Kaisa ye ishq hai - 53 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 53)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 53)

आई जीजी शीला ने शोभा से कहा।वो अर्पिता की ओर देख उससे बोली,मैं जब फ्री होती हूँ तब मिलती हूँ तुमसे ठीक है।

जी आंटी जी अर्पिता ने कहा।और वो वहां से ऊपर अपने कमरे में जाती है और बैठ कर राधिका के द्वारा सबके बारे में दी गयी जानकारी के हिसाब से सभी चीजो को सामने रख अपनी इमेजिनेशन से देखने लगती है।क्यों न हम एक बार श्रुति से इस बारे में उसकी राय ले ले अर्पिता ने खुद से कहा और वो श्रुति के कमरे की ओर चली जाती है।दरवाजा बन्द होता है वो नॉक करती है लेकिन श्रुति दरवाजा नही खोलती है।

श्रुति दोपहर से अंदर कमरे में बंद हो कर क्या रही हो हमें भी बताओ।अर्पिता ने आवाज देते हुए कहा।उसकी आवाज सुन पास ही दूसरे कमरे में मौजूद चित्रा निकल कर बाहर आ जाती है।

चित्रा :- अभी वो निकल कर नही आयेगी!सफर कर के आई है तो जब तक नींद पूरी नही होगी ये न निकल कर आने वाली।

चित्रा की बात सुन अर्पिता हैरान हो बोली,"क्या..!इसे सफर कहते है।और ये इतनी गहरी नींद में सोती है हमे तो पता ही नही था"।लगभग पिछले तीन महीने से हम साथ है तो ऐसा कभी लगा ही नही"।

क्योंकि वहां इसकी नींद हराम जो नही होती थी।यहां वो कल से डिस्टर्ब है लेट नाइट सोना फिर जल्दी उठना,और उस पर भी ट्रेन में भी नही रेस्ट मिल पाना तो जब तक नींद पूरी नही होगी श्रुति निकल कर नही आयेगी।तभी तो हम में से किसी ने इसे नही जगाया।तुमने शायद नोटिस नही किया अर्पिता सब लोग ऊपर थे लेकिन ये ही नही थी क्यों?चित्रा अर्पिता को श्रुति के बारे में बताते हुए बोली।

नही सब लोग नही थे, श्रुति के साथ साथ उसके मामाजी में से कोई नही था।अर्पिता सोचते हुए बोली।

उसकी बात सुन चित्रा हंसते हुए बोली सब मिल जाएंगे तुम्हे जब रस्मे शुरू हो जाएंगी तब से।कल यहां की रंगाई पुताई और सफाई तीनो का कार्य खत्म हो जायेगा।

ओह समझ गये हम।थैंक्स अर्पिता ने कहा।

चित्रा :- इसकी जरूरत नही है।ओके अब मैं नीचे जाती हूँ।कह चित्रा नीचे चली आती है।अर्पिता को ठंडक का एहसास होता है सो वो अपने कमरे में जा कर गर्म कपड़े निकाल कर पहन लेती है।

नीचे बैठी हुई शोभा शीला से कहती है,"क्या करने जा रही थी शीला,तुम उससे प्रशांत और उसकी मित्रता को लेकर कुछ कहती तो क्या संदेश जाता हम बड़ो की ओर से उसके पास,कि इस घर के बड़ो को अपने बच्चो पर ही विश्वास ही नही है।जिस विश्वास और अपनेपन से वो यहां इस घर में आई है उसे तो यही लगेगा कि यहां जो दिख रहा है वास्तव में वो सब दिखावा है।इस घर के सदस्यो के मान सम्मान को क्षति पहुंचे वो हम में से किसी को स्वीकार नही है।कब समझोगी इस बात को शीला।अपनी बात रखने के और भी तरीके है उन्हें अपनाओ लेकिन उससे पहले मेरी बात सुन लो, अर्पिता को समझने का प्रयास शुरू करो।तुम अपनी बहू में जो गुण चाहती हो जैसा स्वभाव चाहती हो जो भी तुमने सोचा है वो सब तुम एक बार फिर सोचो और अपने सोच के पैमाने पर अर्पिता को एक बार रख कर देखो।क्या पता तुम्हे उससे कुछ कहने की जरूरत ही न पड़े।उसमे ही वो सारी क्वालिटी हो जो तुम अपनी बहु में ढूंढ रही हो।मेरी बात पर गौर करना कहते हुए शोभा चुप हो जाती है शीला के कुछ बोलने का इंतजार करने लगती है।कमला शोभा की बात समझ जाती है उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है लेकिन शीला गलत न समझ ले इसीलिए छिपा जाती है।

मैं कुछ मदद करूँ आंटी,चित्रा ने आते हुए कहा।जिसे सुन कर शीला शोभा और कमला सभी आपस में फैली खामोशी को तोड़ एक दूसरे की ओर देख मुस्कुराते हुए बाते करने लगती हैं।

शोभा :- चित्रा!मदद करनी है तो एक कार्य करो ये सारी तैयार सब्जी रसोई में जाकर स्नेहा को दे आओ।उससे कहना हम लोग अभी पांच मिनट में आते हैं।

ठीक है आंटी लाइये दीजिये चित्रा ने कहा और वो अंदर चली जाती है।

अर्पिता भी कुछ देर में नीचे चली आती है और रसोई की ओर जाने लगती है उसे देख शोभा उससे कहती है, अर्पिता ये सब्जियों के बचे हुए छिलके और ये वेस्ट सब्जी छत पर रखे एक डस्टबिन में डाल आओगी जिससे ये कम्पोस्ट खाद बन जायेगी जो पौधों के लिए फायदेमंद रहेगी।

जी, अर्पिता ने कहा और सभी छिलके एक पॉलीथिन में इकट्ठे कर छत पर ले जाती है।शीला ने उसे देखा और बिन कुछ रिएक्ट किये उठकर वहां से अपने कमरे में चली जाती है।शीला का ये व्यवहार देख शोभा कमला से कहती है,"जीजी,मेरी बातों का कुछ तो असर पड़ा है शीला पर।अब शायद वो अर्पिता से कुछ न बोले बल्कि उसे लेकर शायद वो अपना नजरिया बदल ले"।

"उम्मीद पर ही दुनिया कायम है शोभा"कमला ने कहा और दोनो उठ कर स्नेहा की मदद के लिए चली जाती है।

अर्पिता वेजिटेबल्स के छिलके लेकर छत पर पहुंचती है और दरवाजा खोल कर अंदर कदम बढ़ाती है तो हर बार की तरह एक खिंचाव का अनुभव होकर उसे उसे रुकना पड़ता है।

वो वहीं खड़ी हो कहती है "तो आप अभी तक यही है नीचे नही गये काहे"?

उसकी बात सुन शान उसके पीछे आ कर उसके कानो के पास गये और धीमे से बोले,"कैसे जाता इंतजार जो कर रहा था तुम्हारा यहां"?

शान को इतने करीब देख अर्पिता ठहर ही जाती है
इंतजार, हमारा काहे?और आपको कैसे पता कि हम इतनी सर्दी में छत पर आएंगे?

शान हौले से कहते हैं:- बस पता है मुझे कि तुम यहां जरूर आओगी?

अर्पिता :- पीछे मुड़ती है और शान को देख कहती है, सर्दी में छत पर बिन स्वेटर के इंतजार का शौक चढ़ा है नही।कड़कड़ाती सर्दी वाला दिसबंर है ये और आप है कि..एक मिनट रुको हम अभी आते है शान ..कहते हुए अर्पिता मुड़ी और नीचे जाने के लिए कदम बढ़ाया तो एक कदम बढ़ा कर फिर रुक गयी और बोली, " हम तो भूल ही गये आपके दोस्त है न हमे रोकने के लिए" कहते हुए उसने शान के हाथ से अपने उलझे हुए दुपट्टे का सिरा निकाला और उनके खाली हाथ में सब्जियों के छिलको वाली पॉलीथिन पकड़ा कर खुद नीचे चली गयी...! उसके इस अंदाज पर शान हल्का सा मुस्कुराये और बोले ..

"मेरी हर छोटी से छोटी बात का ख्याल रखने की तुम्हारी ये आदत मुझे लापरवाह बना रही है अप्पू"।

वहीं अर्पिता नीचे चली आती है और शान के कमरे में जाकर उसकी कबर्ड से स्वेटर निकाल कर वापस छत पर चली आती है।शीला शोभा और कमला तीनो रसोई से उसे आते जाते देख लेती हैं।शीला फिर भी शांत होती है ये देख शोभा मन ही मन कहती है "शायद अब शीला का नजरिया बदल जाये अर्पिता के लिए"।
अर्पिता छत पर पहुंचती है और शान को चारो ओर देखती है।शान वहीं दरवाजे के पीछे ही होते है।चेहरे पर शरारत के भाव भरी मुस्कान रखे वो अर्पिता के दरवाजे से अंदर आने की प्रतीक्षा करते हैं।

लगता है फिर कुछ चल रहा है इनके मन में सोचते हुए अर्पिता आगे बढ़ती है और एक नजर सब ओर घुमाती है शान नही दिखते है तो थोड़ा आगे बढ़ती है और फिर रुक जाती है।
शान, छिपना सीख लो पहले फिर लुका छिपी खेलना अर्पिता में रुक कर मुड़ते हुए शान की ओर देखते हुए कहा।

हम्म बात तो सही कही तुमने अप्पू।तुम ही सिखा दो शान ने कहा और कुछ कदम आगे बढ़ा कर झूले पर जाकर बैठ गये।

"हम सिखा देंगे शान।छुपा भी ऐसे जाता है कि कोई आसानी से ढूंढ ही न पाये।लेकिन सिखाएंगे बाद में फिर कभी। अभी एक कार्य करिये आप ये स्वेटर पहन लीजिये"।अर्पिता बोली।

ओके शान ने कहा और वो फटाफट स्वेटर पहन लेते हैं।

अरे तुम खड़ी क्यों हो?इस झूले पर और भी जगह है जिस पर तुम आसानी से बैठ सकती हो शान ने अर्पिता से कहा।

जी हमे पता है दिख रहा है हमें।कहते हुए अर्पिता भी झूले पर आकर दुसरी ओर बैठ जाती है।

शान :- अप्पू एक बात पूछे?
अर्पिता :- हम्म पूछिये?

शान :- तुम यहां आकर खुश तो हो?
अर्पिता :- आपको क्या लगता है शान?
शान :-ये क्या बात हुई भला! बताओ भी?

शान की बात सुन अर्पिता मुस्कुराई और शान की आंखों में देखते हुए बोली , "हम यहां आकर बहुत खुश हैं शान"! यहां सभी सदस्य बहुत अच्छे हैं।एक दूसरे के लिए सबके मन में प्यार है,सम्मान है, अपनी बात कहने के लिए सभी स्वतंत्र है, और तो और यहां हर किसी की भावनाओ का ख्याल भी रखा जाता है,अजनबियों को भी यहां आकर एक सुकून मिल जाता है बहुत बहुत अच्छा माहौल है यहां का।

अर्पिता की बात सुन कर शान मुस्कुराते हुए बोले हम्म सो तो है।बातें करते करते कुछ देर हो जाती है तो अर्पिता बोली,"अब हमे नीचे चलना चाहिए काफी देर हो गयी है हमे यहां आये हुए"।चलकर नीचे देखते है सब लोग क्या कर रहे हैं।

"ठीक है फिर तुम जाओ मैं एक कॉल कर के अभी आया"।शान ने कहा तो अर्पिता बोली "ठीक है"।कह वो नीचे चली आती है।नीचे हॉल में घर के सभी सदस्य एक साथ बैठे होते है।अर्पिता भी नीचे आ जाती है और श्रुति को देख उसके पास जाकर खड़ी हो जाती है।

नृपेंद्र जी,सुमित के पिता और प्रशांत के पिता भी वहीं मौजूद होते हैं।अर्पिता उन्हें वहां देख हाथ जोड़ कर अभिवादन करती है।उसके अभिवादन का जबाब देकर नृपेंद्र जी शोभा की ओर सवालिया नजरो से देखते है जिसे देख शोभा कहती है, श्रुति की दोस्त है उसके साथ यहां शादी में सम्मिलित होने आई है और होठों पर अंगुली रख चुप रहने का इशारा कर देती है।

नृपेंद्र जी आगे कुछ नही कहते।तब तक छत से प्रशांत भी नीचे आ जाते हैं और आकर परम के पास बैठ जाते हैं।

प्रशांत को आया देख चित्रा एक नजर प्रशांत की ओर देखती है एवं अनायास ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।लेकिन फिर सबकी उपस्थिति समझ वो गर्दन झुका मुस्कान छुपा लेती है।
चित्रा के छिपा लेने के बाद भी राधिका उसके चेहरे की मुस्कान देख लेती है और मन ही मन कहती है लगता है हमारी चित्रा को प्रशान्त पसंद आ गये है।इसकी मुस्कान और प्रशांत को देखने का अंदाज तो यही कह रहा है।कितना अच्छा होगा न यदि चित्रा और हम दोनो एक साथ इसी घर में रहे।चित्रा की लाइफ भी एक नये सिरे से शुरू हो जायेगी।सब कितना अच्छा होगा।लेकिन चाचीजी...!शीला का ख्याल आते ही राधु अपनी सोच पर विराम लगा कहती है हम भी न ख्याली पुलाव बनाने में लग गये।हमे सिर्फ लग ही तो रहा है हो सकता है जैसा हम सोच रहे हो वैसा न हो।हम पहले खुद स्योर हो जाये चित्रा और प्रशांत भाई दोनो के मन की बात पता करे फिर हम पुलाव नही सीधे वेज बिरयानी पकाएंगे।।सोचते हुए राधिका मुस्कुराने लगती है।जिसे देख प्रेम जी राधिका से धीमे स्वर में कहते है क्या बात है आज तो बिन बात के ही मुस्कुराया जा रहा है।

राधु :- हम्म प्रेम जी बस यूँ ही कुछ पुराना याद आ गया।
प्रेम :- ठीक है।बाद में पूछ लूंगा क्या याद आया।
राधु :- ओके।

सभी को वहां देख शोभा कहती है अब सभी इकट्ठे हो गये हैं तो अब चलो फिर खाना लगवा देते हैं।

" जी" सबने कहा और सभी वहां से चले आते हैं।कुछ देर बाद सभी कल के विषय में एक बार फिर चर्चा करते है और अपने अपने कमरो में चले जाते हैं

अगले दिन सभी सारे कार्य से फ्री हो कर बाजार के लिए निकलते हैं।राधिका,प्रेम, चित्रा, त्रिशा, शोभा कमला एक गाड़ी में बैठते है।वहीं शान, सुमित, स्नेहा, अर्पिता, श्रुति, शीला, आर्य ये सभी दूसरी गाड़ी में निकलते है।

दोनो गाड़िया एक मॉल के सामने जाकर रुकती है।सबको उतारकर सुमित और प्रेम दोनो गाड़ी मॉल के पार्किंग में पार्क करने चले जाते हैं।

शोभा सभी से कहती है :- जिसको जो भी खरीदना हो खरीद लेना और फिर सभी नीचे काउंटर पर आकर मिलना।तीन घण्टे है हम सबके पास ठीक है।

जी माँ,ओके ताईजी जी राधु और शान बोले।तब तक प्रेम और सुमित भी आ जाते हैं।तो सभी मॉल के अंदर प्रवेश कर जाते हैं।
शोभा कमला और शीला तीनो श्रुति को साथ ले वीमेन्स कॉस्ट्यूम की शॉप की ओर बढ़ जाती हैं।वहीं राधिका चित्रा और त्रिशा को लेकर प्रेम किड्स स्टॉल की ओर चले जाते हैं।

सुमित (धीरे से) स्नेहा से कहते हैं :- स्नेहा, तुम मेरे साथ चलो मेरे लिए कपड़े चूज कर दो मेरे वश का नही है ये।।

"ठीक है चलिये"स्नेहा सुमित से बोली एवं शान तथा अर्पिता की ओर मुखातिब होकर उनसे कहा "प्रशांत अर्पिता आप दोनो भी जो खरीदना चाहो देख लो जाकर फिर सभी नीचे ही इकट्ठे होकर मिलते हैं"।

"ठीक है भाभी" शान ने स्नेहा से कहा तो स्नेहा और सुमित दोनो वहां से चले जाते हैं।उनके जाने के बाद शान अर्पिता से बोले तो क्या शॉपिंग करना पसंद करोगी।

अर्पिता :- हम्म कुछ विशेष नही बस कुछ ड्रेसेज देखना चाहते हैं।

ठीक है फिर चलो मेरे साथ शान ने कहा और आगे बढ़ गये।अर्पिता भी शान के साथ ही चल देती है।शान अर्पिता को ले जाकर लेडीज कॉस्ट्यूम काउंटर पर पहुंचा देते है जहां लड़कियों के लिए वेस्टर्न और इंडियन दोनो तरह के कपड़े होते हैं।

वहां मौजूद सेल्समेन से शान बोले, " सुनो, इन्हें आप अपने शॉप के सबसे लेटेस्ट डिजाइन वाले कपड़े दिखाइये और कलर भी हल्के रखियेगा।।

ओके सर सेल्समैन बोला और कपड़े दिखाने लगता हैं।शान अर्पिता से बोले, "पसंद कर लो मैं कुछ और देखकर अभी आता हूँ"!

"ठीक है" कह वो कपड़े देखने लगती है।और जल्द ही दो ड्रेस सलेक्ट भी कर लेती है।उन्हें निकलकर अलग रखवा देती है और सेल्समैन से कहती है ये ड्रेस पेमेंट काउंटर पर अलग रखना।एवं वहां से हट कर आगे चली आती है जहां उसकी नजर एक ज्वेलरी शॉप से झांक रही रुनझुन वाली पायलों पर पड़ती है जिसे देख अर्पिता के मन में ख्याल आया कितनी सुन्दर पायलें है जाकर एक बार दाम पूछ ही लेते है।अगर हमारे बजट में हुई तो हम इन्हें ले लेंगे सोचते हुए अर्पिता आगे बढ़ी और शॉप के अंदर जा कर पूछते हुए बोली, " हमे वो रुनझुन वाली पायलें दिखाइये"।

"सॉरी मैडम जी, वो पायलें सेल के लिए नही है।सोल्ड हो चुकी है"।वहां मौजूद व्यक्ति ने शालीनता से कहा।

तो इस डिजाइन की और भी होंगी न आपके पास!अर्पिता बोली।।

"नही मैडम जी" ये एक ही बचा था।आज ही नया स्टॉक आया था और जिसमे से ये एक ही बची थी थी वो भी अभी कुछ समय पहले ही सोल्ड हो गयी।
व्यक्ति ने कहा।

ठीक है धन्यवाद!अर्पिता बोली।हम किरण के लिए ही कुछ खरीद लेते हैं जब उससे मिलेंगे तब उसे कुछ न कुछ तो भेंट करेंगे ही।वेडिंग गिफ्ट तो अलग रहा।उससे इतर भी तो हमे कुछ देना चाहिए सोचते हुए वो आगे बढ़ वहां रखी हुई ज्वेलरी देखने लगती है।उसकी नजर वहां रखे एक छोटे से गिटार वाले की रिंग पर पड़ती है उसे देख उसकी आंखों के सामने शान का चेहरा घूम जाता है।
अर्पिता :- हमे वो गिटार वाली की रिंग दिखाइये।
सेल्समैन :- यस मैम।कह वो की रिंग निकाल कर अर्पिता के सामने रख देता है।

इट्स परफेक्ट!अर्पिता खुश होते हुए बोली।इसे पैक कर नीचे बिलिंग काउंटर पर पहुंचा दीजियेगा अर्पिता ने कहा और वहां से वापस चली आयी।वहां से आने के बाद वो गिफ्ट शॉप पर गयी और वहां से किरण और परम के लिए एक खूबसूरत से उपहार पैक करा लेती है।

वहीं दूसरी तरफ शान मॉल से ही बाहर निकल एक अच्छी मोबाइल शॉप पर खड़े हो एक मोबाइल देख रहे हैं।एक अच्छी कम्पनी का बेहतर फीचर वाला फोन सेलेक्ट कर वो उसे उसके कवर और स्क्रीन गार्ड के साथ पर्चेस कर लेते हैं एवं उसका पेमेंट कर उसे लेकर वहां से वापस मॉल में अर्पिता के पास चले आते हैं।

अर्पिता जो बाहर खड़ी हो शान का इंतजार कर रही होती है उसकी नजर दूसरी ओर साड़ियाँ देख रही राधिका पर पड़ती है।वो तुरंत उनके पास चली आती है। "हो गयी शॉपिंग दी" अर्पिता ने आते ही राधिका से पूछा।

राधिका ने अर्पिता की ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोली, "बस कर रहे है आप भी देख लीजिये कुछ अच्छा सा"?

नही दी हमारी शॉपिंग पूरी हो चुकी है बाकी देखते है कुछ पसंद आया तो खरीद लेंगे अर्पिता बोली।

बहुत बढ़िया!कहते हुए राधु ने साइड में थोड़े दूर खड़े प्रेम जी की ओर देखा और उन्होंने न में गर्दन हिला दी।

ओह हो कब से खड़े हो हम कपड़े ही देखे जा रहे हैं लेकिन इन्हें कोई भी पसंद ही नही आ रही है।ऐसे तो सुबह से शाम हो जायेगी हम शॉपिंग भी नही कर पाएंगे।राधिका बड़बड़ाई।हे ठाकुर जी अब आप ही कुछ कीजिये न।राधु को बड़बड़ाता हुआ देख प्रेम मुस्कुराये और उसके पास आकर ब्लू और गोल्डन दो साड़ियाँ निकाल कर बाहर रख दी और खुद पीछे वहीं खड़े हो गये।।जिसे देख राधु मुस्कुराते हुए फुसफुसाई।सबसे पहले यही पूछे थे हम लेकिन नही तंग करना है इन्हें हमें।

अर्पिता को वहां काउंटर पर न देख शान उसे देखते हुए आगे आये।राधु के पास उसे देखकर वो वहीं चले आते हैं।प्रशान्त को देख चित्रा खो ही गयी जिसे राधु ने उसे देखते हुए महसूस कर लिया।वहीं शान की नजर काउंटर पर फैली हुई साड़ियों के ढेर से इतर एक स्टेच्यू पर लगी ब्लू रंग की साड़ी पर पड़ती है।उन्हें वो साड़ी भा जाती है लेकिन सबके साथ होने के कारण वो जताते नही है।

राधु चित्रा को खोया हुआ देख कहती है, " चित्रा तुमने कुछ नही देखा अपने लिए,तुम भी कुछ खरीद लो"!

चित्रा :- मैं क्या देखूं मुझे कुछ समझ ही नही आ रहा है।तुम ही कुछ देख लो।

राधु चित्रा के पास जा धीरे से कहती है,"हम समझ गये ये उलझन क्यों हो रही है लेकिन उलझन से काम थोड़े ही चलेगा"।

चित्रा राधु की बात सुन हैरान हो देखती है जिसे देख राधु फुसफुसाती है, हैरान होने की जरूरत नही है चित्रा दोस्त हो तुम हमारी तो सब समझते हैं हम तुम्हारे मन की भावनाओ को भी हम बेहतर समझते हैं।ये उलझन प्रेम जी के छोटे भाई के कारण ही है न।

ये देख चित्रा कहती है..

एक अरसे के बाद फिर इश्क़ ने दिल के दरवाजे पर दस्तक दी है! 'राधु'
डर है कहीं इस बार भी ये दस्तक पल दो पल की मेहमान न् हो!

ओह हो ज्यादा नेगेटिव न सोचो चित्रा।हमे तो इस बात की खुशी है कि तुमने आगे बढ़ने का निर्णय लिया।हम तुम्हारे लिए बहुत बहुत बहुत खुश हैं।राधिका ने कहा।जिसे सुन चित्रा मुस्कुरा देती है।

अर्पिता एक बार चुपके से शान की ओर देखती है तो शान उसे स्टेच्यू वाली ब्लू साड़ी की ओर इशारा कर देते हैं।अर्पिता सामने देखती है तो ब्लू रंग देख मन ही मन कहती है,ओह हो मतलब शान चाहते है हम ये ब्लू रंग वाली साड़ी अपने लिए ले ले।हम ले लेंगे लेकिन पहले थोड़ा तंग कर लिया जाये।।सोचते हुए वो सेल्समैन से कहती है "भइया, हमे जरा वो ब्लू साड़ी के पास लगी हुई ग्रीन साड़ी दिखाइये"।शान ने सुना तो अपना सर पीट लिया जिसे देख प्रेम जी बोले "खुद जाकर पैक क्यों नही करवा लेते प्रशांत"।

"उसकी जरूरत नही पड़ेगी भाई वो जानबूझ कर रही है मुझे तंग करने के लिए"।प्रशांत ने कहा।

"क्या सच में ऐसा है प्रशांत"?प्रेम ने पूछा।

हां भाई?देख लियो खरीदेगी वही ब्लू वाली।भाभी थोड़ी शांत है लेकिन ये कम नौटंकी नही है।प्रशांत ने कहा।

"ठीक है देखते है कैसे लेती है वो आजमा ही लेते है तुम्हारी बात को" प्रेम जी बोले और थोड़ा आगे बढ़ राधु के पास जाकर उससे बोले "वो जो स्टेच्यू पर साड़ी है न ब्लू वाली वो देखना कैसी है मुझे तो ठीक ठाक लग रही है"।।

राधु फुसफुसाते हुए प्रेम जी से कहती है:- हे ठाकुर जी माना कि आपको नीला रंग पसंद है प्रेम जी लेकिन हमारा भी सोचिये हर बार जब भी कुछ दिलवाओगे तो नीला ही पसंद करोगे इस वजह से इस रंग की हमारे पास भरमार हो रखी है आज भी दो दो साड़ियाँ बता रहे हो।अब आप कह रहे हो तो हम देख ही लेते हैं राधु ने कहा और वहां मौजूद सेल्समैन से वो ब्लू साड़ी निकालने को बोली।।
अर्पिता ने राधु को जब ब्लू साड़ी निकलवाते हुए देखा तो हड़बड़ाते हुए बोली, "दी लगता है।आपको नीला रंग कुछ ज्यादा ही पसंद है"।
राधिका :- हां अर्पिता कुछ ऐसा ही समझ लो।
"ओके दी ! बहुत प्यारी साड़ी है आप पर जंचेगी भी"अर्पिता बोली और सेल्समैन की ओर देख उससे बोली "भइया ऐसा तो है नही कि आपके पास इस रंग और डिजाइन की केवल यही एक साड़ी होगी"।

सेल्समैन :- जी।इसके रंग और है लेकिन डिजाइन सेम है।
अर्पिता :- हमने रंग भी यही पूछा है अगर हो तो उसे ही निकालिये।हमे ये ग्रीन वाली कुछ खास नही लग रही है।

अर्पिता की बात सुन कर प्रशांत मुस्कुराये और धीरे से बोले " मेरी पगली आ गयी लाइन पर"।।
प्रेम जी प्रशांत से बोले :- सही कहा तुमने थोड़ी सी नटखट तो है।लेकिन मुझे लग रहा है उसकी ये आदत भी सिर्फ तुम्हे ही तंग करने के लिए है।

प्रशांत :- जी वही तो बोला मैंने।

सेल्समैन :- मैम!मैं एक बार पता कर लेता हूँ अगर मिल जाये तो बहुत अच्छा होगा।कहते हुए उसने वहां दूसरी ओर सिस्टम पर बैठे एक बंदे की ओर इशारा किया।उसने सिस्टम पर पर कुछ कीज़ दबाई और थम्ब का इशारा किया।

सेल्समैन ने अर्पिता से कहा ओके मैम हमारे पास अवेलेबल है मैं अभी निकाल कर देता हूँ।कहते हुए उसने थोड़ा अंदर जा कर सेम कलर डिजाइन की साड़ी निकाल कर अर्पिता को दिखाई।

"ठीक इसे पैक कर दीजिये"अर्पिता बोली।।और एक नजर शान की ओर देखा।तो शान ने मुस्कुराते हुए चुपके से अपना राइट थम्ब दिखा दिया।

प्रेम राधु के पास आये और उससे बोले तुम्हे इसे लेने का मन नही है न तो एक काम करो इसे चित्रा के लिए ले लो।उसने भी कुछ नही लिया है।

हम ये ठीक है।धन्यवाद प्रेम जी।राधिका ने कहा और वो साड़ी भी पैक करा ली।वहीं चित्रा ने अपने लिए गहरे ग्रे रंग की साड़ी सलेक्ट कर ली।
राधु को कुछ याद आया और वो प्रेम जी से बोली, " प्रेम जी हमारे छोटे के लिए जो शॉपिंग लिस्ट हमने तैयार की थी वो आपके पास होगी उसमे से देख लीजिये क्या क्या बचा हुआ है"।।

प्रेम :- उसमे ज्यादा कुछ नही बचा है, राधु तुमने जो भी बताया था वो सब तो लखनऊ से ही ले लिया था।बस एक सेहरा बचा हुआ है।उसे तो मैं अपनी पसंद का लूंगा।।

राधु :- ठीक है तो आप लेकर आइये हम सभी वेटिंग एरिया में बैठ मां,ताईजी, चाचीजी,श्रुति, जीजी और जीजाजी का इंतजार करते हैं।

प्रेम जी "ठीक है राधु"कह वहां से निकल जाते हैं।
राधिका अर्पिता चित्रा और प्रशांत सभी वेटिंग एरिया में जाकर बैठ जाते हैं।

कुछ ही देर बाद श्रुति,शोभा कमला और शीला सभी वही काउंटर के पास बने वेटिंग एरिया में राधु और बाकी सब के पास जाकर बैठ जाती है।

शोभा :- राधिका, शॉपिंग हो गयी सारी कुछ बाकी तो नही रही।
राधु :- हां मां! बस प्रेम जी और आ जाये वो परम भाई के लिए अपनी पसंद का सेहरा लेने गये हैं।

"प्रशांत जरा सुमित को फोन लगाना कितना टाइम और लगेगा दोनो को" इस बार कमला ने कहा!

जी ताइ जी कह शान ने फोन निकाला और सुमित को लगाते हैं।

प्रशांत :- भाई कहां है आप दोनो कितनी देर में पहुंच रहे हैं।

सुमित :- बस काउंटर की ओर ही पहुंच रहे हैं।
प्रशांत :- ठीक है फिर आइये।हम सभी यहीं है।

सुमित :- ठीक है छोटे कह फोन रख देते है।

प्रशांत(सब से) :- ताईजी सुमित भाई भी यहां पहुंच ही रहे है।

"ठीक है फिर तुम ये कार्ड लो इससे पे कर सारा सामान यहीं ले आओ।अर्पिता श्रुति तुम भी साथ चली जाओ" शोभा ने प्रशांत को डेबिट कार्ड देते हुए कहा।

जी ताईजी कह प्रशांत उठे और वो वहां अर्पिता और श्रुति के साथ काउंटर की ओर बढ़ जाते हैं।
जहां वो सभी समान का पेमेंट करा उसे अपने साथ लेकर सबके पास आ जाते हैं।कुछ ही देर में सुमित स्नेहा और प्रेम जी भी आ जाते हैं।

वो सभी भी काउंटर से समान ले लेते है।सभी आ गये है ये देख शोभा शीला कमला सभी को घर चलने के लिए कहते हैं।

प्रेम और सुमित पहले निकल दोनो गाड़िया पार्किंग से निकाल गेट तक ले आते हैं।तो सभी धीरे धीरे गाड़ी तक पहुंच समान एडजस्ट कर घर के लिए निकल जाते है ..!

क्रमशः ....