मैं कोरोनावायरस बोल रहा हूं
हाँ तो साहब मैं बोल रहा हूं । मैं यानी कौन ? मैं वही हूं ,जिसने पूरी दुनिया को परेशान किया हुआ है। मैं वही हूं जो आप लोगों का सर दर्द बन गया । आप लोगों ने मेरा नाम कोरोना दिया है । हाँ तो मैं कोरोना बोल रहा हूं । मैं अनाथ जहाँ पैदा हुआ, उसने चमगादड़ की संतान बताया और किसी भी चमगादड़ ने मुझे माता पिता का प्यार नहीं दिया । यहाँ तक की पूरी दुनिया में किसी ने भी मुझे स्वीकार नहीं किया कि मैं उसकी संतान हूं । अब तो दुनिया में कई संस्थाएं मेरे माता पिता को खोज रही हैं। बस मैं ममता और प्यार का भूखा आप सब में प्यार खोजने लगा जहाँ जो मिलता मैं उससे चिपक जाता ममता और प्यार की चाहत में । मेरी यह चाहत आपके लिए इतनी अच्छी न थी। बस सब मुझसे पीछा छुड़ाना चाहते थे। फिर क्या था कई देशों ने लाकड़ाउन जैसे कदम उठाकर मेरे मिलने-जुलने पर रोक लगाने का प्रयास किया । परंतु अमेरिका जैसे देश भी थे जो मेरी ममता और अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित थे । मुझे भारत बहुत पसंद आया यहां लोगों के लिए चुनाव और धर्म जान से अधिक कीमती है । मुझे तो बस भीड़ चाहिए मिलने-जुलने के लिए । मेरा मिलना-जुलना जारी रहा ।
मुझे यह सब अच्छा लगने लगा । बस मैं निकल गया दुनिया की सैर पर सर । अब कोई देश नहीं बचा जहाँ मैं न अा गया होऊं । हर देश में मुझ से बचने का प्रयास करने वाले लोग मिले और वे भी मिले जिन्हें शायद मेरा इंतजार ही था । बस मैं लोगों से मिलता रहा बहुत से लोगों से मेरा प्यार मरते दम तक चला तो बहुत से लोग जीते जी ही बेवफा हो गए । मुझे चाहिए था कोई बड़ा सा देश जहाँ अधिक लोग रहते हो । बस मैं भारत पहुंच गया । बड़े आराम से फ्लाइट से आया ,हवाई अड्डे से सीधे गली मोहल्ले और बाजारों में लोगों से मिलने लगा । मेरे आने के समय यहाँ जातिगत राजनीति जोरों पर थी । लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे मेरे आते ही लोग घरों में घुस गए । फिर भी कुछ लोग मुझे फैलाने के लिए जाति और समुदायों को दोषी करार देने लगे । कई दिनों तक मैं एक क्वॉरेंटाइन सेंटर में अपने दोस्त के साथ बैठकर इसका मजा लेता रहा। फिर मुझे लगा बड़े शहर तो बहुत घूम लिए आप छोटे शहर और गाँव भी देखे जाएं । इस समय रास्ते में चलने वाले मजदूरों से दोस्ती की, वे मुझे अपने साथ अपने शहर और गाँव तक ले आए । यहाँ मैं बड़े आराम से हूं ।
जब मैं सब तरफ घूम रहा था , तब मैंने देखा कुछ लोग बहुत कुछ कर रहे हैं । कुछ लोग अपने ही मजदूर भाइयों के खाने और दवाइयों से खुद के घर भरने में लगे थे । नेताओं को कोई मतलब नहीं था । वे अपनी रोटियां सेकने में लगे थे । वे पहले भी राजनीति कर रहे थे और मेरे रहते हुए भी करते रहे । उनका यह जन्म सिद्ध अधिकार जो है । मैं देख रहा था कोई मदद के लिए हाथ बढ़ाता तो राजनीतिक लोग स्वार्थ के कारण उसे रोकने का पूरा प्रयास करते । फिर भी बहुत से मतवाले थे जो मजदूरों की मदद के लिए निकल पड़े । सच बताऊं , मुझे उनका सेवा भाव इतना पसंद आया कि मैंने उनकी तरफ देखा भी नहीं ।
अब जब सब ओर मुझे मारने का प्रयास किया जा रहा है । अजीब हालात पैदा हो गए हैं । सबको लगता है मैं उनसे मिल ही नहीं सकता। वे और उनका परिवार मुझ से बच जाएंगे । अब जब मैं छोटे-छोटे गांवों , मोहल्लों और गलियों में बिल्कुल आस-पास ही हूं तो कोई मुझ से डरता ही नहीं । बस सब बाहर निकल रहे हैं बेधड़क । यहाँ तक की किसी को मालूम भी हो कि मैंने उससे दोस्ती कर ली है (आप लोग इसे पॉजिटिव होना कहते हैं ) तो भी वह मुझे लेकर बाजार ऑफिस और कई घरों में घूमता रहता है । मैं इस दौरान और दोस्त खोज लेता हूं । अजीब बेवकूफ लोग हैं, जो मुझे जाने ही नहीं दे रहे हैं मुझे तो इनकी बेवकूफी पर तरस आता है। अब तो समाचारों में भी मेरा नाम नहीं आता । बस मुझे अपने ऊपर शर्म आने लगी है । कहीं ऐसा न हो की आप लोग मेरा इलाज ही खोजते रह जाएं और मैं शर्म से ही मर जाऊं।
आलोक मिश्रा " मनमौजी "
बालाघाट (म.प्र.)
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