kaam yogi upnyas in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | कामयोगी उपन्यास -- सुधीर कक्कड़ यशवंत कोठारी

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कामयोगी उपन्यास -- सुधीर कक्कड़ यशवंत कोठारी

एक पाठकीय प्रतिक्रिया

कामयोगी उपन्यास -- सुधीर कक्कड़

यशवंत कोठारी

यह पुस्तक काफी समय पहले खरीदी गयी थी ,किताबों के ढेर में दब गयी ,अचानक हाथ आई ,रोचक लगी ,पढ़ गया ,सोचा पाठकों तक भी कुछ सामग्री पहुंचाई जाय , सो यह पाठकीय प्रतिक्रया पेश -ए-खिदमत है.

द असेटिक ऑफ़ डिज़ायर सुधीर कक्कड़ का पहला उपन्यास है जो हिंदी में काम योगी के नाम से छपा .अपनी तरह का यह पहला उपन्यास है ,जो काम -सूत्र के प्रणेता वात्स्यायन के जीवन को आधार बना कर लिखा गया है .सुधीर जाने माने मनोरोग चिकित्सक है उनका तकनिकी लेखन काफी चर्चित रहा है.उन्होंने कई विदेशी विश्व विद्ध्यालयों में पढाया भी है .अनुवाद कृष्णमोहन का है.

खुशवं सिंह ने सही लिखा-उन्होंने अनूठे शिल्प का प्रयोग किया है,अद्भुत रूप से पठनीय पुस्तक .

वास्तव में यह उत्तर आधुनिक कथा है जिसे वापस लिखा गया है.ऐतिहासिक विचार से वात्स्यायन का काल पहली से छठी शताब्दी के बीच था.उस समय गुप्त काल था.देश में साहित्य कला विज्ञान व् संस्कृति का स्वर्ण युग था.सांस्कृतिक विकास था.तभी शायद वाराणसी में इस ऋषि का जन्म हुआ ,उनका लिखा ग्रन्थ पाठ्य पुस्तक नहीं बना लेकिन एक विरासत बना.लेखक ने एक शिष्य के रूप में वात्स्यायन के आश्रम में प्रवेश लिया ,उनकी सेवा की और पठान पाठन के साथ साथ ऋषि के जीवन के किस्से ,संस्मरण भी सुने उन्ही को सुधीर ने कल्पना के साथ साथ लिपि -बद्ध किया .उपन्यास का रूप देने के लिए ऋषि के प्रसिद्द ग्रन्थ से श्लोक लिए और उनको ऋषि जीवन के साथ जोड़ा.सुधीर के अनुसार ऋषि की माँ व मौसी कौशाम्बी में गणिकाएँ थी . पिता एक आश्रम में थे.रोज़ नए लोग,नए विचार नए कौतुक ऋषि देखते और मन में सोचते क्या कोई ग्रन्थ रचा जा सकता है?समय आया और काम सूत्र का जन्म हुआ.चौसठ कलाओं का प्रादुर्भाव हुआ .

सुधीर ने १९९५ में इस उपन्यास का लेखन जर्मनी बर्लिन में शुरू किया १९९७ में लेखन पूरा हुआ .

इस रचना में कई चेप्टर्स है कुछ के शीर्षक रोचक व विचारणीय है ,बानगी देखे -

१- सदाचरण का क्या लाभ ,जबकि उसके फल इतने अनिश्चित हों?

2-सिद्धांत ही मूल है भले ही व्यावहारिकता से उसका रिश्ता न हो .

3-जहाँ धन और प्रेम दोनों उपस्थित हों ,वहां प्रेम को छोड़ कर धन को अपनाना चाहिए.

४-प्यार न मिलने पर स्त्री आहत और उग्र हो जाती है.

५-इच्छा स्वभानिक होती है जो बढती रहती है .

वात्स्यायन का पूरा नाम मलंग वात्स्यायन था,वे कौशाम्भी में पैदा हुए ,उनका विवाह मालविका से हुआ मगर वैवाहिक जीवन ज्यादा सफल नही रहा मालविका अक्सर वन में जाकर अपना समय व्यतीत करती थी घर के काम भी ज्यादा नहीं थे आचार्य अपने लेखन में व्यस्त रहते थे,मालविका काम विज्ञान के प्रायोगिक चाहती थी सैद्धांतिक श्लोक लेखन आचार्य को मुबारक,ले खक रुपी शिष्य वन में उनके प्रेमी की तरह हो गया , मगर आचार्य की जानकारी से.पत्नी के एकांत को आचार्य ने भी महसूस किया जो हर स्त्री को महसूस होता है.शाब्दिक पहेलियाँ खेलते हुए मनोरंजन करना चाहिए.लेकिन वात्स्यायन यह नहीं कर पायें .

बल और साहस पुरुषों के गुण है निर्बलता,ऐंद्रिकता और निर्भरता स्त्रियों की विशेषता है.प्रेम ही शाश्वत है ,धर्म अर्थ काम से चल कर मोक्ष मिलता है. जहाँ काम की अवधारणा के बावजूद आधुनिक का ल में काम को केवल सेक्स समझ लिया गया है.कामसूत्र को मामूली ग्रन्थ समझ लिया गया है.लेकिन समय ने इस ग्रन्थ की उपादेयता को समझा दिया.गंगा किनारे ऐठ कर वात्स्यायन ने इस आमार रचना को लिपि बद्ध किया.

उपन्यास उस विडंबना की और भी इशारा करता है जिससे आधुनिक समाज ग्रस्त है.पुरुष की इच्छाएं आग है जो मस्तिष्क तक जाती है और जल्दी ही बुझ जाती है ,स्त्री की इच्छाएं पानी की तरह है जो सर से ननीचे की और जाती है ,खाना भी महत्वपूर्ण है प्यार के साथ खिलाना खाना जरूरी है.

स्त्री- पुरुष सम्बन्धों की खूब अच्छी व्याख्या इस रचना में वात्स्यायन के हवाले से मिलती है. गणिका जीवन की आवश्यकता व विशेषताओं का भी वर्णन है . कामसूत्र का लेखन गहनशोध के बाद हुआ है और वात्स्यायन की मौसी का योगदान अतुलनीय रहा है. बाद में जब वो बौद्ध भिक्षुणी बन गयी तो सब जानकारी वात्स्यायन को दी.लिपि बद्ध हुयीं ,ऐतिहासिकता पर विवाद हो सकता है ,जीवनी की प्रमाणिकता पर भी विवाद है मगर लेखक ने एक अच्छा उपन्यास लिखा है.

.

उपन्यास पर अश्लीलता व कामुकता के आरोप भी लग सकते हैं,लेकिन यह सब विषय और कहानी के लिए शायद जरूरी था.उपन्यास पठनीय और रोचक है.

आचार्यके जीवन पर आधारित इस रचना से एक कविता का अंश-

लोग कहते हैं तुम्हें इसे सहना होगा...

जहाँ तक मेरी बात है,

क्या वे नहीं जानते की भावावेश किसे कहते हैं?

जहाँ तक मेरी बात है ,

मैं अपने प्रिय को नहीं देखता तो ,

मेरा ह्रदय दुःख में डूब जाता है .

यहीं दुःख सब का साथी है.

यह दुःख ही सबका साथी है.

आमीन .

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यशवंत कोठारी, ८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-३०२००२

मो-९४१४४६१२०७