Aaina in English Moral Stories by Astha S D books and stories PDF | आईना

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आईना


बचपन की एक धुंधली सी तस्वीर नजर आयी और इस तस्वीर के साथ कुछ गमगीन करने वाली यादें भी | माँ का हाँथ पकड़े मैं पापा के पीछेेे -- पीछे चल रही थी। सामान इंसानो से ज्यादा था। मेरे समझ से परे था की कौन से शहर मे आ गए थे हम। रिक्सा से हम किसी के घर पहुँचे। एक बड़ा सा घर और बीच मे बड़ा सा आँगन और उसके बीच तुलसी-चौरा लेकिन मन मे अभी भी यही सवाल था की क्यू और कहाँ आ गए हैं हम। माँ ने कहा की हम मेरी बड़ी माँ और बा (बड़े पापा) के पास आये हैं। पहली बार मिली थी उनसे लेकिन मिलते वक़्त नहीं पता था की अब उनके साथ पूरी उम्र बसेरा होगा। ये वही घर था जो रहने के लिए घर तो देगा पर सभी रिस्तो से दूर ले जाएगा। खेलने के लिए जगह बहुत थी पर उस जगह से ज्यादा नहीं जो पीछे छुट चुका था क्यूकि जो पीछे रह गया था वहाँ आजादी महसुुस होती थी। छोटी थी मै पर छोटे से छोटा जानवर भी आजादी को समझ सकता है भला सोने का पिंजरा किसको पसंद आता। धीरे धीरे मुझे समझ आ गया था की गाँव की उन्मुक्त आकाश से मै शहर के सोने के पिंजरे मे कैद हो चुकी थी। वक़्त बीतता गया मैं स्कूल जाने लगी थी। शुरू शुरू मे सब ठीक लगता था पर कोई मुझसे दोस्ती नहीं करना चाहता था। मेरी कोशीश रहती की दोस्त जो बस मेरे लिए थे उनको खुश कर पाती पर बहुत कोशीश के बाद भी ऐसा मुमकिन नहीं हुआ। मैं अपनी क्लास मे प्रथम आने लगी। अब मैं खुश थी क्युकी दोस्त भी इसके बाद बन चुके थे। एक दिन साथ मे टिफिन खाते वक़्त मेरी सहेली ने मुझसे कहा- तू इतने गंदे मुहल्ले मे क्युँ रहती है ?

मैंने कहा - नहीं, ऐसा नहीं है। बहूत बड़ा सा है मेरा घर। खूब सारे पौधे है। गाय और बैल भी हैं और खरगोश भी। थोड़ी दूर एक तालाब है जहाँ एक पीपल का पेड़ भी है। मै देखी हू वहाँ रोज लोग पूजा करने नहाने जाते हैं फिर मेरा मुहल्ला बुरा कैसे हो सकता है?
उसने कहा - अरे बुद्धू! वहाँ बहुत गंदे लोग रहते हैं।

मन मे खूब सारे सवाल लिए मै घर आई। माँ और मै हमेसा साथ खाना खाते थे। उनकी आदत थी मुझे अपने हाथो से खिलाने की। मैंने सहमते हुए पूछा - माँ क्या हम बुरे लोगों के साथ रहते हैं? मेरी सहेलियाँ कहती हैं की हम गंदे मुहल्ले मे रहते हैं?

मेरी माँ को शायद समझ नहीं आया की वो मुझे क्या जवाब दे पर जवाब भी जरूरी था।

माँ ने कहा- यहाँ के बच्चे स्कूल नहीं जाते ना इसलिए वो गंदे कहलाते हैं।

मै इस जवाब से बेहद संतुष्ट थी। अब मेरे पास जवाब था।

थोड़ा साल गुजरा और थोड़ी समझदारी भी जिसने मुझे समझाया की वहाँ किस प्रकार के बुरे लोग रहते हैं? बुरे लोगो की परिभाषा तो समझ चुकी थी मै पर एक बात आज भी समझ नहीं आती की जहाँ रातों को मेला लगता है, दिन की रोशनी मे बंजर से लगने वाले घरों मे जहाँ हर रात दिवाली सी चमक सजती है वहाँ जाने वाले लोग आते कहाँ से हैं? मेरी माँ के जवाब से आज भी संतुष्ट हू मै क्युकी उसने गंदगी साफ करने का माध्यम बतलाया था।वो मुहल्ला पीछे छुट गया दुबारा कभी गई नहीँ वहाँ पर सवाल आज भी समाज को आइना दिखाना चाहता है।

आस्था