badal gaya mausam in Hindi Short Stories by anshu Singh books and stories PDF | बदल गया मौसम

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बदल गया मौसम

बदल गया मौसम

वह ट्रेन से उतर कर, स्टेशन परिसर के बाहर निकली ही थी कि मौसम बदलने लगा। जैसे-जैसे उसके कदम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे धूप-छांव का खेल भी बढ़ रहा था। लेकिन कुछ ही लम्हों में सारी आंख मिचौली खत्म हो गई और काले, घने बादलों ने भरी दोपहरी को एकदम से अंधेरी शाम में बदल दिया। दोनों हाथों में सामान लिए वह लड़की अचानक से ठिठक गई।

‘मैं तो बुरी फंस गई। क्या करूं? कोई ऑटो वाला कॉलोनी की तरफ जाने को तैयार ही नहीं हो रहा। घर से भी कोई लेने नहीं आया। गलती मेरी ही थी। सबको सरप्राइज देने का जो सोचा था। सारा प्लान चौपट।‘ अभी बादल बरसने शुरू नहीं हुए थे, लेकिन उसके मन में ये ढारे सवाल गूंज रहे थे। परेशान हो रही थी वह। कुछ तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करे और क्या नहीं। इसी बीच उसके चेहरे पर जोर से पानी की एक बूंद टपकी...!!

‘आह, ये तो जोरदार बारिश का संकेत है।‘ वह अपनी नजरों को इधर-उधर दौड़ाने लगी कि कहीं कोई जगह दिखाई दे जाए, जहां वह थोड़ी देर इंतजार कर सके और सोच सके कि आगे क्या करना है। उसे सड़क की दूसरी ओर चाय की एक झोपड़ी नुमा दुकान दिखी, जिसमें एक महिला केतली से चाय प्याले में डाल रही थी। उसने तय किया कि वहां कुछ वक्त इंतजार करेगी, तब तक शायद मौसम भी खुल जाए।

सामान उठाने के कारण हथेलियां जवाब दे रही थीं। लेकिन वह हिम्मत कर आगे बढ़ी। अभी बीच की पगडंडी तक ही पहुंची थी कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। पल भर भी नहीं लगे और वह पूरी तरह भीग गई। सड़क पर गाड़ियों की आवाजाही लगी थी। वह संभलते-संभलते, चाय की उस दुकान तक पहुंची। झट से सामान नीचे रखा। दुपट्टा ठीक किया और धुंधले पड़ गए आंखों के चश्मे को साफ करने लगी। तभी अचानक से आवाज आई....सलोनी! तुम यहां। ऐसे-कैसे ?

सलोनी ने नजरें उठायीं, तो उसे भी सामने खड़े रोहन को पहचानने में देर नहीं लगी। ‘अरे, तुम यहां क्या कर रहे हो? अपनी हालत क्या बना रखी है?’ बाहर बारिश की बूंदों की बौछार हो रही थी और झोपड़ी के भीतर सवालों की..। रोहन ने बोला, ‘पहले सांस तो ले लो। इस चूल्हे के पास बैठकर कपड़े तो सुखा लो। फिर आराम से बातें करेंगे।‘सलोनी ने उसकी बात मान ली। दुकान में मौजूद महिला ने सलोनी के लिए गर्मा गर्म चाय बनाई। पहले से जो कुछ पकौड़ियां रखीं थीं, वह भी उसे खाने को दिया। इसके बाद, सलोनी ने रोहन को झटपट, पूरी कहानी सुनाई कि कैसे वह घरवालों को सरप्राइज देना चाहती थी, इसलिए अचानक ही मुंबई से लखनऊ आ गई। लेकिन क्या पता था किमौसम बदल जाएगा ऐसे। मेरे पास छतरी तक नहीं थी। सलोने बोले जा रही थी और रोहन उसकी बातें सुनते-सुनते कहीं खो सा गया था।

जैसे ही सलोनी को इसका एहसास हुआ, उसने रोहन को झकझोरा, कहां गुम हो गए तुम पहले की तरह।

‘हम्म, कहां रहा अब वह जमाना।‘ रोहन ने कहा।

सलोनी ने पूछा, ‘क्यों क्या हुआ?’

काफी कुरेदने के बाद रोहन ने धीमे से बोला, ‘बारिश ने सब डूबो दिया। गांव में बाढ़ आई थी। घर, परिवार सब बह गए। कुछ नहीं बचा।‘ रोहन उत्तराखंड के एक छोटे से गांव से था, जहां अचानक हुए भूस्खल्न के कारण बाढ़ आई और रातों-रात पूरा गांव उसमें विलीन हो गया।

सलोनी सन्न रह गई कुछ पल ! फिर हिम्म्त रख, आहिस्ते से पूछा, ‘अभी क्या काम कर रहे हो?’

रोहन ने बोला, ‘ये चाय की दुकान मेरी ही तो है। ये महिला मेरी मौसी और परिवार सब कुछ हैं।‘ सलोनी ने उनकी ओर देखा और जाकर पांव स्पर्श किए। फिर वापस आकर पतली-सी लकड़ी की बेंच पर बैठ गई। बीच-बीच में फूंस की छत से पानी की बूंदें भी उसके बालों को भिंगो रही थीं। वह बीते दिनों को याद करने लगी, जब रोहन अपनी कहानी और कविताओं से कॉलेज के साथियों का दिल जीत लेता था। वह पढ़ाई में बहुत होनहार था और उसकी कलम में बहुत ताकत थी। बारिश का मौसम तो उसे सबसे प्यारा था। सिनेमा के लिए कहानी-पटकथा लिखना चाहता था। इसलिए गांव से मुंबई गया था। वहां की बारिश, समुद्र की लहरों के साथ घंटों, एकांत में बिता देता था। लेकिन मॉनसून के दिनों में ही अचानक रोहन शहर से लौट गया, किसी को बिना कुछ बोले। अपनी यादों की गली में घूमते हुए सलोनी को यह भी खयाल आया कि कैसे उसने रोहन से संपर्क करने की कितनी ही कोशिश की थी। लेकिन उसमें वह सफल नहीं हो सकी...। सलोनी ने कल्पना नहीं की थी कि वे दोनों कभी इस हालात में मिलेंगे....। दोनों खामोश थे और आंखों से बूंदें छलक-छलक रहीं थीं....। रोहन को भी याद आ रहे थे बारिश के वे पुराने दिन, जब समुद्र किनारे दोनों घंटों अपने-अपने सपनों की बातें करते थे। लहरों को उठते-शांत होते देख, सोचते थे कि एक दिन उनकी जिंदगी भी यूं ही शांत और सुकून भरी होगी....लेकिन अब मौसम बदल चुका था।

अंशु सिंह