Kuchh chitra mann ke kainvas se - 27 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 27 - विदा के पल

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कुछ चित्र मन के कैनवास से - 27 - विदा के पल

विदा के पल

अब हमारे पास सिर्फ 1 दिन बाकी था । पैकिंग भी करनी थी अतः इस दिन को हम घर में रहकर सब के साथ बातें करते हुए, रिलैक्स मूड में बिताना चाहते थे । रात्रि को प्रभा ने डोसा का कार्यक्रम रखा था क्योंकि उसे लगता था कि मैं अच्छा डोसा बनाती हूँ । पूरा दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला आखिर वह दिन आ गया जिस दिन हमें लौटना था ।

14 अगस्त को आइ.ए 126 फ्लाइट से शिकागो के ओ. हेरे एयरपोर्ट से, जो शाम को वहां के समय के अनुसार शाम 4:00 बजे चलती है, हमें चलना था । एक तरफ घर लौटने की खुशी थी तथा दूसरी तरफ प्रभा, पंकजजी तथा प्यारे प्रियंका एवं पार्थ से बिछड़ने का दुख नहीं था । दोपहर का खाना खाकर हम एयरपोर्ट के लिए चल दिए । प्रभा, पंकजजी ने हमें एयरपोर्ट छोड़ा । सारी औपचारिकताएं पूरी करके आखिर हम ट्रेन में बैठ गए । हमारा विमान रनवे पर जाने के लिए चला पर कुछ ही देर बाद रुक गया । सामने स्क्रीन पर देखा तो पाया हमारे प्लेन के आगे कई प्लेन खड़े हैं... जैसे एक आगे बढ़ता, दूसरे के लिए स्थान खाली हो जाता । एयरपोर्ट पर ट्रैफिक जाम वाली स्थिति थी । आखिर हमारे प्लेन नंबर आ ही गया । रनवे पर आते ही उसने अपनी स्पीड पकड़ी और धरती को छोड़ कर आकाश की ओर उड़ चला ।

इस बार भी हमें विंडो सीट नहीं मिली थी। मेरे बगल में एक सरदार जी बैठे थे । मन मारकर टी.वी. देखते या खाते पीते ही समय व्यतीत किया । लगभग 8 घंटे , 15 मिनट के पश्चात हमारा विमान फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर, वहां के समयानुसार सुबह के 7:00 बजे उतरा । हमें वहां से बस के द्वारा एक लाउंज के समीप उतारा । सभी यात्री बस से उतरकर लाउंज में गए । लगभग 1 घंटे पश्चात फिर हम बस द्वारा अपने विमान तक पहुंचे तथा अपनी अपनी सीट पर बैठ गए । पुनः विमान ने उड़ान भरी... इस बार कोई भी सीट खाली न होने के कारण हमें बैठे-बैठे ही आना पड़ा । थकान भी होने लगी थी । सीट पर बैठे- बैठे ही सोने का प्रयत्न किया पर सफलता नहीं मिली । आखिर 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस वाले दिन रात्रि 9:05 पर हमारा विमान दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल विमानपत्तनम पर उत्तर गया । मेरी छोटी ननद आभा अपने पुत्र चंको के साथ हमें लेने एयरपोर्ट पहुंचे । अपनी धरती पर पैर रखते ही अजीब सा सुकून महसूस हुआ लगा किसी ने सच ही कहा है जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी ...।

दूसरे दिन हमें गाजियाबाद अपनी बड़ी ननद आशा जीजी एवं राजेन्द्र जीजा जी से मिलने जाना था । यद्यपि राखी का त्यौहार बीत चुका था पर दोनों बहनें अपने हाथों से अपने भाई को राखी बांधना चाहती थीं । हमें उनकी इच्छा का मान रखना था । राखी का त्यौहार मनाकर हमें अपने अंतिम डेस्टिनेशन के लिए निकलना था ... आखिर हमारी यात्रा एक सुखद अहसास के साथ समाप्त हुई ।

इस यात्रा में कुछ घटनाओं को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी…

पहला हमारे भाई बंधु जो स्वेच्छा या मजबूरी में विदेश गए हैं वह हमारे राजनीतिक दूत की तरह हैं जो दूर देश में भी अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहकर उनका प्रचार और प्रसार कर रहे हैं ।

दूसरा वाशिंगटन में मिला वह टैक्सी ड्राइवर जो हमें अपना देशवासी जानकर हमसे टैक्सी के किराए के पैसे ही नहीं ले रहा था । सच देश प्रेम की भावना इंसानों को सदा प्रेम के धागे में जोड़े रखती है यह बात उस अनजान टैक्सी ड्राइवर के व्यवहार से इंगित हो रही थी ।

तीसरा न्यूयॉर्क का वह मुस्लिम टैक्सी ड्राइवर जो दोनों देशों के व्यक्तियों के बीच पलते प्यार और सद्भाव के मनोभावों का प्रदर्शन करते हुए हिंदू मुस्लिम एकता का परिचय करवा रहा था ।

चौथा एलिस आइसलैंड के रिसेप्शन काउंटर पर बैठा वह रिसेप्शनिस्ट , जिसने हमें न्यूयॉर्क टूर बुक देते हुए मुस्कुराकर कहा था 'इंजॉय योर जर्नी ' । वास्तव में इस टूर बुक की सहायता से हमें न्यूयॉर्क को घूमने में अत्यंत की सहायता मिली थी ।

पांचवा न्यूयॉर्क का वह टैक्सी ड्राइवर जिसने हमें हमारे होटल के नजदीक यह कहते हुए थोड़ा था कि यहां से आपका होटल पास है अतः आप यहीं उतर जाइए वरना वन वे ट्रैफिक होने के कारण आपको काफी घूमकर जाना पड़ेगा, जिसकी वजह से किराया काफी बढ़ जाएगा । हमें उसकी स्पष्टवादिता बेहद पसंद आई थी।

छठा एयरपोर्ट में मिला भोपाल का रहने वाला वह कर्मचारी जिसने जान पहचान न होने पर भी हमारी चिंता करते हुए 'मिशन स्पेस' वाली राइड लेने के लिए हमें मना किया था ।

कहते हैं डाल का पंछी डाल पर लौट कर ही सुख और सुकून पाता है... यह बात सोलह आने सच है पर दुनिया के हर रंग रूप से परिचित होने के लिए जगह जगह घूमना भी आवश्यक है वरना इंसान अपनी कूपमंडूकता के साथ अपने विचारों में भी कूपमंडूक ही बना रह जाता है । अतः जब समय मिले घूमने निकल पड़िए ...इससे आपके तन -मन को न केवल संजीवनी मिलेगी वरन विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों का तुलनात्मक विवेचन कर आप अच्छाइयों को ग्रहण कर समाज के नवनिर्माण में सहयोग भी दे पाएंगे ।

कहते हैं जीवन की यात्रा कभी समाप्त नहीं होती । घर पहुंचने के एक हफ्ते पश्चात ही मुझे अपने नवासे को गोद में खिलाने के लिए बैंगलोर जाना था …
फिर मिलने की आस के साथ
आपकी अपनी

सुधा आदेश

समाप्त