Kaisa ye ishq hai - 57 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 57)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 57)

शान को चैन से सोया जान अर्पिता उठने की कोशिश करती है तो शान बड़बड़ाते हुए कहते है, "जाना नही अप्पू" अर्पिता वहीं बैठी रह जाती है।सर्दी बढ़ती जा रही है ये देख अर्पिता अपनी शॉल को फैला कर शान के ऊपर डाल देती है और खुद अपना सर पीछे टिका कर शान को निहारती रहती है।जब प्रेम पवित्र होता है तो कोई भी कुविचार प्रेमियो के मन में नही आते,वो तो बस एक झलक देखने में ही खुद को भूल जाते है तो भला कुछ सोचने समझने का विचार कहां से आता।शान और अर्पिता एकांत में साथ होकर भी प्रेम की उस गरिमा को बनाये हुए नींद की आगोश में चले जाते है जिसका जिक्र हम अक्सर किताबो में पढा करते हैं।
थकान और नशे के कारण शान गहरी नींद में सो जाते है कुछ ही घण्टो में ब्रह्म मुहूर्त प्रारम्भ हो जाता है।शोभा शीला और कमला आदत के अनुसार ताजी हवा लेने के लिए सुबह सुबह छत पर आती है।वहां तीनो की नजर झूले पर सो रहे शान और अर्पिता पर पड़ती है।शीला ये दृश्य देख हिकारत से शोभा और कमला की ओर देखती है और वहां से तेज कदमो से अर्पिता के पास जाती है।लेकिन शोभा उसे चुप रहने का इशारा कर नीचे बुला ले आती है और जाते हुए कमला से दोनो को जगाने का इशारा कर देती है। कमला आगे बढ़ शान को उठाती है।

प्रशांत,अर्पिता, उठ जाओ और फौरन नीचे अपने अपने कमरो में जाओ।कमला ने धीमे स्वर से कहा।आवाज सुन अर्पिता अपनी आँखे खोलती है और गर्दन सीधी कर सामने कमला को देखती है तो हड़बड़ा कर उठ खड़ी होती है।प्रशांत जो अब तक गहरी नींद में होते है यूँ अचानक से सर में झटका लगने पर आँखे खोल उठ कर बैठते है और सामने कमला और अर्पिता को देखते हैं एक पल में उनकी आंखों के सामने रात की बातें घूम जाती है वो अर्पिता की ओर देखते हैं और वहां से चले जाते हैं।अर्पिता अपनी नजरे नीची किये वहीं खड़ी रहती है जिसे देख कमला कहती है,अर्पिता शादी वाला घर है इतना ध्यान रखना चाहिए था न।मैं शोभा तुम दोनो के रिश्ते को समझती हैं लेकिन बाकी लोग नही समझेंगे।खैर अभी तुम नीचे जाओ हम तीनो के अलावा यहां अभी कोई नही आया है।और हां शीला अगर कुछ कह जाये तो उसकी बातों का बुरा मत मानना एवं आगे से इन बातों का ध्यान रखना।

अर्पिता बड़ी मुश्किल से 'जी' ही कह पाई है और वो वहां से नीचे अपने कमरे में चली जाती है।उसके मन में एक ही बात चल रही है कहीं शान इस सब के लिए अकेले खुद को जिम्मेदार न मान ले।कहीं वो खुद को दोषी न मान बैठे जो कि गलत है। गलती हमारी भी तो है हमे समय का ध्यान रखते हुए उनसे बोलना चाहिए था नीचे चलने को।लेकिन पूरे दिन की थकान के बाद उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव देख हम कुछ बोल ही नही पाये।और हमे तो उन लड्डुओं के बारे में भी पता करना है असल कारण तो इन सब का वही है।उन्ही के कारण शान नशे में पड़ गये।शान ...आधे नींद में खलल पड़ी है तो सर दर्द कर रहा होगा शान का। हम एक कप कॉफी बना कर वहीं दरवाजे के बाहर बने आले पर रख उन्हें मेसेज कर देते है।कॉफी पीने से कम से कम सर दर्द तो बंद हो जायेगा शान का।उनकी हेल्थ और खुशी हमारे लिए पहले है बाकी सब हम बाद में देखेंगे।ये अलग बात है कि हम अब किसी का सामना नही कर पाएंगे लेकिन शान के ठाकुर जी भी कहते है जो राह आसान हो वो प्रेम की हो ही नही सकती।इन सबका सामना हमे करना होगा अपने प्रेम की खुशी के लिए उसे अपराधबोध न हो इसलिए।अर्पिता रसोई में चली जाती है और शान के लिए एक कप कॉफी बनाने लगती है।और साथ ही उन लड्डुओं के बॉक्स को भी देखती है जो कि अब खाली पड़ा है।

शोभा शीला को अपने कमरे में ले जाकर धीमी आवाज में उससे कहती है, शीला जैसा तुम बच्चो के बारे में सोच रही हो वैसा कुछ नही हुआ होगा।मुझे हमारे प्रशांत पर पूरा भरोसा है वो प्रेम की ही तरह मजबूत चरित्र का है वो कुछ गलत नही कर सकता।

शीला थोड़ा तल्खी से बोली, जीजी मुझे नही पता क्या हुआ है वहां क्या नही लेकिन जिस तरह विवाह से पहले एक शॉल में वो दोनो मुझे दिखे है वो मुझे गंवारा नही।मुझे अर्पिता से बात करनी ही होगी।

शीला तुम क्या उल जलूल सोच रही हो।प्रशांत हमारा ही बच्चा है।मां हो तुम उसकी क्या कभी उसके बारे में कुछ ऐसी बातें सुनी है।वो तो वैसे भी लड़कियों से उतनी ही बातें करता जितनी जरूरी होती या फिर उससे भी कम।प्रेम फिर भी छाया और श्रुति और चित्रा से इतनी बातें कर लेता है लेकिन प्रशांत उसने श्रुति के अलावा किसी से इतनी ज्यादा बात ही नही की है।शोभा शीला को समझाते हुए बोली।

जीजी आपकी बात मान कर मैंने अर्पिता को एक मौका देने के बारे में सोचा लेकिन उससे पहले ही उसका ये रूप दिख गया मुझे।मुझे उससे बात करनी ही है।माफ कीजिये लेकिन अब मैं आपकी बात नही मान सकती।शीला ने कहा और वो चुप हो गयी।

ठीक है शीला!बात करनी है तो कर लेना लेकिन शादी हो जाने के बाद इतने सारे गेस्ट है किसी ने सुन लिया तो नाम हमारे परिवार का भी खराब होगा जो कि मुझे मंजूर नही मेरी ये बात तुम्हे माननी ही पड़ेगी।शोभा ने सख्ती से कहा और वहां से चली आती है।

ठीक है जीजी एक दिन की बात है तो वो ही सही शीला ने धीरे से कहा और वो भी कमरे से बाहर चली आती है।

अपने कमरे में मौजूद शान कल रात को हुई बातों के बारे में सोचते हैं।उन्हें अपना सर बेहद भारी लगता है।वो सर को पकड़े वहीं बेड पर बैठ बड़बड़ाते है
मां और दोनो ताईजी ने हमे साथ देखा है और अवश्य ही वो इसका दोष अर्पिता को ही देंगे।जो उसके स्वाभिमान को गंवारा नही होगा।सर उठाकर जीना एक यही तो उसकी ताकत है जिसके लिए उसने इतना कुछ सहा है।उसकी ये ताकत भी मेरी वजह से छिन गयी।मैं जानता हूँ उसे वो अब इस समय अंदर ही अंदर परेशान हो रही होगी।मेरी वजह से कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो गयी मेरी पगली के लिए।वो पगली ही है अब शायद ही वो बड़ी ताईजी छोटी ताईजी या किसी और का सामना कर पायेगी।क्यों हुआ वो सब?क्यों बुलाया मैंने उसे छत पर? क्यों मेरा कल खुद पर नियंत्रण नही रहा?क्यों इतनी जिद कि मैंने?कल कुछ तो ऐसा हुआ था मेरे साथ जिस कारण मेरा खुद पर ही नियंत्रण नही रहा और मैं वहीं सो गया।इतना तो मुझे पता है हमारे बीच कुछ गलत नही हुआ है! लेकिन ताईजी वो क्या सोचेंगी हमारे बारे में और मां वो तो अर्पिता को बहुत सुनाएंगी।मुझे ध्यान रखना चाहिए था।घर में शादी है तमाम गेस्ट है कोई।अर्पिता को मेरे साथ देख लेता तो क्या सोचता कितने .. छी छी नही अप्पू..!मुझमे अब तुम्हारे सामने आने की हिम्मत नही है मैं अभी निकल रहा हूँ यहां से सीधे लखनऊ ही मिलूंगा..!सोचते हुए शान उठते हैं और आगे कदम बढ़ाते हैं फिर अर्पिता के बारे में सोच वहीं रुक जाते हैं।
नहीं मैं जा भी नही सकता अगर चला गया तो मेरी पगली अकेली पड़ जायेगी।गलती मेरी है तो इसकी सजा अर्पिता क्यों भुगते मैं यूँ चला गया तो मां उसे चैन से नही रहने देगी। मुझे ताईजी से इस बारे में बात करनी होगी।वो ही कोई सॉल्यूशन निकाल सकती है।इन सब में शान उलझे ही होते है कि तभी शान का फोन बीप होता है।जरूरी मेसेज होगा ये सोच वो फोन चेक करते हैं जिसमे अर्पिता का संदेश पड़ा होता है, "आपकी कॉफी कमरे के बाहर बने आले में रखी आपका इंतजार कर रही है पी लीजिये सर सर्द बंद हो जायेगा"

'अर्पिता का मेसेज देख शान मन ही मन कहते है,खुद तकलीफ में हो और मेरे दर्द के बारे में सोच रही हो'!मन तो नही है अप्पू लेकिन जब तुमने बनाई है तो मैं कॉफी पी लेता हूँ कहते हुए शान दरवाजा खोलते है और बाहर अर्पिता को ढूंढते है।जब अर्पिता नही दिखती तो फिर आले में रखी कॉफी उठा कर उसे पीने लगते हैं।अर्पिता वहीं खम्भे के पास ही खड़ी हो शान को छिपकर देखती है और उनके अंदर जाने के बाद वहां से चली जाती है।लेकिन रसोई की ओर जा रही शीला की नजर अर्पिता पर पड़ ही जाती है।हे ठाकुर जी ये लड़की कितनी बेशर्म है इतना कुछ हो गया लेकिन इसकी हरकते अभी नही सुधरी।मुझे इससे बात करनी ही होगी कहते हुए वो आगे बढ़ती है शोभा उसे रोकने की कोशिश करती है लेकिन तब तक शीला अर्पिता के पास पहुंच जाती है और उसकी बांह पकड़ कर अंदर अपने कमरे में ले जाती है।शोभा और कमला शोर सुन कहीं गेस्ट जाग कर बाहर न आ जाये ये सोच चुप रह हॉल में जाकर बैठ जाती है।

शीला अर्पिता को कमरे में ले जाकर दरवाजा बंद कर लेती है और अर्पिता से बोलना शुरू करती है -

अर्पिता!और कितना गिरोगी नीचे!दोस्त तुम श्रुति की हो लेकिन उससे ज्यादा ध्यान तो तुम्हारा मेरे बेटे पर रहता है।क्यों पड़ी हो उसके पीछे?तुम कैसी लड़की हो ये तो मैंने सुबह देख ही लिया है।विवाह से पहले किसी लड़के के साथ...छी मुझसे तो कहा भी नही जा रहा है और तुम कर बैठी।कहां तो मैं जीजी की बात मान कर तुम्हे एक मौका देना चाहती थी और कहां तुम्हारा ये रूप!न जाने कितनी बार और कितनो के साथ ये सब कर चुकी होगी।तुम्हारे और मेरे बेटे की कोई बराबरी नही।दूर चली जाओ उससे।उसे बक्ष दो तुम्हे पैसे चाहिए न इसीलिए प्रशांत के साथ हो।

शीला की बातें सुन अर्पिता की रुलाई फूट पड़ती है वो कुछ नही कहती बस चुपचाप सुनती जाती है।शीला उसकी ओर देख कहती है, "अब बुरा क्यों लग रहा है तुम्हे,जब तुम्हे वो सब करते हुए लज्जा नही आई तो अपनी ही करनी को सुनते हुए क्यों रो रही हो।
अर्पिता इतना ही कह पाती है,आंटी जी हमने ऐसा कुछ भी नही किया वो तो कल नशे..कह खुद को वहीं रोक लेती है और मन ही मन कहती है नही शान हम आपको किसी की नजरो में गिरने नही दे सकते।

क्या..तुम नशा भी करती हो?हे ठाकुर जी कृपा हो गयी जो सही समय पर सब सच पता चल गया।शीला ऊपर देखते हुए बोली।उसने एक नजर अर्पिता की ओर देखा और बोली, तुम मेरे बेटे के साथ इसीलिए हो न कि वो तुम्हारी सारी जिम्मेदारी उठाता है।वो तो है ही इतना अच्छा।लेकिन न जाने कैसे तुम्हारे झांसे में पड़ गया।और हां अभी भी थोड़ी बहुत गैरत बाकी है न तो सुबह दिन के उजाले तक दिखना नही और मेरे बेटे के आसपास तो बिल्कुल नही,न ही यहां और न ही लखनऊ में।

हम चले जाएंगे आंटी जी लेकिन हम ये शादी अटैंड कर ले उसके बाद चले जाएंगे हमे कुछ भी नही चाहिए! न इनसे न आपसे न ही किसी और से। ठाकुर जी ने इतना सक्षम तो बनाया है कि हम अपना भार खुद उठा सकते हैं।अर्पिता अटकते हुए बोली।

हां दिख रहा था कैसे रात को भार उठाने का प्रबंध किया जा रहा था।अब मेरी बात सुनो बारात निकलने तक का समय है तुम्हारे पास और इस बीच उसके आसपास भी मत दिखना अगर दिख गयी तो फिर मुझे नही पता मैं क्या करूँगी।प्रशांत को कैसे सम्हालना है मैं देख लूंगी फिलहाल तुम जैसी बदचलन लड़की से उसका पीछा छूटे बस।

शीला की बातो से अर्पिता बहुत दुखी होती है उसकी आँखे भर आती है वो खुद को सम्हाल नही पाती और शीला की बात खत्म होने से पहले ही दरवाजा खोल कर सीढियो की ओर बढ़ जाती है ।उसके लिए एक एक कदम आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा है डगमग चाल चेहरा पूरा आंसुओ से भीगा जिन्हें वो पोंछने का प्रयास भी नही कर रही है।शोभा और कमला दोनो अर्पिता की हालत देख डर जाती है।
जीजी लगता है शीला ने बच्ची को बहुत कुछ सुना दिया है वो अपने होश में भी नही लग रही है मुझे डर लग रहा है इसके लिए।न जाने क्या क्या कहा होगा शीला ने।मैंने मना किया था उससे समझाया था जैसा दिख रहा है वैसा कुछ नही हुआ है।हमारे घर का बच्चा है प्रशांत उससे ज्यादा मेरे साथ रहा है जानती हूँ उसे मैं।
कमला बोली :- हम कुछ कर भी नही सकते।ज्यादा कुछ कहा तो यही बात निकल कर सामने आयेगी मां बेटे का मसला है।वो तो राधु ने समझदारी से सब सम्हाल रखा है।नही तो ये परिवार तो सुमित की शादी पर ही बिखर रहा था।

अर्पिता धीरे धीरे सीढिया चढ़ रही है उसके जेहन में बस शीला की कही हुई बातें घूम रही है वो आगे कदम बढ़ाती है लेकिन कदम कुछ ज्यादा ही ऊपर बढ़ जाता है और वो ऊपर चढ़ने की जगह नीचे गिर जाती है।
अर्पिता सम्हाल के!शोभा ने कहा और उसके पास चली आती है।शोभा जी अर्पिता को उठाने की कोशिश करती है।।हकीकत का आभास कर अर्पिता आंसुओ को छुपाने की कोशिश कर कहती है, "हम ठीक है आंटी जी" और खुद से उठ कर खड़ी हो जाती है।अर्पिता नजरे झुकाये वापस से सीढियां चढ़ ऊपर अपने कमरे में चली आती है।और दरवाजा बंद कर वहीं बैठ कर रोने लगती है।

वहीं नीचे कमरे में मौजूद कॉफी पीते हुए कुछ कार्य करते हुए शान को बैचेनी महसूस होती है।वो इधर से उधर कमरे में टहलने लगते हैं।ये इतनी बैचेनी क्यों?क्या कारण है अर्पिता ठीक तो है।मैं एक बार जाकर देखता हूँ।नही मैं गया तो कहीं फिर कोई समस्या न आ जाये।।मैं उसके सामने नही जा सकता हूँ। लेकिन फोन फोन करके पूछ सकता हूँ।कहीं मां ने उससे कुछ कहा तो नही।मां शांत बैठने वालो में से नही है।।मुझसे कुछ नही कहेंगी बस सारा दोष मेरी पगली पर ही डाल देंगी मैं एक बार फोन ही कर लेता हूँ सोचते हुए शान अर्पिता को कॉल लगाते है लेकिन अर्पिता को फोन की रिंग सुनाई ही नही देती।उसे सुनाई दे रहे है तो बस शीला जी के कहे गये वो शब्द। रिंग जाना बंद हो जाती है शायद व्यस्त होगी ये सोच कर वो दोबारा कॉल नही करते है।आज मैं घर से सारे कार्य करूँगा।।लेकिन ये भी पॉसिबल है राधिका भाभी की वजह से प्रेम भाई यहां से कहीं जाएंगे मुझे ही बाहर के सारे अरेंजमेंट्स देखने होंगे सोचते हुए शान उदास हो गये।।दिन निकल आता है ढेर सारा कार्य होने के कारण बिन शोभा से बातचीत किये एवं बिन नाश्ता किये ही शान घर से बाहर निकल जाते है।वहीं अर्पिता अपने कमरे से बाहर नही निकलती।सुबह के आठ बज चुके है प्रेम नमन प्रीति सुमित स्नेहा ये सभी अभी तक सो ही रहे हैं।कोई भी बाहर निकल कर नही आया है।शोभा और कमला दो इस बात से हैरान हो जाती है कि अब तक ये लोग उठे क्यों नही अब उन्हें क्या पता कि वो सब लड्डू में मिले प्रसाद के थोड़े से बचे हुए असर के कारण अब तक सो रहे हैं।कुछ देर बाद सभी उठ कर अपना सर पकड़ते हुए बाहर आते है और आते ही चाय की मांग करते है।शोभा चाय बनाकर ले आती है जिसे सभी पीते है और कहते है आज चाय का स्वाद अलग है?

शोभा :- हां?क्योंकि अर्पिता दूसरे कामो में व्यस्त है तो मैं ही बनाकर ले आई।शोभा वहां से चली जाती है।
प्रेम जी राधिका के पास जा धीरे से बोले सर अभी भी भारी है ऐसा लग रहा है कल कुछ ऐसा खाया है जिससे नशा हुआ हो।
राधिका हंसते हुए मजाक में बोली :- हां कल जो लड्डू खाये न वो भांग वाले होंगे प्रेम जी तभी सर फट रहा है।
ये बात सुन चित्रा सोचते हुए बोली शायद तुम सही कह रही हो राधु!क्योंकि कल अंकल की दुकान पर एक व्यक्ति आया था भोलेनाथ जी के प्रसाद वाले लड्डू लेने।हो सकता है गलती से बदल गया हो अब मैंने तो कल खाया नही सो मुझे इस बारे में नही पता।
क्या ..?चित्रा की बात सुन प्रेम और राधिका एक दूसरे की ओर देख हैरानी से बोले।

अपने कमरे में मौजूद अर्पिता अपने बहते आंसुओ को पोंछते हुए सोचती है अगर हम यू ही कमरे में बैठे रहे तो सब आंटी जी से सवाल करेंगे।और वैसे भी एक बार अपने जीजू को दूल्हे के वेष में देख ले फिर हमें यहां से इन सबसे दूर बहुत दूर जाना होगा।इतना कि कोई हम तक कभी न पहुंच पाये।शान की अर्पिता को शान से दूर जाना होगा।सोचते हुए वो उठती है स्नान वगैरह कर चेहरे से झलक रही परेशानियों को छुपाने में कामयाब हो नजरे झुकाये नीचे चली आती है एवं सबसे कटते हुए एक दूरी बनाकर खंभे के सहारे अलग खड़ी हो जाती है।एवं सभी को एन्जॉय करता देख मुस्कुराने लगती है।देखते हुए ही वो ख्यालो में खो जाती है वो देखती है परम जी दूल्हा बने हुए खड़े है प्रशांत प्रेम सुमित तीनो मिलकर खूब एन्जॉय कर रहे है और वो तालियां बजा रही है।तभी शान उसकी ओर देखते है और उसके पास आकर कहते है अप्पू बहुत एन्जॉय कर रही हो नही।तो अप्पू, अब तुम्हारी बारी कुछ ऐसा करो जो सबके लिए तुम्हारी प्रस्तुति हो और मेरे लिए...!
अर्पिता -और आपके लिए क्या शान?
शान:- तुम जानती हो?
अर्पिता:-हमे नही पता?
शान:-पक्का?
अर्पिता(शरारत से):- नही।
ठीक है फिर मुझे कुछ नही कहना कह चुप हो प्रेम जी के पास जाकर खड़े हो जाते हैं।
अर्पिता :-ओह हो नाराजगी!फिर तो कुछ करना ही पड़ेगा लेकिन क्या!सोचते हुए अर्पिता की नजर राधिका पर पड़ती है और वो कुछ सोच शोभा से कहती है "ताईजी राधु दी की तरफ से हम एक प्रस्तुति देना चाहेंगे"।

शोभा:-ठीक है।देखते है तुम क्या प्रस्तुति देती हो।
अर्पिता राधिका के पास जाती है और(शान की ओर देख) एक सॉन्ग गुनगुनाती है:- लो चली मै!अपने देवर की बारात लेके!लो चली मैं!शान गाने के बोल सुन उसके पास आते हुए धीमे से कहते है हम्म सही कहा तुमने अर्पिता ...।।और अर्पिता का ख्याल टूट जाता है।नही अर्पिता और नही रुक सकती तू जितना रुकेगी उतनी ही परेशानियां बढ़ेंगी हमे जाना होगा शान।कहते हुए अर्पिता मुड़ती है तो पीछे खड़ी श्रुति से टकरा जाती है तो वहां रखा पानी पी रही होती है।श्रुति के हाथ में पकड़ा हुआ गिलास टूटकर बिखर जाता है और अर्पिता वही खड़े हो श्रुति के गले लग कहती है सॉरी श्रुति हमे जाना होगा हमारे मां पापा का पता चल गया है।हम उनसे मिलने उनके ही पास जा रहे है वहां ठाकुर जी के पास।कह अर्पिता वहां से आगे बढ़ती है कुछ कदम चलने के बाद वो पलट कर एक बार सब की ओर देखती है हाथ जोड़ती है और आगे दरवाजे की ओर कदम बढ़ा वहां से निकल जाती है।शोभा सब समझ कर जब तक अर्पिता के पास आती तब तक वो दरवाजे से दूर निकल चुकी होती है।

ये देखने का नजरिया ही तो है एक ही घटना को हम कई तरह से देख सकते है।शोभा और कमला अपनी परवरिश पर विश्वास करते हुए कुछ भी गलत नही सोच रही है लेकिन शीला की नजरो में अर्पिता अब एक गिरी हुई चरित्रहीन लड़की से ज्यादा कुछ नही है।वहीं अर्पिता अपने छिन्न भिन्न हुए स्वाभिमान के टुकड़ो के ऊपर चल कर वहां से चली जाती है शान से सबसे बहुत दूर जाने के लिए...!


क्रमशः .....