Kaisa ye ishq hai - 65 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (65)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (65)

'पागल लड़की' इतना क्यों भावुक हो रही हो।जब तुम आओगी लखनऊ तब हम मिलेंगे न ठीक है,अब तुम अपना ध्यान रखो और मैं निकलती हूँ।शोभा जी ने कहा जिसे सुन अर्पिता बस मुस्कुरा भर देती है।शोभा जी वहां से चली जाती है कमला भी शीला के पास रुक जाती है ये देख अर्पिता अंदर कमरे में जाकर शान के लिए बुने गये स्वेटर को फाइनल टच देती है और उसे इमेजिन कर मुस्कुराते हुए कहती है अच्छा लगेगा आप पर शान।वहीं शान लगातार आ रही हिचकियो से परेशान है जिसे देख परम बोले,भाई लगता है छोटी भाभी आपको दिल से बहुत याद कर रही हैं।शान बोले लगता तो ऐसा ही है छोटे।शान की हिचकियां आना बन्द हो जाती है जिसे देख शान मन ही मन बोले इतनी शिद्दत से याद किया जा रहा है मुझे अर्पिता बस कुछ दिन और फिर तुम भी यहीं आ जाओगी।मुस्कुराते हुए शान की नजर घर की बालकनी में खड़ी श्रुति पर पड़ती है जो परेशान हो किसी से बात कर रही है।

श्रुति को परेशान देख शान उसके पास और पूछा - क्या हुआ श्रुति परेशान क्यों हो किसी से झगड़ा हुआ क्या या किसी ने कुछ कहा।बताओ मुझे क्या बात है?

श्रुति बोली भाई मैं परेशान मेरे एक दोस्त सात्विक की वजह से हूँ आपको पता है उसने जॉब तो पहले ही छोड़ दी थी अब न जाने क्यों ये शहर भी छोड़ कर जा रहा है। पिछले एक महीने से अजीब बिहेव कर रहा है।न मुझसे अच्छे से बात कर रहा है, न ही मिलना चाह रहा है।अरे भाई प्रेम में किसी को हार मिलती है तो किसी को जीत!इसका अर्थ ये तो नही कि इंसान इस हार से ही हार जाये।एक महीने पहले दिल टूट गया बेचारे का।न जाने किससे प्रेम करता था न ही मुझे पता और न ही अर्पिता भाभी को!अब महाशय जिद किये बैठे अब इस शहर में नही रहना है तो बस उसी को कॉल कर बात करने की कोशिश कर रही थी।

श्रुति की बात सुन प्रशांत बोले, श्रुति प्रेम हर व्यक्ति के लिए अलग होता है हर किसी के लिए इसकी परिभाषा इसका अर्थ इसे मानने के तरीके अलग होते हैं।क्योंकि है तो ये एक भावना ही जो सीधा व्यक्ति के हृदय से जुड़ती है।इसमे मिली स्वीकृति और अस्वीकृति दोनो सीधे हृदय पर प्रहार करती है।इसीलिए इसे स्वीकार करने में भी समय लगता है।तुम्हारा दोस्त समझदार है जिसने इतने दिन तक खुद को सम्हाला वो कोई गलत कदम नही उठा सकता तुम उसे थोड़ा समय दो।वो जो करना चाहता है उसे करने दो।जब उसे ये एहसास होगा कि उसे अब वापस लौटना चाहिए वो आ जायेगा।ठीक है श्रुति।

'हां भाई मैं समझ गयी' श्रुति ने कहा और वापस अपने कमरे की ओर निकल आती है।उसके जाने के बाद शान सोचते हुए बोले ताईजी भी यहीं आ गयी है अप्पू!अब तुम्हारा ध्यान वहां कौन रखेगा।मां ने कुछ कहा तो तुमसे..!नही अब तो मां तुमसे अच्छे से पेश आती है ताईजी ने बताया था और तुमने भी तो बोला है मुझसे कि अब मां तुमसे अच्छे से मुस्कुराते हुए बात करती है।मुझे ठाकुर जी पर भरोसा रखना चाहिए वो सब ठीक ही करेंगे।शान ने खुद से कहा और कमरे की ओर चले आते हैं।

सांझ ढलती देख अर्पिता कमरे से बाहर आती है और बगीचे में जाती है जहां शीला अकेले बैठी हुई है ये देख अर्पिता वहां उनके पास आकर खड़ी हो जाती है।उसे देख शीला बोली,अर्पिता अब खड़ी क्यों हो वापस भी तो कमरे में जाना होगा न।

अर्पिता आगे बढ़ी और शीला जी को सहारा देकर उनके कमरे तक ले जाती है।उसकी खामोशी देख शीला जी मन मन सोचती है ये तो चमत्कार हो गया कि आज इसकी चपड़ चपड़ बन्द है नही तो कितना सर दर्द कर देती थी।अर्पिता जब बिन कुछ कहे चल रही है तो उसकी पायलों की आवाज सुनकर शीला जी बोली,ये इतने शोर वाली पायलें क्यों पहन ली अब तक तो नही पहनी थी,इन्हें उतार देना बहुत शोर करती हैं।

अर्पिता बिन कोई जवाब दिये उन्हें ले जाती है उनके कमरे में पहुंच उन्हें बेड पर लिटा कर ब्लैंकेट ओढा वहीं थोड़ी दूर रखी कुर्सी पर जाकर बैठती है और पायलों को वहीं उतार कर हाथ में पकड़ वापस चली आती है।

कमरे में आकर बस शान के बड़े से पोस्टर को एकटक देखती रहती है।दस दिन और गुजरते है शीला के पैर का प्लास्टर भी कट जाता है और वो धीरे धीरे चलने भी लगती हैं।इन बीते दिनों में अर्पिता ने शीला जी से बहुत ही सीमित मात्रा में बात की।वहीं कमला से भी जितनी आवश्यक होती उतनी बाते कर लेती बाकी समय वो गार्डनिंग घर की मेंटेन और शान की तस्वीर को देखते हुए निकाल लेती।

शीला जी के चेकअप के लिए अर्पिता उन्हें डॉक्टर के क्लिनिक ले जाती है जहां डॉक्टर बताते है कि अब ये ठीक है आप धीरे धीरे इस पैर पर हल्का वजन डाल कर खुद से चलना शुरू कर सकती है।दो एक दिन चले उसके बाद ये आराम से सीढिया चढ़ उतर सकती है।

जी धन्यवाद डॉक्टर अर्पिता ने कहा और शीला जी से बोली, "मां घर चलिये"।

हां अर्पिता हमारे घर चलते हैं।कहते हुए वो अर्पिता का सहारा लेने आगे बढ़ी तो अर्पिता एक तरफ हटते हुए बोली मां अब आप ठीक हो गयी हो फिर आपको हमारे क्या किसी के भी सहारे की क्या आवश्यकता है।चलिये आप अर्पिता ने कहा और पीछे कदम बढ़ा धीमे कदमो से चलने लगती है।

शीला साथ चलते हुए मन ही मन सोचती है सही कह रही हो तुम जहां तुम हो वहां किसी को सहारे की कोई जरूरत नही है अर्पिता।चलते हुए अर्पिता खामोश होती है उसकी खामोशी देख मुस्कुराते हुए सोचने लगी, " बस एक बार कहा तुमसे और तुम अब जाकर खामोश हुई हो जब तुम्हे पता चल गया कि अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ।

अर्पिता के मन में इस समय तूफान मचा हुआ है।उसे अपने शान से दूर जाना होगा ये सोच कर ही पैर लड़खड़ा जाते हैं।खुद को सम्हाल वो गाड़ी तक पहुंचती है और गाड़ी को ड्राइव कर घर ले आती है।
गाड़ी पार्क कर वो शीला को घर के अंदर ले जाती है।शीला आने कमरे में चली जाती है।उनके जाने के बाद अर्पिता अपने कमरे में जाती है वहां से अपनी पायलें और फोन उठा कमरे का दरवाजा बन्द कर कमला के पास जाकर बोली, " ताईजी मां अब बिल्कुल ठीक है।हम भी अब घर जा रहे है ताईजी।

अरे वाह मां पापा से मिलने की इतनी अधीरता कि एक मिनट भी रुका नही जा रहा है।कमला मुस्कुराते हुए बोली।

नही ताईजी वो तो बस जब से आये है उनके पास कुछ क्षण बैठे भी नही न तो बस इसीलिए।अर्पिता ने सफाई देते हुए कहा।

कमला बोली :-ठीक है अर्पिता, फिर तुम आज लखनऊ रुक जाना कल प्रशांत के साथ निकल जाना ठीक है।

मैं शोभा को फोन कर बोल देती हूँ कि तुम यहां से लखनऊ के लिए निकल रही हो।ठीक है कमला ने कहा।अर्पिता ने कमला के चरण स्पर्श किये और बोली ताईजी मां से कहना अब अर्पिता की बक बक से उनका पीछा छूट गया।क्योंकि अब वो चल फिर कर आराम से कहीं भी किसी में साथ भी बैठ सकती है।

हम्म सो तो है।कमला ने कहा अर्पिता वहां से निकल आती है बस स्टैंड पहुंच लखनऊ के लिए बस पकड़ती है और खिड़की के पास बैठ अपने शान के पास आने के लिए निकल आती है।

वहीं अपने कमरे में बैठी शीला अर्पिता के अब तक कमरे में न आने पास सोचते हुए कहती है वैसे तो दिन में हर दो घण्टे में झांक कर देख लेती थी, आते हुए पूछती थी मां कुछ चाहिए, दर्द तो नही हो रहा है आज अब तक आई क्यों नही।जबकि आज मुझे इससे बाते करनी है।इसकी आवाज सुननी है जो पिछले कुछ दिनों से सुनी ही नही।न जाने कहां रह गयी है ये।'अर्पिता यहां आना' शीला आवाज लगाते हुए दरवाजे की ओर देखती है जहां कमला खड़ी होती है।उसे देख शीला हैरान हो बोली जीजी आप अर्पिता कहां है मैंने उसे आवाज लगाई थी।

अर्पिता तो चली गयी शीला।उसे घर जाना था तो मैंने उससे बोला पहले लखनऊ जाये वहां से अगले दिन प्रशांत के साथ घर के लिए निकल जाना।

अर्पिता चली गयी जीजी! शीला ने हैरानी से पूछा तो कमला बोली इसमे इतना चौंकने वाली क्या बात है छोटी अब बच्ची है मां पापा से मिलने का उसका भी मन होगा न।

वहीं शीला ये सुन सोचने लगी कहीं ऐसा न हो कि अर्पिता वापस आये ही न।नही नही वो ऐसा नही करेगी वो प्रशांत को दिया अपना वचन थोड़े ही तोड़ेगी।मैंने कौन सा उससे वचन लिया था कि वो यहां से चली जाये मैंने तो बस कहा था वो भी बेवकूफी में।मैं कुछ ज्यादा ही सोच रही हूँ।मेरी बहू समझदार है वो लौट कर आयेगी।ठीक है जीजी।कोई नही दवा लेनी थी मैं ले लूंगी।शीला ने कहा तो कमला वहां से चली जाती है।

अर्पिता समय देखती है शाम के पांच बज रहे है।यानी शान अभी अकैडमी के लिए निकल रहे होंगे हम छोटे को कॉल कर पूछते है वो कहां है ..नही हो सकता है वो किरण के साथ हो।हमे खुद ही निकलना चाहिए।लेकिन एक बार शान को बता देना चाहिए हम लखनऊ पहुंच रहे है नही तो पता चला सरप्राइज के चक्कर में जाते हुए भी हम उनसे डांट खाये।

अर्पिता में अपना मोबाइल उठा कर शान को फोन घुमाया और बोली,हेल्लो शान!
शान :- हां अप्पू!

शान कहां है आप?
शान :- मैं कहां हूँ?वही मेरी पगली के हृदय में।देखना चाहती हो।

अर्पिता :- अभी कहां हो?हम यहां लखनऊ के बस स्टैंड पहुंचने वाले हैं।

ये बात सुन शान खुशी से बोले मतलब तुम यहां आ गयी अप्पू!

अर्पिता :-हम्म हम हमारे शान के पास आये हैं बताइये न कहां है आप।

शान :- ठीक है लोकेशन भेजो मुझे!और वहीं बस स्टैंड पर उतर कर मेरा इंतजार करो मैं लेने आ रहा हूँ तुम्हे।

ठीक है शान कहते हुए अर्पिता फोन रख शान को अपनी लोकेशन सेंड कर देती है और फिर मुस्कुराते हुए खिड़की से बाहर ओर देखने लगती है।
शान लोकेशन देखते है तो मन ही मन बोले तो तुम पहुंचने ही वाली हो अप्पू!यानी मां बिल्कुल ठीक हो गयी है और शायद तुम्हारा उनसे रिश्ता भी।

मैं पहुंच रहा हूँ अपनी पगली के पास कहते हुए शान अकैडमी जाने की जगह बस स्टैंड मुड़ जाते हैं।जहां बस आकर खड़ी ही हो पाई होती है।अर्पिता अपना छोटा सा बैग उठाती है और बाहर उतर आती है।

एक शॉप के पास खड़े शान अर्पिता को देख लेते है एवं उसके पास आकर बाइक रोक लेते है।अर्पिता के हृदय की धड़कने बढ़ जाती है और वो धीमे से शान के पास बैठ जाती है।

शान ने उसे देखा हल्का सा मुस्कुराये और बाइक लखनऊ की सड़क पर दौड़ा देते हैं।घर की लोकेशन चेंज देख अर्पिता हैरान हो बोली शान!आपने रूम कब बदल लिया?

शान :- एक महीने पहले ही जब किरण और परम दोनो ही यहां आये थे तब।

अर्पिता :- ठीक हम समझ गये शान!अर्पिता ने कहा और अपना सर शान की पीठ पर टिका लेती है।

शान :- अर्पिता!एक बात पूछूँ?
अर्पिता:- हम्म पूछो?
शान :- तुम खुश तो हो न?
अर्पिता :- आज हम सबसे ज्यादा खुश है शान!
शान :- ठीक, बहुत बढ़िया!

अर्पिता :- हम्म शान।
कुछ देर दोनो चुप रह जाते हैं।घर आ जाता है तो शान अर्पिता से बोले, उठो अप्पू,रूम आ गया है।

अर्पिता ने अपना सर उठाया और सड़क से ही रूम को देखा।जो कि फिर पूरा सेकण्ड फ्लोर ही था।बहुत अच्छी पसंद है आपकी शान!अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली!

ये सुन शान ने अर्पिता की ओर देखा और बोले जानता हूँ पगली!तो अब तुम यहीं मेरे आने का इंतजार करो मैं अकैडमी जाता हूँ फिर वापस आकर ढेर सारी बातें करते हैं।

शान की बात सुन अर्पिता मायूस हो गयी और बोली :- आप जा रहे हैं शान?

शान :- हम्म,बस कुछ देर में आकर मिलता हूँ!आज एक ही बैच पढ़ाना है।तो बस गया और आया और ये देखो यहां से अकैडमी और ऑफिस दोनो ही ज्यादा दूर नही है तो आने जाने में ज्यादा समय भी नही लगेगा।

ठीक है शान अर्पिता ने कहा अंदर चली जाती है।शान बाइक मोड़ते है एवं वहां से अकैडमी निकल जाते हैं।अकैडमी पहुंच रवीश जी के पास गये और बोले, "भाई मुझे तीन दिन की छुट्टी चाहिए"!

रवीश जी :- फिर से छुट्टी!तीन दिन की यार कुछ तो रहम मेरी अकाडमी पर भी कर लो।

शान मुस्कुराते हुए बोले:- तीन दिन के लिए मैं पर्सनल काम से आउट ऑफ सिटी जा रहा हूँ मेरे भाई!

ठीक है वैसे भी तुम कुछ लेते तो हो नही!उस पर मैं तुम्हे रोक लूं कैसे?तीन दिन बाद आ जाना लेकिन।हो सके तो इस बार अर्पिता को भी ले आना।

रवीश की बात सुन शान बोले :- अब उसे कार्य करना है या नही ये तो वही डिसाइड करेगी।मैं कुछ नही कह सकता।

ठीक है भाई।रवीश ने कहा तो शान अपनी क्लास अटैंड करने चले जाते हैं।
अर्पिता सीढियां चढ़ते हुए ऊपर पहुंचती है और पूरे फ्लोर का जायजा लेती है।तीन कमरे एक हॉल एक रसोई बालकनी और ऊपर रूफ गार्डन।काफी दिनों बाद उसके चेहरे पर सुकून भरी मुस्कुराहट आई है।वो सब देख ही रही होती है कि तभी श्रुति अपने कमरे से निकल कर आती है अर्पिता को देख खुशी से चीखते हुए कहती है मतलब अप्पू, तुम यहां आ ही गयी छोटी मामी ठीक हो गयी।

हम्म श्रुति!अर्पिता ने श्रुति के गले लगते हुए कहा।
बहुत बहुत बहुत खुशी की बात है मुझे जानकर बहुत अच्छा लगा कि तुम आ गयी अप्पू!तुम यहां क्यों खड़ी हो चलो कमरे में चलकर ढेर सारी बातें करते हैं।श्रुति ने खुशी से सरोबार होते हुए कहा और अर्पिता को अंदर खींच ले जाती है।

श्रुति!हम चल रहे हैं, ऐसे खींच के ले जा रही हो क्यों?अर्पिता ने कहा जिसे सुन श्रुति बोली चुप करो मैं कौन सा अपने रूम में ले जा रही हूँ देखो तो मैं तुम्हे कहां लेकर आई हूँ देखो जरा!श्रुति ने अर्पिता से कह उसका हाथ छोड़ दिया।अर्पिता ने नजर उठा कर सामने की दीवार देखी जिसमे शान और अर्पिता दोनो एक पोस्टर में मुस्कुराते हुए खड़े हैं।

श्रुति ये तो शान यानी हमारा कमरा है।अर्पिता ने धीमी आवाज में कहा।जिसे सुन श्रुति बोली हम्म ये मेरे भाई और स्वीट सी भाभी का कमरा है।जो मेरे चार्मिंग भाई ने खुद मेंटेन किया है।

चलो बैठकर बातें करते है श्रुति ने कहा और बेड पर बैठते हुए बोली, अर्पिता सच कहूँ तो प्रेम क्या है और इसे हर पल कैसे जिया जाता है ये मैंने भाई को देख कर जाना है,उनसे सीखा है।तुमसे उनका रिश्ता कितना गहरा है ये मैंने तब देखा जब वो एक कप कॉफी के साथ मुस्कुराते हुए चांद की ओर देख उससे बाते करते थे।खैर अगर मैं बताना शुरू हो गयी तो बातें आज तो खत्म नही हो पाएंगी।श्रुति ने अर्पिता से कहा।उसकी बात सुन अर्पिता की आंखों में आंसू आ जाते है वो मन ही मन सोचती है, "क्या किस्मत है हमारी!हमे खुद से ज्यादा मान देने वाला जीवनसाथी मिला लेकिन नियति को हमारा साथ ही मंजूर नही।अर्पिता को चुप देख श्रुति बोली ये सही है मैं यहां तब से बड़ बड़ किये जा रही हूँ और तुम बस भाई को ही याद किये जा रही हो।वैसे भाई अब आने वाले होंगे!तुम फ्रेश हो जाओ और थोड़ा आराम कर लो।मैं जाती हूँ श्रुति ने कहा और उठकर अपने रूम में चली जाती है।अर्पिता बेग रख एक नजर पूरे कमरे पर डालती है जहां उसे हर तरफ शान के जीवन में अर्पिता के अस्तित्व का पता चल रहा है।कुछ देर ठहर वो फ्रेश होने चली जाती है और वापस आ कर कबर्ड देखती है जिसमे उसके लिए पूरी आलमारी भर कपड़े रखे होते हैं।ये देख उसकी आँखे भर आती है और वो एक ड्रेस निकाल चेंज कर हल्का मेकओवर कर लेती है।पायलों को निकाल कर वापस पहन लेती है और मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगती है।

वहीं शान भी अकैडमी से चले आते हैं और हेलमेट उसकी जगह पर रख अपने कमरे में जाते हैं।अर्पिता कमरे में घूमते हुए शान का हेडफोन लगा कर एक सॉन्ग सुन रही है।शान अर्पिता को खुश देख बिन कुछ कहे धीरे से फ्रेश होने निकल जाते हैं।एवं कुछ देर में हाथ पैर धुल चेंज कर बाहर आकर अर्पिता के कंधे पर रख कहते है अप्पू! फाइनली तुम मेरे पास आ गयी।

शान को इतने पास देख अर्पिता हेडफोन निकाल कर हाथ में पकड़ लेती हैं और बोली आपने कुछ कहा शान?

शान:- हम्म मैंने कहा तुम आ गयी
अर्पिता :- आना ही था न आपने ही बोला था जब हमारा मन होगा तब हम आ जाये।मां ठीक हो गयी तो शान की अर्पिता उसके पास आ गयी।

अच्छा किया! लेकिन तुम झूठ क्यों बोल रही हो कि यहां जो अर्पिता आई है वो शान की अर्पिता है।मैंने अपनी अर्पिता को ऐसा तो नही छोड़ा था।

शान की बात सुन अर्पिता खामोश हो गयी।ये देख शान बोले,क्या लगा तुम्हे शान अपनी अर्पिता को देख कर समझ नही पायेगा कि वो कब मन से खुश होती है कब उसकी हंसी में खनक होती है बोलो।

शान हम आज बहुत खुश है आपको न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि हम खुश नही है।जबकि हम तो बहुत खुश हैं।अर्पिता ने कहा जिसे सुन शान बोले!

अर्पिता खुशी चेहरे से झलकती है और मेरी अर्पिता के चेहरे पर खुशी तो है ही उसके साथ ही एक खामोशी भी है।

शान की बात सुन अर्पिता मुड़ कर उनके गले लग जाती है और बस खामोश हो जाती है और कुछ नही कहती।
क्या हुआ है अप्पू!मुझसे कहो न।क्या मां ने कुछ कहा है तुमसे बोलो बताओ अप्पू!

नही शान! कुछ नही हुआ।अर्पिता ने बमुश्किल इतना कहा।
ठीक है तो फिर तुम यही रुको मैं दो कप चाय लेकर आता हूँ तुम्हे अच्छा लगेगा!शान ने कहा।और शान वहां से बाहर निकल आते हैं।चाय बनाते हुए वो सोचते हैं कोई न कोई बात जरूर है।जो तुम बताना नही चाहती।कोई बात नही अप्पू अब मुझे कुछ ऐसा करना होगा जिससे तुम्हारे चेहरे पर छाई ये उदासी दूर हट सिर्फ मुस्कुराहट रहे और मुझे मेरी चुलबुली थोड़ी चंचल थोड़ी पगली अर्पिता वापस मिल सके।

जल्द ही दो कप चाय बना कर वापस आकर अर्पिता को देते हुए बोले, तुम्हारी चाय अप्पू!

हम्म शान!कहते हुए अर्पिता चाय की चुस्कियां लेने लगती है।उसकी आँखे और लब दोनो खामोश हैं।चाय पीते हुए शान अपना फोन उठाते हैं और कुछ देर बाद की ही दो एयर टिकट बुक कर अर्पिता से बोले!अप्पू, हमे अभी पंद्रह मिनट में निकलना है तुम रेडी हो जाओ मैं ताईजी से बात कर अभी आता हूँ

लेकिन शान कहां निकलना है।अर्पिता ने पूछा तो शान उसकी आंखों में झांकते हुए बोले सरप्राइज है बस ये समझ लो तुम अभी घर नही जा रही हो बल्कि हम कहीं और ही जा रहे हैं।और कोई प्रश्न..?
नही शान!अर्पिता ने कहा।
तक शान बोले गुड!बस अगले पंद्रह मिनट में हमे निकलना है मैं बात कर अभी आया ठीक है।

हम्म अर्पिता ने हां में सर हिलाया और मन ही मन सोचते हुए बोली जाते जाते आपके साथ के कुछ लम्हो को हम चुराना जरूर चाहेंगे।क्या पता कल हो न हो...!

शान श्रुति के पास गये और उससे बोले, श्रुति मैं अर्पिता को लेकर मसूरी के लिए निकल रहा हूँ छोटे आये तो उसे इस बारे में बता देना ठीक है।और हां अर्पिता को इस बारे में पता नही है उसके लिए सरप्राइज है तो बस उसकी थोड़ी सी पैकिंग में हेल्प कर दो हम पंद्रह मिनट में निकल रहे हैं।ठीक है।

हम्म ठीक है भाई श्रुति हंसते हुए बोली।शान अपना फोन लेकर शोभा को फोन लगते हुए बोले!बड़ी मां प्रणाम!

शोभा :- प्रशांत!कैसे हो अर्पिता आ गयी!

प्रशांत बोले :- बड़ी मां जो आई है वो मेरी पगली नही है।वो इतनी खामोश और शांत नही थी।आप बताइये कुछ हुआ है क्या मां ने या ताऊजी पापा किसी ने कुछ बोला है उससे।

शोभा बोली :- नही बेटे मैं वहां थी तब तक किसी ने कुछ नही कहा उससे।हां उसके स्वभाव में परिवर्तन मैंने भी महसूस किया लेकिन जब उससे बात करने गई तो उसे लग्न से कार्य करते देख सोचा कि अब वो जिम्मेदार हो गयी है।इसिलिए तुमसे इस बारे में कुछ नही कहा।

ताईजी जिम्मेदार तो वो पहले से ही थी लेकिन अब उसकी आँखे और जुबाँ दोनो ही खामोश है,न ज्यादा बात कर रही हैं और मुस्कुराहट तो बस दिखाने के लिये है कुछ तो बात हुई है वो मुझे बता नही रही है।मैं उसे लेकर मसूरी निकल रहा हूँ उसे प्रकृति का साथ बहुत पसंद है वहां जाकर शायद वो कुछ बताये या फिर सब भूल कर मुस्कुराने लगे।शान ने कहा तो शोभा जी बोली, पत्नी तुम्हारी जहां ले जाना चाहो ये तुम डिसाइड करोगे मुझे तो मेरे बच्चो की खुशी से मतलब है।बस वो खुश रहने चाहिए।समझे!

हम्म ताईजी समझ गया हम अभी कुछ देर में निकल रहे हैं।शान ने शोभा जी से कहा।

ठीक है बेटे कहते हुए शोभाजी फोन रख देती है।तो शान वापस अर्पिता के पास आये और बोले रेडी हो गयी अप्पू!

हम्म शान!अर्पिता ने संक्षिप्त में कहा।
ठीक है कहते हुए शान ने कैब बुला ली और अर्पिता से बोले चले अर्पिता!

हम्म शान!अर्पिता ने कहा।शान ने श्रुति की ओर देखा और उससे बोले ध्यान रखना अपना कोई भी जरूरत हो तो छोटे और किरण किसी से भी बोल लेना ठीक है।

हां भाई!श्रुति ने कहा। अर्पिता ने श्रुति को देखा मुस्कुराई और उसके गले लगते हुए बोली, "चलते है श्रुति अब मुलाकात नही होगी"! सबका ध्यान रखना और एक नोट उसके हाथ में थमाते हुए बोली इसे पढ़ना और इसमे जैसा लिखा है वैसा अवश्य करना ठीक है।

श्रुति फुसफुसाते हुए बोली:- बोल तो ऐसे रही हो जैसे हमेशा के लिए जा रही हो।कुछ दिनों बाद मुलाकात होगी हमारी अर्पिता!

बाय श्रुति, अर्पिता ने कहा और आगे बढ़ जाती है।श्रुति बालकनी पर आकर दोनो को बाय कहती है।शान और अर्पिता गाड़ी में बैठ एयरपोर्ट के लिए निकल जाते हैं।

दोनो के जाने के बाद श्रुती अर्पिता का दिया नोट पढ़ती है जिसमे लिखा है श्रुति हमने शान के लिए एक सरप्राइज प्लान किया था अब अगर हम खुद से उन्हें बोलेंगे तो सरप्राइज कैसा इसीलिए तुमसे कह रहे है जब शान वापस आएंगे न तब उन्हें जिद कर अपने साथ घर ले जाना वहां उनके लिए कबर्ड में हमने कुछ रखा हुआ है।हम खुद से बोलेंगे न तो वो झट से समझ जाएंगे तो प्लीज इस बार तुम हमारा ये कार्य कर देना।

ठीक है अप्पू कर दूंगी इसमे कौन सी बड़ी बात है।श्रुति ने कहा और वो वहीं खड़े हो मुस्कुरा देती है।
वहीं दूसरी ओर गाड़ी में बैठी अर्पिता की खामोशी शान को चुभ रही है बातचीत का सिलसिला बढ़ाते हुए शान बोले, "अर्पिता अब तुम बिल्कुल फ्री हो तो अब सारी बातें बताओ, घर में तुमने क्या क्या किया और मां के गुस्से को तुमने किस तरह हैंडल किया और ऐसा क्या जादू किया कि मां ने तुम्हे स्वीकार कर लिया?टेल मी.!

हमने कुछ नही किया!बस इतना किया उनकी बात मानना शुरू कर दी।किसी का मन जीतना हो तो निस्वार्थ प्रेम और केयर ये दो चीजे बहुत मायने रखती है।वही हमने किया शान!उनकी केयर करते हुए उनकी बातों को महत्व दिया जैसा उन्होंने करने को कहा वैसा किया सब उनके मन का करते गये और उसका परिणाम ये हुआ शान कि वो जल्द ही ठीक हो गयी।

हम्म सो तो है अर्पिता शान ने कहा।तो अर्पिता बस हल्का सा मुस्कुरा देती है।ड्राइवर कैब एयरपोर्ट के पास रोक देता है शान और अर्पिता अपना समान ले वहां से अंदर चेक इन करा निकलते है एव फ्लाइट पकड़ अपने गंतव्य के लिए निकलते हैं।

प्लेन में अपनी सीट पर बैठी हुई अर्पिता शान के कंधे पर अपना सर टिका लेती है और उसकी बाजुओं को पकड़ आँखे बन्द कर लेती है।शान उसकी पकड़ में एक कसावट का अनुभव करते है जिसे महसूस कर वो मन ही मन सोचते है तुम इतना डर महसूस क्यों कर रही हो अप्पू।मैं मेरी पगली को छोड़ कर कहीं नही जाने वाला।वो अपना सर सीट पर टिका लेते है।समय निकलता है और प्लेन लैंड होने की घोषणा होती है जिसे सुन शान और अर्पिता दोनो अपनी आँखे खोल सावधान हो बैठ जाते हैं।

शान धीरे से अर्पिता से बोले अप्पू अब कुछ देर बाद नीचे धरती पर होंगे और उसके बाद सुबह तक अपनी मंजिल पर पहुंच जाएंगे। सुबह जब तुम अपनी आँखे खोलोगी न तो जो दृश्य तुम देखोगी वो तुम्हे बहुत पसंद आयेगा।हम्म शान जरूर पसंद आयेगा क्योंकि तब आप हमारे साथ ही होंगे न।अर्पिता ने कहा।प्लेन धरती पर उतर आता है और शान अर्पिता के साथ प्लेन से बाहर आ कर टैक्सी बुक कर मसूरी के लिए निकल आते हैं।अर्पिता शान का हाथ थाम कर खिड़की पर सर रख सो जाती है।कुछ देर में ब्रह्म मुहूर्त प्रारम्भ हो जाता है साथ ही उनकी मंजिल भी आ जाती है।टैक्सी के रुकने से अर्पिता की आँखे खुल जाती है और वो शान की ओर देखती है जो उसकी ओर देख नीचे उतरने का इशारा करते हैं।

हम्म अर्पिता ने कहा और गाड़ी से उतर आती है।उसकी नजर सामने बने एक खूबसूरत रिसोर्ट पर पड़ती है।जिस पर नाम और अड्रेस पढ़ वो हैरानी से शान की ओर देखती है।

शान उसके पास आये और धीमे से बोले बस यही खुशी तो मैं कब से देखना चाहता था अप्पू।अब चलो अंदर।रूम में चल कुछ देर रेस्ट करते हैं फिर सुबह तुम यहां की सुन्दर वादियो में जी भर कर घूमना।ठीक है।

हम्म शान अर्पिता ने कहा और शान के साथ रिसोर्ट के अंदर पहुंचती है।शान अपना परिचय दे कर की ले पहले से बुक्ड रूम की ओर बढ़ जाते हैं।

तो मिसेस अर्पिता मिश्रा!अब बताओ कैसा लगा तुम्हे सरप्राइज!शान ने बेड पर पसरते हुए कहा।
सरप्राइज!सरप्राइज ही रहा शान हमारे जीवन का सबसे अनमोल तोहफा और अनमोल पल।हम आप और ये प्रकृति..!अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।जिसे देख शान बोले अब लग रही हो खुशी से सरोबार!ठीक अब तुम रेस्ट करो मैं ताईजी को हमारे पहुंचने का संदेश दे देता हूँ।ठीक है..कहते हुए शान उठे और वहीं रखे सोफे पर जाकर बैठ जाते हैं।

क्रमशः......!