Raat - 8 in Hindi Horror Stories by Keval Makvana books and stories PDF | रात - 8

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रात - 8




रात के तीन बजे थे। पूरी हवेली में अंधेरे का साम्राज्य छाया हुआ था। जमीन पर एक छोटी सी पिन भी गिरे तो आवाज आए, इतनी शांति थी। सभी अपने-अपने कमरों में सो रहे थे। अचानक हवेली में किसी के चलने की आवाज आई। किसी ने धीमी आवाज में कहा, "श.........! चलने की आवाज नहीं आनी चाहिए। कोई उठेगा तो हम मुसीबत में पड़ जाएंगे।" मोंटू ने कहा, "रोहन! लेकिन हम इतनी रात को कहाँ जा रहे हैं? ये अंधेरा तो देखो! मुझे बहुत डर लग रहा है।" रोहन ने कहा, "तुम मुंह बंध कर के मेरे साथ चलो। मुझसे ज्यादा सवाल मत पूछो।" फिर वो दोनो आगे चलने लगे।

कुछ देर बाद वो हवेली मे एक कमरे के दरवाजे के पास खड़े हुए। मोंटू ने कहा, "रोहन! ये किसका कमरा है?" रोहन ने कहा, "अरे पागल! इस कमरे में कोई नहीं रहता है। तुझे ये ताला नहीं दिखता? ये कमरा लंबे समय से बंद है।" मोंटू ने कहा, "तो फिर हम यहां क्या करने आए हैं?" रोहन ने कहा, "जब हम मंदिर से हवेली में वापस आए, तो मैंने देखा कि वो बूढ़ा रामकाका से बात कर रहा था। बूढ़ा रामकाका से कह रहा था कि इस कमरे में किसी को भी को न आने दें। थोड़ी देर के लिए मुझे समझ नहीं आया कि वो किस कमरे की बात कर रहा है। फिर जब मैंने रामकाका का पीछा किया, तो वो इस कमरे के पास आये और उन्होंने ताला ठीक से बंध हे की नहीं ये देखा, फिर वो चले गए। तब मुझे खयाल आया कि इस कमरे में जरूर कोई कीमती खजाना होना चाहिए। वो बूढ़ा नही चाहता की ये खजाना किसी के हाथ लगे। मैं भी रोहन हूं, मैं ये खजाना लेकर रहूंगा।"

मोंटू ने कहा, "लेकिन ये दरवाजा तो बंद है, हम इसे खोलेंगे कैसे?" रोहन ने कहा, "मोंटू! रोहन सब कुछ जानता है और सब कुछ पहले से ही तैयार करता है। मैं रामकाका के कमरे में गया था और वहां से इस ताले की चाबी ले आया था। अब हम इस कमरे में जाकर सारा खजाना ले लेंगे।" फिर रोहनने अपनी जेब से चाबी निकाली और उसे ताले में लगाया। रोहन चाबी घुमाने ही वाला था कि मोंटू चिल्लाया, "भूत! भूत! भूत मुझे ले जाएगा। कोई मुझे बचाओ, मुझे बचाओ।" रोहन ने कहा, "अरे! हम दोनों के अलावा यहाँ कोई नहीं है। तुम क्यों चिल्ला रहे हो?" मोंटू ने कहा, "Sorry! अचानक एक चूहा मेरे पैर के ऊपर से गुजर गया था। मैं पहले से ही डरा हुआ था, तो मुझे लगा जैसे कोई मेरी टांग खींच रहा हो।" फिर रोहन और मोंटू जल्दी से कमरे में भाग गए और सो गए। मोंटू की चीख सुनकर सभी कमरे से बाहर आ गए। प्रोफेसर शिव ने कहा, "ये तो मोंटू की चीख थी।" वो मोंटू के कमरे में गए। उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा कि मोंटू और रोहन सो रहे थे। प्रोफेसर शिव ने कहा, "सब सो जाओ।" फिर वो सब अपने-अपने कमरे में चले गए और सो गए।

सुबह हो चुकी थी। भक्ति, स्नेहा, रिया, अवनि, रवि, भाविन, विशाल और ध्रुव सभी एक साथ बैठकर रिसर्च पेपर बना रहे थे। भाविन ने कहा, "मेरा रिसर्च पेपर तो तैयार हो गया है। आप सब का भी तैयार हैं?" सबने कहा, "हाँ।" विशाल ने कहा, "हम सभी के रिसर्च पेपर तैयार हैं, तो चलो हम सभी इस हवेली के बारे में पता लगाते हैं।" ध्रुव ने कहा, "मैंने सुना है कि हमारे यहां आने से पहले ये हवेली कई सालों से बंद थी।" रियाने कहा, "ये तो मैं भी जानती हूं, लेकिन हम इस हवेली के बारे में किससे पूछेंगे?'' रवि ने कहा, "अरे हाँ! वो दादाजी यहाँ से थोड़ी दूर रहते हैं। अगर हम उनसे पूछें तो?" विशाल ने कहा, ''हां! चलो उन्ही से ही पूछ लेते हैं।'' फिर रवि, स्नेहा, रिया, भाविन, विशाल, ध्रुव दादा के घर जाने के लिए निकल पड़े। भक्ति की सेहत अभी भी नाजुक थी, इसलिए वो और अवनि सबके साथ नहीं गए।

वो सभी दादा के घर गए। उन्होंने दादाजी के घर का दरवाजा खटखटाया। दादाजी अंदर से बोले, "कौन है?" रवि ने कहा, "दादाजी! हम शहर के स्टूडेंट्स हैं। हम आपके घर के सामने हवेली में रहते हैं। हमें आपसे कुछ जानकारी चाहिए।" दादाजी ने दरवाज़ा खोला। दादाजी ने कहा, "अंदर आओ। अंदर आओ।" सभी घर के अंदर चले गए। दादाजी ने कहा, "बैठो। बैठो। मैं तुम्हारे लिए पानी लाता हूँ।" स्नेहाने कहा, ''दादाजी! आप बैठिए। हमें कुछ नहीं चाहिए।" दादाजी ने कहा, "अरे नहीं, नहीं। मैं तुम्हारे लिए चाय और पानी की व्यवस्था करता हूँ।" स्नेहा ने कहा, "दादाजी! आप बैठो। मैं पानी और चाय लाती हूँ।" दादाजी ने कहा, "ठीक है! बहुत दिनों बाद आज मैं किसी और के हाथ की चाय पी पाऊंगा। अब तक तो मैं अपने हाथों से बनी चाय ही पी रहा था।" स्नेहा और रीया दादाजी के किचन में गए और चाय बनाने लगे।

थोड़ी देर बाद स्नेहा ने चाय बनाकर सबको दी और फिर वो सबके साथ बैठ गई। विशाल ने कहा, "दादाजी! आप इस गांव में कितने साल से रह रहे हैं?" दादाजी ने कहा, "जब से मैं पैदा हुआ हूं तब से यही रहता हूं।" भाविन ने कहा, "फिर तो आपको इस गांव के बारे में सारी जानकारी होगी?" दादाजी ने कहा, "हाँ! पर तुम क्या जानना चाहते हो?" रवि ने कहा, "दादाजी! हम उस हवेली के बारे में जानना चाहते हैं जिसमें हम रहते हैं।" दादाजी ने कहा, "अचानक तुमको हवेली के बारे में जानने की क्या जरूरत पड़ी?" फिर रवि ने दादाजी को उनके साथ हुई सभी घटनाओं के बारे में बताया।

दादाजी ने कहा, "ये कोई नई बात नहीं है। उस हवेली में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। मैंने आपके प्रोफेसर को वहां रहने से मना किया था, लेकिन वो नहीं माने।" विशाल ने कहा, "दादाजी! क्या आप हमें हवेली के बारे में बता सकते हैं?" दादाजी ने कहा, "हाँ! क्यों नहीं! आप सभी उस हवेली में रहते हैं, तो आपको उसके बारे में पता होना चाहिए। तो सुनो, वो हवेली 50 साल पुरानी है। इस गांव में महेंद्रसिंह चौधरी नाम का एक सरपंच था। वही उस हवेली का मालिक था। उसके दो बेटे थे। बड़े का नाम राजसिंह चौधरी था। उसका पार्थसिंह नाम का एक बेटा और सुरेखा नाम की एक बेटी थी। महेंद्रसिंह के सबसे छोटे बेटे का नाम शक्तिसिंह था, शक्तिसिंह की कोई संतान नहीं थी। सुरेखा इस गांव के रुद्र नाम के एक लड़के से प्यार करती थी। किसी कारणवश राजसिंहने उनकी शादी के लिए इनकार कर दिया। फिर रुद्र और सुरेखा घर से भाग गए। घर से जाने के बाद उनके साथ क्या हुआ, ये अब तक कोई नहीं जानता। कुछ दिनों बाद, एक एक करके उस घर के सभी सदस्यों मौत हो गई। फिर रात में वहां से चीखें सुनाई देने लगी। कुछ दिनों के बाद, वो भी बंद हो गईं।" विशाल ने कहा, "दादाजी! इस जानकारी के लिए धन्यवाद!" दादाजी ने कहा, "अब तुम सब सावधान रहना। किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बुला लेना।" फिर वो दादाजी के घर से चले गए। बाकी का दिन उन्होंने गांव में पूछताछ करने में गुजारा।


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