कहानी - गली में आज चाँद निकला
मैं इंजीनियर डॉक्टर तो नहीं बन सका , हमारी हैसियत ही नहीं थी . बचपन में ही पिताजी के गुजर जाने के बाद माँ ने मुझे किन कठिनाइयों से पाल पोस कर बड़ा किया देखता आया था . खैर किसी तरह मैंने हिंदी में स्नातक तक की पढ़ाई की . फिर बी एड भी किया यह सोच कर कि अब तो कहीं न कहीं मास्टरी मिल ही जाएगी . तब मैं पटना से कोई 20 किलोमीटर दूर गाँव में ही माँ के साथ रहता था .
एक साल तक मैं पटना , गया , मुजफ्फरपुर , छपरा , सासाराम , रांची आदि अनेक शहरों के प्राइवेट स्कूल में अपनी अर्जी देता रहा . सभी जगहों से सुनने को मिलता कि अभी कोई जगह नहीं है , अपनी अर्जी छोड़ जाईये , वैकंसी होने पर आपको इत्तला भेजी जाएगी . मैं आस लगाए था कि कहीं न कहीं से कोई अच्छी खबर मिलेगी .
एक दिन मैं अपने गाँव की हाट में कुछ खरीदने जा रहा था कि रास्ते में डाकिये ने आवाज दिया “ शंकर बाबू , मैं आप ही के घर जा रहा था . आपकी एक रजिस्ट्री आई है . “
डाकिये ने थैले से एक लिफाफा निकाल कर मुझे दिया . मुझे कुछ शुभ संकेत मिलने के आसार दिखे वरना रजिस्टर्ड लेटर मुझे कौन भेजता . मैंने लिफाफा खोला तो उसमें मेरे लिए एक नियुक्ति पत्र था . पटना सिटी के एक प्राइवेट स्कूल में हिंदी शिक्षक के लिए अस्थायी पद पर . पगार तो ज्यादा नहीं थी . साथ में लिखा था कि तीन महीने के बाद स्कूल का गवर्निंग बोर्ड मेरा इंटरव्यू लेकर फैसला करेगा कि मुझे स्थायी करना है कि नहीं . खैर अंधे को क्या चाहिए , एक आँख मिल जाये तो मानो सारा जहां ही मिल गया .
मैंने यह शुभ समाचार माँ को सुनाया तो वह भी ऊपर वाले का लाख लाख शुक्रिया अदा करने लगी . अगले ही दिन मैं एक बक्से और गठरी में अपनी सारी दुनिया समेट कर पटना सिटी पहुंचा . माँ ने दरी के अंदर ही एक
चादर और तकिया समेट कर उस गठरी को एक रस्सी से बाँध कर मुझे थमा दिया था , यही मेरा होल्ड ऑल था . मेरे बक्से में ही अलग थैले में कुछ नमकीन , मीठे खजूर , मठरी आदि रख दिए थे ताकि एक दो वक़्त का खाने पीने का काम उसी से चल जाए .
मैं पटना सिटी के पुराने मोहल्ले की तंग गली में गया . वहां मेरा एक दोस्त रहता था .उसने एक कमरे का छोटा सा मकान किराये पर लिया था . मैं भी उसी के साथ रहने लगा . अगले दिन मैंने स्कूल ज्वाइन कर लिया . मुझे मिड्ल सेक्शन में इंग्लिश और हिस्ट्री पढ़ाने को मिला . मुझे जो भी मिला उससे मैं काफी खुश था . मेरे मित्र ने एक स्टोव रखा था , उसी पर हम दोनों मिलजुल कर खाना बना लेते . दिन में अक्सर स्कूल की कैंटीन या कहीं और बाहर ही खा लेते . माँ को यह जान कर बड़ा दुःख होता कि मेरे खाने पीने की समुचित व्यवस्था नहीं थी . एक दिन वह भी आ गयी . एक कमरे के मकान में ही हम तीनों रहने लगे . माँ ने बारामदे में ही एक छोटा मोटा कामचलाऊ किचेन बना लिया . मैंने किचेन के लिए कुछ और बर्तन आदि जरूरी सामान खरीद लिए .
मेरे सामने वाले मकान में एक लड़की रहती थी . रेखा नाम था उसका , ऐसा मुझे उसकी मामी की आवाज से पता चला . जब भी वह ऊपर खुली छत पर आती , थोड़ी देर में उसकी मामी की आवाज आती “ रेखा , थोड़ा इधर आना . “ उसकी उम्र कोई बीस के करीब रही होगी . वह अपने मामा मामी के साथ ऊपर के हिस्से में रहती थी . नीचे का हिस्सा मामा ने किराए पर लगा रखा था . लड़की शाम के समय अक्सर छत पर आती तो हम दोनों दोस्त उसे देखा करते . दोस्त बोलता “ देख छत पर चाँद निकल आया है . “ वह सुंदर थी , गोरा रंग , तीखे नाक नक्श , छरहरा बदन और कद काठी भी अच्छी थी . पर माँ के आने के बाद उसे देखना कम हो गया था . वह अब कभी कभी दिन में जब मैं स्कूल में होता मेरे घर आया करती . माँ को भी अच्छा लगता था . माँ उसे अपनी बनायी सब्जी आदि टेस्ट कराती . कभी कटोरी में उसके घर भी भेजती . कभी रेखा भी अपने घर से कुछ खाने का सामान ले कर आती तो माँ उसकी कटोरी में कुछ न कुछ रख कर ही उसे लौटाती थी .
कुछ दिनों बाद माँ ने बताया कि रेखा के माँ बाप नहीं हैं , उसके मामा मामी को कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने रेखा को गोद ले लिया है . वह मैट्रिक पास है , और मामा ने उसे आगे नहीं पढ़ने दिया है . यह सोच कर कि ज्यादा पढ़ लिख जाएगी तो उसकी शादी में उन्हें दिक्कत होगी . ज्यादा पढ़े लिखे लड़के को ज्यादा दहेज़ देना होगा जो उनके लिए संभव नहीं है . उस दिन से मुझे वह और अच्छी लगने लगी .
इसी बीच स्थायी नौकरी के लिए मेरा इंटरव्यू हुआ . इंटरव्यू अच्छा हुआ और मुझे स्थायी कर दिया गया . मेरा वेतन और भत्ता भी कुछ बढ़ गया . मैं घर लौटते समय मिठाई लेता आया . रेखा किचेन में माँ के साथ बैठी थी . मेरे दोस्त ने कहा “ जा , अपने चाँद को मिठाई खिला . “
मैंने मिठाई लाने का कारण बताते हुए माँ को वो पैकेट दिया और कहा “ रेखा को भी खिलाओ . “
रेखा ने एक मीठी हंसी के साथ मुझे बधाई दी . सीधे तौर पर मेरे लिए कहा गया पहला शब्द मैंने सुना था , रेखा के मुख से . अप्रैल शुरू होते होते गर्मी शुरू हो जाती है . इसी समय रेखा के मामा बीमार पड़े . उन्हें करीब 15 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा . मामी ज्यादातर अस्पताल में ही रहती थी . मैं या मेरा दोस्त मामा मामी का खाना अस्पताल पहुंचाया करते .
एक दिन मामा का लंच बॉक्स लेने मैं रेखा के घर गया . मैंने सीढ़ियों के नीचे से ही आवाज दिया , पर अन्य दिनों की तरह रेखा लंच ले कर नीचे नहीं आयी . मैं ऊपर चला गया . बिजली नहीं थी , शायद गर्मी के कारण रेखा ने ब्लाउज के ऊपरी बटन खोल रखे थे , उसकी साड़ी भी सिमट कर घुटनों पर थी . मैंने देखा कि वह अस्त व्यस्त चटाई पर सोयी थी . पसीने की बूंदे अबरख के समान उसके बदन पर चमक रही थीं .कुछ पल तो मैं उसे यूँ ही देखता रहा . फिर मैंने दरवाजे की कुंडी बजायी और उसे आवाज भी दी . रेखा ने आँखें खोलीं और मुझे देख कर जल्दी से कपड़े सहेजते हुए उठ गयी . अपने पल्लू से पसीने पोछती हुई बोली “ एक सप्ताह से अस्पताल की भाग दौड़ से थक गयी थी , थोड़ा सुस्ताने के लिए लेटी थी , न जाने कब आँख लग गयी . लंच बॉक्स तैयार है , मैं ले आती हूँ . “
मैंने कुछ सफाई देते हुए कहा “ मैंने तुम्हें नीचे से आवाज दिया था , तुमने नहीं सुना तो ऊपर तक आ गया हूँ . “
रेखा ने लंच बॉक्स मुझे दिया और मैं अस्पताल के लिए निकल पड़ा . उस दिन के बाद से वह लंच बॉक्स ले कर पहले से ही नीचे खड़ी रहती , मुझे आवाज देने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी . मामा दस दिन बाद अस्पताल से घर आ गए .
कुछ दिनों के बाद गर्मी की छुट्टी होने वाली थी . स्कूल ने बच्चों के लिए दक्षिण भारत दर्शन का प्रोग्राम बनाया और मुझे भी उनके साथ जाना था . मैंने माँ से कहा कि कुछ दिनों के लिए गाँव चली जाए पर वह बोली “ तुम्हारा दोस्त तो रहेगा ही और रेखा भी आती जाती रहती है तो मेरा मन लग जायेगा . गाँव में अकेले मेरा मन नहीं लगेगा . “
सफर पर जाने के पहले मेरे मित्र ने मुझसे कहा “ अगर रेखा तुम्हें पसंद है तो मैं माँ से बोलता हूँ कि उसके मामा मामी से बात करें . “
मैंने कहा “ हाँ , सैर से लौटने पर तुम माँ से बात कर सकते हो . “
मुझे लौटने में करीब 25 दिन लग गए . दो तीन दिन से रेखा को नहीं देखा था . उसके छत पर बांस का मंडप देख कर मैंने माँ से पूछा “ रेखा के छत पर यह मंडप कैसा है ? “
“ अचानक रेखा की शादी हो गयी , वह ससुराल चली गयी . अच्छा वर मिला है उसे , बनारस डीजल लोको कारखाना में काम करता है . मैं भी उसकी शादी में गयी थी . “
यह सुन कर मुझे लगा जैसे आसमान से धक्के मार कर किसी ने मुझे नीचे गिरा दिया हो . मैंने चुप चाप सुन लिया . मेरे दोस्त ने यह किस्सा सुन कर मेरे कंधों पर धीरे से अपनी हथेली थपथपाते हुए मेरा हौसला बढ़ाया . खैर अब जो होना था वो तो हो गया . देखते देखते दिन बीतते गए . लगभग तीन साल बाद एक दिन मैं स्कूल से लौट रहा था तो थोड़ी दूर से मैंने अपनी गली में घर के सामने देखा कि रेखा खड़ी है , वह नीचे से ही छत पर खड़ी मामी से कुछ बात कर रही थी .
मेरा दोस्त भी साथ में था , उसने मुझसे कहा “ जाने कितने दिनों के बाद गली में चाँद आज निकला है . “
मैं रास्ते में एक ग्रोसरी स्टोर से कुछ सामान लेने के लिए रुका , फिर घर गया . मैंने देखा टेबल पर मिठाई का पैकेट रखा था . रेखा अंदर किचेन में माँ के पास थी . अंदर से किसी बच्चे की आवाज आ रही थी . थोड़ी देर में माँ दो बच्चे गोद में लिए मेरे पास आयी . मैं उसे देखने लगा . माँ बोली “ ये रेखा के जुड़वे बच्चे हैं . वह तो घंटे भर से आयी हुई है . डायपर लाने अपने घर चली गयी थी . ससुराल से पहली बार आयी है न , मिठाई ले कर आयी है . “
तब तक रेखा आ कर बोली “ मुंह मीठा करें शंकर बाबू . “
मैंने “ हाँ “ कह कर मिठाई के लिए हाथ बढ़ाया . मेरे दोस्त ने कानो में कहा “ आज अपनी गली में सिर्फ चाँद ही नहीं निकला है , तारे भी साथ ले कर आया है . “
मेरे चेहरे पर जबरन फीकी मुस्कान आ गयी .