Journey to the center of the earth - 40 in Hindi Adventure Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 40

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 40

चैप्टर 40

विशालकाय वानर।

अभी मेरे लिए मुश्किल था यह निर्धारित करना कि वास्तविक समय क्या हुआ था, लेकिन गणना के बाद, मैंने मान लिया कि रात के दस बज रहे होंगे।
मैं एक अचेत अवस्था में था, एक अधूरे स्वप्न में, जिसके दौरान मुझे कुछ आश्चर्यजनक दर्शन हुए। खूँखार प्राणी उस हाथी के आकार वाले शक्तिशाली चरवाहे के साथ अगल - बगल खड़े थे। विशालकाय मछलियाँ और जानवर अजीब तरह के कयास लगा रहे थे।
बेड़ा अचानक से एक तरफ मुड़ा, गोल घूमते हुए, एक और सुरंग में प्रवेश किया - जहाँ इस बार सबसे विलक्षण तरीके की रोशनी थी। छत झरझरे अवरोही निक्षेप से बना था, जिसके माध्यम से एक दूधिया वाष्प निकल रहे थे और हमारे मरियल और क्लांत शरीर पर अपनी शानदार रोशनी डाल रहे थे। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए, रोशनी बढ़ती गई; जबकि छत झुकती जा रही थी और अंत में हम एक बार फिर एक ऐसे पानी की गुफा में थे, जिसका ऊंचा गुंबद चमकदार बादल में गायब हो गया!
गुफा के एक ऊबड़ खाबड़ हिस्से ने हमारे थके हुए शरीर को एक पड़ाव का मौका दिया।
मेरे मौसाजी और मार्गदर्शक अपने किसी सपने में चले गए थे। इस तरह के अचानक शुरू होने वाले खतरे से, उन्हें जगाने से मैं डर रहा था। मैं देखने के लिए उनके पास ही बैठा रहा।
मेरे ऐसा करने से, मुझे दूर से कुछ बढ़ते हुए दिखा जिससे मैं एक बार के लिए मोहित हो गया था। यह पानी की सतह पर, जाहिर तौर पर तैर रहा था, जो पहली नज़र में किसी चप्पू के माध्यम से आगे बढ़ रहा था। मैंने आँखें गड़ाकर देखा। एक नज़र में मैं समझ गया था कि यह कुछ राक्षसी था।
पर था क्या?
यह भूविज्ञान के शुरुआती लेखकों का महान "शार्क-मगरमच्छ" था। एक साधारण व्हेल के आकार के बारे में, छिपे हुए जबड़े और दो विशाल आँखों के साथ, यह आगे बढ़ रहा था। इसकी आँखें मुझे भयानक तरीके से घूर रहीं थी। कुछ अनिश्चित चेतावनी ने मुझे इशारा किया कि इसने मुझे चुन लिया था।
मैंने उठकर - भागने का प्रयास किया, चाहे कहीं भी, लेकिन मेरे घुटने जम गए थे; मेरे अंग डर से काँप रहे थे: मैंने अपनी इंद्रियों को लगभग खो दिया था। और फिर भी शक्तिशाली राक्षस आगे बढ़े जा रहा था। मेरे मौसाजी और मार्गदर्शके ने खुद को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
एक अजीब शोर के साथ, जैसा मैंने कभी नहीं सुना था, वो जानवर सामने आया। उसके जबड़े कम से कम सात फीट के थे और उसका विकृत मुँह काफी विशाल था जो पुरुषों की एक नाव को निगल सकता था।
हम लगभग दस फीट दूर थे जब मैंने देखा कि उसका शरीर मगरमच्छ से मिलता-जुलता है, उसका मुँह पूरी तरह से एक शार्क जैसा ही था।
अब उसके दोमुँहे स्वभाव का पता चल गया था। हमें अपना ग्रास बनाने के लिए उसे अपनी पीठ को मोड़ना आवश्यक था जिसके फलस्वरूप वह अपने पैरों की आवश्यक गति से हमें असहाय रूप से लात मारकर हवा में उड़ा दे।
मौत के मुँह में इतने करीब होकर भी मुझे हँसी आ गयी।
लेकिन अगले मिनट में, अपने नाखुश साथियों को उनके भाग्य के सहारे छोड़कर, एक भयानक चीत्कार के साथ, मैं गुफा के अंदरूनी हिस्से में दूर चला गया! यह गुफा गहरी और नीरस थी। लगभग सौ गज की दूरी के बाद, मैंने रुक कर इधर-उधर देखा।
पूरा फर्श, रेत और मैलाकाइट से बना हुआ था और स्तनपायी के मिश्रण के साथ, सरीसृप और मछली की ताजा चबायी हुई हड्डियों से भरा हुआ था। डर से मेरा शरीर तप रहा था और मेरी आत्मा काँप रही थी। मैं सही मायने में, पुरानी कहावत के अनुसार, मैं तवे से उठकर भट्टी में गिरा था। शार्क - मगरमच्छ की तुलना में कुछ बड़े और अधिक क्रूर जानवर होते हैं, जो इसी मांद में रहे होंगे।
मैं क्या कर सकता था? गुफा का मुँह एक क्रूर राक्षस द्वारा संरक्षित था, जिसके अंदर क्या होगा इसका चिंतन भी भयावह था। उड़ना असंभव था!
केवल एक ही उपाय था, ऐसे किसी छोटी जगह का पता लगाना, जहाँ गुफा के भयावह राक्षस प्रवेश नहीं कर सके। मैंने चारों ओर बेतहाशा घबराहट से, और आख़िरकार चट्टान में एक दरार खोजा, और अपनी बिखरी हुई इंद्रियों को ठीक करने की आशा में दौड़ पड़ा।
नीचे झुककर मैं मरियल सा होकर इंतज़ार करने लगा। कोई भी व्यक्ति भूकंप, या ज्वालामुखी, या विस्फोटक टारपीडो के सामने बहादुर नहीं हो सकता। उस भयानक रूपी किस्मत की उपस्थिति में मैं साहस दिखाने की उम्मीद नहीं कर सकता था, जो मेरा इंतज़ार कर रहा था।
एक घंटा बीता। गुफा के बाहर से मैं हलचल को सुन सकता था।
मेरे दुखी साथियों का भाग्य क्या था? पूछताछ के लिए विराम देना मेरे लिए असंभव था। मैं सिर्फ अपने विकट स्थिति के बारे में सोच सकता था।
अचानक दहाड़ते स्वर, जैसे पचास भालू आपस में लड़ रहे हों, मेरे कानों में पड़े - फुफकार, थूक, विलाप, सुनने में भयावह - और फिर मैंने देखा -
मेरे ऊपर से सदियाँ गुज़र जाए लेकिन वो भयानक मंज़र मैं नहीं भूल पाऊँगा।
वो विशाल वानर था!
यह आगे बढ़ रहा था जो चौदह फीट ऊँचा, मोटे बालों से ढँका हुआ, बाँहों पर काले भूरे रंग के बाल, कंधे से कोहनी के जोड़ों तक नीचे की ओर झुके हुए, जबकि कलाई से कोहनी तक ऊपर की ओर थे। इसके हाथ इसके शरीर जितने लंबे थे, जबकि इसके पैर असाधारण थे। इसमें मोटे, लंबे और नुकीले दांत ऐसे दिखते थे जैसे कि एक विशाल आरा हो।
आगे बढ़ते हुए उसे महक मिली और सूँघने के साथ ही उसने अपनी छाती को पीटा, मुझे अपने बचपन में पढ़ी हुई उन कहानियों की याद आ गयी जिसमें यह मानवों और छोटे बच्चों के मांस खाते थे!
अचानक वो रुक गया। मेरा दिल बेतहाशा धड़का, क्योंकि मैं जानता था कि, किसी न किसी तरह, भयानक राक्षस ने मुझे सूंघ लिया था और अपने खतरनाक आँखों से मुझे खोजने के लिए यहाँ-वहाँ ढूंढ रहा है।
मेरी पढ़ायी ने, जो नियम के अनुसार एक आशिर्वाद है, लेकिन अभी इस क्षण में किसी अभिशाप को साबित करने जैसा लग रहा था, मुझे असली सच्चाई बताई। यह विशाल वानर प्राचीन काल संबंधित गोरिल्ला था।
हाँ! यह भयानक राक्षस, जो खुशकिस्मती से पृथ्वी के आंतरिक भाग में छुपा था, अफ्रीका के भयानक राक्षस का पूर्वज था।
वह खूँखार तरीके से देख रहा था, जैसे कुछ खोज रहा हो - निस्संदेह मुझे। मैंने खुद से उम्मीद छोड़ दी। बचने या भागने की कोई उम्मीद नहीं बची थी।
जैसे ही मेरी आँखें मृत्यु के करीब पहुँची, उसी समय गुफा के प्रवेश द्वार से एक अजीब सी आवाज आयी; और मुड़ते ही गोरिल्ला ने स्पष्ट रूप से अपने उस दुश्मन को पहचान लिया जिसमें उससे भी ज़्यादा विलक्षण आकार और ताकत था। यह विशाल शार्क-मगरमच्छ था, जो शायद मेरे साथियों को निपटाने के बाद यहाँ आगे के शिकार की तलाश में आया था।
गोरिल्ला ने रक्षात्मक तरीके से खुद को तैयार कर, एक हड्डी के कुछ सात या आठ फीट की लंबाई वाले टुकड़े को उठाते हुए, कुशलता के साथ, उस भयानक जीव पर निशाना साध के भरपूर वार किया, जो ऊपर की ओर उछला और उस जीव की पीठ पर ज़ोर से गिरा।
एक भयानक मुकाबले का, जिसका विवरण देना असंभव है, होना अब तय हुआ। संघर्ष भयानक और डरावना था, हालाँकि मैंने परिणाम का इंतजार नहीं किया। मैंने इस झगड़े में किसी विजेता की वस्तु के रूप में उपस्थित होने से बचने का दृढ़ निश्चय किया। मैं अपने छिपने की जगह से नीचे खिसका, जमीन पर पहुँचा और दीवार के सहारे रेंगते हुए, खोह के खुले मुँह की तरफ बढ़ने लगा।
लेकिन अभी मैंने ज़्यादा कदम भी नहीं उठाए थे कि भीषण कोलाहल बंद हो गया था, जिसका बाद अब बड़बड़ाहट और कराहने की आवाज़ थी जो जीत का संकेत था।
मैंने पीछे मुड़कर देखा, विशाल वानर, खून से लथपथ, चमकती आँखों और फैले नथुनों, जैसे गर्म वाष्प के लिए दो स्तंभ हों, के साथ मेरे पीछे आ रहा था। मैं अपनी गर्दन पर उसकी गर्म साँसों को महसूस कर सकता था; और एक झटके के साथ - अपने बुरे सपने की नींद से उठ गया।
हाँ - यह सब एक सपना था। मैं अभी भी अपने मौसाजी और मार्गदर्शक के साथ बेड़ा पर था।
राहत तात्कालिक नहीं थी क्योंकि उस दुःस्वप्न के प्रभाव से मेरी इंद्रियाँ सुन्न हो गई थीं। हालाँकि, कुछ समय बाद मेरी भावनाएँ शांत हो गईं। मेरी ताकत जो पूरे तरीके से लौटी थी, वह सबसे पहले सुनने की थी। मैंने तीव्र और चौकस कानों से सुना। मृत्यु के समान सब शांत थे। मैं समझ गया सब मौन थे। जिस पानी की गर्जना से पूरा गलियारा गुंजायमान था, वहाँ अब सफल रूप में पूर्ण शांति थी।
कुछ समय बाद मेरे मौसाजी ने सुनने लायक धीमे और कर्कश स्वर में कहा: "हैरी, बच्चे, तुम कहाँ हो?"
"मैं यहाँ हूँ," मैंने भी धीमे स्वर में जवाब दिया।
"ठीक है, तुमने देखा नहीं कि क्या हुआ है? हम ऊपर की तरफ जा रहे हैं।"
"मेरे प्यारे अंकल, आपके कहने का मतलब क्या है?" मेरा चैतन्यरहित जवाब था।
"हाँ, मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि हम तेजी से चढ़ रहे हैं। हमारी नीचे की यात्रा काफी रुक गयी है।"
मैंने अपना हाथ बाहर रखा और थोड़ी सी कठिनाई के बाद, दीवार को छूने में सफल रहा। एक पल के लिए मेरा हाथ खून से लथपथ था और त्वचा फटी हुई थी। हम असाधारण वेग से चढ़ रहे थे।
"मशाल - मशाल!" प्रोफेसर ने बेतहाशा चिल्लाते हुए कहा; "इसे जलाना चाहिए।"
हैन्स, हमारा मार्गदर्शक, कई व्यर्थ प्रयासों के बाद, आखिरकार इसे जलाने में सफल रहा और लौ ने, जिसे अब जलने से कोई नहीं रोक सकता, दिखने लायक स्पष्ट प्रकाश डाला। हम सत्य के एक अनुमानित विचार बनाने में सक्षम थे।
"जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ।" एक या दो मिनट का ध्यान करने के बाद मेरे मौसाजी ने कहा। "हम चार फैदम वर्ग के एक संकरे कुएँ में हैं। अंतःसमुद्र का विशाल पानी, खाड़ी के तल तक पहुँच गया है, जो अब खुद को शक्तिशाली बाण की तरह ऊपर की तरफ धकेल रहा है। और इस प्राकृतिक परिणाम के रूप में, हमें पानी के शिखर पर सफर कर रहे हैं।"
"वह मैं देख सकता हूँ।" मेरा विषादपूर्ण जवाब था, "लेकिन यह सफर समाप्त कहाँ होगा, और इसके गिरने पर हमारा क्या होगा?"
"इसके बारे में मैं भी तुम्हारे जितना ही अज्ञानी हूँ। मुझे इतना पता है कि हमें सबसे बुरे के लिए तैयार रहना चाहिए। हम एक असाधारण तेजी से बढ़ रहे हैं। जहाँ तक मैं समझ सकता हूँ, हम दो फैदम की दर से बढ़ रहे हैं, एक मिनट में एक सौ बीस फैदम, या एक घंटे में साढ़े तीन लीग से अधिक। इस दर से, हमारा भाग्य का मामला जल्द ही निश्चित होगा।"
"इसमें कोई शक नहीं," मेरा जवाब था। "हालाँकि मुझे एक बात की चिंता है, मुझे यह जानना है कि क्या इस सफर में कोई समस्या है। यह एक ग्रेनाइट छत में समाप्त हो सकती है - जहाँ की संपीड़ित हवा से दम घुट जाएगा, या छत से टकराकर परमाणुओं की तरह धराशायी हो सकते हैं। मुझे पहले से ही लग रहा है की हवा बंद और घनीभूत होने लगी है। मुझे सांस लेने में कठिनाई हो रही है।"
यह वहम भी हो सकता है, या हमारे तीव्र गति के प्रभाव से भी हो सकता है, लेकिन मुझे निश्चित रूप से छाती में एक किस्म का दर्द हुआ था।
"हेनरी," प्रोफेसर ने कहा, "मुझे विश्वास है कि स्थिति में कुछ हद तक बेचैनी है। हालाँकि मेरे पास सुरक्षा की सारी संभावनाएँ हैं, और मेरे दिमाग में उस समय से घूम रहे हैं जब तुम अपने गहरे नींद में अशांत थे। मैं इस तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ - जब हम किसी भी क्षण नष्ट हो सकते हैं, तो किसी भी क्षण बच भी सकते हैं! इसलिए, दुर्घटनाओं के महान अध्याय में जो भी संभव हो, हमें उसके लिए खुद को तैयार करना चाहिए।"
"लेकिन अब हम क्या करेंगे?" मैंने कहा, "क्या हम बिलकुल असहाय नहीं हो गए हैं?"
"नहीं! जब तक जीवन है, आशा है। सभी घटनाओं में, एक चीज है जिसे हम कर सकते हैं - खा सकते हैं, और इस प्रकार जीत या मौत का सामना करने की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।"
जैसे ही उन्होंने यह कहा, मैंने अपने मौसाजी की ओर हिकारत भरी निगाह से देखा। जब तक संभव हुआ मैंने इस घटिया बात को छुपाए रखा था। अब मैं मजबूर था, और मुझे उन्हें सच बताना चाहिए।
फिर भी मैं हिचकिचाया।
"खाएँ," मैंने एक उदास स्वर में कहा जैसे कोई जल्दी नहीं।
"हाँ, और एक ही बार में। मैं भूखे कैदी जैसा महसूस कर रहा हूँ," उन्होंने अपने पीले पड़े कांपते हाथों को एक साथ रगड़ते हुए कहा।
और मार्गदर्शक की तरफ मुड़कर, उन्होंने डैनिश भाषा में कुछ जोशीले सकारात्मक शब्द बोले, जैसा कि मैंने उनके अंदाज़ से समझा था। हैन्स ने बहुत ही महत्वपूर्ण तरीके से अपना सिर हिलाया। मैंने बेपरवाह दिखने की कोशिश की।
"क्या!" प्रोफ़ेसर चीखे, "तुम्हारे कहने का मतलब यह तो नहीं है कि हमारे सभी रसद खो गए हैं?"
"हाँ।" धीमे स्वर में मेरा जवाब था, और जैसा कि मैंने अपने हाथ में कुछ रखा हुआ था, उसी को दिखाते हुए कहा, "यह मांस का अब निवाला ही है जो हम तीनों के लिए बचा है।"
मेरे मौसाजी ने मुझ पर इस तरह से घूरा जैसे कि वह मेरे किसी भी शब्द के अर्थ की सराहना नहीं कर सकते। इस झटके ने उन्हें गंभीर रूप से आघात किया था। मैंने कुछ क्षणों के लिए उन्हें सोचने का मौका दे दिया।
"अच्छा," एक विराम के बाद मैंने कहा, "अब आप क्या सोचते हैं? क्या हमारे पास इन भयानक भूमिगत खतरों से बचने का कोई मौका है? क्या इस पृथ्वी के गार में हमारा नाश होना निश्चित नहीं है?"
लेकिन मेरे प्रासंगिक सवालों का कोई जवाब नहीं आया। या तो मेरे मौसाजी ने मुझे नहीं सुना, या जवाब देना नहीं चाहते थे।
और इस तरह से एक पूरा घंटा समाप्त हुआ। हममें से किसी ने भी बोलने की परवाह की। मुझे तो तेज और भयानक भूख लगने लगी थी। मेरे साथी, निस्संदेह, उसी भयानक यातना को महसूस कर रहे थे, लेकिन दोनों में से कोई भी उस बचे हुए मांस के टुकड़े को छुएगा नहीं। यह वहीं पड़ा रहेगा, जैसे हमारे पागल और संवेदनहीन यात्रा के लिए हमारी सभी महान तैयारियों का अंतिम अवशेष हो!
अपने बनावटीपन में मैं पुरानी बातों को याद कर सोच रहा था। मैं भी जानता था कि, उनके जोश के बावजूद और सैकन्युज़ेम्म के उस नफरत के काबिल लपेटवाँ कागज के चक्कर में मौसाजी को अपनी खतरनाक यात्रा पर कभी नहीं जाना चाहिए था। खुशहाल अतीत की यादों से, भयानक भविष्य के पूर्वज्ञान से, मेरा दिमाग अब भर गया है!