Rahashymayi tapu - 19 in Hindi Adventure Stories by Saroj Verma books and stories PDF | रहस्यमयी टापू--भाग (१९)

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रहस्यमयी टापू--भाग (१९)

रहस्यमयी टापू--भाग(१९)

शाकंभरी की बात सुनकर सब विश्राम करने लगें और अर्धरात्रि के समय सब जाग उठे,जिससे जो बन पड़ा वैसे अस्त्र शस्त्र लेकर शंखनाद से प्रतिशोध लेने निकल पड़े,वनदेवी शाकंभरी उड़ने वाले घोड़े पर सवार हो गई अब उसने अपने लबादे को हटा दिया था,लबादा हटाते ही उसके शरीर से आते हुए प्रकाश ने सारे वन को जगमगा दिया।।
तभी अघोरनाथ जी बोले,पहले हम ये तो तय करें कि कौन कौन कहाँ कहाँ प्रवेश करेगा, इसके लिए हमे एक रणनीति बनानी होगी,मैं सोच रहा हूँ कि सर्वप्रथम हमें चित्रलेखा के निवास स्थान जाकर चित्र लेखा को समाप्त करना चाहिए, इसके लिए वहाँ राजकुमार सुवर्ण, वो इसलिए कि उन्हें जादू आता है, उनके साथ राजकुमार विक्रम क्योंकि वे बहादुर हैं और राजकुमारी सारन्धा जाएंगी।।
परन्तु ये सब वहाँ पहुंचेगे कैसे, बकबक ने पूछा।।
तभी शाकंभरी वनदेवी बोली, ये सब जाएंगें इस उड़ने वाले घोड़े से।।
हां! यही उचित रहेगा,बाबा अघोरनाथ जी बोले।।
तभी नीलकमल बोली,बाबा! मुझे भी जाने दीजिए।।
नहीं, पुत्री! नीलकमल, चित्रलेखा तुमसे भलीभाँति परिचित है और सुवर्ण का जाना इसलिए आवश्यक हैं कि उसे जादू आता हैं,अघोरनाथ जी बोले।।
और मै बाबा, मानिक चंद बोला।।
सब का अपना अपना कार्य होगा,तनिक सब धैर्य रखें, बाबा अघोरनाथ बोले।।
सुवर्ण, विक्रम और सारन्धा, अर्धरात्रि को ही उसी समय चित्रलेखा के निवास स्थान की ओर चल पड़े।।
घोड़ा तेज रफ्तार मे बादलों में उड़ता चला जा रहा था,सुवर्ण सबसे आगे,विक्रम और सारन्धा प्रतिशोध की ज्वाला आंखों मे भरे आगे बढ़ रहेंं थे,कुछ समय पश्चात् वो सब चित्रलेखा के निवास स्थान पहुँच गए, वो चित्रलेखा के निवास स्थान से उचित दूरी पर उड़ने वाले घोड़े के साथ उतरे।।



छिपते छिपाते वे सब वृक्षों की ओट और झाड़ियों से होते हुए,चुपके चुपके उसके निवास पर पहुंच गए, सुवर्ण ने अपने जादू से द्वार खोले,वे सब भीतर घुसे,अंदर बहुत ही अंधेरा था और चित्रलेखा कहीं भी नजर नहीं आ रही थीं, सबने चित्रलेखा को ढ़ूढ़ना शुरु किया।।

उन्होंने हर स्थान पर खोजने का प्रयास किया,किन्तु चित्रलेखा कहीं पर नहीं मिली,तभी उन्हें एक गुप्त द्वार दिखा,उन्होंने देखा कि वहाँ से नीचे जाने के लिए सीढियां हैं ,वे सब सावधानी के साथ नीचे उतरने लगे,उन्होंने जाकर देखा कि चित्रलेखा कुछ जादू करके तरल पदार्थ बना रही हैं और उसने उस बड़े से गिरगिट को अपने कंधे पर बैठा रखा था जिसमें उसके प्राण सुरक्षित थे,वो अपने कार्य मे इतनी बेसुध थी कि उसे उन सब के आने का क्षण भर भी संदेह ना हुआ और इसी समय का उन सबने लाभ उठाया।।



सबसे पहले सारन्धा ने चित्र लेखा पर जोर का वार किया, जिससें चित्रलेखा भूमि पर जा गिरी,विक्रम ने शीघ्रता से चित्रलेखा की जादुई किताब को अग्नि के सुपुर्द कर दिया, जिसे देखकर चित्रलेखा क्रोध से जल उठी,उसने नहीं.... के स्वर के साथ अपना एक जादुई वार किया, तब तक सारन्धा विक्रम और चित्रलेखा के मध्य आ चुकी थी,चित्रलेखा के इस वार से सारन्धा घायल हो कर धरती पर गिर पड़ी,तब तक सुवर्ण ने चित्रलेखा के जादुई पदार्थ से भरे हुए मटके को धरती पर उड़ेलकर मटके को फोड़ दिया, ये सब देखकर चित्रलेखा का क्रोध साँतवें आसमान पर पहुंच गया,अब वो ये सब सहन नहीं कर सकती थी,उसनें अपने जादुई शक्तियों का सहारा लेकर सुवर्ण पर वार किया, परन्तु सुवर्ण ने अपने जादू को इस कार्य में लाना प्रारम्भ कर दिया और विक्रम ने अपनी तलवार सम्भाल ली,चित्रलेखा ने अपने गिरगिट को (वातायन) खिड़की से बाहर भेजने का प्रयास किया परन्तु विक्रम ने अपनी तलवार से गिरगिट के दो टुकड़े कर डाले और तब तक टुकड़े करता रहा,जब तक की गिरगिट सूक्ष्म टुकड़ों मे ना विभाजित हो गया।।
अब चित्रलेखा क्रोध से अपना संतुलन खो बैठी,उसने फिर जादुई शक्ति का वार किया, किन्तु इस बार सुवर्ण ने अपनी सारी शक्ति लगाकर ऐसा वार किया कि चित्रलेखा भस्म हो गई,सुवर्ण ने शीघ्रता से वहीं उपस्थिति अग्नि मे जिसमे चित्रलेखा अपना जादुई पदार्थ बना रही थीं,उसी अग्नि मे गिरगिट के रक्त से लथपथ टुकड़ों को डाल दिया, अब चित्रलेखा की जीवनलीला समाप्त हो चुकी थीं, परन्तु इन सब मे सारन्धा मूर्छित हो चुकी थीं।।
विक्रम ने सारन्धा को उठाने की कोशिश की परन्तु वह नहीं उठी,तब विक्रम ने अपनी तलवार सम्भाली और सुवर्ण से कहा___
मित्र! लगता हैं राजकुमारी सारन्धा की अवस्था अच्छी नहीं हैं, लगता हैं इन्हें गम्भीर क्षति पहुंची हैं, इन्हें तो बाबा ही स्वस्थ कर पाएंगे और चित्रलेखा तो इस संसार से जा चुकी हैं, अब ये शुभ सूचना हमें उन सबको भी देनी चाहिए,कदाचित् यहाँ अब अत्यधिक ठहरना हमारे प्राणों के लिए उचित ना होगा।।
हां ,मित्र! यही उचित रहेगा, आप राजकुमारी सारन्धा को गोद मे उठाइए,हम शीघ्र ही यहाँ से प्रस्थान करते हैं, राजकुमारी सारन्धा भी मूर्छित हैं, इनका उपचार बाबा ही कर पाएंगे, राजकुमार सुवर्ण बोला।।
और सब बाहर आकर उड़ने वाले घोड़े पर सवार हो कर चल दिए,कुछ समय पश्चात् वो सब शाकंभरी के पास पहुंचे और ये शुभ सूचना सुनाई।।
ये सूचना सुनकर, अघोरनाथ जी को बहुत कष्ट हुआ और कष्ट क्यों ना होगा, चित्रलेखा उनकी बेटी जो थीं, उनकी आंखों से दो बूंद आंसू भी ढ़ुलक पड़े,उनकी ऐसी अवस्था देखकर नीलकमल उनके निकट आकर बोली___
दुखी मत हों बाबा!आपने कहा था ना कि मैं भी आपकी ही पुत्री हूँ, बहुत विशाल हृदय हैं आपका जो आपने इतना बड़ा त्याग किया।।
हां,पुत्री! तुम और सारन्धा भी तो मेरी पुत्री हो,बाबा अघोरनाथ बोले।।
परन्तु बाबा! सारन्धा के प्राण इस समय संकट मे हैं, चित्रलेखा का जादुई वार उसने मेरे प्राण बचाने के लिए अपने ऊपर ले लिया, विक्रम ये कहते कहते रो पड़ा।।
तब सुवर्ण ने विक्रम को दिलासा देते हुए कहा,धैर्य रखो मित्र! राजकुमारी सारन्धा को कुछ नहीं होगा,
आशा तो यहीं हैं कि राजकुमारी को कुछ ना हो,राजकुमार विक्रम बोले।।

क्रमश:___
सरोज वर्मा__