ये बात कोई दस पन्द्रह साल पुरानी है,तब मेरी उम्र यही कोई तीस पैंतीस साल रही होगी, मैं सरकारी अस्पताल में गायनोलोजिस्ट थी,मेरा उस कस्बे में नया नया तबादला हुआ था,एक ही दो महीने हुए थे मुझे वहां रहते हुए,कस्बा ज्यादा बड़ा नहीं था, इसलिए मेरी बेटी को मैं उसकी दादी के पास ही छोड़कर आई थी, क्योंकि बेटी चार साल की हो चुकी थी,जिसे मेरी सास आराम से सम्भाल लेतीं थीं, चूंकि मेरे काम के मद्देनजर मैं बेटी को ज्यादा समय नहीं दे पाती थी इसलिए मेरी बेटी मुझसे कम दादी से ज्यादा लगाव रखती थी और मेरे पति ,मेरे ससुर के साथ अपनी खानदानी कपड़ों की दुकान सम्भालते थे,इस कारण वो भी मेरे साथ नहीं रहते थे।।
जिस कस्बे में मेरा घर था और जिस कस्बे में मेरा अस्पताल था उस कस्बे की दूरी यही कोई चालिस पैंतालिस किलोमीटर थी, इसलिए मैं ही वीकेंड में घर चली जाती थी इसके लिए मैंने भी अपनी एक खुद की कार खरीद ली थी और ड्राइविंग भी सीख ली थी और फिर हर जगह औरत को ही संतुलन बनाकर रखना पड़ता है,अपनी गृहस्थी सम्भालने के लिए।।
एक दिन मैं अपने अस्पताल में बैठी थी,तभी एक शख्स घबराए हुए से आए और बोले___
डाक्टरनी साहिबा! कृपया ! आप मेरे साथ मेरे घर चलें,मेरी पत्नी की तबियत ठीक नहीं है।।
तभी नर्स ने उन्हें पहचानते हुए कहा___
क्या हुआ जोशी जी? आप इतने घबराए से हैं,सब ठीक तो है।।
सिस्टर! सब ठीक नहीं है, इसलिए तो आया हूं,पत्नी की हालत ठीक नहीं है वो गर्भवती हैं, जोशी जी बोले।।
तभी मैंने कहा तो देर मत कीजिए,आप मुझे इसी वक़्त मरीज़ के पास ले चलें।।
जोशी जी अपनी कार लाए थे, इसलिए उनके घर जाने में कोई असुविधा नहीं हुई,हम कार में बैठें और उनके घर को चल दिए।।
मैं बड़े ध्यान से उनके घर का रास्ता देखती जा रही थी,कस्बे से बाहर , सबसे अलग एकान्त में उन्होंने अपना बड़ा सा हवेलीनुमा घर बनवा रखा था,रास्ता भी जरा ऊबड़-खाबड़ सा था,कस्बे से शहर की दूरी यही कोई पांच छः किलोमीटर होगी,कुछ ही देर में हम उनके घर पहुंच गए, उन्होंने कहा ऊपर वाले माले में उनका कमरा है और वो मुझे वहां लेकर गए।।
मैंने फ़ौरन उनकी पत्नी का मुआयना किया,उनसे उनकी तकलीफ़ पूछी फिर उन्हें एक इंजेक्शन दे दिया,पता चला कि उनकी पत्नी पांच महीने की गर्भवती हैं और शादी के बहुत सालों बाद उनकी जिंदगी में ये सुख आया था, इसलिए पत्नी की हालत को लेकर वो बहुत संजीदा थे।।
बातों बातों में उन्होंने बताया कि उनके मां बाप तो रहे नहीं,एक बड़ा भाई है जो जायदाद को लेकर उनसे मनमुटाव कर बैठा और बात भी नहीं करता और मेरी पत्नी का मायका बहुत दूर है इसलिए कारोबार छोड़कर मैं इसके पास ही बना रहता हूं,क्या करूं इन्हें इस हालत में छोड़ भी नहीं सकता ,क्या पता इसे अब कौन सी तकलीफ़ आ जाएं?
मैंने उनसे कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है,अब उनकी हालत बेहतर है,कुछ देर के बाद जोशी जी की पत्नी को आराम लग गया और वो सो गईं, मैं ने उनसे कहा कि अब मैं चलती हूं।
तब जोशी जी बोले___
चाय पीकर जाइए,मुझे अच्छा लगेगा।।
मैं चाय के लिए मना ना कर पाई,
जोशी ने किसी को आवाज लगाते हुए कहा___
अरे मनकी काकी जरा चाय तो लाना....
और कुछ देर बाद एक बूढ़ी सी औरत चाय लेकर उपस्थित हो गई....
जोशी जी बोले___
ये मनकी काकी है,ये हमारी रसोई सम्भालती है और एक रनिया आती है जो घर की साफ-सफाई और बर्तन मांजने का काम करती है,एक माली भी रख रखा है,बस हम पांच सदस्य ही इस घर में रहते हैं,शाम का खाना बनाकर मनकी काकी के संग रनिया और माली भी चले जाते हैं,तब हम दोनों ही इस घर में बचते हैं,बड़ा घर है ऊपर से कस्बे से दूर है इसलिए बरखा को डर लगता है,तब मुझे पता चला कि उनकी पत्नी का नाम बरखा है।।
ठीक है तो चलिए मैं आपको छोड़कर आया हूं और जोशी जी मुझे वापस अस्पताल छोड़ गए।।
उस दिन के बाद ये सिलसिला चल पड़ा जब तक बरखा ने बच्चे को जन्म ना दे दिया तो दस पन्द्रह दिन में मुझे उसकी तबीयत देखने जाना ही पड़ जाता था, क्योंकि बरखा कमजोर थी और शादी के कई सालों बाद उसने कन्सीव किया था।।
ऐसे ही दिन गुजर रहे थे और फिर एक रात वो पल आ ही पड़ा जब बरखा को लेबरपेन उठने लगे,उस रात मैं अपने अस्पताल के कमरें पर ही थी, कमरें का टेलीफोन बज पड़ा, जोशी जी का फोन था कि बहुत ही इमरजेंसी है आपको आना होगा, चूंकि मैं इस हालत में बरखा को नहीं छोड़ सकता क्योंकि घर में कोई नहीं है इसलिए आपको स्वयं अपने साधन से आना होगा।।
मैने हां तो बोल दी, क्योंकि मैं अपने पेशे से दगा नहीं कर सकती थी, डाक्टर को तो दूसरा भगवान माना जाता है, लेकिन मैं वहां जाऊं कैसे?इस कस्बे में साधन भी नहीं थे, इसलिए मैंने अपनी कार से जाना ही मुनासिब समझा,जरूरत का सारा सामान रखा और कार निकाली।।
बाहर बहुत अंधेरा था क्योंकि उस रात अमावस की रात थी, मैंने कार स्टार्ट की और चल पड़ी, लोगों से मैंने सुन तो बहुत रखा था कि वो रास्ता अच्छा नहीं है, मैं इन सब चीज़ों पर विश्वास नहीं करती थीं,बस मुझे अंधेरे से डर लग रहा था,भूत प्रेत से नहीं।।
रोड पर एक भी वाहन नज़र नहीं आ रहे थे, मैं बस ऐसे डरते डरते चली जा रही थी,तभी मैंने अचानक देखा कि एक बच्ची ने फ्रौक पहन रखी थी और वो साइकिल चलाती हुई बीच रोड पर चली जा रही थी,मुझे थोड़ा अटपटा सा लगा कि इतने रात गए कौन अपनी बच्ची को बीच रोड पर साइकिल चलाने के लिए छोड़ता है,कैसे वाहियात लोंग हैं?
मैंने अपनी कार का हार्न बजाया कि वो लड़की साइड हो जाएं लेकिन वो लड़की सुन ही नहीं रही थी, मैंने अब हार्न को दबाकर रखा,पूरी सड़क में हार्न की आवाज गूंज गई और अब उस लड़की ने धीरे-धीरे अपनी गर्दन और चेहरे को पीछे की ओर घुमाया लेकिन उसके गर्दन के नीचे का हिस्सा अभी भी साइकिल चलाते हुए आगे बढ़ रहा था,ये नजारा देखकर मेरे होश उड़ गए और मैंने आंखे मूंद ली,कार को ब्रेक लगाया,कार खड़ी हो गई।।
फिर डरते डरते मैंने आंखे खोलीं,कार की हैडलाइट फिर से जलाई तो देखती हूं कि वो लड़की अपनी साइकिल से उतरी और मेरी ओर बढ़ने लगी,उसकी भयानक आंखें और खून से भरा चेहरा देखकर मेरी तो घिग्घी बंध गई,अब मैं क्या करूं? कुछ सूझ ही नहीं रहा था,ऐसा लगा आज तो मौत सामने खड़ी है,तभी अचानक एक बिल्ली ना जाने कहां से उछल कर उस लड़की पर झपट पड़ी,वो लड़की अचानक ही गायब हो गई।।
उस लड़की के गायब हो जाने के बाद वो बिल्ली मेरे कार के बोनेट पर कुछ देर बैठी रही फिर खुद ही उतरकर ना जाने कहां चली गई, मैंने अपना होश सम्भाला और जोशी जी के घर पहुंची।।
मैं सब भूलकर बरखा के इलाज में लग गई, बरखा का मुआयना किया,उसे इंजेक्शन लगाया कुछ देर के बाद बरखा ने चांद सी बेटी को जन्म दिया, जोशी जी कि खुशी का ठिकाना ना था, उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया।।
मैं रात भर जच्चा-बच्चा की निगरानी में लगी रही,सुबह होने को थी अब मेरी आंखें झप रहीं थीं, जोशी जी ने मेरी हालत देखी तो बोले, मैं अभी आपके लिए चाय बनाकर लाता हूं,उधर मेहमानों वाले कमरे का वाॅशरूम है,आप जाकर हाथ मुंह धो लीजिए,रात भर से काम में लगीं हैं,थक गई होगी ।।
मैं ने घर का हाॅल पार किया ही था कि मुझे एक तस्वीर दिखी जिस पर फूल माला चढ़ी थी, मैंने जोशी जी को आवाज दी,वो हाॅल में आए और मुझसे पूछा कि क्या बात है?
तब मैंने उनसे पूछा कि ये तस्वीर किसकी है?
तब वो बोले....
कुछ साल पहले ये हमारे साथ ही रहती थी, लेकिन एक हादसे ने इसे हमसे छीन लिया,जब बरखा शादी होकर आई थी,तब वो इसे अपने साथ लाई थी।।
ये सुनकर मैं दंग रह गई क्योंकि ये तस्वीर तो उसी बिल्ली की थी,जिसने रात को मेरी जान बचाई थी,क्या वो बिल्ली यही थी?
समाप्त....
सरोज वर्मा...