प्रेत लोक 07
प्रेत की बात को सुनकर तांत्रिक योगीनाथ, रुद्र, मनोज और सुनील एक दूसरे को देखते रह जाते हैं और रुद्र तांत्रिक योगीनाथ से कहता है की “योगीनाथ जी अब हम किस तरह से इसे यहाँ से दूर करेंगे, ये एक किन्नर है वो भी काम का भूखा उसके लिए सुनील एक सही शिकार है”
अब आगे : तांत्रिक योगीनाथ रुद्र की बात को सुनकर चिंतित हो गए और फिर कहा “बात तो सही है रुद्र पर तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है हर समस्या का कुछ न कुछ तो समाधान जरूर होता है, मुझे कुछ समय अकेला रहना पड़ेगा पर उसके पहले मुझे ये शरीर मतलब विकास के शरीर का त्याग करना होगा क्योंकि मानव शरीर की कुछ पाबंदियां होती हैं और में ये भी नहीं चाहता की जो भी में करूँ उसका असर इस पर हो”।
तांत्रिक योगीनाथ उसी कमरे में पूर्व की ओर मुख करके ध्यान में बैठ गए और कुछ ही देर बाद विकास का शरीर झटके खाने लगा धीरे- धीरे विकास के शरीर से एक सफ़ेद प्रकाश निकलने लगा, उस प्रकाश के निकलते ही विकास बेसुध हो कर वहीं गिर गया और वो सफ़ेद प्रकाश विकास से अलग हो कर अब एक आकृति में आने लगा। सभी ने देखा की वो प्रकाश एक पुरुष के आकर में आ रहा है जो छह फुट ज्यादा लंबा है, सर के ऊपर कुछ जटाएं बंधी हुई हैं और कंधे तक लटक रहीं हैं, पुरे शरीर पर भस्म लगी है माथे पर त्रिपुण्ड बना हुआ है, शरीर पर वस्त्र के नाम पर केवल एक अंगिया है पैरों और हाथों में अष्ट धातु के कड़े हैं, गले में रुद्राक्ष की कई मालाएं है जो काफी बड़ी हैं कई तो पेट तक आ रहीं है, दाड़ी लम्बी है और छाती तक लटक रही है पर चेहरे पर एक अलग ही चमक है।
तांत्रिक योगीनाथ के अघोरी रूप को देखकर चारों दोस्त और वहां उपस्थित प्रेत भी कुछ समय के लिए जैसे बुत बन गए, न तो कुछ कहते बन पड़ रहा है और न ही पलक झपकते क्योंकि उनके मुख के तेज और कांति ने जैसे सभी को मंत्र मुग्ध कर दिया है, तांत्रिक योगीनाथ अपने वास्तविक रूप में सभी के सामने हैं और सब को अपनी ओर इस तरह देख कर वो एक हाँथ आसमान में उठा चुटकी बजाते हैं।
योगीनाथ जी के चुटकी बजाते ही सभी की टकटकी टूट जाती है और वो सभी एक दूसरे को देखने लगते हैं। रुद्र और बाकी सभी भी योगीनाथ जी को दंडवत प्रणाम करते हैं और प्रश्न वाचक नज़रों से योगीनाथ जी की तरफ़ देख रहें हैं इतने में रुद्र ने कहा “आपको तांत्रिक कहूँ या अघोरी महाराज या कुछ और ये तो पता नहीं पर आपको देख कर ये जरूर समझ गया हूँ की आप जो भी हों आप एक सिद्ध पुरुष हैं और आप अपनी एक हज़ार साल की समाधि को तोड़कर सिर्फ हमारे लिए यहाँ हैं”
विकास जो की अब होश में आ चूका है और वो ये सब घटना क्रम समझने की कोशिश कर रहा है पर वो किसी से कुछ कह नहीं रहा क्योंकि वो जानता है की आज नहीं तो कल उसे सब पता लग जायेगा पर वो इतना तो समझ ही चूका है की कुछ न कुछ तो हुआ है और जो भी कुछ हुआ है वो उनके रायसेन वाले ट्रिप से संबंधित है।
तांत्रिक योगीनाथ रुद्र की बातों को सुनकर हँसते हुए बोले “बेटा मुझे इतना सम्मान देने की जरूरत नहीं है में तो एक छोटा सा महाकाल का दास हूँ, अगर सम्मान करना ही है और किसी के सामने दंडवत होना है तो अघोरी के अघोरी, भूतों के भूत भूतनाथ भगवान महाकाल के सामने हो। क्योंकि शायद ये उनकी ही इच्छा थी जिससे विकास ने मेरी समाधि को भंग किया और गुस्से में उसे सबक सिखाने के मकसद से में उसके साथ यहाँ तक आया, नहीं तो में ये सब कैसे जान पाता।
रुद्र तांत्रिक योगीनाथ से बोला “महाराजा आपसे निवेदन है की आप अपने बारे में हमें सब कुछ बताने की कृपा करें क्योंकि अब हम सब आपके बारे में जाने बिना नहीं रह सकते कृपया कर इस बार मना करना”।
तांत्रिक योगीनाथ हँसते हुए सभी की तरफ़ देख रहें हैं और उनके चेहरे के भाव से साफ़ दिख रहा है की इस समय वो बहुत ही खुश हैं, योगीनाथ जी आसन पर बैठते हुए बोले “रुद्र बैसे ये सही समय नहीं है क्योंकि संघतारा इस समय हमारे कमरे के ऊपर ही बैठा हुआ है पर फिर भी क्योंकि तुम सब बार- बार मुझसे ये जानना चाहते हो इसलिए में कहता हूँ, पर उसके पहले मुझे इस कमरे को चारों तरफ़ से सुरक्षित करना होगा”।
इतना कह कर तांत्रिक योगीनाथ उठकर कमरे को सुरक्षित करने के लिए उठे पर इतने में ही उन्हें फिर से सुनील के चेहरे पर कुछ नज़र आया और वो रुद्र, मनोज और विकास को इशारा करके सुनील से दूर रहने के लिए कहते हैं, सुनील जो की अब से कुछ देर पहले तक योगीनाथ जी के सुरक्षा घेरे में था वो सभी की बातों को सुनने और वहां मौजूद प्रेत से डर कर सुरक्षा घेरे से बाहर आ गया है।
सुनील की आँखें लाल हैं और वो जमीन को दोनों नाखूनों से कुरेद रहा है तांत्रिक योगीनाथ को देख कर वो जोर-जोर से हँसता हुआ बोला “ ऐ तांत्रिक तुझे क्या लगा तुं मुझे इतनी आसानी से यहाँ से निकल देगा, अरे तेरे जैसे कई तांत्रिक, पंडित और मौलाना मिलकर भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते फिर तो तू अकेला है वो भी आत्मा के रूप में, तेरे जैसे लोग शरीर के साथ मेरा कुछ नहीं कर सकते तू क्या कर लेगा”।
इतना कह कर प्रेत संघतारा ने अपना सर जोर से दीवार पर मार दिया जिससे सिर से खून निकलने लगा, अब तो उसका चेहरा और भी भयानक लगने लगा सर से टपकता जो खून होंठ तक आ रहा है उसे वो बहुत ही स्वाद से जीभ निकाल के चाटता जा रहा है और बहुत ही भद्दी हंसी हंस रहा है।
अब वो एक ही झटके में उठ कर खड़ा हो गया और फिर से सर को दीवार से मारने ही वाला था की इतने में तांत्रिक योगीनाथ ने अपना हाँथ हवा में उठाया और कुछ मंत्र पढ़ कर ‘फट’ कहते हुए उसकी तरफ़ किया जिससे वो जहाँ था वहाँ पर ही रुक गया मानो किसी ने उसे पीछे से पकड़ रखा हो, पर ये दाव उसे बहुत देर तक रोक नहीं पाया और ‘हूँ’ की आवाज के साथ वो पलट गया, अब वो एकदम तांत्रिक योगीनाथ के सामने है।
अगला भाग क्रमशः - प्रेत लोक 08
सतीश ठाकुर