Laal Ishq in Hindi Horror Stories by Sushma Tiwari books and stories PDF | लाल इश्क

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लाल इश्क

अजय का सर भारी सा हो रहा था। कल रात की दोस्तों के साथ पार्टी ज्यादा हो गई थी। कुमार के कहने पर रजत और श्याम के साथ मिलकर अनुष्का को चिढ़ाने का प्लान था। अब प्लान सफल हो गया था तो कुमार ने पार्टी दी थी। अजय ने घड़ी की तरफ नजर डाली और मोबाइल खोला। ग्रुप में किसी ने कल की फोटो तक नहीं डाली थी। शायद सब सोये होंगे। अजय नहा कर कमरे से बाहर आया तो मम्मी गुस्से में थी।
" सुधर जाओ वर्ना ये जो सुबह का नाश्ता लेकर मैं दोपहर में खड़ी हूं.. ज्यादा दिन नहीं चलेगा.. दुलार की हद्द होती है"
" ओ मेरी प्यारी माँ.. सॉरी!" बोलकर अजय ने नाश्ता खत्म किया और बाहर चला गया। श्याम का घर दो मकान छोड़ कर ही था। अजय ने सोचा वैसे भी रविवार है उससे मिल आता हूं।
अजय जब श्याम के घर गया तो दरवाजा श्याम की माँ ने खोला और उनका जवाब सुन कर अजय सोच में पड़ गया था। शायद कल रात देर से आने की वजह से बोल रहीं होंगी वर्ना ऐसे कौन बोलता है कि यहां कोई श्याम नहीं रहता है.. हमारी सिर्फ एक बेटी है।
मोबाइल खोलने पर अजय यह पाता है कि उनका ग्रुप डिलीट हो चुका था।अजय ने कुमार और रजत को फोन किया। दोनों ने उसे खेल मैदान में मिलने को कहा।
" कल क्या मजा आया.. पर देर होने के चलते घर पर बहुत डांट पड़ी.. अनुष्का भी थोड़ी नाराज थी.. हा हा हा " कुमार ने हँसते हुए अजय से हाथ मिलाया।
" हाँ यार.. पर श्याम के यहां मामला गड़बड़ है.. उसकी बैंड बजी होगी.. उसकी मम्मी ने तो साफ कह दिया कि उनका कोई बेटा ही नहीं है! अब बता यह भी कोई बात हुई?
अजय के यह कहते ही कुमार और रजत उसको घूर कर देखने लगे,
" यह क्या बात कर रहा है तू? कौन श्याम? किसकी मम्मी?"
"अबे इसका मतलब तुम सब मिलकर यह प्लान बना रहे हो.. फिर मेरे साथ कोई प्रैंक खेल रहे हो बट मैं बता देता हूं कल वाला ही काफी था अब और नहीं"
" मेरे भाई! तेरा नशा उतरा नहीं है! क्या.. कौन श्याम? हम तीन ही तो है "
अजय एक बार तो घबरा ही गया फिर उसने कहा
" अच्छा एक बात बता.. मोबाइल में से ग्रुप डिलीट किसने किया? और डिलीट हुआ तो मेरे मोबाइल से कैसे हुआ? तुम में से किस ने मुझे ग्रुप से बाहर निकाला?"
" कौन सा ग्रुप? हमने आज तक कोई ग्रुप बनाया ही नहीं! "
अजय गुस्से में वहां से चला गया। पूरे दिन उसने दोबारा कुमार या रजत को फोन नहीं किया। मन बहलाने के लिए दिनभर मम्मी के काम में मदद करता रहा, वह सोच रहा था दोस्तों का यह प्रैंक बिल्कुल भी सही नहीं है। ऐसे ही तो बुरा अनुष्का को लग रहा होगा। उसकी आंखों के सामने बार-बार वह दृश्य घूम रहा था जब लाल दुपट्टे में रजत लड़की बनकर बैठा था और अनुष्का ने समझा था कुमार किसी और लड़की के साथ बेंच पर बैठा है। बाद में सब मिलकर कितना हंसे थे। श्याम तो हंस हंस के दोहरा हो गया था और आज यह लोग कह रहे हैं कि कौन श्याम? हां आईडिया तो मेरा ही था इसके लिए फिर से मेरे ऊपर ही प्रैंक कर रहे होंगे.. देख लूंगा कल इन लोगों को।
अगली सुबह अजय ने कुमार को मैसेज किया
"अगर मिलना है तो मिल.. पता नहीं क्यों मेरे फोन में रजत का नंबर मुझे नहीं मिल रहा है.. तो उसे भी मैदान में बुला ले.. मुझे श्याम के बर्थडे के बारे में कुछ प्लान करना है"
कुमार ने सिर्फ इतना ही जवाब दिया
" तू मुझसे मैदान में मिल.. मैं देखता हूं क्या समस्या है तेरी? "
अजय फटाफट घर से निकला, सोचा एक बार श्याम से मिलता चलूं शायद आज उसकी मम्मी का गुस्सा ठंडा हो गया होगा। श्याम के घर जाकर बेल बजाने पर उसकी मम्मी ने बहुत ही गुस्से के साथ अजय को फटकार लगाई
" एक बार कह दिया कि जब यहां कोई श्याम नाम का नहीं रहता है तो क्या तुम्हें समझ में नहीं आता है? तुम जरूर मेरी बेटी को छेड़ने के लिए यहां बहाने मार कर आते हो "
अजय चुपचाप से वहां से चला गया। मैदान में गया तो देखा कुमार वहां अकेले ही खड़ा था। "तूने रजत को नहीं बुलाया? "
अजय के पूछने पर कुमार ने उसका हाथ पकड़ कर उसे एक जगह बिठाया और कहा
" एक बात बता कि तेरी समस्या क्या है? कल तू कुछ श्याम श्याम कर रहा था! आज रजत रजत कर रहा है! पर तुझे पता है हम दोनों ही दोस्त हैं इसके अलावा कोई तीसरा नहीं है और यहां तू चौथे को खोज रहा है?"
" देख कुमार! बेकार के मजाक मत कर.. कल तुम और रजत दोनों मेरे साथ मजाक कर रहे थे और आज उसने तुझे भेज दिया"
" नहीं कल मैं और अनुष्का तुमसे मिले थे और कल तुम ऐसे ही घबराए हुए थे इसीलिए जल्दी निकल गए और यह किस श्याम के जन्मदिन की तुम बात कर रहे हो? कौन से रजत के नंबर की तुम बात कर रहे हो? "
अजय का दिमाग चकराने लगा था। वहां से भाग उठा। अगर यह मजाक है तो बहुत ही भद्दा मजाक है और अगर यह सही है तो एक-एक करके यह सारे लोग कहां गायब हो रहे हैं? नहीं नहीं यह पॉसिबल नहीं है!! और अजय वापस घर जाकर कमरे में चुपचाप लेट गया। पूरी घटना उसकी आंखों के सामने नाच रही थी। कैसे हम सब ने मिलकर वह लाल दुपट्टा चोरी किया जिसे पहन कर रजत ने लड़की का स्वांग रचा था। ऐसे कैसे यह लोग नहीं हो सकते हैं? कमरे में जब मां खाना देने आई तो अजय को परेशान देखकर पूछा
"क्या बात है बेटा दो दिन से देख रही हूं तुम अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ समय नहीं बिता रहे हो ऐसे तो पूरा दिन और आधी रात तक उसके साथ ही घूमते रहते हो इसलिए मैं नाराज होती थी पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें उस दिन मे मिलने से मना करती हूं"
" बेस्ट फ्रेंड! कौन बेस्ट फ्रेंड मम्मी? "
" अरे तेरा बेस्ट फ्रेंड कुमार और कौन? तुम ही दोनों तो दिन भर ऊल जलूल हरकतें करते फिरते हो.. "
" अच्छा मम्मी! मैं एक बात बताओ यहां मोहल्ले में दो मकान छोड़कर शुक्ला जी के यहां क्या कोई श्याम नाम का लड़का नहीं रहता?"
" शुक्ला जी के यहां श्याम? नहीं तो.. जहां तक मुझे पता है उनकी सिर्फ एक लड़की है सावरी.. तू किसकी बात कर रहा है? "
" कुछ नहीं मम्मी.. कुछ नहीं मेरी तबीयत ठीक नहीं है.. मैं कल बात करूंगा "
अजय को रात भर नींद नहीं आई। एक अजीब से डर और दहशत से वो रात भर कांपते रहा। सुबह उठकर उसने सोचा कुमार से मिलकर इस पूरी घटना के बारे में चर्चा करनी होगी। आखिर ऐसा क्या हुआ कि उस प्रैंक के बाद ऐसी चीजें हो रही थी? तमाम कोशिशों के बाद भी अजय को अपने फोन में कुमार का नंबर नहीं मिला। परेशान होकर उसने तय किया कि वह कुमार के घर जा कर ही उससे मिलेगा।
मम्मी ने उसे फिर टोका
"अरे सुबह-सुबह कहां जा रहा है?"
" मम्मी मैं कुमार से मिलकर आता हूं"
"अब यह कुमार कौन है बेटा? कल तक तो तुम कहते थे कि मेरा कोई दोस्त नहीं है.. अब यह नया दोस्त कौन बन गया, जिससे तुम सुबह-सुबह मिलने जा रहे हो?"
अजय ने भय से भरी नजरों से मम्मी को देखा और वहां से निकलकर दौड़ने लगा। दौड़ते दौड़ते हैं उसके रास्ते में वही बंगला पड़ा जिससे उन लोगों ने वह लाल दुपट्टा चुराया था। एक पल को अजय वही ठिठक गया उस बंगले में आज भी सन्नाटा था.. मौत का सन्नाटा। उसे याद आया उस दिन वह चारों यहीं से गुजर रहे थे और अजय के अचानक प्रैंक वाले आइडिया पर उन लोगों ने वह लाल दुपट्टा यहीं से चुराया था। अजय नहीं कहा था
"अरे यार ले लेते हैं.. कौन देखता है? मुझे तो दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा है.."
कुमार ने कहा था
" अबे कोई देख लेगा तो बहुत मार पड़ेगी"
" कैसे मार पड़ेगी? इतने सारे कपड़ों के बीच से एक दुपट्टा गायब भी हो जाएगा तो किसे पता चलेगा?"
रजत ने कहा था
" सही कहा तूने इतने सारे कपड़ों के बीच में अगर एक कपड़ा गायब भी हो गया तो किसे फर्क पड़ता है? उन्हें लगेगा वह हवा में उड़ गया या फिर मुझे तो लगता है इन अमीर लोगों को यह पता भी नहीं चलेगा कि उनके पास कोई लाल दुपट्टा था भी.. कितने सारे कपड़े हैं देखो तो!"

कुल मिलाकर तो यही हुआ कि दुपट्टा चुरा लिया जाए। चारदीवारी फांद कर अजय ने वह दुपट्टा रस्सी से उतार लिया और भाग आया।
आज अजय को यह ख्याल आ रहा था कि कहीं उसके संग हो रही इन घटनाओं के पीछे इस लाल दुपट्टे का तो कोई हाथ नहीं है? पर ऐसे कैसे हो सकता है? वहां से फिर भागते हुए वह कुमार के घर तक गया पर जैसा कि उसके संग पहले से हो रहा था कुमार के घर भी वही जवाब मिला यहां कुमार नाम का कोई नहीं रहता है। अजय के दिमाग में अपनी ही कही बात दौड़ने लगी ' गायब हो भी जाए तो कैसे पता चलेगा' और वही हो रहा था। यहां उसके दोस्त गायब हो रहे थे और किसी को पता नहीं चल रहा था.. जैसे कि वह कभी थे ही नहीं। इतने सारे कपड़ों के बीच से वह लाल दुपट्टा गायब हुआ उन्हें फर्क नहीं पड़ता होगा.. ठीक वही तर्क यहां लगा हुआ था कि इतने सारे लोगों के बीच में से तीन लोग गायब हो गए और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था पर अजय को यह फर्क पड़ रहा था क्योंकि उसे सब कुछ साफ-साफ याद था। उसने तय किया कि वह बंगले में जाकर देखेगा चारदीवारी फांद कर धड़कते दिल के साथ में उसने पीछे के रास्ते से घर में प्रवेश किया जैसे-जैसे व अंदर घुसते गया घर से बहुत ही गंदी बदबू तेजी से उसके नाक से होते हुए पूरे दिमाग में पसर चुकी थी। अचानक से महसूस हुआ कि उसके पीछे से कोई गुजरा। अजय पलटा वहां कोई नहीं था। उसकी नजर पैर के पास गई लिजलिजा सा कुछ महसूस हुआ। उसने पैर हटाया तो देखा आधे सूखे खून की तरह कुछ था। अजय घबरा कर नीचे गिर पड़ा। उसकी नजर सामने वाले कमरे में गई जहां कपड़ों का पूरा अंबार लगा हुआ था। अजय भागना चाहता था पर उसके पैर साथ नहीं दे रहे थे। धीरे-धीरे रेंगते हुए बस कमरे तक पहुंचा। कमरे का दृश्य साफ बता रहा था जैसे किसी ने सारी अलमारियां छान मारी कुछ खोजने के लिए।
अचानक एक बड़ी सी काली परछाई अजय के सामने से उस अलमारी से निकलकर खड़ी हो गई थी। अजय के जैसे प्राण पखेरू उड़ने ही वाले थे।
" कक्.. कौन हो तुम? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"
हल्की सी आवाज ही बस उसके गले से निकली।
" क्यों मुझे नहीं पहचाना? हां कैसे पहचानोगे? पर मैं तुम लोगों को पहचानती हूं.. तुम चारों के वजह से ही मेरी जान गई है"
"पर हमने तुम्हें कब मारा? कैसे मारा? हम किसी को नहीं मार सकते हैं और मेरे दोस्त कहां गए? तुमने उनके साथ क्या किया?"
अजय गिड़गिड़ा रहा था। वह परछाई और बड़ी होती गई और अचानक पूरे कमरे में लाल खून नदी के स्तर की तरह बढ़ने लगा। अजय खुद को उस में डूबता हुआ महसूस कर रहा था।
" मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं.. मैं माफी मांगता हूं.. मैं सब सही कर दूंगा.. मैं वह दुपट्टा लाकर लौटा दूंगा.. वह घर पर मेरे बैग में ही है.. सच कह रहा हूं"
"पर अब क्या फायदा मेरी जान तो जा चुकी है! तुमने वह दुपट्टा चुराते समय यह बिल्कुल नहीं सोचा कि उस घटना का किसी दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ेगा.. मेरा पति एक तांत्रिक है और सनकी भी.. उसे हमेशा मेरे सुंदर होने के वजह से तकलीफ रहती थी उसे लगता था जैसे मैं बाहर जाकर किसी और से मिलती रहूंगी.. लाल रंग उसका पसंदीदा रंग है और यह लाल दुपट्टा उसने अभिमंत्रित करके मुझे दे रखा था.. उसके हिसाब से जब तक यह दुपट्टा मेरे साथ रहेगा मैं किसी दूसरे की ओर नहीं देखूंगी और उसके प्रति वफादार रहूंगी। उस शाम उसने एक पूजा रखी थी जहां मुझे वह दुपट्टा पहन के बैठना था मैं लाल दुपट्टा खोजते रह गई पर मुझे नहीं मिला पर उसने मुझ पर यकीन नहीं किया कि वह खो गया है या कोई ले गया है.. उसे लगा मैंने वो दुपट्टा शायद कहीं फेंक दिया ताकि उसके चंगुल से छूट सकूं। उसने मेरी जान ले ली और मेरी लाश को वही पीछे गाड़ दिया। शायद तुम लोगों के लिए एक छोटी सी बात होगी पर मेरे लिए यह जान देने का कारण बन गई। मैं चाहती तो तुम्हें तड़पा तड़पा कर मार दूं पर क्योंकि मैं खुद ही इस जिंदगी से तंग आ चुकी थी और तुम लोगों की वजह से उस तांत्रिक के चंगुल से मेरा शरीर मुक्त हो ही गया पर मुझे पता है मेरी आत्मा अभी यहीं भटकती रहेगी क्योंकि वह बाहर किसी से नहीं बताएगा कि उसने मेरे साथ क्या किया? बस इसी कारण मैंने तुम लोगों को मारा नहीं बस गायब कर दिया। जिस तरह तुम्हारे सारे दोस्त गायब हो गए उसी तरह कल सुबह तुम भी इस दुनिया से गायब हो जाओगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा हा हा हा.. "
अट्टहास करती हो आत्मा जोकि काली परछाई के रूप में थी, वहां से चली गई।
अजय ने देखा वहां कोई खून नहीं था। वह सीधा भागता हुआ अपने घर पर आया बैग खोला और उसने व लाल दुपट्टा देखा। दुपट्टे को छूते ही उसका हाथ खून से सरोबार हो गया।


अजय ने ठान लिया की आत्मा को मुक्ति दिलाकर रहेगा। सबसे पहले वह भागते हुए पुलिस स्टेशन तक गया और वहां किसी तरीके से पुलिस वालों को मना कर उस बंगले तक लेकर गया जहां खोजी कुत्तों और पुलिस वालों की सहायता से उस लड़की की लाश को खोज लिया गया। तांत्रिक को उसके कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस वालों की सहायता से अजय ने उसका अंतिम संस्कार विधि पूर्वक करवाया और उसकी अस्थियों का विसर्जन को उसी लाल दुपट्टे में बांधकर नदी में करवा दिया।


उसे महसूस हुआ जब अगली सुबह वह गायब नहीं हुआ था... यह जानकर अजय को हिम्मत मिली थी कि शायद वह आत्मा भी चाहती थी कि वह उसकी मदद करें तभी उसने उसे थोड़ी मोहलत दे दी थी।
सब काम निपटा कर अजय अपने घर में चुपचाप बैठा था। उसे अफसोस हो रहा था कि काश उसने यह मजाक नहीं किया होता तो आज उसके दोस्त उसके साथ होते। अचानक अजय के मोबाइल पर एक मैसेज आया। उसे खोलते ही अजय लगभग उछल पड़ा
"अरे मेरे दोस्तों का ग्रुप.. यह तो गायब हो गया था!!"
पर वहां सारे दोस्तों के मैसेज देख कर उसके आंखों से आंसू बह चलें। यानी सब कुछ ठीक हो चुका है सब वापस आ गए हैं। अजय दौड़ते हुए मम्मी के पास गया और उनको गले लगा लिया
" अरे क्या हुआ बेटा.. क्या बात है?"
" कुछ नहीं मम्मी बस मुझे अपनों की अहमियत पता चल गई है।" अजय को जैसे दुनिया का सबसे बेशकीमती खजाना मिल चुका था।

©सुषमा तिवारी