अप्रैल का महीना। गेहूँ की फ़सल कटने लगी है। सड़क के दोनों ओर दूर तक फ़ैले खेतों में गेहूँ के डंठल चमक रहे हैं। दोनों किनारों पर बरगद,पीपल,कदम्ब और युकलिप्टस (आम बोलचाल में जिसे लिपिस्टिक कहते हैं) के पेड़ों की भरमार है, जिनके झुरमुट से चैत्र मास का गोल-मटोल चाँद; ट्रक के पीछे-पीछे दौड़ता चला आ रहा है। ट्रक इंडिया से भारत की तरफ़ अग्रसर है। नदी-नाले, गाँव-कस्बों, खेत-खलिहानों, विविध धर्मस्थलों और घर-मकानों को पछाड़ते हुए ट्रक बड़ी तेजी से बिहार की तरफ़ बढ़ता जा रहा है। बिहार की सीमा बंद होने के कारण सुबह यूपी बॉर्डर पर इन्हें उतार दिया जाएगा, जहां से फ़िर ये लोग पैदल अपने-अपने घरों को निकल जाएंगे।
कल शाम से शुरू हुआ यह सफ़र,अगले चंद घंटों में पूरा हो जाएगा।
यह सर्वज्ञात है कि तक़रार में आँखें 'दिखाई' जाती हैं और प्यार में; आँखें 'मिलाई' जाती हैं। अर्जुन भी पिछले डेढ़ घंटों से इसी फॉर्मूले पर काम कर रहा था मगर काफ़ी देर तक नयनबाण चलाने के बाद भी जब कोई पुख़्ता हल नहीं निकला, तब जाकर उसने गोपनीय वार्ता करने की सोची।
थोड़ा आगे की ओर झुककर धीमे से बोला:-''बहुत गर्मी है आज।"
महीना हालाँकि अप्रैल का है लेकिन रात के इस पहर में हवा सर्द ही रहती है। प्रश्न यों तो अप्रासंगिक था मगर बात छेड़ने के लिहाज से सही था, अर्जुन आश्वस्त था कि जवाब तो आएगा। लेकिन जैसे सरकारी योजनाओं का अधिकांश भाग; धरातल पर आते-आते हवा हो जाता है, ठीक उसी तरह अर्जुन की बात का अधिकांश भाग पंच तत्व में विलीन हो गया और रिसीवर तक सिर्फ़ इतना ही पहुंचा-
"बहुत........"
अब चूंकि मीनाक्षी को पूरी बात सुनाई तो नहीं दी मगर प्रश्न के प्रत्युत्तर में "आँय" कहना थोड़ी अशिष्टता होगी सो उसने शुभचिंतक के चेहरे की भाव-भंगिमा और होंठो की थरथराहट को पढ़कर, प्रश्न को अपनी सुविधानुसार गढ़ लिया। प्रश्न कुछ इस प्रकार बन पड़ा;- "बहुत सुंदर हैं आप.!"
लड़की ने शर्माते हुए अपनी नज़रें नीची कर लीं और मुँह दबाकर मुस्कुराने लगी।
अर्जुन को लड़की का यह व्यवहार अखर गया। इसमें मुँह दबाकर हँसने जैसी कोई बात ही नहीं थी। एक बार को उसे लड़की के कानों पर शुबहा हुआ लेकिन उसने फिर सिर झटक कर इस ख़याल को झाड़ दिया। शायद आवाज़ ही ना पहुंची हो, ये भी तो हो सकता है। बीच का फ़ासला कुछ कम हो तो बात बने। ऐसा सोचकर उसने शरीर में थोड़ी हलचल पैदा की, ताकि आगे जाने के लिए जगह बनाई जा सके। अर्जुन का इतना करना भर था और फ़िर तो जैसे सागर में लहरें उठने लगीं हों। दो जोड़ी चट्टान-रूपी नितंबों के खिसकने से भीषण गर्जना हुई और अब बीचों-बीच से एक सँकरा रास्ता निकल आया। यह रास्ता मगर इतना चौड़ा नहीं है कि इसपर इंसान चल सके। अर्जुन मन मसोसकर रह गया। जो लोग किसी जुल्मी के प्यार में सात समंदर पार करके चले आते हैं, आज जो इस ट्रक में होते तो इसी दो मीटर की दूरी में काँछ निकल जाती।
दोगुने उत्साह से अर्जुन ने फ़िर ज़ोर लगाया लेकिन अबकी पासवर्ड शायद गलत पड़ गया था। घनघोर गर्जना के साथ चट्टानों में फ़िर हरक़त हुई और जो पतला सा रास्ता दिखलाई पड़ता था, वो भी बंद हो गया। मीनाक्षी बड़ी देर से अर्जुन की यह तिकड़मबाजी देख रही थी। जब यह घटना हुई तो देखकर हँस पड़ी। इस हँसी का आशिक़ पर प्रतिकूल असर पड़ा। अर्जुन को अपमान का अनुभव हुआ। अचानक से जैसे किसी ने उसकी मर्दानगी को ललकारा हो। इस बार उसने अपनी सारी ताकत झोंक दी और एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर आखिरकार खड़ा हो गया। इसे हम सचमुच साहसिक कारनामा कह सकते हैं। मीनाक्षी ने प्रशंसनीय दृष्टि से उसको देखा और अब मुस्कुराने लगी है। मंज़िल हालाँकि अब केवल दो कदम की दूरी पर है लेकिन रास्ते में कई अड़चनें हैं। इधर से उधर तक हर तरफ़ सोता पड़ा है। कहीं बेख़याली में पैर के नीचे किसी मलेच्छ का हाथ आ गया तो सारा किया-धरा गुड़गोबर हो जाएगा। गालियाँ पड़ेंगी सो अलग। यह मानकर कि नीचे नक्सलियों ने बारूदी सुरंग बिछा रखी है, अर्जुन ने बड़ी सावधानी से पहला कदम उठाया और उन्हीं दोनों भीमकाय चट्टानों के बीच में टिका दिया। अगले ही कदम में अर्जुन अपनी मंज़िल के ठीक सामने खड़ा था। मीनाक्षी ने पलकें झपकाकर नवागत का स्वागत किया। चाँद, सुंदरी की सुंदरता में चार चाँद लगा रहा है। अपनी मेहनत का फ़ल देखकर अर्जुन के चेहरे पर संतुष्टि के भाव उभर आए। इस तरह से खड़े रहना लेकिन खतरनाक हो सकता है। वो अब धीरे-धीरे किनारे की तरफ़ बढ़ रहा है। सो रहे लोगों की नींद में ख़लल पड़ने से, रह-रहकर कसमसाने की आवाज़ें आ रहीं हैं। आखिरकार ट्रक के बाहरी छोर पर पहुँचकर उसने एक कोने में जगह बनाई और बिना कोई आवाज़ किये, चुपचाप वहीं खड़ा हो गया।
क्रमशः