मेरे हाइकु प्रयास
हाइकु, कविता का सबसे छोटा स्वरुप । मात्र सत्रह वर्णों में कहनी पूरी बात, बिम्ब के साथ । सीखने का यह प्रथम प्रयास । सत्रह वर्णों के पांच-सात-पांच का अनुशासन तो पूरा किया है किन्तु बिम्ब रचना में बहुत कुछ शेष है । सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए आप की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है ।
सन्दर्भ विषय: प्रकृति, धरती
(1)
जेठ बरसे,
सावन सूखा बीते।
धरा चिन्तित।
#पर्यावरण
(2)
घेरा सूरज,
लहर का साहस।
नई कहानी।
#समुद्र_का_सौंदर्य
(3)
सोने का थाल,
आसमान में उगा।
नैना हर्षित।
#पूर्णिमा
(4)
भूमि पूजन,
भूली हुई परंपरा।
धरा रक्षा की।
#पृथ्वी_दिवस
(5)
ऋण धरा का,
कम कर सकते।
रोप पौध को।
#पृथ्वी_दिवस
(6)
हिमशिखर,
बस तनिक हिला।
विपदा भारी।
पुण्य सलिला,
हुई कुछ ही तीक्ष्ण।
संकट भारी।
मानव मन,
धर धीर समझ।
पीर धरा की।
देती धरती,
जग जल जीवन।
चाहे आदर।
#भू_स्खलन
(7)
धरती रोयी।
डायनामाइट से,
उड़ा पहाड़।
#पृथ्वी_दिवस
(8)
लू सी लगती।
ये वासंती पवन।
भू गरमाई।
#पर्यावरण
(9)
उलझ गयी,
कुहासे की गली में,
सूर्य किरण।
ठंढा सा लगे,
कुहासा ढका सूर्य।
कौन दे ऊष्मा?
धुंध यूँ छाई,
लगा पीतल थाल,
था जो सूरज।
ठिठुरी रात,
सुबह बरसात।
कांपते गात।
#ठंढ
(10)
ओ रश्मिरथी
शीघ्र आओ ना !
धुंध काटो ना !!
#ठंढ
(11)
ऋतु बदली
रश्मि ने धरा छुई
जग मुदित
#वसन्त
(12)
झरते पात,
हैं सृजन संदेश।
ऋतुराज के।
झरते स्वयं,
दे जाते नवरूप,
मूल वृक्ष को।
तपस्वी हैं ये,
खींच लाते वसंत,
आहुति बन।
#वसन्त
(13)
आज उतरा
सूर्य रथ भू पर
रथाष्टमी थी।
अतिथि बना
वसंत उत्सव का
आदित्य स्वयं।
#रथाष्टमी
#सूर्य_उत्सव
सन्दर्भ विषय: मां
(14)
सिलती थी मां,
करके नाप-जोख,
मेरे कपड़े।
तन्मयता से,
उकेर कर फूल,
सजाती फ्रॉक।
कभी ट्यूनिक,
तो कभी स्कर्ट टॉप,
कारीगर मां।
सब पूछते,
कहाँ से बनवाए,
किसने सिले?
मां ने बनाए,
प्यार का अभिमान,
छलक आता।
बरसों हुए,
वो सुंदर कपड़े,
नहीं मिलते।
डिज़ाइनर,
न हो मां, जानती है,
सजाना मुझे।
(15)
साधन नहीं,
फलती है साधना,
जानती है मां।
(16)
बिटिया पढ़े,
जतन करती मां,
सपने जिए।
(17)
करे संघर्ष,
पर बेटी पढ़ाए,
मन हर्षाए।
सन्दर्भ विषय: प्रेम, कृष्ण, राधा, रंग, होली
(18)
अनमोल है,
अंतर्मन चीरता,
विरह काल।
(19)
मां कहती थी,
आते हैं स्वयं कृष्ण
पुकार सुन।
मां कहती है,
तो आते ही होंगे वे
मैं आश्वस्त थी।
बुलाना पड़ा,
एक दिन उनको
प्रार्थना कर।
विश्वास हुआ
आते हैं स्वयं कृष्ण
पुकार सुन।
#प्रार्थना
(20)
ऑक्सीजन सी
हवा में घुलती है,
हँसी तुम्हारी।
जीवन देती
साँसों में समाकर
हँसी तुम्हारी।
ऑक्सीजन है
मेरे मन प्राण का
हँसी तुम्हारी।
(21)
करे श्रृंगार,
प्रीत रंग मन का,
छलके होली।
(22)
प्रीत गागर,
अबकी उलीचना,
रंगभरी में।
(23)
आओ माधव,
तनिक पास बैठो,
फागुन जी लें।
(24)
ढूंढें माधव,
कहाँ छिपी राधिका
हो कैसे होली।
आयीं गोपिका,
हैं ग्वाल बाल सब,
दिखे न राधा।
भरे नयन,
चितवैं इत उत,
ना खेलें होली।
कदम्ब तले,
हैं चिंतातुर खड़े,
ना भाए होली।
#राधा_ के_ रूठने_पर_कृष्ण_की_होली
(25)
गोधूलि कण,
श्यामल तन पर।
प्रेम प्रतीक।
(26)
माधव मेरे,
मनमीत मोहन।
बंसी भई मैं।
(27)
चैतन्यमना,
निखरी सी लगे भू।
है नेह धुली।
#प्रेम #वसंत
(28)
मगन मन,
प्रीत पैंजनी बाजे।
छनन छन ।
(29)
हाट बिकाय,
बन गुलाब-टैडी ।
कैसा ये प्रेम?
(30)
देखि सुदामा,
झरन लागे नैना ।
मित्र की प्रीत ।
(31)
विदा की वेला,
जिसमें राधा स्थिर,
प्रेम नाद है।
(32)
अधर धरी,
माधव ने बांसुरी।
रस माधुरी।
(33)
करें संधान,
रति पति के बाण।
पीर प्रेम की।
(34)
झरे बसन्त,
तुम्हारा पीताम्बर,
फैला हो जैसे।
(35)
तुम्हारा साथ,
लिए हाथों में हाथ।
लंबी सी बात।
(36)
अकेली कहाँ,
कान्हा के दिव्य कर,
राधा को घेरे।
(37)
जग बौराया,
दिखे अकेली राधा।
राधा मुस्काए।
सहस्त्र कर,
अदृश्य मोहन के,
उसे छिपाए।
(38)
मन उदास,
मनमोहन मेरे
कब आओगे?
सूखे कदम्ब,
रीत रहा पनघट।
कब आओगे?
(39)
तुमने किया,
जीवन समर्पित,
राष्ट्रहित में।
प्राण अर्पित,
यूँ किए ज्यों पुष्प हों।
मां भारती को।
भीगे नयन
जुड़े हाथ करते
तुम्हें प्रणाम।
#राष्ट्रप्रेम #पुलवामा
(40)
जो अनुरागी,
वही लगे निर्मोही।
प्रेम गणित।
(41)
तुम्हारा साथ,
कुहासे में किरण।
उदासी धुली।
(42)
रेणु पर्जन्य,
गोधूलि छूती अम्बर।
राधा विह्वल।
(43)
कृष्ण और मैं,
झर झर झरता,
रस नेह का।
(44)
ठिठके कृष्ण,
निहारें रूठी राधा।
कैसे मनाएँ?
(45)
कठिन शीत,
तुम्हारा पीताम्बर,
मेरा वसंत।
(46)
प्रेम मगन,
सुध बुध बिसराई,
लाज न आयी।
(47)
कृष्ण विरह,
राधा भयी बांसुरी,
सुर विहीन।
(48)
तपती ओस,
पड़े पांव में छाले,
बिन तुम्हारे।
(49)
मन चंचल,
चितवत इत उत।
न दिखे पियु।
(50)
नैन सजल,
दिन रात रहत।
टेरत पियु।
(51)
डटे सपूत
सुरक्षित सीमाएँ
राष्ट्र सौभाग्य
#देशप्रेम
सन्दर्भ विषय: विविध
(52)
मैं यशोधरा,
कर्तव्य ही बुद्धत्व
यही निर्वाण
#बुद्ध_पूर्णिमा
(53)
क्यों हैं बिखरे,
संयुक्त परिवार?
बड़ा सवाल।
नहीं टूटते,
जो सब कुछ होता,
अच्छा इतना।
क्या ढूढेंगे
कमज़ोर कड़ी को?
विद्वतजन।
#परिवार_दिवस
(54)
चमकते हैं,
स्वेद कण मुक्ता से,
अभिमान हैं।
#मजदूर_दिवस
(55)
मांग लो क्षमा,
ऊपर उठाती है,
जो मांगता है।
कर दो क्षमा,
ऊपर उठाती है,
जो करता है।
क्षमा शांति है
मन की जीवन की।
करिए क्षमा ।
#क्षमा
(56)
तुम दोस्त सी
सदा निभाती साथ
मेरी किताब
#विश्व_पुस्तक_दिवस
(57)
जीवन देते,
कर गरलपान,
हे नीलकंठ।
दुख हरते,
जगती हरषाती,
हे महादेव।
संग भवानी,
मोहक छवि न्यारी,
हे रामनाथ।
शिव प्रसन्न
जलधार धतूरा,
हे भोलेनाथ।
करें संहार,
जो अनादि अनंत
हे महाकाल।
#हर_हर_महादेव #महाशिवरात्रि
(58)
तुलसी गावैं
मानस जेहि भाखा
जानौ अवधी
#विश्व_मातृभाषा_दिवस
(59)
वासंती स्मृति,
विदाई समारोह,
कक्षा दस का।
इतराती हैं
किशोरियाँ साड़ी में
लहराती हैं।
आज के बाद
बस किताबें साथ
जी भर जी लो।
चिन्ता छिपाए
परीक्षा की मन में
प्रमुदित हैं।
#स्मृतियाँ
(60)
वीर सेनानी,
अमर बलिदानी,
तुम्हें नमन।
आज़ादी दूंगा,
तुम मुझे खून दो,
जन आह्वान।
अपनी सेना,
हम सब सैनिक,
आज़ाद गीत।
नारी पुरुष,
हैं युद्धवीर सब,
नहीं है भेद।
शब्दातीत है,
पराक्रम अतुल्य,
वर्णन नहीं।
कौन विमान,
जो खोया ताइवान,
कहानी लगे।
तुम्हारी गाथा
अमर प्रेरणा सी
मन में बसी।
#पराक्रमदिवस
(61)
सदा जाग्रत
बढ़े लक्ष्य की ओर
वही युवा है
#युवा_दिवस
(62)
मुर्गे का भ्रम,
उसकी बांग सुन
उगा सूरज
मेरे हाइकु प्रयास
हाइकु, कविता का सबसे छोटा स्वरुप । मात्र सत्रह वर्णों में कहनी पूरी बात, बिम्ब के साथ । सीखने का यह प्रथम प्रयास । सत्रह वर्णों के पांच-सात-पांच का अनुशासन तो पूरा किया है किन्तु बिम्ब रचना में बहुत कुछ शेष है । सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए आप की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है ।
सन्दर्भ विषय: प्रकृति, धरती
(1)
जेठ बरसे,
सावन सूखा बीते।
धरा चिन्तित।
#पर्यावरण
(2)
घेरा सूरज,
लहर का साहस।
नई कहानी।
#समुद्र_का_सौंदर्य
(3)
सोने का थाल,
आसमान में उगा।
नैना हर्षित।
#पूर्णिमा
(4)
भूमि पूजन,
भूली हुई परंपरा।
धरा रक्षा की।
#पृथ्वी_दिवस
(5)
ऋण धरा का,
कम कर सकते।
रोप पौध को।
#पृथ्वी_दिवस
(6)
हिमशिखर,
बस तनिक हिला।
विपदा भारी।
पुण्य सलिला,
हुई कुछ ही तीक्ष्ण।
संकट भारी।
मानव मन,
धर धीर समझ।
पीर धरा की।
देती धरती,
जग जल जीवन।
चाहे आदर।
#भू_स्खलन
(7)
धरती रोयी।
डायनामाइट से,
उड़ा पहाड़।
#पृथ्वी_दिवस
(8)
लू सी लगती।
ये वासंती पवन।
भू गरमाई।
#पर्यावरण
(9)
उलझ गयी,
कुहासे की गली में,
सूर्य किरण।
ठंढा सा लगे,
कुहासा ढका सूर्य।
कौन दे ऊष्मा?
धुंध यूँ छाई,
लगा पीतल थाल,
था जो सूरज।
ठिठुरी रात,
सुबह बरसात।
कांपते गात।
#ठंढ
(10)
ओ रश्मिरथी
शीघ्र आओ ना !
धुंध काटो ना !!
#ठंढ
(11)
ऋतु बदली
रश्मि ने धरा छुई
जग मुदित
#वसन्त
(12)
झरते पात,
हैं सृजन संदेश।
ऋतुराज के।
झरते स्वयं,
दे जाते नवरूप,
मूल वृक्ष को।
तपस्वी हैं ये,
खींच लाते वसंत,
आहुति बन।
#वसन्त
(13)
आज उतरा
सूर्य रथ भू पर
रथाष्टमी थी।
अतिथि बना
वसंत उत्सव का
आदित्य स्वयं।
#रथाष्टमी
#सूर्य_उत्सव
सन्दर्भ विषय: मां
(14)
सिलती थी मां,
करके नाप-जोख,
मेरे कपड़े।
तन्मयता से,
उकेर कर फूल,
सजाती फ्रॉक।
कभी ट्यूनिक,
तो कभी स्कर्ट टॉप,
कारीगर मां।
सब पूछते,
कहाँ से बनवाए,
किसने सिले?
मां ने बनाए,
प्यार का अभिमान,
छलक आता।
बरसों हुए,
वो सुंदर कपड़े,
नहीं मिलते।
डिज़ाइनर,
न हो मां, जानती है,
सजाना मुझे।
(15)
साधन नहीं,
फलती है साधना,
जानती है मां।
(16)
बिटिया पढ़े,
जतन करती मां,
सपने जिए।
(17)
करे संघर्ष,
पर बेटी पढ़ाए,
मन हर्षाए।
सन्दर्भ विषय: प्रेम, कृष्ण, राधा, रंग, होली
(18)
अनमोल है,
अंतर्मन चीरता,
विरह काल।
(19)
मां कहती थी,
आते हैं स्वयं कृष्ण
पुकार सुन।
मां कहती है,
तो आते ही होंगे वे
मैं आश्वस्त थी।
बुलाना पड़ा,
एक दिन उनको
प्रार्थना कर।
विश्वास हुआ
आते हैं स्वयं कृष्ण
पुकार सुन।
#प्रार्थना
(20)
ऑक्सीजन सी
हवा में घुलती है,
हँसी तुम्हारी।
जीवन देती
साँसों में समाकर
हँसी तुम्हारी।
ऑक्सीजन है
मेरे मन प्राण का
हँसी तुम्हारी।
(21)
करे श्रृंगार,
प्रीत रंग मन का,
छलके होली।
(22)
प्रीत गागर,
अबकी उलीचना,
रंगभरी में।
(23)
आओ माधव,
तनिक पास बैठो,
फागुन जी लें।
(24)
ढूंढें माधव,
कहाँ छिपी राधिका
हो कैसे होली।
आयीं गोपिका,
हैं ग्वाल बाल सब,
दिखे न राधा।
भरे नयन,
चितवैं इत उत,
ना खेलें होली।
कदम्ब तले,
हैं चिंतातुर खड़े,
ना भाए होली।
#राधा_ के_ रूठने_पर_कृष्ण_की_होली
(25)
गोधूलि कण,
श्यामल तन पर।
प्रेम प्रतीक।
(26)
माधव मेरे,
मनमीत मोहन।
बंसी भई मैं।
(27)
चैतन्यमना,
निखरी सी लगे भू।
है नेह धुली।
#प्रेम #वसंत
(28)
मगन मन,
प्रीत पैंजनी बाजे।
छनन छन ।
(29)
हाट बिकाय,
बन गुलाब-टैडी ।
कैसा ये प्रेम?
(30)
देखि सुदामा,
झरन लागे नैना ।
मित्र की प्रीत ।
(31)
विदा की वेला,
जिसमें राधा स्थिर,
प्रेम नाद है।
(32)
अधर धरी,
माधव ने बांसुरी।
रस माधुरी।
(33)
करें संधान,
रति पति के बाण।
पीर प्रेम की।
(34)
झरे बसन्त,
तुम्हारा पीताम्बर,
फैला हो जैसे।
(35)
तुम्हारा साथ,
लिए हाथों में हाथ।
लंबी सी बात।
(36)
अकेली कहाँ,
कान्हा के दिव्य कर,
राधा को घेरे।
(37)
जग बौराया,
दिखे अकेली राधा।
राधा मुस्काए।
सहस्त्र कर,
अदृश्य मोहन के,
उसे छिपाए।
(38)
मन उदास,
मनमोहन मेरे
कब आओगे?
सूखे कदम्ब,
रीत रहा पनघट।
कब आओगे?
(39)
तुमने किया,
जीवन समर्पित,
राष्ट्रहित में।
प्राण अर्पित,
यूँ किए ज्यों पुष्प हों।
मां भारती को।
भीगे नयन
जुड़े हाथ करते
तुम्हें प्रणाम।
#राष्ट्रप्रेम #पुलवामा
(40)
जो अनुरागी,
वही लगे निर्मोही।
प्रेम गणित।
(41)
तुम्हारा साथ,
कुहासे में किरण।
उदासी धुली।
(42)
रेणु पर्जन्य,
गोधूलि छूती अम्बर।
राधा विह्वल।
(43)
कृष्ण और मैं,
झर झर झरता,
रस नेह का।
(44)
ठिठके कृष्ण,
निहारें रूठी राधा।
कैसे मनाएँ?
(45)
कठिन शीत,
तुम्हारा पीताम्बर,
मेरा वसंत।
(46)
प्रेम मगन,
सुध बुध बिसराई,
लाज न आयी।
(47)
कृष्ण विरह,
राधा भयी बांसुरी,
सुर विहीन।
(48)
तपती ओस,
पड़े पांव में छाले,
बिन तुम्हारे।
(49)
मन चंचल,
चितवत इत उत।
न दिखे पियु।
(50)
नैन सजल,
दिन रात रहत।
टेरत पियु।
(51)
डटे सपूत
सुरक्षित सीमाएँ
राष्ट्र सौभाग्य
#देशप्रेम
सन्दर्भ विषय: विविध
(52)
मैं यशोधरा,
कर्तव्य ही बुद्धत्व
यही निर्वाण
#बुद्ध_पूर्णिमा
(53)
क्यों हैं बिखरे,
संयुक्त परिवार?
बड़ा सवाल।
नहीं टूटते,
जो सब कुछ होता,
अच्छा इतना।
क्या ढूढेंगे
कमज़ोर कड़ी को?
विद्वतजन।
#परिवार_दिवस
(54)
चमकते हैं,
स्वेद कण मुक्ता से,
अभिमान हैं।
#मजदूर_दिवस
(55)
मांग लो क्षमा,
ऊपर उठाती है,
जो मांगता है।
कर दो क्षमा,
ऊपर उठाती है,
जो करता है।
क्षमा शांति है
मन की जीवन की।
करिए क्षमा ।
#क्षमा
(56)
तुम दोस्त सी
सदा निभाती साथ
मेरी किताब
#विश्व_पुस्तक_दिवस
(57)
जीवन देते,
कर गरलपान,
हे नीलकंठ।
दुख हरते,
जगती हरषाती,
हे महादेव।
संग भवानी,
मोहक छवि न्यारी,
हे रामनाथ।
शिव प्रसन्न
जलधार धतूरा,
हे भोलेनाथ।
करें संहार,
जो अनादि अनंत
हे महाकाल।
#हर_हर_महादेव #महाशिवरात्रि
(58)
तुलसी गावैं
मानस जेहि भाखा
जानौ अवधी
#विश्व_मातृभाषा_दिवस
(59)
वासंती स्मृति,
विदाई समारोह,
कक्षा दस का।
इतराती हैं
किशोरियाँ साड़ी में
लहराती हैं।
आज के बाद
बस किताबें साथ
जी भर जी लो।
चिन्ता छिपाए
परीक्षा की मन में
प्रमुदित हैं।
#स्मृतियाँ
(60)
वीर सेनानी,
अमर बलिदानी,
तुम्हें नमन।
आज़ादी दूंगा,
तुम मुझे खून दो,
जन आह्वान।
अपनी सेना,
हम सब सैनिक,
आज़ाद गीत।
नारी पुरुष,
हैं युद्धवीर सब,
नहीं है भेद।
शब्दातीत है,
पराक्रम अतुल्य,
वर्णन नहीं।
कौन विमान,
जो खोया ताइवान,
कहानी लगे।
तुम्हारी गाथा
अमर प्रेरणा सी
मन में बसी।
#पराक्रमदिवस
(61)
सदा जाग्रत
बढ़े लक्ष्य की ओर
वही युवा है
#युवा_दिवस
(62)
मुर्गे का भ्रम,
उसकी बांग सुन
उगा सूरज