Kaisa ye ishq hai - 33 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 33)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 33)

अर्पिता वहीं खड़ी रह जाती है तो प्रशान्त जी उसके थोड़ा पास आकर कहते हैं सही ही कहा था मैंने,तुम्हारे दुपट्टे को मेरा साथ पसंद आ गया है।।अर्पिता कुछ नही कहती है बस लज्जा से नीचे गढ़ी जा रही है।वहीं प्रशांत जी आगे आकर अपना हाथ उसके सामने कर देते हैं तो अर्पिता जल्दी जल्दी उसे निकालती है और वहां से जाने लगती है।उसे जाता देख प्रशान्त जी कहते है अप्पू सुनो...आवाज सुन कर वो रुक जाती है और प्रशान्त के बोलने का इंतजार करने लगती है।

प्रशांत कुछ कदम आगे आते हैं और अर्पिता के सामने जा कर कहते है मैंने श्रुति और तुम्हारे दोनो के लिए अलग से कपड़े लिए है तो .. थोड़ा अटक जाते है और कुछ नही कह चुप हो वहां से कमरे में चले जाते है।

इन्हें क्या हुआ सोचते हुए अर्पिता अपने कमरे में चली जाती है और श्रुति को फ्री देख शॉपिंग किया हुआ सारा सामान दिखाती है।श्रुति अपने भाई के पसंद किये कपड़े देखती है तो उसमें एक जैसे कुर्ते देख कहती है, अप्पू ये भाई के मन का भी न समझ नही आता।ये देखो मेरे लिए लेकर आये है लेकिन एक जैसे ही ले आये।अब तुम ही बताओ इन एक जैसो का मैं करूंगी क्या..!

करोगी क्या एक्सचेंज श्रुति।।हम इतने सारे कपड़े लेकर आये है तो तुम्हे जो भी पसंद हो एक्सचेंज कर लो।अर्पिता श्रुति से कहती है और खुद उसके हाथ से कुर्ते वाला बैग छीन कर देखने लगती है। ।

हां ये बात तो मेरे दिमाग मे कतई नही आई।।चल तुम अपना ये व्हाइट वाला ड्रेस मुझे दे दो।और इनमें से एक उठा ले।फिर हम दोनो पर भी एक जैसे कुर्ते हो जाएंगे बड़ा मजा आएगा जब पहन कर निकलेंगे तब।श्रुति ने खुश होते हुए कहा।

हां श्रुति! मजा तो बहुत ही आने वाला है।खैर अब एक काम करते है अब सो ही जाते है रात के ग्यारह बजे चुके हैं।सुबह जल्दी उठना भी है।अर्पिता कुछ सोचते हुए कहती है।

श्रुति :- जल्दी? क्यों अप्पू?
अर्पिता :- क्योंकि कल हमे जल्दी उठना है इसीलिये।।हम तो रोज ही जल्दी उठते हैं न्।तो बस इसिलिये कहा।वैसे कल हमे जॉब के इंटरव्यू के लिए भी जाना है।औऱ फिर शाम को वो एकैडमी वाली जॉब के लिए भी जाना है।पार्ट टाइम के लिए।।अब इतना कार्य होगा तो रेस्ट भी पूरा बनता है न।

श्रुति :- अप्पू, कितना काम करोगी? यार तुम भी प्रशांत भाई की राह पर चल पडी हो।वो भी एक बार निकल जाते है तो फिर शाम को ही आते हैं।और अब तुम भी ..।।मैं तो अकेले ही रह गयी।।

अर्पिता :- अरे किसने कहा कि तुम अकेली हो।हम है तुम्हारे साथ।एक काम करो तुम भी ऑफिस जॉइन कर लो इसके तुम्हे दो फायदे मिलेंगे काम का काम सीखोगी उस पर सेल्फ डिपेंडेंट हो जाओगी।

श्रुति - गजब! क्या बढ़िया सलाह दी हो तुम अप्पू।तुम पहले जॉब ढूंढ लो फिर पीछे से मैं भी तुम्हारे साथ आ जाऊंगी।।तब दोनो साथ काम करेंगे।।और घर पर मजे से पढ़ाई करेंगे।

ओके ओके।।अर्पिता कहती है और बेड पर फैला सारा सामान उठा कर कबर्ड में जमा देती है।और श्रुति के पास आकर लुढ़क जाती है।

सुबह हो जाती है और रोज की तरह आज भी वो जल्दी उठ जाती है।उठ कर स्नान वगैरह कर फ्रेश हो नीचे चली जाती है जहां परम और प्रशान्त दोनो भाई हॉल में साथ बैठ कर सुबह की चाय पी रहे हैं।

अर्पिता वहां आ उन्हें गुड मॉर्निंग कहती है और उठकर किचन में जा अपने लिए कॉफी बनाने लगती है।कॉफी बनाते हुए उसे प्रशान्त जी की बात याद आ जाती है तो वो आज एक कप एक्स्ट्रा ही बना लेती है और निकाल कर वहीं रसोई के काउंटर पर रख देती है।

अप्पू:- अब कॉफी तो बन गयी लेकिन उन तक पहुंचाए कैसे? बाहर तो परम् जी भी मौजूद है और चाय पी रहे है अब उन्हें इस समय ऑफर करना पता नही सही होगा या नही।।प्रशान्त जी ने कहा तो था कॉफी के लिए क्या करे कैसे कहें उनसे .. सोचते सोचते कहती है मिल गया आइडिया.!वही उनका आवाज किये बात करने वाला तरीका जो उन्होंने कहा था अपनाने को..

अर्पिता रसोई में नजरे दौड़ाती है और नोटबुक ढूंढ कर उसे उठा लेती है।उस पर एक संदेश लिखती है और हॉल में जाती है।अर्पिता को आता देख परम् एक्टिव हो जाता है।लेकिन बिन जताये बैठ जाता है।

अर्पिता :- वो रसोई में कॉफी मिल नही रही है अगर आप बता देते तो ..।प्रशान्त की ओर देख कहती है।

ओके कह प्रशान्त जी उठ कर अंदर जाते है लेकिन अर्पिता वहीं रह जाती है।प्रशांत को वहां कॉफी बनी हुई दिखती है जिसके नीचे उसे एक सफेद रंग का नोट रखा दिख जाता है..! जिसे देख वो मुस्कुराते हैं।और मन ही मन कहते है ओह तो ये बात है..!वो आगे बढ़ते है और कॉफी मग उठा कर सबसे पहले उसके नीचे रखा नोट उठा कर पढ़ते हैं :--

आपकी एक कप कॉफी..! एंजॉय इट☺️! पढ़ने के बाद वो पीछे मुड़ कर देखते है तो अर्पिता वहां नही होती है।

लगता है चली गयी..!(अब उन्होंने उसे आते देखा जो नहीं) कहते हुए वो कॉफी मग उठाये वहां बाहर चले आते है।अर्पिता जो हॉल में बैठी हुई होती है वो प्रशान्त जी के हाथ मे कॉफी मग देख वहां से अंदर चली जाती है।और छुपते हुए प्रशान्त को देखने लगती है।लेकिन वो ये भूल जाती है कि वो जहां खड़ी है रसोई के दरवाजे पर वो जगह हॉल में लगी खिड़की के शीशे से साफ साफ दिखती है।सो वो सामने देखते है और उसकी इस मासूमियत पर हंस देते हैं।वहीं परम तो पहले से ही सतर्क हो ता हैं लेकिन अर्पिता को इस तरह व्यवहार करता देख खुद ही कन्फ्यूज हो जाता है और सोचता है ये तो भाई को देख उनसे काम का कह यहीं रुक गयी।और उनके आने के बाद यहां से चली गई जब ये भाई के आस पास जाने से कतराती है तो फिर इन दोनों के बीच प्रेम का रिश्ता कैसे होगा..!लेकिन किरण कह रही थी कि...!अब क्या करूँ कैसे पता करूँ..एक बार और कोशिश करता हूँ।।कुछ तो पता चलेगा।

परम ने इस बात पर ध्यान ही नही दिया कि प्रशान्त के हाथ मे चाय का कप नही कॉफी मग है।जब अप्पू को कॉफी मिली नही तो बन कैसे गयी।।और वैसे भी इनकी कहानी कोई आम युवा के जैसे थोड़े ही है..ये एक परिपक्व इश्क़ की कहानी है जिसमे कोई जल्दबाजी नही,कोई कसमे वादे नही बस है तो बेइंतहा प्रेम जिसमे न शर्ते हैं, न पाने की ख्वाहिश है।अगर कुछ है तो वो है प्रेम के वो अनकहे एहसास जिन्हें ये दोनों खामोशी से जीते है गहराई से महसूस करते है उन जज्बातों को वो खूबसूरत एहसासों जिन्हें शब्दो मे पिरोया ही नही जा सकता।

परम वहां से उठकर अपने कमरे में चला जाता है तो प्रशांत जी अपनी नोटबुक निकाल कर उस पर एक संदेश लिखते हैं...

मेरी बात को तवज्जो देने के लिए आभार☺️! वैसे यूँ छुप छुप कर किसी को देखना अच्छी बात तो नही...☺️!!

ये लाइन वो अप्पू को थोड़ा सा छेड़ने के लिए लिखते है।वो नोट मोड़ते है और वही टेबल पर कॉफी मग के नीचे रख वहां से उठ कर चले जाते हैं।

प्रशान्त को कमरे में गया देख अर्पिता बाहर निकलती है और सबसे पहले उनका छोड़ा हुआ नोट पढ़ती है।जिसे पढ़ उसके मुस्कुराते चेंहरे पर हल्के से हैरानी के भाव दिखाई देने लगते हैं।और वो सोच में पड़ जाती है।

अर्पिता:- हम इन्हें छुप कर देख रहे ये उन्हें कैसे पता चला।है तो दो ही आंखे इनकी जो कि सबकी तरह आगे है तो फिर कैसे...? अर्पिता सम्हल कर रहना पड़ेगा तुझे।अगर इनको हमारे हृदय के हालत की भनक भी पड़ गयी तो न जाने क्या समझे ये।इतनी सी बात को तो पकड़ कर बोल दिया अब अगर ये पता चल गया कि हमे इनसे "वो' हो गया है तो कहीं ऐसा न हो हमारा ये बनता हुआ रिश्ता भी बिगड़ जाए।।सोचते हुए वो उसी नोट को पलट कर उस पर लिखती है -

ये तो बस ऐसे ही न जाने कैसे...हम आगे से ध्यान रखेंगे।।☺️!कह वहां से प्रशान्त परम् के कमरे से होकर गुजरती है और अंदर झांकते हुए देखती है जहां दोनो भाई तैयार हो रहे हैं।

कुछ सोचते हुए वो वापस हॉल में आती है और वहां प्रशान्त जी का हेलमेट एक अलमारी में देख उस नोट को वहीं उसके नीचे रख श्रुति के कमरे में चली आती है और गुनगुनाते हुए तैयार हो जाती है।
श्रुति और वो दोनों तैयार हो रूम का दरवाजा लॉक कर बाहर निकल आती है।जहां वो प्रशांत को किचन से टिफिन हाथ में ले निकलता हुआ देखती हैं।जहां प्रशांत जी उसे एक नजर देखते है और चले जाते हैं।

अर्पिता - श्रुति हम जाकर एक पानी की बॉटल ले कर आते है।

श्रुति:- ओके अप्पू।मै निकलती हूं आज परम भाई मुझे कॉलेज छोड़ते हुए निकलेंगे ।और वो नीचे गाड़ी में इंतजार कर रहे हैं।

अर्पिता ओके कहती है और वहां से रसोई में जाकर पानी का एक पात्र भरती है और वहां से बाहर निकल आती है।

इधर प्रशांत टिफिन लेकर हॉल में एक तरफ रख हेलमेट उठाते है तो उसके नीचे नोट देख मुस्कुराने लगते है।वो चिट उठा पढ़ते है तो मन ही मन खुद से कहते है , " मैंने तो बस मजाक में ही कहा था और तुम उसे समझी नहीं।इतना सीरियस लेती हो मेरी बातों को,ये मुझे आज ही पता चला।ये भी अच्छा साइन है मेरे लिए।

वो उसी चिट को फोल्ड कर उस पर कुछ लिखते है और वहीं हेल्मेट के नीचे रख ये सोच कर वहां से चले जाते हैं जब वो यहां से गुजरेगी तो हेलमेट देख लेकर जरूर आएगी।

अर्पिता बॉटल लेकर हॉल से गुजरती है और हेलमेट को उसी जगह देख सोचती है लगता है आज इसे ल जाना भूल गए हैं।सो वो जाकर उसे उठाती है और उसके नीचे रखा नोट देख आदतन खोल कर पढ़ती है।

थैंक्स! मेरी बात समझने के लिए।वैसे मेरी पसंद इतनी अच्छी है मुझे आज पता चला🙂।

हम समझते कैसे नहीं प्रशांत जी अब इतने दिनों में समझने लगे हम आपको।।आप नारी की इज्जत करना जानते हैं और अपनी पसंद किसी को बताने से झिझकते हैं।चलिए ये पहला प्रेजेंट रहा आपका हमारे लिए हम इसे हमेशा सम्हाल कर रखेंगे।सोचते हुए अर्पिता हेलमेट ले नीचे चली आती है जहां प्रशांत जी उसका इंतजार कर रहे होते हैं।नीचे आकर वो हेलमेट आगे बढ़ाती है प्रशांत बाइक पर बैठ उसे स्टार्ट करते है।अर्पिता बैठ जाती है और वो बाइक लखनऊ के सड़क पर दौड़ा देते हैं।

प्रशान्त - अप्पू सुनो! तुम्हे ऑफिस छोड़कर मै किसी काम से बाहर जा रहा हूं आते हुए शाम हो जाएगी तो तुम खुद से घर पहुंच जाओगी न..कोई परेशानी तो नहीं होगी। अगर कोई परेशानी है तो मै परम को बोल दूंगा वो तुम्हे रिसीव कर लेगा।

नहीं! हम खुद से चले जाएंगे।यहां के रास्ते तो हमें बखूबी याद है।नाहक परम जी को परेशानी होगी हम खुद से चले जाएंगे।।अर्पिता ने कहा।और मन ही मन कहती है हमें आपके अलावा बाइक पर किसी के साथ बैठना नहीं है एक सुकून सा आपके साथ आता है। किसी और के साथ बैठने में हमें परेशानी ही होगी।

प्रशान्त जी संक्षिप्त में ठीक है कहते हैं।और एक लम्बी खामोशी दोनों के बीच आ जाती है।बहुत सम्हाल कर बाइक ड्राइव करने के बाद प्रशांत एक जगह जाकर बाइक रोक देते हैं।वहां कुछ मंजिल की इमारत बनी होती है।अर्पिता बाइक से उतर जाती है।तो प्रशांत बाइक वहीं स्टैंड पर लगा अर्पिता से अंदर चलने को कहते हैं।वो अपना फोन निकालते है और एक नम्बर डायल करते हुए तेज कदमों से आगे बढ़ जाते हैं।इतना आगे कि एक मोड़ के बाद वो आंखो से ओझल हो जाते हैं।अर्पिता धीरे धीरे आगे बढ़ती है लेकिन कुछ समझ नहीं पाती।जाए किधर। वो मन ही मन सोचती है हमें यहां अकेला छोड़ कहां गायब हो गए आप...!अब आगे कहां जाना है हमें कैसे पता।वो ये सोच ही रही होती है कि तभी उसके पास लगभग पच्चीस वर्ष एक लड़की आती है और आकर उससे कहती है :-

गुड मॉर्निंग मिस अर्पिता व्यास!तो आप यहां साक्षात्कार के लिए आई है।

अर्पिता :- हां लेकिन आपको कैसे ..?
लड़की :- मेरा नाम नीलम है और मुझे मेरे सीनियर सर ने आपको अटेंड करने के लिए बोला है।सो प्लीज़..हाथ बढ़ाते हुए वो उससे कहती है।

ओके कहते हुए अर्पिता उसके साथ चली जाती है।वो लड़की उसे साक्षात्कार रूम में ले जाती है और वहां से वापस चली आती है।

अर्पिता अंदर जाती है और साक्षात्कार देने लगती है।लगभग बीस मिनट तक उसका साक्षात्कार लिया जाता है जहां उसे "यू आर सलेक्टेड" बोल वहां जाने के लिए कहा जाता है।
अर्पिता बाहर आती है और खुशी खुशी मन ही मन प्रशांत जी को धन्यवाद कहती है।नीलम वहां आती है और अर्पिता को ले जाती है।नीलम उसे सारी आवश्यक जानकारी देती है।और सारे जरूरत के दस्तावेज उसे उपलब्ध करा देती है।

नीलम :- तो मिस अर्पिता!आप कब से ज्वाइन करना चाहेंगी।।

अर्पिता :- नेक काम में देरी कैसी।
नीलम :- ठीक है फिर आप मेरे साथ चलिए मै आपको काम समझा देती हूं आप को गाइड करने के लिए आपके साथ आज मैनेजर सर रहेंगे।फिर कल से आपको खुद ही सब सम्हालना होगा ठीक है मिस अर्पिता।।

अर्पिता -:या ओके।नीलम उसे एक कैबिन में ले जाती है जहां एक व्यक्ति पहले से मौजूद रहता है अर्पिता अंदर जाकर गुड मॉर्निंग विश करती है।नीलम वहां से चली जाती है और अर्पिता सीनियर के साथ कार्य को समझने लगती है।

इधर प्रशांत जी बाइक घर पार्क कर वहां से बस अड्डे के लिए निकल जाते हैं।वहां से कानपुर वाली बस में बैठ कुछ घंटे में कानपुर पहुंच जाते हैं।जहां वो अपना फोन निकालते हैं और सिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर का नंबर डायल करते हैं।सिटी हॉस्पिटल पहुंच वो डॉक्टर से मिलते है जहां वो उसे रोगी के कमरे में लेकर जाते हैं।प्रशांत अंदर कमरे में जाते है जहां उसे दो व्यक्ति दिखाई देते है जिनका शरीर लगभग सत्तर प्रतिशत जल चुका होता है।जिन्हें देख प्रशांत भी एक पल को पहचान नहीं पा ते है।कुछ देर वो उन्हें देखते है फिर अर्पिता के मां पापा कि छवि को याद करते है तो उसे थोड़ा सा यकीन होता है कि शायद ये उसके मां पापा ही है।लेकिन स्योर नहीं हो पाते है।वो डॉक्टर से बात करते है और उनका ठीक तरह से उपचार करने का कह वहां से चले आते है।आते आते भी उन्हे देरी हो जाती है से वो सीधा रूम पर जाते है और कुछ देर बैठ कर रेस्ट करने लगते हैं।और सोचते है :-
अर्पिता के बारे में पता करूं अब तो शायद निकल चुकी होगी वहां से।चार बज चुके है और मैंने नीलम को कहा था उसका वर्किंग टाइम दस से चार करने का।जिससे बीच में उसे भी थोड़ा बहुत आराम मिल सके।क्यूंकि शाम को फिर वो अकैडमी जाएगी।कितना काम करने लगेगी अप्पू।।ऑफिस अकैडमी पढ़ाई।। इन सब में मुझे उसके सपने को भी पूरा करने में मदद करनी हैं।उसे भूलने नहीं देना है कि वो एक संगीत की प्रोफेसर बनना चाहती है।बेटा प्रशांत, बड़ी वाली परीक्षा की घड़ी आनी है अब मुझे उसे सपोर्ट करने के साथ साथ अपनी फीलिंग्स का एहसास भी दिलाना है।...
सोचते हुए वो नीलम को फोन लगाता है।और उससे अर्पिता के बारे में पूछता है।नीलम उसे बताती है कि अर्पिता अभी अभी यहां से निकली है। सर बता रहे थे कि जल्द सीखने की काबिलियत है उसमे।जल्द ही सारा कार्य सीख जाएंगी।जानता हूं इसीलिए तो बिना कागजात के भी उसे ऑफिस में हायर करने को कहा था मैंने।और हां ये बताओ वो एक पोस्ट और खाली थी न उसका क्या हुआ क्या कोई सेलेक्ट हुआ या वो पोस्ट अब तक खाली है।प्रशांत ने नीलम से पूछा।
नीलम :- जी सर उसके लिए भी कैंडिडेट अपॉइंट कर लिया गया है।सात्विक नाम है उसका।मिस अर्पिता के साक्षात्कार के कुछ देर बाद वो भी जॉब के सिलसिले में आए थे उसकी योग्यता और वर्क एक्सपीरियंस के बेस पर उसे जॉब दे दी गई है।
ओके बाकी बातें मै कल आकर करता हूं। कह प्रशांत फोन कट कर देता हैं।और खुद से कहता हैं
शुक्र है सब अच्छे से हो गया है।अब सुबह से शाम तक अर्पिता मेरे सामने रहेगी।।हाय... इससे अच्छी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है।
वो उठकर अपने कमरे में चले जाते हैं।कुछ ही देर में अर्पिता भी आ जाती है वो एक नजर प्रशांत के रूम की ओर डालती है जहां प्रशांत जी कमरे में पड़े काउच पर लेटे कानों में हेडफोन लगाए मस्त होकर कुछ सुनने में लगे हैं।और साथ ही गुनगुनाते भी जाते है.

तुमको हम दिल में बसा लेंगे, तुम आओ तो सही।
सारी दुनिया से छिपा लेंगे, तुम आओ तो सही।

प्रशान्त मस्त मग्न इतनी आवाज में गुनगुना रहे है जो दरवाजे पर खड़ी अर्पिता को साफ साफ सुनाई दे रही होती है।वो वहीं रुक जाती है और आगे सुनने लगती है..

एक वादा करो अब हमसे न बिछड़ोगे कभी
नाज़ हम सारे उठा लेंगे, तुम आओ तो सही।

बे - वफ़ा भी हो सितमगर भी जफा- पेशा भी।
हम खुदा तुमको बना लेंगे।तुम आओ तो सही।..

तुमको हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही...
मुमताज मजी साहब की लिखी ये गजल जब पूर्ण होती है तो प्रशांत अपनी आंखे खोल हेडफोन निकाल रखने के लिए मुड़ते है।जहां अर्पिता को सामने खड़ा देख वो चौंकते हुए कहते है ..अप्पू तुम यहां कब आई..?
अर्पिता का मूड अच्छा होता है सो वो मुस्कुराती हुई कहती है हम तभी आए जब बुला रहे थे तुम आओ तो सही...!कह वहां से चली जाती है।

उसकी मसखरी सुन प्रशांत जी मुस्कुरा देते है और कहते है हां अप्पू, तुम आई तो सही.!

क्रमश..!