Pawan Granth - 23 in Hindi Mythological Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 23

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 23



अध्याय सत्रह

तीन प्रकार की श्रद्धा

अनुभव— दादी जी, मैं कैसे जानूँगा कि मुझे किस प्रकार का भोजन करना चाहिए?

दादी जी— तीन प्रकार के भोजन हैं, अनुभव । भोजन, जो दीर्घ आयु, गुण ,शक्ति, स्वास्थ्य , प्रसन्नता, आनंद देते हैं , वे रस- भरे , तरल, सार भरे और पौष्टिक होते हैं ।ऐसे स्वास्थ्य-वर्धक भोजन सर्वश्रेष्ठ हैं । वे सात्विक या शाकाहारी भोजन कहलाते हैं ।

भोजन, जो कड़वे, कसैले, नमकीन, गर्म, तैलपूर्ण और जलन पैदा करने वाले हैं, राजसिक कहलाते हैं । ऐसे तत्वहीन भोजन स्वास्थ्य-वर्धक नहीं हैं, वे बीमारी पैदा करते हैं उनसे बचना चाहिए ।

भोजन जो ठीक से पकाये नहीं गये हैं, , सड़ गये हैं, स्वादहीन हैं, ख़राब हो गये हैं, जल गए हैं, बासी, जूठा है या मांस - मदिरा जैसे अपावन हैं— तामसिक भोजन कहलाते हैं । ऐसे भोजन नहीं करने चाहिए ।

अनुभव— मुझे दूसरों से कैसे बोलना चाहिए?

दादी जी— तुम्हें कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए । तुम्हारे शब्द कठोर , कड़वे, बुरे या अपमान-जनक नहीं होने चाहिए । वे मीठे, लाभकारी और सच्चे होने चाहिए । जो विनम्रता से बोलता है, वह सबका हृदय जीत लेता है और सबका प्रिय होता है । विद्वान व्यक्ति को सदा सच बोलना चाहिए यदि वह लाभकारी है और यदि कठोर है तो चुप रहना चाहिए । ज़रूरतमंद की सहायता करना अच्छी शिक्षा है ।

अनुभव— मुझे दूसरों की सहायता कैसे करनी चाहिए?

दादी जी— हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी सहायता करें जो हमसे कम भाग्यशाली है और स्वयं की सहायता नहीं कर सकते । जिसको भी ज़रूरत हो, उसकी मदद करो लेकिन बदले में किसी चीज़ की आशा न करो । दान देना न केवल सर्वश्रेष्ठ कर्म है, वरन् धन का एक सदुपयोग है । हमें अच्छे उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता करनी चाहिए । जो दुनिया का है, वह उसे लौटा दो । किंतु हमारी ज़िम्मेदारियाँ भी हैं । दान में दिया हुआ धन , ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से कमाया हुआ नहीं होना चाहिए और हमें यह बात पक्के तौर से जान लेनी चाहिए कि दान लेने वाला व्यक्ति दान का उपयोग बुरे कामों के लिये नहीं करेगा ।

अनुभव— यदि हम निष्ठा से प्रार्थना करें, तो क्या भगवान हमें वह वस्तु देंगे, जो हम चाहते हैं?

दादी जी— भगवान में पूर्ण आस्था के साथ काम करना चाहिए । आस्था से कुछ भी संभव हो सकता है । आस्था से अलौकिक चमत्कार होता है । किसी भी काम को शुरू करने से पहले, हममें भगवान के प्रति आस्था होनी चाहिए ।
गीता में कहा गया है कि यदि हमें अपना लक्ष्य सदा याद रहे और विश्वास के साथ भगवान से प्रार्थना करें तो हम जो भी होना चाहेंगे, वह बन सकेंगे । सदा सोचते रहो जो तुम होना चाहते हो और तुम्हारा सपना पूरा हो सकता है ।

एक कहानी है जो एक कौए के बारे में है, जिसे इसमें पूरा विश्वास था—

कहानी (23) प्यासा कौआ

भयंकर गर्मी का दिन था । एक कौआ बहुत प्यासा था। पानी की खोज में वह जगह-जगह उड़ता रहा । उसे कहीं भी पानी नहीं मिला । तालाब, नदी, झील सब सूख गए थे । कूएँ में पानी बहुत गहरा था । वह उड़ता रहा, उड़ान भरता रहा । वह थक रहा था तथा और अधिक प्यासा हो रहा था । उसने पानी की खोज जारी रखीं, पानी को खोजता रहा । उसने हिम्मत नहीं हारी ।

अन्त में उसने सोचा कि मृत्यु निकट ही है । उसने भगवान का ध्यान किया और पानी के लिए प्रार्थना करनी शुरू की । तभी उसने एक घर के पास में पानी का एक घड़ा देखा । उसे देख कर वह बहुत खुश हुआ क्योंकि उसने सोचा कि घड़े में पानी होना चाहिए । वह घड़े पर बैठ गया और उसमें झांक कर देखा । उसकी निराशा की सीमा न रही, जब उसने पाया कि पानी घड़े की तली में था । वह पानी देख सकता था पर उसकी चोंच पानी तक नहीं पहुँच सकती थी । वह बहुत ही दुःखी हुआ और सोचने लगा कि किस प्रकार वह पानी तक पहुँच सकता था । अचानक उसके मन में एक विचार आया । घड़े के पास ही पत्थरों के टुकड़े पड़े थे । उसने धरती पर पड़े पत्थरों के टुकड़ों को एक-एक करके उठाया और घड़े में डालना शुरू कर दिया ।
पानी ऊपर उठता गया । जल्दी ही कौआ आसानी से पानी तक पहुँच गया । उसने पानी पिया, भगवान को धन्यवाद दिया और प्रसन्न होकर वह दूर उड़ गया ।

इसलिए कहा गया है कि “जहॉं चाह है वहाँ राह हैं ।”
कौए ने वही किया जो हम सब को करना चाहिए ।उसने हार नहीं मानी । उसे विश्वास था कि उसकी प्रार्थना ज़रूर सुनी जायेगी ।

अनुभव, एक और अच्छी कहानी सुनो—

कहानी ( 24 ) ख़रगोश और कछुआ

कछुआ हमेशा बहुत धीरे चलता है । ऐसे ही एक कछुए का एक ख़रगोश मित्र था । ख़रगोश मित्र, कछुआ की धीमी चाल पर हँसता था ।

एक दिन कछुए को अपना अपमान अधिक सहन नहीं हुआ और उसने ख़रगोश मित्र को अपने साथ दौड़ लगाने के लिए ललकारा । जंगल के सारे जानवर,उसके इस विचार पर हँसे क्योंकि दौड़ तो सदा बराबर वाले जीवों में होती है । एक हिरन ने निर्णायक होने के लिए अपनी सेवाएँ अर्पित की।

दौड़ शुरू हुई । ख़रगोश तेज़ी से दौड़ा । जल्दी ही वह कछुए से बहुत आगे निकल गया ।चूँकि ख़रगोश विजय-स्तंभ के पास आ रहा था, उसे अपनी जीत पर पूरा विश्वास था । उसने पीछे की ओर धीरे-धीरे घिसटते कछुए को देखा,
जो बहुत पीछे रह गया था ।

ख़रगोश को अपनी विजय का इतना विश्वास था कि उसने सोचा , “मैं पेड़ के नीचे बैठकर कछुए का इंतज़ार करूँगा, मुझे थोड़ा आराम भी मिल जायेगा । जब वह यहाँ आ जायेगा, तो मैं तेज भागकर उससे पहले समाप्ति-सीमा को पार कर लूँगा । ऐसा करने पर कछुए को क्रोध आयेगा और कछुए को अपमानित देखने से बड़ा आनंद आयेगा ।”

तब ख़रगोश मित्र एक पेड़ के नीचे बैठ गया । कछुआ अब भी बहुत पीछे था । ठंडी हवा धीरे-धीरे बह रही थी । कुछ देर बाद ख़रगोश की ऑंखें लग गई, वह सो गया ।

जब वह जागा तो उसने कछुए को समाप्ति-रेखा के पार देखा । ख़रगोश दौड़ में हार गया था । जंगल के सारे पशु ख़रगोश पर हंस रहे थे । उसने एक मूल्यवान पाठ सीखा था।

“धीरे, पर दृढ़ता से चलने वाला दौड़ जीतता है ।”

अनुभव,यदि तुम परिश्रम करो और दृढ़ विश्वास रखो तो किसी भी काम में सफल हो सकते हो । जो तुम चाहते हो, उसके प्रति उत्साहित रहो और तुम्हें उसकी प्राप्ति होगी ।हम अपने विचारों और कामनाओं से ही बनते हैं । विचार हमारे भविष्य के निर्माता हैं । हम वही बन जाते हैं, जिसका हम सदा चिंतन करते हैं । इसलिए कभी नकारात्मक विचार मन में न आने दो। अपने ध्येय की ओर बढ़ते रहो । आलस, लापरवाही, और देरी करने से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा । हृदय में अपने सपने जगाये रखो , वे पूरे होंगे । भगवान में विश्वास रखने और सफलता में दृढ़ निश्चय से सारी बाधाओं को दूर किया जा सकता है ।

किंतु सफलता का फल दूसरों के साथ बाँटा जाना भी चाहिए ।

यदि तुम दूसरों के सपनों को पूरा करने में सहायता करोगे, भगवान तुम्हारे सपने भी पूरे करेंगे ।

एक कहानी मैं तुम्हें अध्याय सत्रह में कल सुनाऊँगी ,
अनुभव ।

क्रमशः ✍️


सभी पाठकों को नमस्कार 🙏
पावन ग्रंथ—भगवद्गीता की शिक्षा, अध्याय एक से अध्याय अठारह तक सरल भाषा में पढ़िए ।