Yes, I'm a Runaway Woman - (Part Four) in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग चार)

Featured Books
  • NICE TO MEET YOU - 6

    NICE TO MEET YOU                                 પ્રકરણ - 6 ...

  • ગદરો

    અંતરની ઓથથી...​ગામડું એટલે માત્ર ધૂળિયા રસ્તા, લીલાં ખેતર કે...

  • અલખની ડાયરીનું રહસ્ય - ભાગ 16

    અલખની ડાયરીનું રહસ્ય-રાકેશ ઠક્કરપ્રકરણ ૧૬          માયાવતીના...

  • લાગણીનો સેતુ - 5

    રાત્રે ઘરે આવીને, તે ફરી તેના મૌન ફ્લેટમાં એકલો હતો. જૂની યા...

  • સફર

    * [| *વિચારોનું વૃંદાવન* |] *                               ...

Categories
Share

हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग चार)

माँ परेशान थी कि ऐसी कमजोर हालत में मै बच्चे को जन्म कैसे दूँगी,डॉक्टर भी चिंतित थे।स्थिति यह थी कि या तो माँ बचेगी या फिर बच्चा।मैंने कह दिया कि मुझे बच्चा चाहिए।मेरी देह में एक नन्हा अस्तित्व पल रहा है,यह अहसास मुझमें नवजीवन का संचार कर रहा था।पति से दुखी होकर मेरे मन में बार -बार आत्मघात के विचार आते थे,जीना निस्सार लगता था।अब मुझे लगने लगा कि नहीं, मेरा जीवन भी सार्थक है।मै सृजन कर सकती हूँ।जो जीवन दे सकता है उसे मौत क्या डराएगी?मै बहुत खुश थी ।मुझे पता था कि मुझे सिंगल मदर बनकर बच्चे को पालना पड़ेगा ।तो क्या ! मैं कर लूंगी।मुझमें जीजाबाई की आत्मा है ।मै सीता की तरह अपने लव -कुश को पालूंगी।
घर वाले बिल्कुल नहीं चाहते थे कि यह बच्चा हो, पर डॉक्टर ने मेरे कमजोर शरीर को देखते हुए एबॉर्शन से मना कर दिया था।अब मुझे ज्यादा देखभाल,अच्छी खुराक की जरूरत थी।माँ ने मेरा साथ दिया।मैंने पाठ्य- पुस्तकें संदूक में बंद कर दी और धार्मिक पुस्तकें अपनी मेज पर सजा ली।रोज गीता का पाठ करती।रामायण महाभारत,वेद पुराण सब पढ़ डाला इस बीच।पूरे संयम-नियम से रहती।सुबह -शाम खूब भ्रमण करती
और खूब खाती।मुझे इतनी ज्यादा भूख लगती कि क्या बताऊँ।अब तो आसी -बासी, साग-पात जो भी मिलता खा लेती।और उससे ही क्या तो रूप निखरा था उस वक्त,सेहत भी खूब अच्छी हो गयी थी।डॉक्टर और माँ दोनों खुश थे।
नौ महीने अपने गर्भस्त बच्चे के साथ जो दिन गुजरे, वह मेरे जीवन के सबसे सुंदर दिन थे।पति सूचना मिलने पर भी देखने नहीं आए ।
सचमुच मैंने सीता की तरह लव -कुश को जन्म दिया।इतने सुंदर ,स्वस्थ बालक की जो देखे वही प्यार करे।माँ अब उन्हें संभाल रही थी।ससुराल से कोई मदद नहीं मिली,न कोई आया।रो -गाकर मां ही सब कुछ कर रही थी।भाई -बहन चिढ़े रहते।उनका हक जो बंट गया था।माँ का भी धैर्य कभी -कभी टूट जाता तो वह मेरी इज्जत उतार लेती।कहती--'मेरे भरोसे पैदा की है।भाग जाओ मेरे घर से।तुम्हारा जिंदगी भर का ठेका नहीं ले रखा है।अभागी है।क्यों नहीं पति को बुलाती, उससे खर्चा माँगती?'
मैं रोकर रह जाती ।क्या करती !यह कह भी तो नहीं सकती थी कि दसवीं फेल लड़के को चुनते समय यह क्यों नहीं सोचा?मै इतनी भारी बोझ थी कि लड़के का न घर- द्वार देखने गए ,न उसके बारे में कुछ पता किया,बस सस्ता दूल्हा मिला,खरीद लिया।अब इसमें मेरा क्या कुसूर ,मै तो पढ़ना चाहती थी।मेरे सारे सपने तोड़ दिए गए।क्यों आखिर क्यों!
पर मैं चुप रहती थी क्योंकि माँ बहुत ही गुस्से वाली थी।कई बार मेरा छोटा -सा टीन का बक्सा सड़क पर फेंक चुकी थी।मेरे लिए एकमात्र आश्रय भी वही थी ।गाली देती ,कभी मारती भी,दिन -रात कोसती पर दुबारा जीवन भी तो उसी ने दिया था।मेरा तथा मेरे बच्चों को दो रोटी भी तो वही दे रही थी।दुधारू गाय की लात भी भली होती है।
बच्चों के छह महीने के होने के बाद पति के दर्शन हुए।फिर बीच -बीच में वे आते रहे।कुछ पैसे लेकर आते पर उसे मुझे नहीं देते।भाई -बहनों को मुर्गा मीट खिलाते ,उन्हें सिनेमा दिखाते और चल देते।मैं संकोच में कुछ कह नहीं पाती थी।इस बात लिए भी माँ मेरी ही मलामत करती कि हराम का खाती हो उससे क्यों नहीं माँगती?
मैं उस बेरोजगार आदमी से कैसे कुछ मांगती,जो अपनी माँ की कमाई पर जी रहा था।जो इधर -उधर से उधार लेकर यहां आता था ।जो अपने बच्चों को कपड़े तक दिलाने की हैसियत में नहीं था।
पर उसमें ऐंठ कम न थी.. घमंड भी बहुत था ।वह मुझे नीचा दिखाने का एक भी अवसर नहीं छोड़ता था।पर मै जानती थी कि वह भीतर से कितना खोखला आदमी है।
पांच साल और गुजर गए।पति ने एक बार भी मुझे अपने घर ले जाने की बात नहीं की।बच्चों की स्कूल भेजने की उम्र हो रही थी।उनके अभाव मुझसे देखे नहीं जाते थे।एक -दो जोड़ी कपड़े ही थे उनके पास।उन्हें दूध भी नहीं मिल पाता था।मैं तो अभावों की अभ्यस्त थी । दीदी आती तो पुरानी साड़ी छोड़ जाती,वही पहनती।इधर भाई की शादी हो गयी थी और उसकी भी एक बच्ची हो गयी थी।भाई भी अभी पढ़ ही रहा था।मंझले भाई ने पिता की मिठाई की दूकान संभाल ली थी क्योंकि पिताजी बीमार होकर बिस्तर से आ लगे थे।दूकान से भाई की बेटी के लिए दूध आता। मेरे छोटे बेटे को दूध- रोटी पसन्द थी ।भाई अपनी बेटी को जबरन दूध पिलाता और मेरे बेटे के लिए कहता---तू $ ले $ले$!जैसे किसी पप्पी को बुलाया जाता है।बच्चा दौड़ा हुआ जाता ,तो दूध नहीं देता।मै कमरे में जाकर फूट- फूटकर रोती ।मेरी कोख से पैदा होने के कारण मेरे बच्चे भी अभागे हो गए थे।