने के लिए युद्ध करने आ गया । यदि आप मेरे हल बैल वापस दे देंगे तो ठीक है, वरना मैं युद्ध करके अपने हल-बैल वापस ले जाऊँगा । मेरा आपसे अभी भी यही प्रश्न है, क्या आप मुझे हल- बैल वापस देंगे या मुझसे युद्ध करेंगे?”

राजा— “बालक राजा अपने राज्य की जनता से युद्ध नहीं करते हम तो जनता के पालन के लिए है । बालकों से तो हम बिलकुल भी युद्ध नहीं कर सकते । तुम निश्चित रहो तुम्हारे हल बैल तुम्हें वापस मिलेंगे ।”

राजा महामात्य की ओर मुड़े और पूछा— “महामात्य आपने सुना इस बालक ने क्या-क्या कहा? क्या हमारी जनता से जबरन कर वसूली की गई है?”

महामात्य— “सुना है महाराज मैंने सब कुछ सुना है ।
महाराज , कर वसूली तो हुई है; जबरन कर वसूली की गई है यह मुझे जानकारी नहीं है । मैं अभी जानकारी करता हूँ, महाराज ।”

राजा— “राज्य प्रशासन जनता की भलाई के लिए होती है,जनता को सताने के लिए नहीं । प्रत्येक वर्ष राज्य की जनता राज्य को कर देती है, जिससे कि हमारे राज्य प्रशासन का संचालन होता है । यह हमारा कर्तव्य है कि जनता के कष्ट के समय उनके साथ खड़े रहें।आप देखिए जिनसे जबरन कर वसूली की गई है, उन्हें वापस करियेगा ।
अनाज एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं को जनता को उपलब्ध करवाइये । इस मुसीबत के समय राज्य प्रशासन को जनता के साथ होना चाहिए ।”

महामात्य— “जी महाराज,मैं पूरी व्यवस्था करता हूँ ।”

राजा— “महामात्य , यह बालक आज़ हमारा राज्य अतिथि है । कल हम इसे राजकीय सम्मान के साथ इसके घर के लिए विदाई करेंगे । इसका हल बैल वापस करते हुए इसके विदाई की उचित सम्मान जनक व्यवस्था कीजिए ।”

महामात्य— “जी महाराज ।”

राजा— “बालक हम तुमसे अति प्रसन्न हैं, तुमने अपनी बात हम तक पहुँचाई । हमें अफ़सोस है तुम्हें इतना कष्ट उठाना पड़ा , आज तुम विश्राम करो और कल तुम अपने घर जाना ।”

राजदरबार की कार्य वाही समाप्त की गई । अगले दिन बड़े से रथ में गट्टू भाई को बैठाया गया । उसी रथ में गट्टू भाई की सरकंडे की गाड़ी भी रखी हुई थी उनके दोनों चूहों के साथ; और साथ में बहुत से धन- धान्य सुंदर पोशाक, मोती माणिक थे। जो गट्टू भाई को राजा की ओर से उपहार स्वरूप मिले थे ।

एक गाड़ी में उसके बैलों को भी जोतकर साथ में विदा किया गया था ।

उसकी गाड़ी भी अनाज एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं से भरी हुई थी । जो कि उसके और गॉंव वालों के लिए राजा ने उपहार स्वरूप दिये गये थे । उसके साथ उसे छोड़ने के लिए सैनिक भी आये थे । आते हुए रास्ते में गट्टू भाई,सभी मित्रों को उनके स्थान पर उन्हें विदाई दे रहे थे ।फिर गट्टू भाई अपने घर पर पहुँचे ।

उनके गॉंव में इतने सैनिकों के साथ गाड़ी देख कर पहले तो गॉंव वाले भयभीत हो गये, परंतु जब रथ में सवार गट्टू भाई को देखा तो गट्टू भाई की जय-जयकार करते हुए नारे लगाने लगे ।

शिक्षा— यदि इंसान में हिम्मत हो तो वह कठिन से कठिन कार्य कर सकता है । किसी भी व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है ।अपने दिमाग़ का उपयोग करते हुए सफलता मिल सकती है ।

कहानी समाप्त 💐

आशा सारस्वत