असत्यम्। अशिवम् ।। असुन्दरम् ।।। - 22 in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 22

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 22

22

कभी जहॉं पर कल्लू मोची का ठीया था और सामने हलवाई की दुकान थी ठीक उस दुकान की जगह पर कुछ अतिक्रमण करके कल्लू मोची के नेता पुत्र ने एक छोटा ष्शापिंग मॉल बनाकर फटा फट बेच दिया । नगर पालिका सरकार,शहरी विकास विभाग,जिलाधीश,क्षेत्र के पटवारी,तहसीलदार,थनेदार,बी. डी. ओ.,आदि टापते रह गये ं आंखे बन्द कर के बैठे रहे । कौन क्या कहता । कौन सुनता । जिसकी जमीन थी उसे खरीद लिया गया । काम्पलेक्स में एक ष्शोरूम अताः फरमाया गया । सब जल्दी से ठीक -ठाक निपट गया ।

कल्लू का ठीया वैसा ही सड़क के इस पार पड़ा था । जबरा कुत्ता स्वर्ग सिधार गया था । कल्लू के ठीये पर एक नाई ने कब्जा जमा लिया । एक पुराना ध्ंाुधला कांच, एक टूटी हुई कुर्सी,एक उस्तरा और ऐसे ही कुछ और सामान .......। दुकान नहीं हो कर भी दुकान थी । ठीये पर दिन भर में पांच - दस लोग दाढ़ी, हजामत के लिए आते । कुछ लोग वैसे ही आस -पास खड़े हो जाते । ठीया एक चौगटी का रूप ले लेता । सुबह-शाम मजदूर कारीगर,बेलदार,हलवाई का काम करने वाले पुड़िया बेलने वाली औरते सब सुबह शाम इसी ठीये के आस पास विचरण करते रहते । ष्शाम होते होते नाई का धन्धा लगभग बन्द हो जाता क्योंकि अन्धेरे में उस्तरा चलाना खतरनाक था । सुबह दस बजे से पांच -छः बजे तक कुछ ग्राहक आ जाते । आज ठीये पर विशेप रूप से एक राजनैतिक दल का युवक काय्रकर्ता जनता की नब्ज टटोलने के नाम पर नाई की कुसी्र पर जम गया था । नाई ने पूछा -

सर ! दाढ़ी बनवायेंगे या कटिंग । युवानेता ने धुधले कांच में निहारा और बोला कांच तो अच्छा लगा । अबे साले चुप । हम तेरे से काम कराएंगे ।

तुम इस देश के भाग्य विधाता हो । वोटर हो । कर्ण धार हो । हम तो तुम्हें सरकार बनाने के लिए बुलाने आये है ।

‘ सर ! क्यो मजाक करते है । मैं एक गरीब आदमी हूॅ । लोंगो की दाढ़ी मूण्ड कर अपना गुजारा करता हूॅ । हुजूर की दाढ़ी ष्शानदार क्रीम से,नई ब्लेड से बना दूगां ।

‘ अरे छोड़ तू दाढ़ी का चक्कर । ये बता हवा किस ओर बह रही है ।

‘ हजूर कौन सी हवा,किसकी हवा ......।

‘ अबे इतना भोला मत बन । इच्छा तो तुम्हें झापड़ मारने की हो रही है,मगर ये साले चुनाव के दिन । ......। अच्छा बता इस बार कौन जीतेगा ।

‘ अब तक नाई समझ चुका था कि आज के दिन बोहनी होना मुश्किल है । नेताजी को नाराज करने पर पिटने का डर था । वे नगरपालिका को कह कर उसका सामान जब्त करवा सकते थे । अतः बोला

‘सर ! आप किस की तरफ है ? ’

मैं तो जीतने वाले की तरफ हूॅ ।

‘ सर तो हवा भी जीतने वाले की ही बह रही है । ’ जिसकी हवा वो ही जीतेगें ।

युवा नेता ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा । उसने दाढ़ी से एक सफेद बाल खीचां और कुछ प्रश्न हवा में उछाले । दाढ़ी और मूंछो में प्रश्नों के पेड़ लगे हुए थे ।

ल्ेकिन सरकार किसकी बनेगी ?

कौन बनेगा मुख्यमंत्री ।

‘ अब सर इतनी बड़ी बात मैं क्या जानू ।

‘ अच्छा चल बता किसको वोट देगा । ’

वेा तो बिरादरी की पंचायत बैठेगी । वो ही तय करेगंी और सभी एक साथ वोट छाप देंगे ।

बेवकूफ ! अब छापने के दिन गये अब तो नई बिजली की मशीन में सिर्फ बटन दबाना पड़ता है ।

तेा बटन दबा देगें । हजूर ! नाई नम्रता की प्रतिमूर्ति बना हुआ था । उसे भी मजा आ रहा था । युवा नेता भी भविप्य में किसी राजनैतिक नियुक्ति के सपने देख रहा था ।

‘ अच्छा चल तेरी दुकान पे इतनी देर बैठा बोल क्या करेगा । चल दाढ़ी बना दे ।

नाई ने युवा नेता की दाढ़ी खुरची,पैसे लिये और देश का भविप्य दूसरी ओर चल दिया ।

नाई थोड़ी देर ठाला बैठा रहा । बतकही करने के लिए आसपास लोग खड़े थे । बातचीत के विपय बदलते रहते थे, लेकिन कनकही के सहारे नई - नई बातें हवा में उड़ती रहती थी । र्नाई ने नाले के पास अपनी अपनी दाढ़ी का गन्दा पानी खाली किया और प्रवाह मान नाले में प्रदूपण बढ़ाया । उसे याद आया सरकार प्रदूपण से चिन्तित थी और समाज सरकार में घुले प्रदूपण से चिंतित थी । इन दोनों चिन्ताओं पर चिन्तन करने वाले चिन्तक इस बात से चिन्तित थे कि विपयों,समाचारों और विश्लेपणों का अकाल कब समाप्त होगा । अफवाहों की दुनिया में रह रह कर लहरें उठती थी और हिलोरे लेती थी ।

प्रदूपण प्रेमी एक सज्जन बोल पड़े ‘ अब सरकार पर्यावरण सुधार योजना के अन्तर्गत अपने कस्बे की हवा पानी भी सुधारेगी ।

‘ क्या खाक सुधारेगी सरकार का खुद का पर्यावरण बिगड़ा हुआ है । एक अन्य सज्जन ने बीड़ी का सुट्टा लगाते हुए कहा

‘ और फिर पर्यावरण - प्रदूपण कोई एक ही तरह का है क्या ? सरकार क्या क्या सुधारेंगी?   हर तरफ रोज नया प्रदूपण,हवा प्रदूपण,ण्वनि प्रदूपण,ओजोन प्रदूपण,साहित्यिक प्रदूपण सांस्क्रतिक प्रदूपण, राजनैतिक प्रदूपण, अफसरी प्रदूपण और सबसे उूपर भ्रप्टाचारी प्रदूपण । सरकार सफाई अभियान ष्शुरू करती है और गन्दगी प्रसार योजना लागू हो जाती है । बेचारी सरकार क्या करे ।

‘ तेा फिर प्रजा ही क्या करे ? ’’

प्ूारे कुॅए में ही भंग पड़ी हुई है ।

अरे नहीं यह पूरी दाल ही काली है ।

‘ देखो अब अपने इस नाले को ही लो । कई बार इसको ढ़कने के टेण्डर हो गये । कागजों में ढ़क भी गया लेकिन नाला ऐसे ही बदबू दे रहा है ।

नाले को पाट कर दुकाने बनायेंगे ।

‘ लेकिन ये सब कब होगा । ’

‘ जब सतयुग आयेगा ।’

‘ लोग नाले पर अतिक्रमण कर रहे है । ’

‘ अतिक्रमण को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिये । नाई ने बड़ी देर बाद अपनी चुप्पी तोड़ी ।

नाई बोला - अब इस कस्बे को देखो । चारों तरफ गंदगी ही गंदगी । प्रदूपण ही प्रदूपण । अतिक्रमण ही अतिक्रमण । हर तरफ जीन्स,बेल्ट पहने नई पीढ़ी । लड़के ही लड़के । छोटे बच्चे नाले पर गंदगी फैला रहे है । उनकी पसलियां ष्शरीर से बाहर निकल रही है । पेट बढ़े हुए है । कुपोपण के शिकार है ।

लड़को से बचो तो भिखारी । अब पांच - दस पैसे कोई नहीं मांगता । रोटी खिला दे । चाय पिला दे । आटा दिला दे । आज अमावस है । व्रत है । कुछ सैगारी दिला दे । बाबा । धरम होगा । तेरे बेटे -पोते जियेंगे । और यदि भीख नहीं मिले तो सब अपशब्दो पर उतर आते है ।

हां यार खवासजी ये तुमने ठीक कही । कल ही एक भिखारिन मेरे पीछे पड़ गई । नास्ता करा दो । मैंने ठेले से उसे नाश्ते के लिए ठेले वाले को पैसे दिये और कुछ ही देर बाद ठेले वाले ने अपना कमीशन काटकर नकद राशि भिखारिन को लौटा दी । देखो कैसा धोर कलियुग ।

हां तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो । सरकार को भीख - प्रदूपण पर भी ध्यान देना चाहिये ।

‘ अब देखो मन्दिर में दोपहर के दर्शन को सभी सासे,प्रोढ़ाएं आती है और पूरे रास्ते अपनी बहुओं के गीत गाती चलती है । बहुएं भी कम नहीं है, सासों के बाहर जाते ही कालोनी में सासों के खिलाफ बहू - सम्मेलन ष्शुरू हो जाते है । सब जानती है सास अब दो घन्टे में आयेगी । बिल्ली बाहर तो चूहे मस्त वाली बात ।

‘ हा ओर सांयकाल के दर्शनो में बूढे,सेवा निवृत्त,ससुर खूब नजर आते है ।

‘ बेचारे क्या करे । घर से चाय पीकर निकलते है और रात के खाने पर पहुॅच जाते है । तब तक फ्री है, गार्ड़न,मन्दिर में घूमते है । अपने बेटे - बहुओं से परेशान आत्माएं ऐसे ही विचरण करती रहती है ।

‘ और इनके बातचीत के विपय भी ऐसे ही होते है ।

‘ बेटा,लड़की सास, ससुर,देवरानी,जिठानी,कंवर साहब,पोता,दाहिती आदि ............।

नाई अभी तक एक ग्राहक की हजामत में व्यस्त था । काम पूरा कर बोला अब हालत ये है भाई साहब कि यदि कोई मर भी जाता है तो ष्शव -वाहन मंगवाना पड़ता है, कंधे पर जाने के दिन अब नहीं रहे । इस वाक्य के बाद एक दार्शनिक चुप्पी छा गई । और सभा को विसर्जित धोपित कर दिया गया ।

 

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इधर कुछ सिर फिरे लोग शहर में नये मुहावरे की खोज में निकल पड़े थे । वे पुराने मुहावरेां पर मुलम्मा चढ़ाते, उन्हें चमकाते और अपना नया मुहावरा घोपित कर देते । इस नई घोपणा के बाद वे लोग साहित्य,संस्कृति,कला,विज्ञान, आदि क्षेत्रों के चकलाधरों में घूमते - घामते स्वयं को बुर्जुआ कामरेड या कामरेडी बुर्जुआ धोपित करते रहते । कुछ लोग बहस को और चोड़ी करने के लिए फटी जीन्स पर महंगा कुर्ता पहन लेते । कुछ लोग वाईंस डालर का विदेशी चश्मा लगाकर कार्ल मार्क्स पर अपनी पुरानी मान्यताएॅं पुनः पुनः दोहराते । समय अपनी गति से चलता । सुबह होती तो वे कहते सुबह हो गई मामू । ष्शाम होती तो कहते ष्शाम- ए - अवध का क्या कहना । इसी खीचांतानी समय में अचानक अमेरिकी बाजार में भयंकर मंदी छा गई । कई बैंक डूब गये । वित्तीय संस्थानों ने अपनी दुकाने बन्द कर दी । इस मंदी का असर देश,प्रदेश में भी पड़ रहा था । चारों तरफ जो विकास की गंगा दिखाई दे रही थी,वह धीरे धीरे गटर गंगा बन रहीं थी जो लोग विकास की गंगा में नहा रहे थे, उनका जीवनरस गंगा की बदबू से दुखी,परेशान,हैरान और अवसाद में था ।

 

मंदी की मार को मंहगाई की मार की हवा भी लग रहीं थी । ष्शहर के बीचों - बीच नाई की थड़ी के पास ही लोग बाग जमा थे । पास ही एक ए. टी. एम. पर भयंकर भीड़ थी,यह अफवाह उड़ चुकी थी बैंक दिवालिया हो चुका है । सभी जल्दी से जल्दी अपना पैसा निकालना चाहते थे । इसी मारामारी में धक्कामुक्की हो रहीं थी ।

लोगो को कुछ समझ में नहीं आ रहा था । क्या करें । क्या न करें । अफवाहों,अटकलों को बाजार गरम था । लोगों को अफ्रीका,नाइजीरिया,रूस के किस्से याद आ रहे थे ।

वित्तीय संकट के इस दौर में भी नाई,कल्लू मोची जैसे लोगों को कोई परेशानी नहीं थी क्योकि उनके पास खोने को कुछ भी नहीं था । बैंक खातो की चिन्ता भी तभी तक करते जब तक ग्रामीण रोजगार योजना के पैसे जमा होते । पैसे निकाले । काम खतम । अगली बार रोजगार मिलेगा तो सोचेगें ।

नाले के उपर कुछ कच्ची - पक्की झोपड़ पट्टियां उग आई थी । ये गरीब लोग जिन्हें कुछ लोग बिहारी,कुछ बंगाली और कुछ बगंलादेशी कहते थे । धीरे - धीरे ष्शहर की धारा में अपनी जगह बना रहे थे । औरते घरो में झाडू़,बुहारी,पौंचा,बर्तन,भाण्डे करती ओर मरद रिक्शा चलाते । मजदूरी करते । ष्शराब पीते । अपनी ओरतों और बच्चों को पीटते और खाली समय में आवारागिरी करते । ताश खेलते । आपस में लड़ते - झगड़ते और फिर एक हो जाते । झोपड़ पट्टियों में गरीबी थी मगर जीवन था । जिन्दगी थी । यदा - कदा वे सब मिलकर त्योहार मनाते । खुश होते रात -भर नाचते -गाते । मस्ती करते और दूसरे दिन काम पर नहीं जाते । औरते भी उस दिन छुट्टी कर लेती । दूसरे दिन पूरा परिवार नहा - धोकर रिक्शे में बैठ कर ष्शहर घूमता -खाता -पीता मस्ती करता । कभी कभी पुलिस का डण्डा भी खाता । इन झोपडपट्टी वालों का उपयोग चुनाव के दिनों में खूब होता हर नेता चाहता कि ये वोट हमारे हो जाये । चुनाव के दिनों में रैलियों में, जुलूसों में, पोस्टर चिपकाने में ऐसे कई कामों में ये गरीब बड़े काम के आदमी सिद्ध होते । कई पढ़े लिख्रे मजदूरों ने अपने राशन कार्ड व वाटर कार्ड बनवा लिये थे,इस कारण वे बाकायदा इस देश के वाशिंदे बन गये थे । एक मुश्त वोटो की ऐसी फसल के लिए पार्टियां उनसे एक मुश्त सौदा कर लेती थी । सौदों के लिए बस्ती में ही छुट भैये नेता को कल्लू पुत्र भावी चुनाव के सिलेसिले में पटा रहा था।

कल्लू पुत्र - ‘ और यार सुना ....क्या हाल चाल है । ’

‘ सब ठीक है सर । ’

क्या सर - सर लगा रखी है ।

‘ इस बार वोट कहॉं । ’

‘ जहॉ आप कहे सरकार । ’

‘ क्या रेट चल रहीं है । ’

रेट कहॉं साहब ! दो जून रोटी मिल जाये बस ।

‘ अब एक चुनाव से जिन्दगी की रोटी तो चल नहीं सकती । ’

‘ फिर ’

‘ फिर क्या । ’

-बोल इस बार की रेट ........।

हजार रू. प्रति वोटर ।

‘ ये तो बहुत ज्यादा है । ’

‘ तो जाने दे साहब । ’

‘ वैसे तेरे पास कितने वोट है । ’

‘ बिरादरी के ही पांच सौ है । ’

और ........।

ये पूरी वार्ता बस्ती के बाहर ही सम्पन्न हो रही थी कि अचानक बस्ती में एक विस्फोट हुआ । किसी का गैस सिलेण्डर फट गया था । मानो बम फट गया । चारों तरफ चीख - पुकार । फायर ब्रिगेड, पुलिस, प्रशासन,ने जाने कौन - कौन । कल्लू पुत्र ने मौके का नकदीकरण करने में जरा भी देर नहीं की । तुरन्त घायलों की सेवा में अपनी टीम लगा दी । बस्ती वाले उसके गुलाम हो गये । प्रशासन से मुआवजा दिलवा दिया । वोट और भी पक्के हो गये । लेकिन कल्लू पुत्र जानता था कि एक छोटी बस्ती के सहारे विधान - सभा में नहीं पहुॅचा जा सकता । उसने अपने प्रयास जारी रखे ।

महत्वाकांक्षा की मार बुरी होती है । महत्वाकांक्षा का मारा कल्लू पु.त्र नेताजी को नीचा दिखाने के लिए राजनीति के गलियारों में, सत्ता के केन्द्रों में तथा संगठन के मन्दिरो में धूमता रहता था । उसने अपने सभी धोड़े खोल दिये थे, ये घोड़े उसे भी दौड़ाते थे । वो दौड़ता भी था, मगर बलगाएं किसी और के हाथ में होती थी । दिशाएॅं कोई ओर तय करता था ।

इसी महत्वाकांक्षा का मारा कल्लू पुत्र राजधानी आया । संगठन के दफतर के बाहर जब वह रिक्शे से उतरा तो उसके सामने संगठन का विशाल भवन था । चौकीदार - सिक्यूरिटी ने उसे बाहर ही रोक दिया । वो पार्टी कार्यालय में धुसने के रास्ते ढूंढ रहा था, मगर रास्ते इतनी आसानी से कैसे और किसे मिलते है । पास ही एक ष्शापिंग माल के सिक्यूरिटी गार्ड से उसने परिचय बढ़ाया, उसने पार्टी कार्यालय के बाहर झण्डो, बैनरों को बेचने वाले से मिलाया । झण्डे बैनर वाले ने उसे सिक्यूरिटी गार्ड से परिचित करवा दिया । इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में सांझ हो गयी । पार्टी कार्यालय में आब गहमागहमी बढ़ गई थी । उूचे कद के बड़े नेता, नेत्रियॉं, बड़े सरकारी अफसर, बड़े ब्यापारी, उधेागपति सब मिल कर पार्टी को अगले चुनाव में जिताने का वादा एक दूसरे से कर रहे थे । कल्लू पुत्र मौका पाकर मिडिया के नाम पर अध्यक्ष के कक्ष में घुस गया था । अध्यक्ष जी मंत्रणा कक्ष में थे।

कल्लू ने अध्यक्ष के पी. ए. से बात कर ली ।

‘ भाई साहब विराट नगर से टिकट किसे मिलेगा । ’

‘ अरे विराट नगर के नेताजी की संभावना हे। ’

ल्ेकिन वे सीट नहीं निकाल सकेंगे ।

‘ यह सब तो चलता रहता है । ’

मैंने भी आवेदन किया है । ’

‘ अध्यक्ष जी से बात कर लेना । ’

‘ तभी कक्ष में किसी क्षेत्र के समर्थक और विरोधी एक साथ घुस गये थ्ेा। हो हल्ला मच गया । बड़ी मुश्किल से भीड़ को बाहर निकाला गया। ’ कल्लू पुत्र ने अध्यक्ष जी के पांव छुएं, अपनी बात कहीं ‘ सर विराट नगर से टिकट चाहिये । युवा हूॅ । लीडर हूॅं । तथा एस. सी . से हूॅ । दूसरे उम्मीदवार बूढ़े है ।

‘ उनके अनुभव का लाभ लेंगे । ’

‘ ठीक हे सर क्या मुुझे आशा रखनी चाहिए । ’

‘ आशा अमर धन है । ’

कल्लू पुत्र बाहर आया । रात बढ़ गई थी । उसने पार्टी के हाइ-फाइ-फाइवस्टार दफतर को निहारा और ठण्ड़ी सांस भर कर अपने ष्शहर चल पड़ा ।

ष्शहर आकर कल्लू पुत्र ने अपनी टीम को एकत्रित किया । चुनाव में टिकट मिलने की संभावना को बताया और प्रचार में जुट जाने की बात कहीं । मगर मामला धन की व्यवस्था पर आकर अटक गया । नेता पुत्र ने भी अपना विरोध दर्ज कराया ।

कल्लू ने पुत्र ने अपने स्तर पर चन्दा करने के बजाय पार्टी से उम्मीदवारी का ऐलान होने का इन्तजार करना बेहतर समझाा । यदि पार्टी टिकट देती है तो फण्ड भी देंगी । प्रचार, प्रसार का काम अब हर पार्टी में विज्ञापन कम्पनियां करने लग गई थी । टी . वी . रेडियो, कम्ंयूटर, इन्टरनेट, एस. एम. एस. प्रिंट मीडिया, होर्डिंग सभी स्थानों पर विज्ञापन - एजेन्सीज के माध्यम से प्रचार होगा । करोड़ो रूपये खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा था । पार्टियो के दफतरों में हर तरफ महाभारत मचा हुआ था । हर पार्टी की स्थ्तिि एक जैसी थी । हर पार्टी जीत के प्रति आश्वस्त थी । हर पार्टी अपने आपको सरकार बनाने में सक्षम मानती थी । हर पार्टी में आन्तरिक घमासान मचा हुआ था । युद्ध स्तर पर चुनावी युद्ध जीतने के लिए पैतरे बाजी थी ।

 

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