Kaisa ye ishq hai - 55 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 55)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 55)

सात
शान :- स्वर
अर्पिता :- सरगम
शान :- गीत
अर्पिता :- बोल
शान :- गायन
अर्पिता :- लय
शान :- ताल
अर्पिता (खड़े होते हुए) :- थिरकन
शान :- नृत्य
अर्पिता :- आनंद(चलते हुए सबसे पीछे जाकर फिर वापस आकर बैठ जाती है)।चूंकि अब बॉयज में केवल प्रेम प्रशांत सुमित और प्रशांत के पापा ही बचे है।शादी में कई काम होते है करने को कुछ कार्य तो घर बैठे भी हो सकते है फोन से। सो प्रशांत के पिताजी फोन आने पर वहां से उठकर चले जाते है।सुमित शान का फोन ले उसे चलाने में लग जाता है।और प्रेम जी का ध्यान बीच बीच में राधिका की ओर जाता है।ये देख अर्पिता शान को तंग करते हुए मुंह बनाने लगती है जिससे शान के चेहरे पर स्माइल आये तब भी वो हंस न पाये क्योंकि सामने सभी लेडीज जो बैठी हुई है।शान उसकी ये हरकत देख बोलते बोलते खांसने लगते है।जैसे तैसे शब्द आगे कहते हैं।

शान :- कान्हा!
वो हल्का सा घूरते हुए अर्पिता की ओर देखते है तो अर्पिता भी मौका पाकर फिर से कोई न कोई हरकत कर ही देती है।कभी जीभ को टेढ़ा कर होठों के किनारे से दबाना,तो कभी आँखे घुमा कर मुंह बनाना।अर्पिता को ये सब करते हुए देख शान बड़ी मुश्किल से खुद को हंसने से रोक पा रहे हैं।

अर्पिता :- मुरली
शान :- मनोहर
दोनो को यूँ एन्जॉय करता देख सभी मस्ती छोड़ गंभीर हो इन दोनो को ही सुनने लगते हैं।शोभा चित्रा से कहती है ऐसा लग रहा है ये दोनो कभी न रुकने वाले तुम्हे इसके लिए भी कोई रूल सोचना था न चित्रा।
शोभा की बात सुन कर चित्रा बोली जी आंटी जी आप ठीक कह रही है अब मुझे कहां पता था कि इनकी भी बॉन्डिंग हमारी राधु प्रेम जीजू की तरह मजबूत होगी।
कोई नही अव पता चल गया न।तो अब इसका कोई तोड़ निकालो और गेम को आगे बढ़ने दो

अर्पिता :- कृष्ण
शान :- राधा
अर्पिता कुछ माथे पर हाथ रख सोचने का अभिनय करती है जिसे देख शान बुदबुदाते हुए बोले,मुझे तो हारना था और मैं जीता जा रहा हूँ, नो नो और वो अर्पिता की ओर बोलने का इशारा करते हैं।और मन ही मन सोचते है अगली बार तुम कोई शब्द बोलो और मैं जवाब नही दूंगा बस बहुत तंग कर लिया बहुत मस्ती भी हो गयी अब कुछ न कहना।

अर्पिता :- प्रेम
शान :- राधिका।शान की बात सुन सभी की हंसी छूट जाती है वहीं राधु अब चित्रा के पीछे हो जाती है। शान खुद के सर पर हल्की सी चपत लगा बुदबुदाते है बोलना नही था न।

अर्पिता :- शान !!शव्द बोल मन ही मन सोचती है बस अब और नही तंग करना।अब हार मान लेते हैं।
शान :- अर्पिता।।(न चाहते हुए भी ये लफ्ज मुंह से निकल ही जाता है)लेकिन सभी के खूब एन्जॉय करने के कारण कोई ध्यान नही देता।

अर्पिता कुछ नही कहती लेकिन चित्रा बीच में बोलते हुए कहती है बस बस बस..!और नही कितना खजाना भरा है शब्दो का।खेलते ही जा रहे हो अब बाकियो को भी मौका मिलना चाहिए इसीलिए मैंने सोचा है कि तुम दोनो के बीच में टाई कर देते है एक एक अंक दोनो को मिलता है।लेकिन अब सॉन्ग दोनो को ही गाना पड़ेगा तो अब आप दोनो इसी थीम से मिलता जुलता कोई गाना गाओ।

गाना..!शान और अर्पिता दोनो हैरान हो एक साथ बोले।।

जिसे देख चित्रा बोली - हां गाना! चिंहुक तो ऐसे रहे हो जैसे मैंने पहाड़ चढ़ने को कह दिया हो।गाना ही है और प्रशांत आप तो अच्छा गाते हो कई बार गुनगुनाते हुए सुना है मैंने।

हम्म चित्रा गाने से समस्या नही है समस्या तो इस बात से है कि इसी थीम से संबंधित गाना होगा वो कैसे गाये ?शान सोचते हुए बोले।

शान को यूँ सोच में डूबा हुआ देख अर्पिता गाना शुरू करती है -

फैली थी सियाह रातें...

अर्पिता के बोल सुन कर शान मन ही मन मुस्कुराये और आगे गाने लगते हैं..

मेरी दुनिया है तुझमे कहीं तेरे बिन मैं क्या कुछ भी नही मेरी जान में तेरी जान है ओ साथी मेरे,

मेरी दुनिया है तुझमे कहीं

अर्पिता थोड़ा तंग करते हुए आगे दूसरा सॉन्ग शुरू कर देती है

ये गलियां ये चौबारा यहां आना न दोबारा अब हम यो भये परदेसी कि तेरा यहां कोई नही..!अर्पिता के इस गाने को सुन शान थोड़ी सी आँखे तरेरते हुए उसे देखते है और आगे गाना शुरू करते है..

ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नही।
जिसे सुन प्रेम वहीं धीरे से हंसते हुए शान से कहते है सही खेले जा रहे हो ...

राधिका भी अर्पिता और शान को जॉइन करते हुए आगे गाती है -- दो पल रुका ख्वाबों का कारवां और फिर चल दिये तुम कहां हम कहां।।

राधु की वॉयस सुन प्रेम जी भी कम नही पड़ते और आगे गाते है

सुनिये तो रुकिए तो, क्यों है खफ़ा अरे कहिये तो
ऐसी क्या जल्दी जाने की दीवाना हूँ माना सुनिये दीवाने की।

हे ठाकुर जी बड़बड़ाते हुए राधु अपने ही सर पर चपत लगाते हुए कहती है, बस एक यही कमी रह गयी थी।

इस बार चित्रा गेम बढ़ाते हुए गाना शुरू करती है

तुझसे नाराज नही जिंदगी हैरान हूँ मैं,हैरान हूँ तेरे मासूम सवालो से परेशान हूँ ..

चित्रा के गाने के बोल सुन प्रेम सुमित शान सभी एक दूसरे की ओर देखते हुए कहते है अब इसका क्या जवाब दें ..

जिंदगी एक सफर है सुहाना यहां कल क्या हो किसने जाना..!परम गाते हुए चले आता है।परम को देख प्रेम जी खुश होते हुए बोले "बचा लिया छोटे" और सभी लेडीज की ओर देखते हुए राधु की ओर गाने का इशारा करते है

ठीक है! होठों ही होठों में बुदबुदाते हुए राधु आगे गाती है
"पल पल पल हर पल हर पल कैसे कटेगा पल हर पल हर पल"..

ये सुन प्रशांत गेम खत्म करते हुए गाते है

अच्छा तो हम चलते है!अच्छा तो हम चलते हैं।

शान के हावभाव देख अब अर्पिता गाती है

पल भर ठहर जाओ,दिल ये सम्हल जाये कैसे तुम्हे रोका करूँ मेरी तरफ आता हर गम फिसल जाये आंखों में तुमको भरूँ बिन बोले बातें तुमसे करूँ गर तुम साथ हो... अर्पिता के गाने के बोल सुन प्रशांत के चेहरे पर आई हल्की हया के साथ मुस्कान देख राधु के मन में धक सी होती है।वो एक बार अर्पिता की ओर देखती है जो गाते हुए शान की ओर देख कर मुस्कुरा रही है।जिसे देख वो मन ही मन सोचती है-
हे ठाकुर जी ये हम क्या महसूस कर रहे है।प्रशांत भाई और अर्पिता एक दूसरे से प्रेम करते हैं।इसका अर्थ चित्रा का प्रेम एकतरफा ही हुआ हमे चित्रा को आगे बढ़ने से रोकना होगा।हमारी दोस्त को फिर से प्रेम हुआ भी तो किसी और के प्रेम से।ये नियति हर बार इसी को जरिया क्यों बनाती है।नही इस बार हमे इसे यहीं रोकना होगा नही तो कोई कभी खुश नही रहेगा।प्रशांत भाइ को हम अच्छे से जानते है वो जीवन के अंतिम प्रहर में भी अपने प्रेम के अलावा किसी अन्य को नही अपनाएंगे और अर्पिता इसे सब लोग हमारी तरह कहते है तो वो भी प्रशांत भाई से दूर होकर खुश नही रह पायेगी।

न इससे तो यही सही है अभी शुरुआत में ही हम चित्रा को रोक लें।जब चित्रा फ्री होगी तब हम उससे इस बारे में बात करते है सोचते हुए राधु प्रेम जी की ओर देखती है जो अपने भाइयो के साथ मुस्कुराते हुए गेम को एन्जॉय कर रहे हैं।

तभी श्रुति भी वहां आती है और प्रशांत की ओर जा कर गुनगुनाते हुए कहती है

ये दोस्ती हम नही तोड़ेंगे। तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे।श्रुति की बात सुन सभी ये सॉन्ग एक साथ गुनगुनाते है...!

बस बस अब इस मस्ती को यहीं खत्म करो सभी।और प्रेम राधु को लेकर अंदर जाओ बहुत देर गयी है उसे यहां बैठे बैठे।नवां महीना लग चुका है इसे तो अब तुम्हे और हम सबको ज्यादा ध्यान देना होगा।शोभा ने प्रेम से कहा तो प्रेम राधु को लेकर वहां से अंदर निकल जाते हैं।और शोभा रसोई में चली जाती है। राधिका प्रेम से शान के बारे में बात करते हुए हुए कहती है -

प्रेम जी एक बात बताइये?
प्रेम :- क्या राधु?
राधिका :- हमे लगता है कि प्रशांत भाई और अर्पिता एक दूसरे को पसंद करते है।

राधु की बात सुन प्रेम जी मुस्कुराते हुए बोले :- तो तुम्हे पता चल ही गया राधु।

इसका अर्थ ये हुआ कि हमने बिल्कुल सही सोचा प्रेम जी।राधु ने कहा।

भला आज तक तुमने कुछ गलत सोचा है राधु, हां बस समझने में देर कर दी तुमने,ये तो तुम्हे वहीं स्टेशन पर ही समझ जाना चाहिए था जब प्रशांत ने घर पर अर्पिता का साथ देते हुए सबको घूंघट में मिलाया था।माना कि अर्पिता चाहती थी ऐसा और प्रशांत ने भी उसकी बात का मान रखते हुए अपने ही परिवार से उसे छिपाते हुए उसका साथ दिया।

तुम भी न निरा भोली ही हो।जो समझना चाहिए वो समझती नही हो।हमारे मामले में भी एक वचन के पीछे किसी और से शादी करने चली थी बताओ भला ऐसा भी कोई करता है। कभी तो रिश्तो में होशियारी दिखाया करो।

नही दिखा सकते प्रेम जी, रिश्ते पारदर्शिता और विश्वास से चलते है छल कपट और होशियारी से नही।उस समय विवशता में हमने भले ही निर्णय कैसा भी लिया हो लेकिन उसका परिणाम तो सुखद ही निकला न।राधु ने मुस्कुराते हुए कहा।जिसे देख प्रेम जी बोले तुम तो तुम ही हो सबके लिए स्मार्ट और परिवार के लिए भोली इनोसेंट..!

अच्छा अब तुम यहीं बैठ कर रेस्ट करो मैं बाहर देख कर आता हूँ प्रेम जी ने राधु से कहा और खुद दरवाजा खोल कर बाहर सबके पास चले आये।

शोभा जी सबसे मुखातिब हो कहती है अब गेम बहुत हो गया है समय भी काफी हो गया है और सर्दी भी कड़ाके की पड़ रही है तो अब सभी लोग रात का भोजन कर रेस्ट कर लो।कल भी बहुत कार्य है करने है।कहते हुए शोभा सभी को डायनिंग पर पहुंचने को कहती है।एवं खुद स्नेहा को बुलाने कमरे में चली जाती है।

अर्पिता जाकर कमला और शीला की मदद करने लगती है।प्रेम बाहर आ शोभा को ढूंढता है।शोभा को वहां न देख वो अर्पिता के पास जाकर खुद ही एक प्लेट में खाना लगाने लगता है।जिसे देख अर्पिता पुछती है "दी के लिए खाना लगा रहे हैं आप"?
हां, मां ने उसे अंदर जाकर रेस्ट करने के लिए बोला है।प्रेम में संक्षिप्त उत्तर दिया जिसे सुन अर्पिता बोली- ठीक है।लेकिन दी के लिए ये अलग से थाली रखी हुई है जो शायद आंटी जी ने अलग से खाना बनाकर लगाई है।
ओह!ठीक लाओ वो मुझे दे दो मैं ले जाता हूँ!और मां से कह देना मैं खाना कमरे में ही ले गया हूँ।ठीक है।

"जी"हम बोल देंगे।अर्पिता बोली।तो प्रेम पहली पहली बार बलिये गुनगुनाते हुए वहां से निकल जाते हैं।

सभी आकर इकट्ठे हो डिनर करने लगते हैं।
राधु प्रेम को वहां न देख शोभा अलग से रखी थाल की ओर देखती है उसे वहां न देख सब समझते हुए चुपचाप खाना खाने लगती हैं।

कुछ देर बाद सभी कमरो में चले जाते हैं।उनके जाने के बाद अर्पिता शोभा कमला स्नेहा शीला बचा हुआ सारा कार्य समाप्त कर वहां से चली जाती है।

अगले दिन अर्पिता श्रुति की मदद से अपना कार्य खत्म कर सब लेडीज के साथ नीचे बैठी हुई होती है।घर के सभी पुरुष सदस्य बाहर कार्य से गये हैं।केवल परम और प्रेम ही घर में हैं जो दोनो।एक साथ महफ़िल जमाये बैठे हैं।घर की सब लेडीज को एक साथ देख राधिका बोली :-

मां! अभी कुछ ही देर में शहर की एक्सपर्ट पार्लर से टीम आयेगी!तो आप सब को फेशियल,मैनीक्योर वैक्स जो भी कराना हो करा लीजियेगा।जिससे कल मेक अप के लिए ज्यादा समय नही लगेगा।अब लड़के वाले है तो टशन में रहना ही होगा न।कोई भी उन्नीस नही रहना चाहिए।

बहुत अच्छा किया राधु।वैसे भी हमारी घर की बहुए चांद के टुकड़े से कम नही है थोड़ा और सज सँवर लेगी तो किसी की नजर ही न हटेगी।शोभा ने कहा।

मां!ये हमने हमारे लिए नही आप बड़ो के लिए बुलाई है आप लोगों के बाद हमारा नंबर आयेगा।अब जब घर के बड़े ही नही जंचेगें तो हम छोटों के सजने सँवरने का क्या अर्थ।लगना चाहिए न हम आपकी बेटियां है बताओ सही कहे न हम।राधु ने शोभा के कंधे पर सर रखते हुए कहा।जिसे देख शोभा बोली हां ठाकुर जी की सौगात ही हो तुम सब इस परिवार के लिए।

राधु को मां के इतने पास देख प्रेम जी चिढ़ते हुए बोले :- नॉट फ़ेयर मां!बेटी मिल गयी ये याद है लेकिन जिसकी वजह से मिली है उसे भूल गयी।

राधु कहीं से जलने की बू आ रही है देख तो जरा यहां कुछ जल रहा है क्या शोभा मुस्कुराते हुए राधु से बोली जिसे सुन राधिका प्रेम की ओर देख बोली,मां सही कह रही हो आप कोई तो है जो जल रहा है।

प्रेम जी गुस्से का अभिनय कर कहते है ठीक है फिर जलने ही दो। मुझे अभी किसी से बात नही करनी है कहते हुए वो छत पर चले जाते हैं।

जा जाकर मना लो उसे!फिर कुछ दिनों बाद से ये रूठना मनाना खत्म हो जायेगा क्योंकि तुम दोनो के बीच में एक नन्ही सी जान आ जायेगी जिम्मेदारियां बढ़ेगी तो फिर इन सब का समय भी नही मिलेगा।शोभा राधु से बड़े ही प्यार से बोली।

मां, वो छत पर गये है और हम अकेले छत पर गये तो और गुस्सा करेंगे।अब तो इनके नीचे आने का इंतजार ही करना पड़ेगा राधु बोली।

इंतजार क्यों? ये है न तुम्हारी होने वाली छोटी देवरानी,अर्पिता? ये तुम्हे सम्हाल कर ले जायेगी।शोभा ने धीरे से राधु से कहा जिसे सुन राधु शोभा के कंधे से अपना सर हटाते हुए हैरानी से उनकी ओर देखते हुए बोली, " मां आपको भी इस बारे में पता है?

राधु,आपको भी से मतलब,और किसे पता है?
शोभा ने पूछा तो राधिका बोली, इन्हें भी पता है कल जब हमने इनसे कहा तो बोले कि हमे अब पता चला है।इसका अर्थ वो पहले से जानते हैं।

कोई बात नही राधु।सबको पता चल ही जाना है कभी न कभी अभी के लिए तुम बताओ कैसी लगी प्रशांत की पसंद?
हमारे ही जैसी है लेकिन ये थोड़ी चंचल है, वो भी जरूरत और माहौल के अनुसार और यही इसकी खासियत है।हमारे प्रशांत भाई के साथ खूब जमेगी।

हम्म सो तो है और एक बात वो तुम्हारी ही तरह है इसमे साहस और धैर्य के साथ बुद्धिमानी ये गुण भी है।शोभा बोली।

हां मां ये गुण तो इसके द्वारा किये गये कार्य में जी झलक रहे हैं।तो मां इनकी बात कब आगे बढ़ा रही हो !राधु उत्साहित होते हुए बोली।

जब शीला को समझ आ जाये कि ये लड़की बिल्कुल ठीक है उसके बेटे के लिए।जिद किये बैठी है बहू लायेगी तो अपनी ही पसंद की वरना बेटे की शादी ही नही करेगी।

चाचीजी भी मान जाएंगी,नही तो हम लोग है न सब मनवा लेंगे।राधिका ने कहा जिसे सुन शोभा बोली हां राधु ये काम तुम ही कर सकती हो।लेकिन बाद में करना अभी के लिए खुद का सोचो जाओ छत पर, मैं बोलती हूँ अर्पिता से ठीक है।

जी मां, कहती है तो शोभा अर्पिता को आवाज देते हुए कहती हैं, अर्पिता यहां आना।

जी आंटी जी,आते हुए अर्पिता बोली।
अर्पिता को देख शोभा बोली :- अर्पिता राधु को छत पर बुला ले जाओ, धूप निकली थोड़ा धूप सेंक लेगी।

जी आंटी जी अर्पिता ने शोभा से कहा और अर्पिता राधिका के पास जाकर उसे उठाते हुए बोली "दी चलिये हम आपको लेकर चलते हैं"।

राधिका को साथ लेकर अर्पिता धीरे धीरे सीढियो तक पहुंचती है तो अर्पिता राधु के साथ साथ चल कर कदम बढ़ाते हुए आगे बढ़ती है।और कुछ ही देर में दोनो ऊपर रूफ गार्डन में पहुंच जाती है।

अर्पिता :- दी, आप छत पर पहुंच गयी है प्रेम भाई छत पर ही है आप एक बार रुकिए हम देख लेते है अगर वो यहां मौजूद है तो हम नीचे निकल जाते हैं।

अर्पिता वो यहीं है झूले पर बैठे हुए गजलें सुन रहे होंगे आप परेशान न होइये हम वहां तक चले जाएंगे आप बस हमारा एक कार्य कर दीजिये ..?राधिका अर्पिता से बोली।।

'क्या दी बताइये' हमें?अर्पिता ने कहा।

राधिका अर्पिता से बोली :- छोटे से कहना हमने उसे यहां बुलाया है।ठीक है।

"ओके दी" हम बोल देंगे।अर्पिता ने कहा और वो वहां से नीचे चली आती है।राधिका अपने कदम दरवाजे पर रखती है और सामने झूले पर बैठे प्रेम को देख कहती है, 'प्रेम जी क्या सुन रहे है आप'?

प्रेम कुछ नही कहते बल्कि यूँ ही आँखे बन्द किये झूले पर लेटे रहते हैं।राधु प्रेम जी के पास जाती है और उनके सिर को हल्का सा उठा कर वहीं बैठ जाती है।प्रेम वापस से अपना सर राधु की गोद में रख लेते हैं।

राधु :- नाराज है आप?
प्रेम :- अपनी आँखे खोल उसे देखते है और फिर से आँखे बंद कर लेते हैं।
राधु प्रेम जी के कानो में लगा हेडफोन हटाते हुए कहती है अभी इसे बाद में लगाना पहले हमे बताओ नाराज क्यों है आप?

प्रेम :- क्या तुम्हे नही पता राधु!
राधिका :- हम अकेले नही आये प्रेम जी अर्पिता हमे यहां छोड़ कर गयी है।हम जानते है अगर हमने ऐसा सोचा भी तो आप नाराज होंगे।

प्रेम :- न मैं इस वजह से गुस्सा नही हूँ।और दूसरी ओर देख मुस्कुरा देते है।जिसे राधु महसूस कर कहती है।

राधिका :- अच्छा नीचे जो हुआ वो, वो तो बस यूँही था प्रेम जी आपके इस नकली गुस्से की तरह।

प्रेम :- हां तो नकली ही सही राधु, क्योंकि तुम पर तो गुस्सा भी नही आता मुझे ।क्या करूँ सीख ही नही पाया।ये तो बस तुम्हे थोड़ा तंग करने के लिए अभिनय कर रहा था वो भी पकड़ा गया।

प्रेम की इस बात पर राधु मुस्कुरा देती है।वहीं नीचे अर्पिता परम के कमरे में जाती है और नॉक करते हुए कहती है ,"परम जी आपको दी छत पर बुला रही है"।
"जाता हूँ छोटी भाभी" परम ने मुस्कुराते हुए उठते हुए कहा।

ठीक है कह अर्पिता वहां से अपने कमरे में चली जाती है।उसका फोन रिंग होता होता है।हमारा फोन रिंग हो रहा है नया फोन नया नम्बर है ये अवश्य ही शान का होगा सोचते हुए वो मुस्कुराकर अपना फोन उठाती है और कहती है, " कहां है आप शान"?

शान :- कैसे पता ये मैं ही हूँ?
अर्पिता :- कॉमन सेंस शान!नया फोन नया नम्बर है और ये लेकर कौन आये आप तो समझ गये हम आप ही होंगे।

गुड!बस मैंने चेक करने के लिए कॉल किया था कि सिम कार्ड एक्टिवेटेड हुआ कि नही।हो गया है पता चल गया तो अब घर आकर बात करता हूँ।ठीक है।
प्रशांत ने कहा।

अर्पिता बेड से उठते हुए बोली, जी ठीक हमे इंतजार रहेगा!!हाए मेरा इंतजार फिर तो मैं जल्द आऊंगा अप्पू शान ने कहा और फोन रख दिया।

अर्पिता फोन रख कमरे से बाहर आ जाती है जहां पार्लर वाली टीम आई हुई होती है और घर की सभी लेडीज वहीं नीचे इकट्टी होती है।ये देख अर्पिता भी नीचे चली आती है।
अर्पिता को देख शोभा कहती है, अर्पिता तुम कुछ देर त्रिशा को सम्हाल लोगी वो चित्रा को अभी मार्केट जाना है कुछ देर में लौट आयेगी।

'जी आंटी जी' अर्पिता ने कहा और त्रिशा को अपनी गोद में ले उससे कहती है, हेल्लो लिटिल एंजेल कैसी है आप?

त्रिशा :- हम तो अच्छे है।
अर्पिता :- बहुत बढ़िया।लिटिल एंजेल आपको पता है हमारे पास आपके लिए कुछ चॉकलेट्स है लेकिन वो कमरे में है तो हम दोनो वहीं चले।।

ओके छवीत दीदी।।त्रिशा ने कहा तो अर्पिता ने चित्रा की ओर जाने का इशारा किया और खुद त्रिशा को लेकर कमरे में चली जाती है।

चित्रा एक जनरल स्टोर से शोभा जी का बताया हुआ समान खरीदती है और फिर एक मिष्ठान भंडार की दुकान पर जाती हैं।जहां पहले से ही थोड़ी भीड़ होती है।
चित्रा :- प्रणाम अंकल।आंटी जी ने आपके लिए एक निमंत्रण पत्र भेजा है।
दुकानदार :-ठीक है बहुत बढ़िया छोटे बेटे की शादी है।
चित्रा :- हां।अंकल।
दुकानदार :- ठीक है।लाली से कहना हम लोग पहुंच जाएंगे।
चित्रा :- जी अवश्य अंकल और दो किलो नही चार किलो मोतीचूर के लड्डू भी पैक कर दीजिये और ये लीजिये उसके पैसे।चित्रा ने पैसे आगे बढ़ाते हुए कहा और सोचती है दो तो आंटी पार्लर वाली को देंगी और दो मैं घर के लिए ही ले लेती हूँ।

ठीक है बेटा!करते हैं थोड़ा सा इंतजार करो कह दुकानदार ने अपने एक सर्वेन्ट को आवाज लगाई।
एक व्यक्ति वहां आकर खड़ा हो जाता है जिसे देख वो उससे बोला, वो पीछे एक ग्राहक कब से खड़ा होकर स्पेशल वाले मोतीचूर के लड्डुओं के लिए बोल रहा है।जा जाकर पांच डब्बे पैक कर ला।

'जी मालिक' कह वो सर्वेन्ट अंदर चला जाता है।उन दोनो की बातें सुन चित्रा को हैरानी होती है वो वो सोचती है ये स्पेशल वाले लड्डू का क्या अर्थ है अंकल से ही पूछती हूँ। वो दुकानदार से बोली -अंकल ये स्पेशल मोतीचूर के लड्डू से मैं कुछ समझी नही।

बेटा ये तो मैं अभी सबके सामने हूँ तो बता नही सकता हां ये समझ लो।उन लड्डुओं में भोलेनाथ का प्रसाद मिला होता है जिनको भोलेनाथ को अर्पण करने से वो प्रसन्न होते हैं।दुकानदार ने कहा जिसे सुन चित्रा बोली , मैं समझ गयी अंकल और वो वहीं इंतजार करने लगी।शॉपकीपर खुद से लड्डुओं का वजन कर उन्हें वहीं ऊपर काउंटर पर रख देता है।सर्वेन्ट वो पांच डिब्बे अंदर से लाकर वहीं रख देता है।जिनमे से चित्रा को देते समय एक बॉक्स एक्सचेंज हो जाता है।
धन्यवाद अंकल चित्रा ने कहा और वो घर के लिए निकल आती है....

क्रमशः