Mout Ka Khel - 5 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग-5

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मौत का खेल - भाग-5

दो अजनबी

कमरे में मौजूद उस आदमी ने आराम कुर्सी की पुश्त से टेक लगा रखी थी। अब उस ने आंखें बंद कर ली थीं। अलबत्ता वह अभी भी जाग रहा था। वह किसी गहरी सोच गुम था। दूसरी तरफ बेड पर से सोने की आवाज आने लगी थी। अजीब बात यह थी कि उस कमरे में दो लोग मौजूद थे। दोनों को ही एक-दूसरे से कोई मतलब नहीं था। इस के बावजूद कमरे में मौजूद थे। एक बीमारी का बहाना बना कर यहां आ गया था। दूसरा कातिल से बचने की फिराक में।

कुछ देर बाद बेड से खरखराहट भरी आवाज आने लगी। यह एक महिला की आवाज थी। शायद वह सोते में बड़बड़ा रही थी। बेड पर से आवाज आ रही थी, “मैं तुम्हें... मैं तुम्हें... मार दूंगी.... तुम ने... मेरी जिंदगी... अजीरन कर.... रखी है... तुम बहुत बुरे आदमी हो... नीच और घटिया आदमी हो...।”

अचानक महिला ने बड़बड़ाना बंद कर दिया। शायद अनकांशेसली उसे एहसास हो गया था कि वह सोते में बड़बड़ा रही है।

महिला की इस बड़बड़ाहट पर आराम कुर्सी वाले ने आंख खोल दी थीं। इस के बावजूद उस की स्थिति में कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ था। वह उसी तरह से टेक लगाए बैठा हुआ था। शायद वह नहीं चाहता था कि उस के रूम में गलती से आने वाली महिला को किसी तरह की शर्मिंदगी हो।

बेड पर सोने वाली महिला उठ कर वाशरूम चली गई। कुछ देर बाद वह फिर लौट आई थी। दिलचस्प बात यह थी कि उस के पास मोबाइल था। वह चाहती तो वाशरूम जाते वक्त उस की टार्च का इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया था। शायद उसे डर रहा हो कि इस तरह से वह ‘कातिल’ की निगाहों में आ सकती थी।

वैसे भी इतनी बड़ी महफिल में कोई भी ‘कातिल’ का शिकार बन कर बेवकूफों की श्रेणी में शामिल नहीं होना चाहता था। हर कोई यही कोशिश कर रहा था कि वह ‘कातिल’ की निगाहों में किसी भी हाल में न आने पाए।

तलाश

कोठी के फर्स्ट फ्लोर पर जूतों की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई गूंज रही थी। यह आवाज बहुत भयानक लग रही थी। जूतों की यह आवाज माहौल को काफी डरावना बना रही थी। चलने वाला कोशिश कर रहा था कि आवाज न हो, लेकिन उस की कोशिश का जरा भी असर नहीं हो रहा था। कुछ जूते आवाज करते ही हैं। वैसे भी गलियारे में कालीन नहीं बिछा हुआ था। वह आवाज धीरे-धीरे दूर होती जा रही थी। उस आवाज से कई लोग सहम कर छुप गए थे। ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वह सचमुच का ‘कातिल’ हो और वह उन्हें ‘कत्ल’ कर देगा!

‘कातिल’ को एक ‘शिकार’ की तलाश थी। वह हर तरफ सूंघता फिर रहा था। दूसरी तरफ लोग छुपते फिर रहे थे। यकीनन खेल बहुत दिलचस्प हो गया था। शुरू में खेल में शामिल लोगों को यह खेल महज चोर-सिपाही जैसा बच्चों वाला खेल लगा था। बाद में सभी खेल को काफी गंभीरता से ले रहे थे।

सर्दी की रात और ऊपर से जबरदस्त कोहरा। एक बड़ी सी कोठी और फार्म हाउस में ‘मौत का खेल’। इस खेल में शहर की तमाम बड़ी हस्तियां शामिल थीं। खेल काफी दिलचस्प हो गया था।

कोठी का मेन गेट हल्की सी चर्र की आवाज के साथ खुल गया। कोहरे के हलके से उजाले में लाल रंग का एक स्कॉर्फ लहरा कर गायब हो गया था। कुछ देर बाद ही मेन गेट से एक मर्द का साया भी महिला के पीछे-पीछे गया था। इसके बाद अथाह सन्नाटा पसर गया था।

कोठी के भीतर कभी-कभी कपड़ों की सरसराहट सुनाई दे रही थी। ऐसा लगता था जैसे कुछ लोग ‘कातिल’ से बचने के लिए अपनी जगह बदलते घूम रहे हों। उन्हें खुद के सही जगह छुपे होने का भरोसा ही नहीं हो रहा था। यही वजह थी कि वह जगह बदल रहे थे।

कोठी के मेन गेट का दरवाजा एक बार फिर खुला। हल्की सी आवाज हुई। कोई अंदर आया था। फिर किसी के दबे पांव सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई दी। ऐसा लगता था कि कोई बहुत आहिस्ता-आहिस्ता सीढ़ी चढ़ रहा हो। वह पूरी कोशिश कर रहा था कि किसी को पता न चले।

कोठी में हर तरफ अब सन्नाटे का राज था। ऐसा लगता था या तो ‘कातिल’ कहीं खामोशी से खड़ा टोह लेने की कोशिश कर रहा है, या फिर वह फार्म हाउस में ‘शिकार’ की तलाश में निकल गया है। इस खामोशी से कोठी में छिपे बैठे लोग बेचैनी महसूस कर रहे थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जरा सा सर बाहर निकाला और ‘कातिल’ के ‘खूनी पंजों’ के शिकार बन ही जाएंगे।

इस खेल में एक दिलचस्प पहलू यह भी था कि कुछ लोग फार्म हाउस में छुपने के लिए निकल गए थे। उन्हें लगा था कि वह वहां ज्यादा सुरक्षित और आजाद रहेंगे। बाहर उन्हें जब सर्दी लगी तो कुछ लोग तो गैराज की तरफ निकल गए। वहीं कुछ लोगों ने घोड़ों के अस्तबल का रुख किया था। कुछ देर बाद ही लीद की बदबू ने उन का दिमाग भन्ना दिया था। वह किसी तरह से वहां से निकल भागे थे।

अब वह गार्ड के रूम में बैठे अंगीठी ताप रहे थे। अलबत्ता उनका दिमाग कोठी की तरफ ही लगा हुआ था। यह कुल तीन लोग थे। इन में एक महिला थी। गार्ड यह सोच-सोच कर परेशान था कि यह साहब लोग आखिर उसके कमरे में क्यों आ गए हैं। क्या कुछ गड़बड़ हो गई है। मजबूरी यह थी कि वह पूछ भी नहीं सकता था।

कहीं दूर किसी भेड़िए के रोने की आवाज बहुत खौफनाक मालूम दे रही थी। फिर उस की आवाज में आवाज मिला कर एक दूसरा भेड़िया भी रोया था। कोठी की शीशे की बड़ी सी खिड़की से एक चमगादड़ टकरा कर जमीन पर गिर पड़ा था। उस के परों की फड़फड़ाहट सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी।

अचानक कोठी के मेन गेट के सामने लान में किसी के गिरने की आवाज सुनाई दी। ऐसा लगता था कि कोई वजनी चीज गिरी हो। उस के बाद किसी के जोर-जोर से शोर मचाने की आवाज आई, “प्लीज कम इन! ‘कातिल’ अपना काम कर चुका है। आ जाइए सभी। कोई ‘कातिल’ का ‘शिकार’ हो गया है!”

कुछ देर बाद ही किसी ने मेन स्विच ऑन कर दिया। इसके साथ ही पूरी कोठी तेज रोशनी से जगमगा उठी। तमाम लोग अलग-अलग जगहों से निकल-निकल कर लॉन में जमा हो रहे थे। फार्म हाउस में छुपे लोग भी वहां जमा हो गए थे।

गलती

जिस कमरे में वह आदमी आराम कुर्सी पर बैठा हुआ था, वहां भी तेज रोशनी हो गई। रोशनी के असर से बेड पर लेटी महिला उठ कर बैठ गई। वह वनिता थी। सब से पहले उस की नजर आराम कुर्सी पर बैठे हुए शख्स पर पड़ी। वह आदमी अभी भी आंख बंद किए अधलेटा था।

वनिता को अपनी गलती का एहसास हो गया था। वह अंधेरे में एक गलत कमरे में घुस आई थी। उस ने चुपचाप बेड से उतर कर अपनी जूती पहनी और खामोशी से धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ बढ़ गई।

उस आदमी ने घूम कर उस की तरफ देखा। वनिता दरवाजा खोल रही थी। वह तेजी से बाहर निकल गई और दरवाजे को वैसे ही भेड़ दिया। कमरे में बैठे आदमी के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान फैल गई।

शिकार

लॉन की घास पर डॉ. वरुण वीरानी बड़े आराम से लेटा हुआ था। उस के गिर्द लोगों ने एक घेरा बन रखा था। जो लोग पीछे थे वह आगे बढ़ कर देखना चाहते थे कि आखिर कौन ‘कातिल’ का ‘शिकार’ बना है।

कुछ लोग डॉ. वीरानी से मजाक कर रहे थे।

“क्या यार वीरानी... तू इतनी आसानी से शिकार बन गया। चल अब उठ जा।” मेजर विश्वजीत ने कहा।

डॉ. वीरानी के एक दोस्त ने उन्हें गुदगुदी करते हुए कहा, “अब चल खुसरो घर आपने...।”

लोग डॉ. वीरानी को लगातार छेड़े जा रहे थे। इस के बावजूद वीरानी टस से मस न हुआ। उस के कुछ करीबी दोस्त उस का कान खींच रहे थे। कुछ उस का हाथ खींच रहे थे। इन सब के बावजूद डॉ. वीरानी शांत पड़ा हुआ था।

मेजबान डॉ. शरबतिया ने कहा, “चलो भई वीरानी अब उठो भी... अब जासूस को अपना काम करने दो... अभी तो ‘जासूस’ को ‘कातिल’ को भी तलाश करना है।”

तभी वहां वनिता पहुंच गई। उसने डॉ. वीरानी को जमीन पर लेटे देख कर बुरा सा मुंह बनाया और एक तरफ जा कर खड़ी हो गई। उसे यूं मुंह बनाते हुए एक मेहमान ने देख लिया था। वह बड़े ध्यान से वनिता को देखे जा रहा था।

कुछ लोग डॉ. वीरानी की अदाकारी की तारीफ भी कर रहे थे। एक मेहमान ने कहा, “गजब के एक्टर हैं डॉ. वीरानी भी... ऐसी कमाल की एक्टिंग कर रहे हैं... जैसे समचुमच ‘कातिल’ ने उन्हें मार दिया हो।”

एक मेहमान ने हंसते हुए जोड़ा, “कॉलेज टाइम में बहुत ड्रामेबाज थे। उस का असर गया नहीं है अब तक।”

एक मेहमान ने उन्हें पकड़ कर बैठाना चाहा, लेकिन उस अकेले से यह हो नहीं सका। इस के बाद एक और मेहमान डॉ. वीरानी के करीब आया और फिर दोनों ने उन्हें उठा कर बैठा दिया। उन्होंने जैसे ही वीरानी को छोड़ा वह धम से जमीन पर गिर पड़ा। इस के साथ ही एक भयानक चीख हवा में गूंज कर रह गई। हर किसी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।

*** * ***

डॉ. वरुण वीरानी को क्या हुआ था?
आखिर चीख की वजह क्या थी?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...