Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 66 in Hindi Biography by Suraj Prakash books and stories PDF | चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 66

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 66

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

66

मैं सुबह पांच बजे के रोमांटिक वक्त पर क्वीन एलिजाबेथ जहाज पर चढ़ा। मैं सम्मन देने वालों से बचने के लिए ही ऐसे वक्त पर अपनी यात्रा शुरू कर रहा था। मेरे वकील ने हिदायत दी थी कि मैं चुपके से जहाज पर चढ़ूं, अपने आपको सुइट में बन्द कर लूं और तब तक डेक पर न आऊं जब तक पालयट न उतर जाये। मुझे पिछले दस बरस से हर तरह की खराब बातों की आदत पड़ चुकी थी, इसलिए मैंने उसकी बात मान ली।

मैं अपने परिवार के साथ जहाज के विशाल आकार को उस वक्त चलते देखने का आनंद लेना चाहता था जब वह वहां से छूटता और एक दूसरी दुनिया में प्रवेश करता। इसके बजाये, मैं डर के मारे अपने केबिन में छुपा हुआ था और पोर्टहोल में से झांक रहा था।

दरवाजा खटखटाते हुए ऊना ने कहा, 'मैं हूं।'

मैंने दरवाजा खोला।

'जिम एगी अभी-अभी हमें विदाई देने के लिए आए हैं। वे डैक पर खड़े हैं। मैंने चिल्ला कर उन्हें बताया कि आप सम्मन देने वालों से छुपे हुए हैं और पोर्टहोल में से आपकी तरफ देख कर हाथ हिलाएंगे। वे तटबंध के आखिर में खड़े हुए हैं।' ऊना ने बताया।

मैंने जिम को लोगों की भीड़ से थोड़ा अलग हटकर खड़े हुए देखा। वे तेज़ धूप में जहाज का मुआयना कर रहे थे। मैंने जल्दी से अपना फेडोरा हैट लिया और पोर्टहोल में से अपनी बांह निकाल कर हाथ हिलाया। ऊना दूसरे पोर्टहोल में से देख रही थी। 'नहीं, उन्होंने आपको अभी भी नहीं देखा है।' ऊना ने बताया।

और जिम मुझे कभी नहीं देख पाये। ये आखिरी बार था कि मैं जिम को देख रहा था। दुनिया से अलग अकेले खड़े हुए। ताकते हुए और खोजते हुए। दो बरस बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गयी थी।

और आखिर हमने अपनी यात्रा शुरू की। पायलट के जाने से पहले ही मैंने दरवाजा खोला और डेक पर एक आज़ाद आदमी की तरह आ गया। सामने थीं आकाश छूती न्यू यार्क की इमारतें। अकेली और विशाल, धूप में मुझसे दूर जाती हुईं और हर पल और अधिक खूबसूरत होती हुईं। विशाल महाद्वीप धुंध में गायब हो रहा था और मुझे एक अजीब एहसास से भर रहा था।

हालांकि मैं अपने परिवार के साथ इंगलैंड जाने की उम्मीद से ही उत्साहित था, मैं सुखद रूप से राहत भी महसूस कर रहा था। अटलांटिक का विस्तार मन को राहत दे रहा था। मुझे लगा, मानो मैं कोई दूसरा ही व्यक्ति हूं। मैं अब फिल्मी दुनिया का मिथक नहीं रहा था न ही बदनामी का निशाना, बल्कि मैं एक शादीशुदा आदमी था जो अपने बीवी-बच्चों के साथ छुट्टी मनाने निकला है। बच्चे ऊपरी डेक पर खेलने में व्यस्त थे जबकि मैं और ऊना डेक की कुर्सियों पर बैठे हुए थे और इसी मूड में मुझे परम प्रसन्नता का अनुभव हुआ - ये एहसास उदासी के बहुत निकट था।

हम उन दोस्तों के बारे में बहुत स्नेह से बातें करते रहे जिन्हें हम पीछे छोड़ आये थे। यहां तक कि हमने आप्रवास विभाग में मिले मित्रवत व्यवहार की भी बात की। आदमी छोटे-छोटे सौजन्य के आगे कितनी आसानी से झुक जाता है। दुश्मनी पालना कितना मुश्किल होता है।

ऊना और मैंने यह सोचा था कि हम लम्बी छुट्टी लेंगे और अपने आप को प्रसन्नता के हवाले कर देंगे। लाइमलाइट को लांच करने के कार्यक्रम के साथ हमारी छुट्टियां बेमतलब नहीं होने वाली थी। जब आपको पता हो कि आप आनंद को कारोबार के साथ मिला रहे हैं तो बेहद खुशी होती है।

अगले दिन इससे बेहतर लंच नहीं हो सकता था। हमारे मेहमान थे आर्थर रुबिनस्टेन दम्पत्ति और एडोल्फ ग्रीन लेकिन अभी खाना चल ही रहा था कि हेरी क्रोकर को एक तार थमाया गया। क्रोकर तार को अपनी जेब के हवाले करने ही वाला थे कि संदेशवाहक ने कहा: वे वायरलेस पर इसके उत्तर का इंतजार कर रहे हैं। तार पढ़ते समय क्रोकर के चेहरे पर बादल घिर आये, उसने माफी मांगी और मेज से उठ कर चला गया। बाद में क्रोकर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और तार पढ़ा। तार में लिखा था कि मुझे युनाइटेड स्टेट्स में प्रवेश करने की मनाही की जा रही है और देश में फिर से प्रवेश करने से पहले मुझे राजनैतिक प्रकृति और नैतिक मूल्यों के आरोपों के उत्तर देने के लिए आप्रवास विभाग के जांच बोर्ड के सामने जाना होगा। युनाइटेड प्रेस जानना चाहती थी कि मुझे क्या इस बारे में कुछ कहना है।

मेरी शिराएं तन गयीं। अब मेरे लिए ये बात कोई मायने नहीं रखती थी कि मै नाखुशी देने वाले उस देश में फिर से जाता हूं या नहीं। मैंने उन्हें बताया होता कि मैं उनके दमघोंटू माहौल से जितनी जल्दी बाहर आता, उतना ही बेहतर होता और मैं अमेरिका से मिले अपमान और नैतिक आडम्बर से थक चुका था और कि पूरा का पूरा मामला ही बोर करने वाला था। लेकिन मुसीबत यह थी कि मेरा जो कुछ भी था, वह सब कुछ स्टेट्स में ही था और मुझे डर था कि वे उसे जब्त करने का कोई तरीका न निकाल लें। अब मैं किसी भी शरारतपूर्ण कार्रवाई की उम्मीद कर सकता था। इसलिए मैंने आत्म प्रदर्शन से भरा एक बयान जारी किया कि मैं वापिस आऊंगा और उनके आरोपों का जवाब दूंगा और कि मेरा री-एंंट्री परमिट कागज़ का कोई ऐसा वैसा टुकड़ा नहीं बल्कि युनाइटेड स्टेट्स सरकार द्वारा सदाशयता में मुझे दिया गया एक दस्तावेज है, वगैरह वगैरह।

अब जहाज पर आराम मिलने का सवाल ही नहीं था। दुनिया के सभी हिस्सों से प्रेस रेडिओग्राम बयान मांग रहे थे। साउथम्पटन से एक स्टॉप पहले चेरबर्ग में सौ या उससे भी अधिक यूरोपियन पत्रकार साक्षात्कार लेने के लिए जहाज पर चढ़ आये। हमने लंच के बाद बुफे रूम में उन्हें एक घंटा दिये जाने की व्यवस्था की। हालांकि उनका व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण था, पूरी कार्रवाई शुष्क और थका देने वाली थी।

साउथम्पटन से लंदन की यात्रा बेचैन रहस्य से भरी हुई थी। युनाइटेड स्टेट्स से बाहर कर दिये जाने से महत्त्वपूर्ण मेरी चिंता यह थी कि अंग्ऱेजी देश को पहली बार देखना ऊना और बच्चों को कैसा लगेगा। कई बरसों तक मैं इंगलैंड के दक्षिण पश्चिमी हिस्से, डेवनशायर तथा कॉर्नवेल की असीम खूबसूरती के गुणगान करता आया था और अब हम लाल ईंटों वाली इमारतों और पहाड़ी पर बने एक जैसे घरों की कतारों के पास से गुज़र रहे थे। कहा ऊना ने,'ये सब एक जैसी दिखती हैं!'

'हमें एक मौका दो,' कहा मैंने,'हम तो अभी साउथम्पटन के बाहर ही हैं।' और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गये, इलाके और अधिक खूबसूरत होते चले गये।

जब हम लंदन में वॉटरलू स्टेशन पर पहुंचे, हमें प्यार करने वाली भीड़ अभी भी वहां जुटी हुई थी और वे पहले की ही तरह प्रेम भाव से भरे और उत्साह से खड़े थे। जब हम स्टेशन से बाहर निकले तो वे हाथ हिला रहे थे और खुशी से चिल्ला रहे थे। किसी एक ने कहा,'चार्ली वे तुम्हारा प्यार चाहते हैं, उन्हें दो।' सचमुच ये दिल को छू लेने वाला मामला था।

आखिर जब ऊना और मैं एक अकेले हुए, तो हम सेवाय होटल की पांचवीं मंज़िल पर अपने सुइट की खिड़की पर आ खड़े हुए। मैंने नये वाटरलू ब्रिज की तरफ इशारा किया। हालांकि ये सुंदर था फिर भी अब मेरे लिए बहुत मायने नहीं रखता था, बस एक ही बात थी कि इसकी सड़क मेरे बचपन की ओर जाती थी। हम चुपचाप खड़े रहे और इस पूरी दुनिया में शहर के सबसे अधिक छू लेने वाले दृश्य को देखते हुए पीते रहे। मैंने पेरिस में प्लेस दे ला कोन्कोर्ड की रुमानी उत्कृष्टता की तारीफ की है, न्यू यार्क में सूर्यास्त में हज़ारों चमकती खिड़कियों से रहस्यपूर्ण संदेश महसूस किये हैं लेकिन हमारे होटल की खिड़की से लंदन टेम्स का नज़ारा मेरे लिए इन सब दृश्यों से कहीं अधिक रोमानी था - कुछ ऐसा, जो बेहद मानवीय था।

ऊना जब इस दृश्य को निहार रही थी तो मैंने उसकी तरफ देखा। उसका चेहरा उत्साह से तन गया था और वह अपनी सत्ताइस बरस की उम्र से छोटी लग रही थी। हमारी शादी के बाद से वह मेरे साथ कई मुसीबतों से गुज़र कर आयी थी और इस वक्त वह लंदन को निहार रही थी, धूप उसके काले बालों से खेल रही थी। मैंने पहली बार उसके एक-दो सफेद बाल देखे। मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन उस वक्त मैंने अपने आप को उसके प्रति पूरी तरह से समर्पित पाया जब उसने कहा,'मुझे लंदन अच्छा लगा है।'

पिछली बार जब मैं यहां आया था तब से बीस बरस का अरसा गुज़र चुका था। मेरी निगाह में नदी के मोड़ और तटों की रेखाएं भद्दी, आधुनिक इमारतों से घिर गयी थीं और इससे आकाश को छूती दृश्यावली खराब लगने लगी थी। मेरे बचपन का आधा हिस्सा इसके विशाल खाली हिस्सों की झुलसती शामों में गुज़रा था।

जिस वक्त ऊना और मैं लीस्टर स्क्वायर और पिकैडिली में घूम रहे थे ये जगह भड़कीली अमेरिकी चीज़ों, लंच काउंटरों, हॉटडॉग स्टैंडों और मिल्क बारों से अटी पड़ी थी। हमने पाया कि बिना हैट पहने युवा लड़के और जीन्स पहने लड़कियां वहां तफरीह कर रहे थे। मुझे याद आया, जब वेस्ट एण्ड के लिए मैं तैयार हुआ करता था और पीले दस्ताने और छड़ी लेकर वहां चहल कदमी करता था। वे दिन अब हवा हो गए थे और उसकी जगह पर आंखें कुछ और ही देख रही थीं। हमारी भावनाएं दूसरी थीमों पर प्रतिक्रिया देती हैं। आदमी जॉज सुनकर रोते हैं और हिंसा कामुक हो गयी है। समय बीतता रहता है।

हम टैक्सी लेकर तीन पाउनॉल टैरेस देखने के लिए केनिंगटन गये लेकिन घर खाली पड़ा था और इसे गिराया जाने वाला था। हम 287 केनिंगटन रोड के आगे रुके। यहां पर सिडनी और मैं अपने पिता के साथ रहा करते थे। हम बेलग्राविया के आगे से गुज़रे और जहां कभी पुराने शानदार प्रायवेट घर हुआ करते थे, उनके कमरों में अब निओन बत्तियां जल रही थीं और क्लर्क डेस्कों पर काम कर रहे थे: बाकी घर गिरा दिये गये थे और उनके जगह पर ग्लास टैंक जैसी लम्बोतरी इमारतें और ऊपर की ओर उठती माचिस की तरह की सीमेंट की इमारतें नज़र आ रही थीं। ये सब प्रगति के नाम पर हो रहा था।

हमारे सामने कई समस्याएं थीं: पहली थी: स्टेट्स से धन बाहर कैसे निकाला जाये। इसका मतलब, ऊना को विमान से वापिस कैलिफोर्निया जाना होगा और हमारे सेफ डिपाज़िट बॉक्स से सब कुछ निकालना होगा।

उसे गये हुए दस दिन हो गये थे। जब वह वापिस आयी तो उसने मुझे विस्तार से बताया कि क्या हुआ था। बैंक में क्लर्क ने उसके हस्ताक्षरों का अध्ययन किया, उसकी तरफ देखा, वहां से गया और बैंक मैनेजर के साथ गुपचुप बात करता रहा। ऊना तब तक बेचैनी महसूस करती रही जब तक उन्होंने हमारा डिपाज़िट बॉक्स खोल नहीं दिया।

उसने बताया कि बैंक में अपना काम पूरा कर लेने के बाद वह बेवरली हिल्स पर अपने घर गयी। सब कुछ वैसा ही था जैसा हम छोड़ कर आये थे और फूल और मैदान प्यारे लग रहे थे। वह बैठक में एक पल के लिए अकेली खड़ी रही और बहुत भावुक हो गयी। इसके बाद वह स्विस बटलर हैनरी से मिली। हैनरी ने उसे बताया कि हमारे जाने के बाद एफबीआइ के आदमी दो बार आये थे और उससे पूछताछ करते रहे। वे जानना चाहते थे कि मैं किस किस्म का आदमी हूं और कि क्या उसे पता है कि घर पर नंगी लड़कियों की पार्टियां हुआ करती थीं। जब बटलर ने उन्हें बताया कि मैं अपनी पत्नी और परिवार के साथ शांत जीवन बिताया करता था तो वे उसकी खिंचाई करने लगे और उससे उसकी राष्ट्रीयता पूछने लगे और जानना चाहा कि वह कब से इस देश में था। उन्होंने उससे उसका पासपोर्ट भी देखने के लिए मांगा।

ऊना ने बताया कि जब उसने ये सब कुछ सुना तो घर के प्रति उसका जो भी मोह था, वहीं और उसी वक्त चूर-चूर हो गया। यहां तक कि हमारी नौकरानी हैलन ऊना के बाहर निकलते समय रो रही थी, उसके आंसू भी ऊना को वहां से तुरंत निकलने से रोक नहीं पाये।

मित्र मुझसे पूछते हैं कि मैं इस अमेरिकी विरोध का शिकार कैसे बना। मेरा मासूम पाप यही था और है भी कि मैं समझौतापरस्त नहीं हूं। हालांकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं फिर भी मैं उनके विरोध में खड़ा होने से इन्कार करता रहा। इससे कई लोगों को वाकई तकलीफ हुई और तकलीफ पाने वालों में अमेरिकी लीज़न के लोग भी थे। मैं उस संगठन के वास्तविक सकारात्मक कामों में उसके खिलाफ़ नहीं हूं। उन्होंने अच्छे काम भी किये हैं। भूतपूर्वक सैनिकों और वरिष्ठ नागरिकों के ज़रूरतमंद बच्चों के लाभ के लिए अधिकार का विधेयक लाना और जो उपाय किये गये हैं, वे बहुत शानदार और मानवीय हैं। लेकिन लीज़न के लोग जब अपने वैध अधिकारों से परे चले जाते हैं और देशभक्ति के नाम पर अपनी शक्ति को दूसरों पर लादते हैं तो वे अमेरिकी सरकार के मूलभूत ढांचे के खिलाफ अपराध करते हैं। इस तरह के महादेशभक्त अमेरिका को फासीवादी देश में बदल सकते हैं।

दूसरी बात, मैं गैर-अमेरिकी गतिविधियों की समिति के खिलाफ़ था। अगर मैं बेईमानी भरे जुमले का इस्तेमाल करूं तो यह किसी भी ऐसे अकेले अमेरिकी की आवाज़ को दबाने के लिए काफी लचीला है जो अपनी ईमानदार राय में अकेला पड़ जाता है।

तीसरी बात, मैंने कभी भी अमेरिकी नागरिक बनने का प्रयास नहीं किया। हालांकि सैकड़ों अमेरिकी बाशिंदे इंगलैंड में अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं। वे कभी भी ब्रिटिश नागरिक बनने का प्रयास नहीं करते; उदाहरण के लिए, एमजीएम स्टूडियो का एक अमेरिकी अधिकारी इंगलैंड में पिछले पैंतीस बरस से रह रहा है और हर हफ्ते चार अंकों में वेतन लेता है। वह कभी ब्रिटिश नागरिक नहीं बना और अंग्रेज़ों ने कभी इस बात की परवाह ही नहीं की।

ये स्पष्टीकरण क्षमायाचना नहीं है। जब मैंने यह किताब शुरू की तो मैंने अपने आपसे इसे लिखने का कारण पूछा। किताब लिखने के कई कारण हैं लेकिन उनमें से क्षमायाचना नहीं है। अपनी स्थिति को संक्षेप में सामने रखते हुए मैं कहूंगा कि शक्तिशाली समूहों तथा अदृश्य सरकारों के परिवेश में मैं राष्ट्र के विरोध का शिकार हुआ और दुर्भाग्य से, अमेरिकी जनता का प्यार खो बैठा।

लाइमलाइट लीस्टर स्क्वेअर में ओडियन थिएटर में सबसे पहले दिखाई जानी थी। मैं इस बात को लेकर बेचैन था कि उसका स्वागत कैसा होगा। कारण ये था कि ये सामान्य चैप्लिन कॉमेडी नहीं थी। प्रीमियर से पहले हमने एक प्रीमियर प्रेस के लिए रखा। समय इतना बीत चुका था कि मैं इसे वस्तुपरक तरीके से नहीं देख पाया था और मैं ये ज़रूर कहूंगा कि मैं फिल्म देख कर विचलित हुआ। ये आत्म प्रशंसा नहीं है क्योंकि मैं अपनी फिल्मों के कई दृश्यों का मज़ा ले सकता हूं और दूसरे दृश्यों को नापसंद कर सकता हूं। अलबत्ता, मैं कभी भी नहीं रोया जैसा कि किसी शरारती पत्रकार ने बताया कि मैं रोया था। और अगर मैं रोया भी होऊं तो क्या हुआ! अगर लेखक अपने सृजन के बारे में संवेदना महसूस नहीं करता तो वह जनता से ऐसा करने की उम्मीद ही कैसे कर सकता है। ईमानदारी से कहूं तो मुझे अपनी फिल्मों में जनता से भी ज्यादा मज़ा आता है।

लाइमलाइट के लिये प्रीमियर सहायतार्थ था और उसमें राजकुमारी मार्गरेट पधारी थीं। अगले दिन जनता के लिए फिल्म प्रदर्शित की गयी। हालांकि समीक्षाएं यूं ही सी थीं, इसने विश्व कीर्तिमान भंग कर दिये और इसे अमेरिका में प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद इसने मेरी अब तक की फिल्मों की तुलना में सबसे अधिक कमाई करके दी।

लंदन से पेरिस के लिए चलने से पहले ऊना और मैं हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक डिनर पर लॉर्ड स्ट्राबोल्गी के मेहमान थे। मैं हरबर्ट मौरिसन के पास बैठा था और यह सुन कर मैं हैरान हुआ कि वे समाजवादी के रूप में परमाणु प्रतिरक्षा की नीति का समर्थन करते थे। मैंने उन्हें बताया कि हम भले ही परमाणु बमों के अम्बार लगा दें, इंगलैंड हमेशा सबके निशाने पर बना रहेगा क्योंकि ये एक छोटा सा द्वीप है और इसे राख के ढेर में बदल दिये जाने के बाद किसी भी किस्म का बदला कोई राहत नहीं दिला पायेगा। मैं इस बात को मानता हूं कि इंगलैंड की रक्षा के लिए सबसे मजबूत रणनीति निष्पक्ष रहने की है क्योंकि परमाणु युग में मुझे इस बात का शक है कि निष्पक्ष रहने का उल्लंघन किया जायेगा। लेकिन मेरे विचार मौरिसन के विचारों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे।

मैं इस बात को सोच कर हैरान हूं कि किस तरह से कई बौद्धिक लोग परमाणु हथियारों के पक्ष में बात करते हैं। एक और घर में मैं लॉर्ड सेलिसबरी से मिला और उनकी भी वही राय थी जो मौरिसन की थी और परमाणु प्रतिरक्षा के प्रति अपनी नफ़रत को व्यक्त करते समय मैंने महसूस किया कि मैं उनकी लॉर्डशिप के साथ मेल नहीं बिठा पा रहा हूं।

इस मौके पर मुझे ये उचित जान पड़ता है कि मैं दुनिया के उन हालात को संक्षेप में सामने रखूं जिस तरह से मैं आज इसे देखता हूं। आधुनिक जीवन की जुड़ती जटिलताओं और बीसवीं सदी के गतिशील हमले से मैं पाता हूं कि व्यक्ति पर चारों तरफ से बड़ी-बड़ी संस्थाओं के हमले हो रहे हैं। ये हमले राजनैतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से हो रहे हैं। हम आत्म अनुकूलन के और बंदिशों और परमिटों के शिकार हो रहे हैं।

यह तंत्र, जिसमें हमने अपने आपको ढल जाने दिया है, इसलिए हो रहा है कि हममें सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि की कमी है। हम भद्देपन और भीड़ की तरफ अंधाधुंध चले जा रहे हैं और हम अब इस लायक नहीं रहे कि सौंदर्य की सराहना ही कर सकें। हमारे जीवन की संवेदनाओं को लाभ, शक्ति और एकाधिकार ने भोंथरा बना दिया है। हमने इन शक्तियों को अपने चारों तरफ लिपट जाने दिया है और इस बात की रत्ती भर परवाह नहीं की है कि इन सबका अंजाम क्या होगा।

सुविचारित दिशा के बिना अथवा उत्तरदायित्व के बोध के बिना विज्ञान ने राजनीतिज्ञों को अपार शक्ति दे दी है और इतने खतरनाक सैन्य हथियार उन्हें थमा दिये हैं कि इस धरती पर जो कुछ भी जीवंत है उसके भाग्य का निर्धारण ये ही लोग करेंगे। ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सारी शक्तियां दे देना जिनके नैतिक उत्तरदायित्व और बौद्धिक क्षमता संदेह से परे नहीं हैं, और इसके बारे में जितना कहा जाये, कम हैं और कई मामलों में उनके ऊपर उंगली उठायी जा सकती है कि वे धरती पर सारे जीवन को नष्ट करने वाला युद्ध छेड़ सकते हैं। फिर भी हम आंखें मूंदे चले जा रहे हैं।

जैसा कि डॉक्टर जे रॉबर्ट ओपेनहैमर ने मुझे एक बार बताया था,'आदमी जानने की इच्छा से संचालित होता है।' बहुत अच्छी बात है। लेकिन कई मामलों में हम परिणामों की परवाह ही नहीं करते। इससे डॉक्टर ओपेनहैमर सहमत थे। कई वैज्ञानिक धार्मिक रूप से हठधर्मी होते हैं। वे इस विश्वास के साथ आगे बढ़ते जाते हैं कि वे जो कुछ भी खोजेंगे, अच्छा ही होगा और जानने की उनकी आकांक्षा हमेशा नैतिक होती है।

मनुष्य जीवित रहने की मूल भावनाओं वाला पशु है। परिणाम यह हुआ है कि उसकी सृजनात्मकता पहले विकसित हुई है और आत्मा का विकास बाद में हुआ है। इस तरह से विज्ञान की प्रगति मनुष्य के तार्किक व्यवहार से बहुत आगे है।

हितवाद मानव प्रगति के पथ पर धीमी गति से चला है। यह विज्ञान के साथ-साथ आगे बढ़ता है और ठोकरें खाता है और केवल परिस्थितियों की ताकत से ही इसे चलने की अनुमति है। गरीबी को हितवाद द्वारा या सरकारों की मानवतावाद की वजह से नहीं घटाया गया था बल्कि इसे कम करने के पीछे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की ताकतें काम कर रहीं थी।