I am the special mother of a special child. in Hindi Classic Stories by मंजरी शर्मा books and stories PDF | मैं स्पेशल-बच्ची की स्पेशल-माँ हूँ.

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मैं स्पेशल-बच्ची की स्पेशल-माँ हूँ.

मैं स्पेशल-बच्ची की स्पेशल-माँ हूँ.

"" भगवान् भी ना जाने कितना निष्ठुर हो जाता है. पता नहीं किन पापों का दोष है. ""

"" हाय!! बेचारी..""

"" अरे; काहे की बेचारी!! ""

"" एक तो पाप; ऊपर से महापाप...""

"" मतलब?? "'

"" मतलब तो बिलकुल साफ़ है. एक तो लड़की को पैदा किया; वो भी विकलांग.... ""

"" चुपचुप!! देखो; वो यहीं आ रही है... ""

"" अरे, आने दो. मैं क्या डरती हूँ??? एक तो पागल बच्चे को जन्म दिया और अब उसके पीछे उसकी परवरिश के लिए पागल हो रही है. """

"" बस; बहुत हो गया. अब और नहीं. विकलांग मेरी बेटी नहीं; आपकी सोच है. पागल हम माँ-बेटी नहीं; ये समाज है और बेचारे तो आप है; जिनके पास दुःख मनाने के अलावा कोई चारा नहीं है. "" - जूही गुस्से में एक ही रौ में बोली जा रही थी.

"" कभी कुंडली का दोष! कभी पंडितों के टोटके. न जाने कितने उपाय करवाती है. कभी मुझ पर इलज़ाम लगाते हैं, तो कभी अपनी मनमानी करते हैं. एक बार कोशिश तो की होती उसे गोद में उठाने की; मुस्कुराने का एक उपाय तो किया होता.... "" - जूही का गला रुंध सा गया था.

अपने को संभालते हुए आगे कहती है....

"" मेरी बेटी आटिज्म का शिकार है, जो कोई बीमारी नहीं; विकार है : जिसमें शरीर और खासतौर पर दीमाग अपना काम ढंग से नहीं कर पाता. लेकिन इसमें ना तो मेरा कोई दोष है और ना ही मेरी बेटी का कसूर. ""

"मेरी बच्ची; मेरी कमज़ोरी नहीं मेरी ताकत है. इसलिए ना तो मुझे रोना आता है और ना ही मुझे तरस. उसे देखकर; मुझे सिर्फ और सिर्फ प्यार ही नज़र आता है.
चाइल्ड स्पेशलिस्ट की मदद से मेरा और मेरी बेटी का रिश्ता मज़बूत बनता जा रहा है. वो सबसे ज़्यादा मुझ पर विशवास करती है. ""

"" मैं उसे अच्छी तरह समझती हूँ. उसे तरह-तरह की आवाज़ें पसंद है. म्यूजिक सुनकर कभी-कभी मुस्कुराती है, तो कभी खुश होकर हंसती है. अब तो अपनी दैनिक आवश्यकताओं को भी इशारों के माध्यम से समझाने लगी है. ""

"" माना की वो आप सबसे कॉन्टेक्ट नहीं कर पाती; लेकिन एक बार प्यार से उसकी आँखों में ऑंखें डाल कर बात करो; वो आपको रिस्पॉन्स ज़रूर करेगी. ""

"" उसकी उपलब्धियों पर शाबाशी दो, खुश हो; मुस्कुरा कर उत्तर दो. ये भी इसी समाज का हिस्सा है. इन्हें तिरस्कृत मत करो. बेचारा समझकर तरस मत खाओ. पागल कहकर इनका मज़ाक मत बनाओ. इन्हे सहानुभूति की नहीं; सिर्फ प्यार की ज़रूरत है; इसके अलावा इन्हें कुछ भी नहीं चाहिए. बल्कि आम होकर भी उसमें है कुछ ख़ास. ""

जूही अपने मन को समझाते हुए कहती है -
"" नहीं; गुस्सा करके मैंने कोई पाप नहीं किया और मैं लड़ूंगी, चिल्लाऊंगी और दुनिया को बताऊँगी; की मेरा बच्चा या उसकी माँ बेचारी नहीं है. ""

"" मैं और मेरी बच्ची अकेली नहीं है; हम दोनों हैं एक दूसरे के साथी ... ""

"" मैं स्पेशल-बच्ची की स्पेशल-माँ हूँ.""

दोस्तों!! इस रचना के सन्दर्भ में आपके क्या विचार है.

मंजरी शर्मा ✍️