Karn Pishachini - 8 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | कर्ण पिशाचिनी - 8

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कर्ण पिशाचिनी - 8

भाग - 3


बिस्तर पर बैठे पुरानी बातों को सोचते हुए विवेक को झपकी आने लगी थी । अचानक किसी ने उसका नाम लेकर उसे बुलाया । हड़बड़ाकर वह फिर उठ बैठा । शायद वह कोई सपना ही देख रहा था । पिछले कुछ दिनों से विवेक के लिए स्वप्न और वास्तव मिक्स हो गया था । लगभग 1 साल पहले शादी की तारीख ठीक होने के दिन ऐसा शुरू हुआ था ।
ममता के घर पर उस दिन कई रिश्तेदार थे और विवेक के घर से भी सभी गए थे । तारीख ठीक होने के बाद सभी पारिवारिक बातों में मशगूल थे । अकेले में थोड़ा बात करने के लिए विवेक और ममता छत पर गए थे । बाहर आसमान में शाम की चाँद , हल्की ठंडी हवा और ममता द्वारा लगाए गए गुलाब के फूलों का सुगंध सब कुछ मिलाकर रुमानी परिवेश था । वो दोनों भविष्य के रंगीन सपनों में खो गए थे ।
ममता की भाभी ने किसी कारण से उसे नीचे बुलाया । विवेक इस हसीन लम्हें को खराब नहीं करना चाहता था इसीलिए उसने ममता से कहा कि काम खत्म करके जल्दी से लौट आना । ममता के जाने के बाद विवेक मोबाइल में व्यस्त हो गया । कुछ देर बाद अचानक उसे घुटन सा महसूस होने लगा मानो चारों तरफ की हवा भारी हो गई है । इस हवा में विवेक को सांस लेने में दिक्कत हो रही है तथा एक अद्भुत सुगंध भी उसके नाक को छू रहा है । उस तीखे सुगंध ने ही परिवेश को घुटन में बदल दिया है ।
सिर को झकझोर कर विवेक ने इस घुटन से छुटकारा पाना चाहा लेकिन मोबाइल से नजर हटाकर सामने देखते ही उसका सीना डर से कांप गया ।
विवेक को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा कि वह इस वक्त कहां पर खड़ा है क्योंकि यह ममता के घर का छत तो नहीं है । उसके सामने दूर-दूर तक केवल अंधेरा ही अंधेरा है जिससे आसमान और जमीन में फर्क समझ नहीं आ रहा । इतना ही नहीं विवेक अपना ही हाथ ठीक से नहीं देख पा रहा था । विवेक ने आसमान की तरफ देखा लेकिन वहां पर चांद व तारा कुछ भी नहीं था । अंदाजे से उसने सामने की तरफ पैर बढ़ाया पर नहीं वह मानो जम गया है । उसके अंदर हिलने डुलने की भी क्षमता अब नहीं है । उसने चिल्लाकर ममता को बुलाने की कोशिश की लेकिन आवाज नहीं निकला । अचानक विवेक में उस अंधेरे में एक लड़की को देखा । कोई प्रकाश नहीं है लेकिन फिर भी कैसे विवेक उस लड़की को देख रहा है इसका उत्तर उसे को नहीं पता । वह केवल आंख फाड़कर देखता रहा । वह लड़की उसके तरह ही बढ़ रही है । लड़की दिखने में मानो स्वर्ग की कोई अप्सरा या देवी हो ।
वह लड़की विवेक के और पास आ गई । उसके सुंदर ताम्बे जैसी शरीर की रंग और दो अद्भुत मायावी आंखें , उन आंखों के आकर्षण को अनदेखा करना किसी पुरुष के वश का नहीं है । उस लड़की की आंखों के आकर्षण में विवेक अपने वर्तमान परिस्थिति को भूल गया ।
उस लड़की ने विवेक के कान के पास आकर धीरे आवाज में कहा ,
" विवेक मैं तुम्हारे पास आ रही हूं । तुम सिर्फ मेरे हो । "

ममता के बुलाने की आवाज को सुनकर विवेक चौंक गया । अचानक ही चारों तरफ का अंधेरा और वह अप्सरा जैसी लड़की न जाने कहाँ गायब हो गई ।

" विवेक मैं तुम्हें कब से बुला रही हूं । भाभी पूछ रही हैं कि तुम चाय पियोगे या कॉफी । "

" हाँ , चाय चलेगा । "

" अच्छा क्या तुम खड़े खड़े सो रहे थे ? "

विवेक ने एक बार सोचा कि क्या यह बात ममता से बता देना चाहिए । फिर कुछ सोच कर उसने सबकुछ बता दिया ।

यह सुनकर ममता हंसते हुए बोली ,
" विवेक तुम क्या सोच रहे हो कि ऐसी कहानियां सुनाकर मुझे जेलस फील करा सकते हो लेकिन सर ऐसा नहीं होने वाला । "
विवेक ने आगे कुछ भी नहीं बोला । वह जान गया कि ममता ने इस बात पर विश्वास नहीं किया । उसने खुद को भी समझाया कि शायद वह सो गया था और उसी बीच कोई स्वप्न देख लिया ।

इसके 2 महीने के बाद दोनों विवेक के दोस्त पुनीत के पार्टी में गए थे और वहां भी विवेक के साथ एक आश्चर्यजनक घटना घटी ।
स्मोक करने के लिए विवेक दूसरे तल्ले पर गया क्योंकि उसे पार्टी ज्यादा पसंद नहीं । नीचे उस वक्त सभी जबरदस्त हू - हल्ला करके पार्टी को इंजॉय कर रहे थे ।
यहां खुले जगह पर विवेक को काफी अच्छा लग रहा था इसीलिए वह सिगरेट पीने में मशगूल था । अचानक सीढ़ी पर किसी के चलने की आवाज सुनाई दिया । सीढ़ी का लाइट दीवार पर तिरछी आकृति में फैला हुआ था । उसी लाइट में विवेक ने देखा कोई सीढ़ी से चल कर आ रहा है । वह एक लड़की थी । एक लंबे बालों वाली लड़की , चलते वक्त उसके बाल पर्दे की तरह तैर रहे थे । विवेक सिगरेट को फेंककर सीढ़ी की तरफ आगे बढ़ा लेकिन सीढ़ी के पास आते ही वह आश्चर्यचकित हो गया । वहाँ पर कोई भी नहीं था लेकिन विवेक ने कुछ ही सेकंड पहले उसी छत वाली लड़की को स्पष्ट देखा था । विवेक जल्दी से नीचे चला आया । उसने सोचा शायद यह अल्कोहल का प्रभाव है ।

-----------

घरवालों के बुलाने के कारण उसके चिंता में बाधा आई ।
आशुतोष यानि विवेक के जीजाजी ने आकर कहा ,
" चलो ब्रदर रोस्ट करने से पहले मैरिनेट करना होगा । "
" मतलब ? "
" अरे हल्दी लगाने की रस्म और क्या । "

हल्दी लगाने की रस्म समाप्त हुई । कुछ देर बाद ही गेट से एक कार अंदर आता हुआ दिखाई दिया । इस गाड़ी को विवेक अच्छी तरह पहचानता है । यह नित्यानंद उपाध्याय जी का कार है । रिश्ते में वो विवेक की माँ के गुरु मामा लगते हैं इसीलिए विवेक उन्हें गुरु महाराज कहकर बुलाता है । गुरु महाराज बहुत ही अद्भुत प्रकृति के आदमी हैं ।
एक तरफ कॉलेज में विज्ञान पढ़ाते हैं तथा अपने वंश परंपरा के अनुसार तंत्र साधना में भी सक्रिय रहते हैं । तंत्र मंत्र के बारे में उन्हें खासा ज्ञान है । गुरु महाराज बहुत ही विनम्र और मिलनसार स्वभाव के हैं लेकिन इस वक्त अपने कार से उतरते ही किसी से बात किए बिना सीधे कुछ बात बताने के लिए विवेक के मां और पिताजी को लेकर ऊपर कमरे में चले गए । यह देखकर सभी को थोड़ा आश्चर्य हुआ था । सबसे ज्यादा विवेक के मन में आतंक के गोले दग रहे थे । आखिर क्या हुआ है ?
लगभग आधे घंटे बाद वो तीनों कमरे से बाहर आए । गुरु महाराज का चेहरा गंभीर है और विवेक के मां और पिताजी के चेहरे पर चिंता की रेखा साफ झलक रही है ।
कुछ गलत होने वाला है इसका संदेश पहले ही विवेक के मन में हो गया था । कहीं शादी में तो कोई रुकावट नहीं आ गई ?

नीचे उस वक्त विवेक के दोस्त और कजिन सिस्टर फोटोशूट में व्यस्त थे । वो सभी विवेक को बार बार बुला रहे हैं लेकिन विवेक के मन में परीक्षा के रिजल्ट निकलने से पहले वाली आतंक है । मानो कोई मन के अंदर से बोल रहा है कि आगे कुछ भी सही नहीं होने वाला । पहले मां और फिर पिताजी बाद में गुरु महाराज तीनों कमरे से चिंतामग्न होकर बाहर निकले । कारण पूछने की हिम्मत विवेक के अंदर अभी नहीं है । कहीं गुरु महाराज ने उसके मन के बातों को तो नहीं पढ़ लिया ?

गुरु महाराज विवेक के पास आकर बोले ,
" गुरु भाई तुमसे कुछ बातें करनी है । "

गुरु महाराज द्वारा यह कहते वक्त ही विवेक के मोबाइल फोन में रिंगटोन बजने लगा । ममता ने फोन किया है ।

" कॉल को रिसीव कर लो फिर उस कमरे में आ जाना । "

कॉल रिसीव करके विवेक बोला ,
" क्या हुआ तुमने तो कहा था कि शादी के दिन कोई बात नहीं करोगी । फिर फोन कैसे ? "

" ऐसे ही मन में आया तो कर दिया । वैसे शाम को जल्दी चले आना इस दिन के लिए मैं कई सालों से प्रतीक्षा कर रही हूं । "

ममता की आवाज को सुनकर विवेक का मन थोड़ा शांत हुआ । लेकिन फिर गुरु महाराज का वह उतरा चेहरा भी याद आया । उस कमरे में उन्होंने क्यों बुलाया है क्या पता ?
विवेक के कमरे में जाते ही गुरु महाराज ने उसकी मां से कमरे का दरवाजा बंद करने को कहा । यह देखकर विवेक और भी ज्यादा सोचने लगा । उसने देखा कि दीदी और जीजाजी के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएं है ।

यह कमरा विवेक की दादी का था । बड़ा सा कमरा और उसके एक तरफ लकड़ी के चौखट पर राधे - कृष्ण , माँ अम्बे व गणेश की मूर्ति सजा हुआ है । और इसके सामने ही 2 आसन बिछाया गया है । गुरु महाराज ने विवेक को एक आसन पर बैठने के लिए कहकर खुद भी दूसरे आसन पर बैठ गए । इसके बाद गुरु महाराज ने अपने जनेऊ को उंगली में फंसाकर भगवान का ध्यान करते हुए विवेक के माथे से स्पर्श कराया । वहाँ उपस्थित सभी एवं विवेक भी गुरु महाराज के चेहरे की तरफ देखते रहे ।
सभी ने देखा कि आँख बंद गुरु महाराज के चेहरे की रेखाएं धीरे-धीरे परिवर्तित हो रही है । अचानक उन्होंने अपनी आंखों को खोला , आँखे कुछ ही मिनटों में लाल हो गई थी ।

" इसका मतलब मेरा अनुमान गलत नहीं था । क्या ऐसा भी सम्भव है । हे देवी माता ! रक्षा करो । "
इसके बाद विवेक के पिताजी की तरफ देखकर बोले ,
" जयप्रकाश यह शादी आज नहीं होगा । "

सभी एक साथ क्यों , क्यों करके अपने सवालों का उत्तर ढूंढने लगे ।

" सभी शांत हो जाओ । शादी आज नहीं होगा यह कहा है । कभी नहीं होगा मैंने ऐसा तो नहीं बोला । विवेक के कुंडली में कुछ असुविधा है । उन दोनों की शादी होगी, जरूर होगी लेकिन मेरे घर के मंदिर में यह सम्पन्न होगा ।
असल में कल मैं विवेक के कुंडली को ध्यान से देख रहा था और अचानक यह बात मेरी नजर में आई । तुम लोगों को परेशानी होगी लेकिन यह मेरे गुरु भाई विवेक के भविष्य की बात है । "

विवेक के माता - पिता गुरु महाराज पर हमेशा विश्वास करते थे । क्योंकि यह आदमी तंत्र - मंत्र इत्यादि के साथ विज्ञान में शिक्षित भी हैं । ज्योतिष विद्या भी एक विज्ञान है लेकिन समय बीतने के साथ-साथ इस बारे में अज्ञानता और ढोंग के कारण आज बहुत लोग इस प्राचीन विज्ञा पर भरोसा नहीं करते ।
इधर विवेक के दिमाग में एक ही चिंता है कि ममता यह सुनकर कैसी प्रतिक्रिया देगी । और उसका डर ही सच हुआ । सबकुछ सुनकर ममता ने विवेक को बहुत खरी - खोटी सुनाई । वह पहले गुस्सा हुई फिर रोने लगी । चुप रहने के अलावा विवेक के पास और कोई उपाय नहीं था क्योंकि दोष तो उसी के अंदर था । गुरु महाराज के ऊपर उसे भी अंधविश्वास है ।
सभी रिश्तेदारों को समझाया गया फिर विवेक और उसके माता-पिता गुरु महाराज के साथ ममता के घर पर गए ।
उन्हें पहले ही पता था कि यह सुनकर सभी गुस्से में लाल हो जाएंगे । ममता के माता-पिता को किसी तरह समझाया गया लेकिन ममता इससे राजी नहीं हुई । वह कुछ भी समझना नहीं चाहती थी , उसने शादी तोड़ने तक की बात कह दी । ममता ऐसे अंधविश्वासी कुसंस्कार परिवार में शादी ही नहीं करेगी । लेकिन ममता एक बार भी गुरु महाराज के सामने नहीं आई ।

अंत में कोई उपाय न देखकर गुरु महाराज ने ममता की मां को एक छोटी सी पोटली देते हुए बोले ,
" इससे ममता बेटी के बिस्तर के नीचे रख देना । उसके अनजाने में यही उसकी रक्षा कवच है । और कल जब मेरे घर के लिए निकलोगे तब इसे अपने साथ रखना । मेरे ऊपर थोड़ा सा भरोसा रखिए यह मेरे विवेक और ममता के सुरक्षा का सवाल है । "

सभी चिंतित हो गए कि क्या शादी होगा या नहीं । अगर ममता राजी नहीं हुई तो कुछ भी सम्भव नहीं है ।....

....अगला भाग क्रमशः....


@rahul