honesty worm (satire) in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | ईमानदारी का कीड़ा (व्यंग्य)

Featured Books
  • DIARY - 6

    In the language of the heart, words sometimes spill over wit...

  • Fruit of Hard Work

    This story, Fruit of Hard Work, is written by Ali Waris Alam...

  • Split Personality - 62

    Split Personality A romantic, paranormal and psychological t...

  • Unfathomable Heart - 29

    - 29 - Next morning, Rani was free from her morning routine...

  • Gyashran

                    Gyashran                                Pank...

Categories
Share

ईमानदारी का कीड़ा (व्यंग्य)

ईमानदारी का कीड़ा ( व्यंग्य )


हमारे आस-पास सामान्य लोगों की संख्या बहुत अधिक है । आज के समय में सामान्य वही है जो खुद खाता है औरों को खाने देता है। ले- दे के अपने और दूसरों के काम-काज निपटाना ही सामान्य व्यवहार है । बहुत ही थोड़ी संख्या में ही सही हमारे आसपास ईमानदार के कीड़े से ग्रस्त बीमार लोग दिखाई देते रहते हैं । ऐसे लोग समाज, राजनीति और अर्थशास्त्र को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करते हैं । ऐसे ही लोगों के कारण कुछ अच्छे लोगों को अनावश्यक रूप से जेलों में रहने के लिए विवश होना पड़ता है । ऐसे ही लोगों के कारण अक्सर अच्छी-खासी कुर्सियों से कुछ लोगों को हाथ धोना पड़ता है । ऐसे ही बीमार लोगों के कारण देश और विदेश की जनता को सत्ता के गिर जाने के कारण चुनाव जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है । इस भयानक बीमारी को लेकर बड़े-बड़े नेताओं ,अधिकारियों और उनके दलालों में चिंता व्याप्त है ।
अभी-अभी विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त खबरों के अनुसार, वैज्ञानिकों ने भी इस रोग पर चिंता व्यक्त की है । उन्होंने यह निर्णय लिया है कि चेचक, पोलियो और मलेरिया की ही तरह ईमानदारी नामक इस रोग का उन्मूलन आवश्यक है । आज मानव सभ्यता के विकास के लिए यह आवश्यक है कि प्रगति के पथ पर हम और आप ईमानदारी नामक रोग से मुक्त होकर आगे बढ़े । वे इस रोग का टीका खोजने का प्रयास कर रहे हैं । वैसे जब तक वे ईमानदारी का टीका खोज नहीं लेते, तब तक हमें और आपको ईमानदारी के लक्षण वाले लोगों से सावधान रहने की चेतावनी दी गई है ।
वैसे यदि इस रोग के इतिहास में जाएं तो पिछली शताब्दी में यह रोग महामारी की तरह फैला हुआ था परंतु न जाने कैसे इस के कीड़े कुछ कम सक्रिय हो गए । अब इस रोग के रोगी बहुत ही कम संख्या में हैं । पिछली शताब्दी में चूंकि यह सभी ओर फैला हुआ था इसलिए इससे ग्रसित व्यक्ति सामान्य ही माना जाता था। इसी कारण इसे रोगों की सूची में स्थान प्राप्त नहीं हो सका । अब क्योंकि ऐसे लोगों के कारण देश को प्रति वर्ष करोड़ों रुपए की हानि उठानी पड़ती है ;साथ ही अक्सर ही कार्यालयों में ऐसे लोगों के द्वारा शासकीय कार्य के बाधित होने से रोग की भयावहता का अंदाज होता है।
इस रोग के मुख्य लक्षण के रूप में रोगी का फटेहाल दिखाई देना ।अपने आप को सच्चा समझना । बात-बात पर नियमों और कानूनों का हवाला देना और किसी भी शासकीय कार्य के मुफ्त में होने का दावा करना । ऐसे रोगी अक्षर लड़ते - झगड़ते हुए पाए जाते हैं । ऐसे रोगियों को उनके यार -दोस्त ,नाते -रिश्तेदार और परिवार के लोग भी पसंद नहीं करते । जब यह रोग प्रारंभिक अवस्था में होता है तो वे केवल सच्चाई का और ईमानदारी का भाषण करने लगता है । दूसरी अवस्था में ऐसे रोगी स्वयं का अहित करते हुए सब काम ईमानदारी से करने का प्रयास करते हैं । इससे वे स्वयं को अपने और अपने समाज से काट लेते हैं और कभी कभी तनावग्रस्त हो जाते हैं । तीसरी और अंतिम अवस्था में ऐसा रोगी इस रोग को और फैलाने का संकल्प लेते हुए पूरे समाज को बदलने का प्रयास करने लग जाता है । इस समय रोगी अपने दुश्मनों की संख्या बढ़ाने लगता है । जब लोग उसे समझाते तो उसे धमकी समझ कर और हट पर उतर आता है । इस तरह देखा जाए तो ऐसे लोग घोषित और अघोषित तरीके से आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं ।
वैसे तो यह रोग अक्सर वंशानुगत ही होता है परंतु कभी-कभी कुछ सामान्य लोगों के परिवार में भी ऐसे बच्चे पैदा हो जाते हैं । कभी-कभी ना जाने किन कारणों से इस रोग से अचानक ही कुछ लोगों को ग्रस्त होते देखा गया है । इस संबंध में कुछ लोगों का मत है कि हमारे आस पास कोई इमानदारी का कीड़ा पाया जाता है, जिसके काटने से यह रोग अचानक उत्पन्न हो जाता है । अभी तक ऐसे किसी कीड़े को खोजा नहीं जा सका है । यह रोग वैसे तो संक्रामक नहीं है लेकिन यदि ऐसे रोगियों की संगत अधिक समय तक की जाए तो यह रोग आपको भी छूत की बीमारी की तरह लग सकता है । कुछ ऐसे मरीज हैं जिनमें कभी तो इस रोग के लक्षण दिखते हैं और कभी एकदम गायब हो जाते हैं । ऐसे लोगों के बारे में यह कहना कठिन होता है कि वे रोग ग्रस्त है भी या नहीं । शोध करने पर ज्ञात हुआ कि इन मरीजों के व्यवहार के लिए उनकी कुर्सी में भेद छुपा है । मौका मिलते ही ये लोग सामान्य और बाकी समय रोगी बने रहते हैं । इनके विषय में यह कहना कि वह वास्तव में ईमानदारी के कीड़े से ग्रस्त हैं या नहीं कठिन हो जाता है । पिछले कुछ समय से सामान्य लोगों द्वारा भी इस रोग के रोगी होने का दिखावा करने का फैशन निकला है । नेता ,अधिकारी और कर्मचारी अक्सर ही इस रोग से ग्रस्त होने का दिखावा करते हैं लेकिन हद तो तब हो जाती है जब पुलिस वाले भी इस रोग के रोगी होने का दिखावा करने लगते हैं । इन मिलावटी मरीजों के कारण ही असली मरीजों को खोज पाना और कठिन हो जाता है । इस रोग से पूरी तरह मुक्ति पाने के लिए आज -कल असली रोगियों की खोज की जा रही है। कुछ का इलाज तो हो सकता है लेकिन जो लाइलाज हैं ।उन्हें लोक कल्याण के लिए बलिदान कर दिया जाता है । इन रोगियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा । एक दिन अवश्य आएगा जब मानवता ईमानदारी के रोग से पूरी तरह मुक्त हो जाएगी और इन लोगों को याद करेगी । अब समय आ गया है कि इस रोग और इसके कीड़े को जड़ से नष्ट कर दिया जाए अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब देश का अर्थशास्त्र जाए तेल लेने.... ‌ हमारे घरों का अर्थशास्त्र अवश्य बिगड़ जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब हमें मजबूरन ही सही सारे काम इमानदारी से करने पड़ सकते हैं अब हमें अपने भविष्य की चिंता है तो सबको मिलकर इस रोग और इस के कीड़े को नष्ट करने के प्रयास में लग जाना चाहिए यदि हम यह करने में सफल होते हैं तो कह सकेंगे कि हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"