remember----- come in Hindi Fiction Stories by Dr Mrs Lalit Kishori Sharma books and stories PDF | याद- ----- आती है

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याद- ----- आती है

ईश्वर द्वारा रचित इस भौतिक सृष्टि में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी का मरण निश्चित है ठीक उसी प्रकार भौतिक संसार में आने वाली हर वस्तु का जाना भी निश्चित है, ऐसा कहा जाता है।

उच्च कोटि के संत महात्मा एवं महान दार्शनिक अपने गहन अनुभव एवं विशाल अनुसंधान के पश्चात किसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि विश्व का प्रत्येक प्राणी यहां जाने के लिए ही आता है हर चीज नष्ट होने के लिए है अर्थात इस संसार में दिखने वाला जड़ चेतन प्रत्येक पदार्थ मरण धर्मा है। अर्थात नष्ट होने वाला मरने वाला या यहां से चले जाने वाला है क्योंकि यही सृष्टि का नियम है कि जो आया है सो जाएगा।

परंतु प्रकृति के इस नियम के विपरीत हमारे और आप सबके पास एक ऐसी चीज भी है जो कभी नहीं जाती , जो पूर्णत : नष्ट भी नहीं होती , हां धूमिल अवश्य पढ़ सकती है यदि आपने उसे संभाल कर सुरक्षित ना रखा हो । परंतु कभी भी नष्ट नहीं हो सकती अर्थात वह सब के पास किसी ना किसी रूप में आती अवश्य है परंतु जाती नहीं है। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो वह आपके अपने चाहने पर भी आपके पास से जाना नहीं चाहती। आप सोच रहे होंगे अजीब और अनोखी ऐसी कौन सी चीज हो सकती है ? पर यह सत्य है कि वह अनोखी चीज आपके पास है और संभव है कि आप इस समय भी अपने मन मस्तिष्क में उसे संजोए बैठे हैं। यहां मन और मस्तिष्क शब्दों का प्रयोग इसलिए किया गया क्योंकि उसका मूलत : निवास स्थान तो मस्तिष्क ही है परंतु सच मानिए वह दिल को भी बेचैन बना देती है । निश्चय ही आप उसका नाम जानने के लिए बेचैन हो रहे हैं। हो भी क्यों ना? नाजुक सी, कोमल सी, हृदय को गुदगुदा देने वाली, दिल में चुपके से प्रवेश कर जाने वाली ,छोटी सी उस चीज का नाम है याद । किसी प्रियजन की मीठी मीठी याद निश्चय ही आपके मन को छू गई होगी। किसी मनमोहक स्थान पर प्रिय के साथ बिताए हुए समय की याद कभी-कभी हमारे दिल को बेचैन बना देती है। कभी मां को अपने लाडले बेटे की याद आती है तो कभी उस दुलारे को अपनी ममतामयी मां की। कभी प्यारे पतिदेव को अपनी इकलौती पत्नी की याद आती है तो कभी यह निगोड़ी याद प्रियतमा को अपने प्रिय के बिरहमें सुखा कर कांटा बना देती है और उस स्थिति में उसकी काया इतनी कृश हो जाती है कि अंगुली की मुद्रिका कलाई में पहनने योग्य बन जाती है।

वाह री याद !अरे ! यह याद ही तो है, जो प्रेमी और प्रेमिका को आलिंगन में आबद्ध हो प्रणय सूत्र में बंध जाने की आशा में, लंबे समय तक जीवित बनाए रखती है। प्रेमी और प्रेमिका दोनों को यदि एक दूसरे की तड़प का भान ना हो तो प्रेम का आनंद ही क्या? परंतु यदि दोनों ओर याद की कसक बराबर हो तो निश्चय जानिए कि उनका प्रेम कभी मर नहीं सकता, कभी समाप्त नहीं हो सकता। उनका प्रेम यादों की हिंडोले में झूलता हुआ सदा के लिए अमर बना रहता है


कालिदास का मेघदूत ऐसे ही अमर प्रेम की यादों से भरपूर एक अनूठा काव्य है जो एक वियोगी यक्ष की यादों से आप्लावित होने के कारण ही न केवल संस्कृत साहित्य में आज भी विश्व साहित्य में बेजोड़ है। अपनी प्रियतमा के वियोग से संतप्त यक्ष जब आषाढ़ के प्रथम दिन पर्वत की चोटी से लिपटे हुए मेघ
को देखता है तो वह भी अपनी प्रिय की यादों में खो जाता है व्याकुल हो जाता है । वियोगी जनों के लिए यह यादें ही तो एकमात्र सहारा है इन बादलों को देखकर जब सुखी जनों की चित्तवृत्ति भी डगमग हो उठती है तब उन दुर्भाग्य पीड़ितों की क्या दशा होती होगी जो अपने प्राण प्रिया के कंठ आलिंगन की यादों को हृदय में संजोए तड़प रहे हैं।


विरही यक्ष के हृदय को व्यतीत करने वाली यादें किसी परकीया प्रेयसी के प्रति नहीं है अपितु अपनी पतिव्रता धर्म पत्नी के साथ बीते हुए मधुर क्षणों की यादें हैं। इसीलिए उन यादों के कारण अपनी पत्नी की वियोग विधुर दशा के प्रति उसका अटूट विश्वास दृष्टव्य है । यक्ष पूर्ण विश्वास के साथ मेघ से कहता है कि -----"हे मेघ! कभी तुम मेरी प्रिया को मेरा चित्र बनाने का विफल व्रत करती हुई पाओगे और कभी गोद में वीणा रखकर प्रिय के नाम की गीतिका द्वारा मनोविनोद का व्यर्थ उपक्रम करती हुई देखोगे"--- यक्ष की याद में यह भी समाया हुआ है कि मेरी प्रिया मेरी याद में पिंजरे में बैठी सारिका से अवश्य ही यह पूछती होगी कि -----"हे सारिके ! क्या तुझे भी कभी अपने स्वामी की याद आती है?"---- बिरहा की इन यादों में केवल प्रिय से पुनर्मिलन की आशा ही उन्हें थामें रखती है और उनके कोमल हृदय को टूटने से रोक पाती है। वास्तव में यह यादें भी अतुलनीय हैं।


वास्तव में ---"जो कभी किसी की याद में ,किसी के वियोग में, सिसक सिसक कर ,बिलख बिलख कर, तड़प तड़प कर, चीख चीख कर ,--ना रोया हो,--- वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है जिस पर सैकड़ों मुस्कान न्योछावर की जा सकती हैं।"


विरही यक्ष का दृष्टांत तो यादों के गुलदस्ते का एक छोटा सा कुसुम मात्र है जो आपको भेट किया गया। वस्तुतः विश्व का संपूर्ण साहित्य ऐसी ही अपार यादों से भरपूर है जिसमें न केवल प्रेमी प्रेमिका की अपितु माता पिता भाई बहन मित्र न जाने कितने ही अपनों की यादें समाई हुई है । कभी-कभी तो अविस्मरणीय क्षणों ,स्थानों, पशु पक्षी, जड़ चेतन सभी की यादें हमारे मन मस्तिष्क को व्यथित कर देती हैं क्योंकि यह मस्तिष्क से आती हैं और मन के किसी अदृश्य कोने में छुप कर बैठ जाती है। शायद इन यादों के बारे में सोच कर ही श्री मैथिलीशरण गुप्त ने पंचवटी में कहां है

कोई पास न रहने पर भी
जन मन मौन नहीं रहता
आप आप से कहता है वह
आप आप कि है सुनता ।

यादों की दुनिया ही विचित्र है , कभी हम अपनी यादों की दुनिया में अपने आप से ही बातें करते रहते हैं। हमें कभी जाने वाले की याद आती है और कभी हमें आने वाले की भी याद आती है। हम कहते हैं कि
"जाने वाला कभी लौटकर नहीं आता सिर्फ उसकी याद आती है"
परंतु प्रेमिका यह भी गाती सुनाई पड़ती है कि

लो आ गई उनकी याद
पर वह नहीं आए।


और अब शायद आप भी किसी की याद में खोए होंगे। अपने किसी प्रिय की मधुर सी याद आपके भी दिल को छू गई होगी । ऐसे में मुझे आप दोनों के बीच से हट जाना चाहिए क्योंकि किसी की याद के समय किसी तीसरे की उपस्थिति अच्छी नहीं लगती। अच्छा तो इस शुभकामना के साथ कि कभी भी भुलाई ना जाने वाली प्रिय की मधुर याद सदैव आकर आपके हृदय को गुदगुदाती रहे और आपको आनंदित करती रहे। हम आपसे विदा लेते हैं । हो सके तो कभी हमें भी याद करना।




इति