झाड़-जंगल में रहने वाली मटियाली बकरी को पत्थर-पहाड़ पर रहने वाले उसके दढ़ियल चाचा ने एक बार एक शीशी शैम्पू भिजवाई और भिजवाई एक चिट्ठी. चिट्ठी में लिखा था-खुश रहना और खास मौकों पर शैम्पू का इस्तेमाल करना.
मटियाली बकरी मस्त जीव थी. लेकिन चिट्ठी पढ़कर और शैम्पू पाकर मुश्किल में पड़ गई. उसे शैम्पू के बारे में कुछ भी पता नहीं था कि इसे खाते हैं या क्रीम-पाउडर की तरह लगाते हैं. सिर्फ़ मटियाली बकरी ही क्यों झाड़-जंगल के किसी भी जीव को मालूम न था कि शैम्पू क्या बला होती है. फिर भी, बकरी ने इसके बारे में घर-घर जाकर पूछा. बूढ़ों से भी पूछा और दूर-दूर की यात्राओं पर जाने वालों से भी पूछा.
एक दुष्ट गीदड़ ने पूंछ हिलाते हुए, शीशी को सूंघकर चटकारे लेते हुए कहा, ‘पीला-पीला’ है! ज़रूर अनानास का जैम है. बासी रोटी के साथ मैंने खाया था एक बार- वाह! अब तुम भी चखकर देखो!
मटियाली बकरी ने गीदड़ की बात पर यकीन करके शैम्पू को जो चखा, फिर तो ‘थू-थू’ करके उसका बुरा हाल हो गया. और उसकी ‘थू-थू’ पर गीदड़ हंसते-हंसते लोटपोट हो गया.
लंगूर ने अंदाजा लगाया कि यह जरूर गोरेपन की क्रीम होगी. जिस पर बकरी ने कहा, फिर तो इसकी सबसे ज़्यादा जरूरत तुम्हें ही होगी.’ और लंगूर ने उसे खुद पर आजमाया तो थोड़ी ही देर में उसका चेहरा सुख कर पापड़ हो गया. और फिर तो वह अपना मुंह छिपाकर ऐसा भागा कि किसी को दोबारा नजर नहीं आया.
इस तरह कई दिन बीत गए. और जब झाड़-जंगल के बीच मटियाली बकरी के दढ़ियल चाचा के शैम्पू की बात भूल गए थे तो एक दिन कौवा एक खबर के साथ लौटा.
खबर यह थी कि वह शैम्पू का इस्तेमाल देख कर आया था. बकरी के पूछने पर उसने बताया कि सिर पर शैम्पू मल कर फव्वारे के नीचे खड़ा होना पड़ता है, और तब देखते ही देखते सिर पर झाग का पहाड़ जमा हो जाता है.
कौवे की बात सुनकर बकरी खुश हुई , पर तुरंत ही फव्वारे की बात सुनकर उदास हो गई. फव्वारा कहां से लाया जाए, यह कौवा नहीं बता सका. वैसे इसकी नौबत भी नहीं आई. वहीं पेड़ के पीछे छिपा सुअर उनकी बात सुन रहा था. वह एकाएक बकरी पर झपटा, उसकी शीशी छीनी और सीधे अपने कीचड़ -गारा घर की तरफ दौड़ा.
बकरी पहले तो चौंकी फिर बुक्का फाड़ कर रोने लगी. वह सीधे जा पहुंची शेर के पास. शेर ने सब सुना और फौरन उठ खड़ा हुआ सुअर को मजा चखाने.
सुअर अपने कीचड़-गाराघर में तैयार खड़ा था. शेर को देखकर वह जोर-जोर से हंसने लगा. वह जानता था शेर कीचड़ में नहीं आएगा और उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा. लेकिन सुअर को उसकी गुस्ताखी की सजा देने के लिए शेर सब कुछ भूल कर कीचड़ में कूद पड़ा.
अब सुअर की हालत खराब हुई. शेर ने उसे पटक-पटक कर इतना पीटा किउसकी एक सौ तीन हड्डियां दुखने और चटकने लगी. और वह रो-रोकर माफी मांगने लगा.
इधर भालू ने एक होशियार चाल चली. कीचड़ से लथपथ शेर जब वापस आया तो उससे शैम्पू की शीशी लेकर भालू ने कीचड़ साफ करते हुए उस पर शैम्पू मल दिया. दर्जन भर हाथी भी सूड़ों पर पानी भरे तैयार थे. भालू का इशारा पाते ही उन्होंने शेर के ऊपर फव्वारा छोड़ दिया. बस फिर न पूछो क्या हुआ!
शेर सुगंध वाले सफेद झाग से भर गया और तब जब चीते ने आईना दिखाया तो वह अपने ऊपर खूब हंसा.
शैम्पू की करामात से बकरी भी हैरान थी. झाग घुलने के बाद शेर का रंग इतना निखर आया कि वह मुड़-मुड़ कर खुद को ही देखता रह गया. और जो आराम मिला उसकी तो बात ही अलग है.
इसके बाद शेर ने मटियाली बकरी के दढ़ियल चाचा को शैम्पू की तारीफ में कविता में एक चिट्ठी लिखी थी. जिसे पढ़कर दढ़ियल चाचा तो हक्का-बक्का ही रह गया था.
पर हां राजा के सम्मान में उस दिन के बाद उसने फिर कभी शैम्पू का इस्तेमाल ही नहीं किया था.
और अब तो बकरियां नहाना भी पसंद नहीं करती. पता नहीं यह भी शेर के सम्मान की ही बात है या इसके पीछे कोई दूसरी घटना है.