Dream to real journey - 4 in Hindi Science-Fiction by jagGu Parjapati ️ books and stories PDF | कल्पना से वास्तविकता तक। - 4

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कल्पना से वास्तविकता तक। - 4

कल्पना से वास्तविकता तक:--4

नोट:-- 1.आप सब इस भाग को समझने के लिए पिछले वाले भाग अवश्य पढ़ लें।
2. यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है तथा किसी भी वेज्ञानीक तथ्य की पुष्टि नहीं करती है।दिए गए तथ्य हमारी कल्पना मात्र हैं।

(प्यारे पाठकों ग्रमिल की दुनियां में बोली जाने वाली भाषा हिंदी से अलग है लेकिन इस भाग में, हम उसको हिंदी में ही अनुवादित कर लिख रहे हैं ताकि कहानी की सरलता बनी रहे।)
धन्यवाद 🙏।
अब आगे ......

नेत्रा ख्यालों में गोते लगाते हुए ग्रमिल के साथ साथ चल रही थी। धीरे धीरे रास्ते को पीछे छोड़ते हुए एक जगह पर ग्रमिल रुक जाता है, शायद वो सब अपनी मंजिल तक का रास्ता तय कर चुके थे। ग्रमिल के रुकते ही कल्कि और यूवी भी रुक जाती हैं,अचानक रुकने से नेत्रा के दिमाग में चल रहे विचार बाध्य महसूस कर,नेत्रा को हकीक़त के हवाले कर देते है,नेत्रा भी एक कदम आगे चल रुक जाती है।
कल्कि और यूवी अपने आस पास देखती है तो उन्हें घर जैसा दिखने वाला कुछ भी नहीं दिखता है,बल्कि दूर दूर तक खाली सुनहरी चपाट जमीन ही दिख रही थी ,जिसपर कोई छत तो नहीं थी लेकिन चारों और घूम रहें सभी सूरज अपनी तपत वहां तक पहुंचाने में नाकाम लग रहे थे,और आसमान भी वहां मानो रुका हुआ सा लग रहा था।उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ये जगह सामान्य होते हुए भी दूसरी जंगह से इतनी अलग क्यूं है?तीनों ही अपने अनुसार जगह की विशेषताओं का अनुमान ही लगा रही थी।तभी ग्रमिल उनको इशारे से थोड़ा पीछे हटने के लिए कहता है। नेत्रा समझ जाती है और कल्कि ,यूवी दोनों को भी अपने साथ कुछ कदम पीछे हटा लेती है।
तभी ग्रमिल जिस हाथ में उसने कंगन डाला हुआ था उसे अपने माथे पर बने निशान से छूने के बाद ,जमीन पर पड़े एक सामान्य से गहरी काली स्याही सा दिखने वाले पत्थर से छुआ देता है। उस कंगन के स्पर्श मात्र से उस पत्थर का रंग बदलने लगता है ,उसमें से कुछ रस्सियों जैसी दिखने वाली रेखाएं निकलना शुरू कर देती हैं।जिनमें से हल्दी रंग की शीतल सी चमक बाहर की ओर निकलती प्रतीत हो रही थी मानो किसी ने छोटे छोटे पीली रोशनी वाले बल्ब से उनको सजा दिया हो।जैसे जैसे वो रस्सियां आसमान में फैल रही थी ,वैसे वैसे ही वो अपना सामान्य आकार छोड़ कर उस जगह के पूरे आकाश में गोला आकार में पसर जाती हैं।जिसको देखकर लगता है ,मानो हवा को रोककर किसी ने छत बनाने की ठान ली हो। उस आवरण के आर पार देखना बेहद आसान था,लेकिन उसकी छाव वहां की जमीन पर बिखरना उन तीनों के लिए बेहद आसामान्य था। नेत्रा खुद की भौतिक विज्ञान के सारे नियम लगा कर भी समझ नहीं पा रही थी कि ये सब हो क्या रहा है।
ग्रमिल उनको उस आवरण के अंदर चलने को कहता है।वो तीनों भी हैरान परेशान सी, हर नज़ारे को नजरों में समाती हुई उसके साथ साथ चलने लगती है। जब वो अंदर गए तब उन्होंने देखा की वहां पूरा एक गांव बसा हुआ है जो बाहर से दिख भी नहीं रहा था, उस गोल आवरण के किनारों पर घर जैसी ही दिखने वाली कुछ आकृतियां बनी हुई थी जिनकी चार दीवारें तो थी ,लेकिन छत नहीं थी, दीवारों की मोटाई बस किसी गत्ते की मोटाई मात्र थी ,लेकिन देखने से ही वो बहुत मजबूत लग रही थी।बीच में पूरी जगह खाली थी ,बस बीचों बीच एक पेड़ या शायद पेड़ जैसा कुछ लगा हुआ था,जिसके तने के बीच में एक गोल छेद बना हुआ था,जिसके आर पार आसानी से देखा जा सकता था। ग्रमिल जैसे ही दिखने वाले बहुत से जीव इधर उधर अपने काम में लगे हुए थे ।कुछ वेश भूषा से बिल्कुल ग्रमिल्ल जैसे लग रहे थे,और कुछ के कपड़े उनके पूरे शरीर को ढके हुए थे, बाल भी ग्रमिल के बालों से थोड़े अलग रंग के थे ,और उनको बांधने का तरीका भी कुछ अलग था। उनके शरीर की सरंचना से ये अंदाजा लगाया जा सकता था कि शायद ये इस ग्रह पर लड़कियों की तरह दिखने वाले जीव होंगी।ग्रमिल जब अपने साथ उनको आगे आगे लेकर जा रहा था,तब जो भी उन्हें देखता वो अपना काम छोड़, अचरज से उनको देखता ही रह जाता। उन सबकी नीली चमकती आंखें उपर से नीचे तक उन तीनों को निहार रही थी,क्यूंकि वो उनसे दिखने में बहुत अलग लग रहीं थी। ग्रमिल उनको एक आकृति के अंदर प्रवेश करवाता है , शायद वो उसका घर था।घर के अंदर प्रवेश करने के लिए भी दरवाजा सामान्य प्रतीत नहीं हो रहा था क्यूंकि एक दरवाजा दो भागों में बंटा हुआ था, एक तरफ गहरा अंधेरा लग रहा था और दूसरी तरफ से हम आसानी से अंदर देख सकते थे। ग्रमिल जहां से सब दिख रहा था उस तरफ से अंदर प्रवेश करते हुए उनको भी अंदर आने का इशारा करता है।वो तीनो थोड़ा डरी हुई सी घर के अंदर प्रवेश करती हैं।अंदर घर कई हिस्सों में बंटा हुआ था,जैसे आमतौर पर धरती पर घर को कमरों के हिस्से कर दिया जाता है।ग्रमिल के आलावा उस घर में तीन और लोग थे,जो उनको देख कर उठ खड़े हुए थे।ग्रमिल उन तीनों को एक ऊंची सी जगह पर बैठने का इशारा करता है,जो देखने से ऐसी लग रही थी मानो किसी ने बर्फ़ की मोटी सिली धरती पर जमा दी हो। वो उस पर बैठ जाती हैं जो बिल्कुल भी ठंडी नहीं थी और ना ही सख्त बल्कि बैठने पर वो किसी कोमल बिस्तर सी अनुभव हुई।
ग्रमिल के घर के तीनों सदस्य उनके पास आकर खड़े हो गए थे। तीनों को अब थोड़ा और डर लग रहा था।
ग्रमिल नेत्रा को बताता है कि ये मेरे माता पिता और छोटा भाई है। अपने माता पिता को भी वो उन तीनों का परिचय कराता है।
ग्रमिल का पूरा परिवार अपनी भाषा में बात करने लग जातें हैं,उन चारों के चेहरे पर थोड़ी परेशानी के भाव थे , लेकिन वो इतना धीरे बोल रहे थे कि नेत्रा ,कल्कि और यूवी कुछ भी सुन नहीं पा रहे थे।नेत्रा उनको देख कर खुद को रोक नहीं पाती और उनसे पूछ लेती है।
नेत्रा:" आप सब क्या बात कर रहें हैं?? "
ग्रमिल:" कुछ भी तो नहीं नेत्रा जी "
नेत्रा:" तो फिर आप सब इतना परेशान क्यूं लग रहें है ? देखिए अगर हमारी वजह से कोई परेशानी है,तो आप हमें बता सकते हैं।"
ग्रमिल:" नहीं नेत्रा जी आपकी वजह से क्या परेशानी होनी थी।"
तभी ग्रमिल से उनके पापा बोलते हैं।
"तुम उन्हें पूरी बात क्यों नहीं बताते,उन्हें भी ये बात पता होनी चाहिए।"
नेत्रा को उनकी बात समझ अा जाती है।
नेत्रा:" ग्रमिल आप हमें बात बताओ ,क्या बात है?"
ग्रमिल थोड़ा गंभीर होते हुए बोलना शुरू करता है।
ग्रमिल:" वो दरअसल बात ये है नेत्रा जी , कि हूबहू आप तीनों जैसी वेशभूषा वाला एक जीव आज से बहुत समय पहले यहां आया था ,हम सब उनको पहली बार देख कर बहुत डर गए थे ,और शायद वो हमें देखकर ,हमने उनसे बात करने की बहुत कोशिश की लेकिन वो हमारी बात समझ ही नहीं पा रहे थे। पर अब वो इशारे से बहुत कुछ समझ जातें है,और अब तो उनकी हमसे दोस्ती भी ही गई है। बस इसलिए आप सबको देखकर इन सब को थोड़ी उत्सुकता हुई थी, यही बात हम आपस में कर रहे थे।"
नेत्रा:" क्या हमारे जैसा?? "
ग्रमिल:" जी "
नेत्रा:" क्या हम उनसे मिल सकतें हैं??"
ग्रमिल:" हां क्यूं नहीं ,लेकिन अभी नहीं ,इस समय वो क्षेत्र से बाहर की और चले जाते हैं,पर कुछ समय बाद वो आते ही होंगे। तब तक आप सब कुछ खा लीजिए ,और विश्राम कीजिए।"
नेत्रा:" जी"
ग्रमिल:" लेकिन हमें अब तक इस बात पर आश्चर्य है कि आप सब में से कोई भी हमारी बात नहीं समझता फिर आप कैसे?"
नेत्रा:" वो तो हम खुद भी नहीं समझ पाएं हैं अब तक"
ग्रमिल:" कोई बात नहीं ,हम इस बारे में फिर बात करेंगे , अभी आप यहां विश्राम करिए,तब तक हम आपके लिए खाना लेकर आतें हैं।"
घर के एक किनारे बने भाग की तरफ इशारा करते हुए कहता है।
नेत्रा हामिं में गरदन हिला कर कल्कि और यूवी को खुद के साथ उस तरफ चलने को कहती है। वो दोनों भी उसके साथ वहां चले जातें हैं।

कल्कि:" नेत्रा की बच्ची खुद ही जी जी कर रही है हमें भी तो बता कबसे क्या बात कर रही थी तू इन सब से??"
नेत्रा:" अरे कुछ नहीं ,ये बोल रहे थे कि हमारे जैसा दिखने वाला मतलब कोई इंसान बहुत पहले यहां अा चुका है।"
यूवी:" क्या?? तो फिर तो हमें उनसे मिलना चाहिए ना ?"
नेत्रा:" हां ,हमने भी यही बोला था उनको ,लेकिन अभी वो यहां नहीं है लेकिन कुछ समय तक अा जाएंगे।तब तक हमें यहीं पर रेस्ट करने को बोला है।"
कल्कि:" यार मैं तो उस इंसान मिलने के लिए बहुत ज्यादा एक्साइटेड हूं। "
यूवी:" ओ हेल्लो मैडम हम सब ही एक्साइटेड हैं ,इतना आेवर रिएक्ट करने की जरूरत नहीं है।"
कल्कि:" क्या कहा, मैं आेवर रिएक्ट कर रही हूं??? तुझे मुझसे प्रॉब्लम क्या......."
ग्रमिल:" ये लीजिए आप सबका खाना ।"
ग्रमिल हाथ में किसी गहरे लाल पत्ते पर हल्का पीले रंग का कोई व्यंजन (जो देखने में मूंग की दाल के हलवे की याद दिला रहा था) को लेकर उनके सामने खड़ा था। उसको देखकर कल्कि और यूवी खुद को थोड़ा सहज करती है।
नेत्रा उठकर ग्रमिल के हाथ से खाने के पत्र को लेने लगती है । तभी अचानक ही उन दोनों के कंगन आपस में टकराने से एक विद्युत धारा का प्रवाह नेत्रा को खुद के शरीर में महसूस होने की वजह से वो खुद को थोड़ा पीछे धकेल देती है। ग्रमिल भी अचानक हुई इस घटना से खुद को असेहज़ महसूस करता है।और खाना वहीं बनी एक बर्फ़ जैसी ऊंची जगह पर रख देता है।कल्कि और यूवी बस मूक पात्र बन पूरा दृश्य अपनी आंखो के सामने होता देख रही थी।

ग्रमिल:" ये कैसे हो सकता है ??नहीं शायद ये हमारा भ्रम है.... "
ग्रमिल खुद में ही खोया हुआ सा शब्दों को दोहरा रहा था। नेत्रा जो अब थोड़ा ठीक महसूस कर रही थी।उसको ऐसे बोलता हुए देख उस से पूछती है।
नेत्रा:" क्या नहीं हो सकता ?? आप क्या बोल रहे हैं।"
लेकिन ग्रमिल बिना कुछ कहे बस ये बोलकर चला जाता है कि आप सब खाना खा लें,कुछ देर बाद मिलते हैं।
नेत्रा एक बार फिर से खुद को ख़ुद में ही उलझा हुआ सा महसूस करती है।
कल्कि:" नेत्रा कहां खो गई,क्या हुआ था तुम दोनों को ??"
कल्कि के छूने के एहसास से खुद को ढूंढते हुए बोलती है।
नेत्रा:" हूं, हां आ,वो ,कुछ नहीं ,तुम दोनों चलों खाना खाते हैं,देखें तो ग्रमिल क्या देकर गया है खाने में??"
बात को टालते हुए खाने के पास पहुंचते हुए कहती है,क्यूंकि वो नहीं चाहती थी कि वो दोनो भी उसकी तरह पहेलियों में उलझे।

यूवी:" हां यार,देखें तो सही इस दुनिया के लोग खाते क्या हैं??" हल्की सी मुस्कान चेहरे पर ला उछलते हुए बोलती है।
कल्कि:" लेकिन कभी ये हमारे खाने लायक हो ही ना??"
नेत्रा:" वाओ,ये तो बहुत टेस्टी है ..."
आंखें बंद कर मुंह में रखे खाने के निवाले का आनंद लेते हुए कहती है।
कल्कि और यूवी जो अब तक खाने की खामियों खुबियों पर बातें करने में मशगूल थी ,दोनों एक साथ नेत्रा की तरफ देखती है।
कल्कि:" तूने खा भी लिया??" थोड़ा गुस्से से बोलती है।
नेत्रा:" हां ,लेकिन ये समझ नहीं आ रहा कि ये है क्या??"
कल्कि:" तू इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है, अगर इस से कुछ नुकसान हो जाता तब ,तब क्या करते हम?"
नेत्रा:" आॅफो,कुछ हुआ तो नहीं ना यार,और वैसे भी इसको देखते ही मेरे तो मुंह में पानी आ गया था,तो मैंने खा लिया। अब तुम दोनों भी बहस बन्द करो और इस से पहले मैं सारा ख़तम कर दूं,तुम भी खा लो।"
ऐसा सुनते ही यूवी और कल्कि भी खाने की तरफ अपने दोनों हाथ बढ़ा देती हैं।
कल्कि:" वाह ये तो सच में बहुत टेस्टी था।"
यूवी:" क्या था ये पता नहीं,पर जो भी था लाज़वाब था।" पूरा खाना खाने के बाद दोनो खाने की तारीफ़ में कहती हैं।
खाना पूरा होने के बाद वो वहीं लेट जाती हैं, कुछ देर बाद ही ग्रमिल उनके पास आता है।
ग्रमिल:" चलें नेत्रा जी,उनसे मिलने ।"
तीनों अचानक अाई आवाज की वजह से उसकी तरफ देखती है।
नेत्रा:" हां, चलते हैं। "
नेत्रा ,कल्कि और यूवी को भी चलने के लिए बोलती है और तीनों ग्रमिल के साथ चलने लगती हैं। घर से बाहर निकलने के लिए अब दरवाजे का दूसरा भाग जिसमें से बाहर का सब कुछ साफ दिख रहा था,us भाग को इस्तमाल करते हैं। वो सब घर से बाहर निकलती हैं।बाहर का नजारा अब वैसा नहीं था जैसा पहले दिख रहा था,आसमान अब थोड़ा गहरा गया था ,और गोल आवरण का उपरी हिस्सा उपर की तरफ खुला हुआ महसूस हो रहा था,जैसे मानो शाम का लुत्फ़ उठाने के लिए घर की खिड़कियां खोल दी हो।वहां से वो घुमतें सूरज आसानी से दिख रहे थे।जो अब पहले से भी नजदीक प्रतीत हो गए थे।
वो तीनों तो बस अवाक सी सबकुछ निहार रही थी।अचानक धीरे धीरे वों सब सूरज ओर नजदीक आने लगे और ,घूमते घूमते खुद को उन सब ने एक सीधी रेखा में बांध लिया,जिसको देखने से लग रहा था कि वो नीचे की तरफ ही अा रहें हों।
कल्कि:" अरे,ये तो हमारी तरफ ही अा रहें हैं।"
नेत्रा:" ऐसे तो ये हम सबके ऊपर ही गिर जाएंगे।"
यूवी:" ओह नो ,मतलब हम सब अब मरने वाले हैं।"
तीनों उनको अपनी तरफ आता देख बहुत डर जाती हैं। वो सब खुद को ग्रमिल के पीछे छुपाने की कोशिश करती हैं।
ग्रमिल:" नेत्रा जी,आप सब डरिए मत इस से कुछ नहीं होगा ,आप हमारे साथ चलिए।"
ये बात सुनकर,नेत्रा उन दोनों को लेकर ग्रमिल के साथ साथ चलने लगी,लेकिन तीनों की आंखें अब भी वहीं टिकी हुई थी। देखते ही देखते वो सब सूरज एक कतार में बीचों बीच उस पेड़ के तने में बने छेद से गुजरने लगे। हर सूरज उस पेड़ के पास आते ही खुद को उसी छेद के अनुसार सूक्ष्म रूप में रूपांतरित कर लेते, फिर जैसे ही वो उस छेद में प्रवेश करते तो वहीं कुछ देर रुक जाते मानो पूरा दिन घूमने के बाद अपने घर आकर एक थका हारा मज़दूर विश्राम कर रहा हो।उनकी रोशनी और तपत का बहुत अंश उस पेड़ के तने में समा जाता ,नतीजन जब वो दूसरी ओर से बाहर आते तो बहुत शांत और शीतल से प्रतीत होते,जिनको देख कर लगता मानो सूरज ने खुद को चांद में बदल लिया हो, जो पुनः अपने सामान्य आकार में आकर फिर से आसमान की सैर पर निकल जाते। हर सूरज ऐसे ही कर रहा था।तीनों ही फिर से बूत बनकर आंखो के सामने सब होते देखती रही।
नेत्रा:" ये क्या था??" नेत्रा अपने साथ खड़े हुए ग्रमिल से पूछती है।
ग्रमिल:" कुछ नहीं नेत्रा जी,दिन ढल रहा है ,रात्रि वेला की तैयारी कर रही है हमारी प्रकृति।"
नेत्रा:" क्या ,ये रात हो रही है ?? मतलब यहां हर रोज ऐसे ही रात होती है??"
ग्रमिल:" जी ,तभी तो हम आपसे बोल रहे थे कि आप डरें नहीं।"
कल्कि और यूवी बात समझ गई थी , उन सब को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
ग्रमिल उन तीनों को आगे चलने को बोलता है , वो भी बिना कुछ कहे उसके पीछे पीछे चलने लगते हैं।

कुछ समय बाद ही वो जिस घर से चले थे उस से पूरे पांच घर और एक घुमाव छोड़कर किसी घर के आगे रुकते हैं।ग्रमिल उस घर की दीवार को छूकर तीन बार अपने हाथ को दीवार पर रखकर घुमाता है, जिसकी वजह से एक ध्वनि उत्पन्न होती है।
थोड़े समय बाद ही उस घर से एक व्यक्ति बाहर आता है। वो तीनो उसको देखती हैं, वो दिखने में सच में उनकी तरह ही एक इंसान था।जिसके बालों में समय की सफेदी साफ देखी जा सकती थी। कपड़ों के नाम पर उसने भी उस जगह के अनुसार हवा का गुब्बारा लपेटा हुआ था,चेहरे का गोरा रंग समय के साथ,ना तो सफेद ही रहा,बल्कि वो भी कुछ हद तक हल्का बैंगनी लग रहा था,जो था वो भी झुरियों में कहीं दब गया था,लेकिन चमक अब भी बरकरार थी।कमर का झुकाव उम्र के बढ़ने की और इशारा कर रही थी।
वो भी उन तीनों को उतनी ही हैरानी से देखता है जितना की वो तीनों उसको ।
नेत्रा:" आप कौन ??"
" जी मैं रियोन मैक्सी "
कल्कि:" क्या ?? आप साइंटिस्ट रियोन् मैक्सी हैं। रियोंन:" जी हां ,लेकिन आप सब कौन हैं ?? और आप यहां कैसे पहुंची ??"
कल्कि:" वो तो हमें खुद नहीं पता हैं,हम तो बस उस गोले को देख रहे थे,फिर शायद हम उसमें गिर गए,बेहोशी के बाद आंख खुली तो देखा तो हम यहां हैं।"
रियोंन:" कहीं आप नॉर्थ पोल पर तो नहीं गई थी ना??"
नेत्रा:" जी हां,लेकिन आपको कैसे पता ये ???"
रियोंन:" मुझे उस जगह का कैसे नहीं पता होगा। ओह,माफ़ करना आप सबको अंदर बुलाना तो भूल ही गया। आप सब अंदर तो आइए ,बैठकर बात करतें है।"
रियोंन मैक्सी उन सबको अपने घर के अंदर ले जाता है,जो लगभग ग्रमिल के घर से ही मिलता जुलता था।
वो वहां बनी जगह पर उन सबको बैठने का इशारा करता है। और खुद भी सामने बनी एक कुर्सी ,जो शायद उन्होंने खुद ही बनाई थी ,पर बैठ जाता है।
नेत्रा:" हां तो आप अब बताइए कि आपको कैसे पता चला कि हम नॉर्थ पॉल पर थे?"
मैक्सी:" क्यूंकि मैं खुद उसी जगह से यहां पहुंचा था ,आज से लगभग 23 साल पहले।ठीक तुम्हारी ही तरह वो दरवाज़ा मुझे भी दिखा था,और वहां से मैं यहां पहुंच गया था।लेकिन तुम्हारे वहां आने से वो दरवाजा कैसे खुल सकता है,तुम तीनों तो देखने में इंसान हो ,कोई भी तुम में से नासिन्न नहीं लग रहा है।"
नेत्रा:" वो दरवाजा वहां अचानक कहां से आया था , ये तो हमें भी नहीं पता , और ये नासिन्न कौन है?"
मैक्सी:" यहां के लोगों को मैंने नासिंन्न नाम रखा है,क्यूंकि मैं मानता था कि परैलल यूनिवर्स में सब हमसे उल्टा होगा तो मैंने वहां पर रहने वाले जिंवो को इंसान का बिल्कुल उल्टा यानी नासिन्न नाम दिया था। रही बात उस दरवाजे की तो वो कोई नासिन्न ही खोल सकता था।तो फिर... "
बोलते बोलते उसका ध्यान नेत्रा के हाथ में डाले हुए उस कंगन पर पड़ती है।
मैक्सी:" ये तुम्हारे पास कहां से आया??"
नेत्रा:" क्या ??"
नेत्रा को उनकी बात ना समझ आने की वजह से वो पूछती है।
मैक्सी:" ये जो तुमने हाथ में डाला हुआ है।"
नेत्रा:" ओह अच्छा, ये,ये तो बचपन से ही हमारा है,बड़ी मां ने बताया था जब हम उन्हें पहली बार उस अजीब सी टोकरी में आश्रम के बाहर मिले थे तब हमने इसको अपने हाथ में पकड़ा हुआ था।"
मैक्सी:" अच्छा,तुम प्लीज़ अपने ये बाल हटाना एक बार।"
उसके माथे तक आए बालों की तरफ इशारा करते हुए कहता है।
नेत्रा अपने बालों को कान के पीछे की तरफ टीका देती है। बाल पीछे जानें की वजह से मैक्सी को उसके माथे के किनारे पर बना निशान साफ दिखता है।
मैक्सी:" ओह ,तो तुम वही हो , तुम नासिन्न हो।"
नेत्रा के ये बात सुनकर होश उड़ जातें हैं।
नेत्रा:"ये आप क्या कह रहे हैं?? आप ऐसा कैसे कह सकते हो? मतलब मैं ओर नासिन्न ,मुझमें और इनमें तो देखने में भी कितना अंतर है।"
मैक्सी:" मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं,ये जो तुमने हाथ में डाला हुआ है,और ये निशान , खुद ही तुम्हारे नासिन्न होने की गवाही दे रहे हैं।तुम अंदर से बिल्कुल इन जैसी ही हो ,और ये जो तुम दिखने में अलग लग रही हो ये सिर्फ इस दुनिया यानी विथरपी" और पृथ्वी की विशेषताओं में अंतर की वजह से हुआ है।"
कल्कि:" मतलब नेत्रा इंसान नहीं है??" चौंकते हुए पूछती हैं।
मैक्सी:" नहीं ,देखो मैं तुम सबको पूरी बात समझाता हूं। दरअसल नासिन्न हमसे बहुत आगे निकल गए हैं,बस इन्हे ये बात खुद नहीं पता। ये जो तुम हाथ में डाले हुए हो ,ये कोई साधारण चूड़ी मात्र नहीं है बल्कि यह खुद में बहुत सी खूबियां या शक्तियां समाए हुए हैं। यासिन्नओं ने हमारे चारों ओर हर समय रहने वाली इलेकट्रोमैगनेटिक तरंगों को कंट्रोल करना आता है।
तुम्हें लग रहा होगा कि तुम यहां खुद अाई हो ,लेकिन ये कंगन खुद तुम्हे यहां लेकर आया है। हर नासिन्न के पास ऐसा ही कंगन होता है। जो आपस में जुड़े हुए हैं।
हमारी आकाशगंगा और इनकी पातालगंगा दोनों विपरीत दिशा में गतिमान है।जिसकी वजह से यह ग्रह धीरे धीरे पृथ्वी के पास अा रहा है। अगर यह पृथ्वी से टकराया तो सब तबाह हो जाएगा। ये बात नासिन्न बहुत पहले जान गए थे।
आज से 23 वर्ष नहीं पृथ्वी के अनुसार 22 वर्ष पहले इन सबने तय किया कि ये अपनी सारी ऊर्जा जो की इन कंगन में समाहित है को मिलाकर अपने ग्रह को बहुत प्रकाश वर्ष दूर धकेल देंगे ,जिस से जब ये हमारी पृथ्वी के पास से गुजरता तब उस से बहुत दूर रहता,और बिना टकराए दोनो गैलक्सी एक दूसरे से गुजर जाती।"
नेत्रा:" तो फिर मैं धरती पर कैसे पहुंची ,और अगर यह हमारी पृथ्वी के इतने पास है तो हम इंसानों को अब तक क्यूं नहीं पता??"
मैक्सी:"हम वही तो बता रहे हैं,आप सुनो तो पहले....जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि ये तरंगों को हमसे बेहतर समझते हैं। इसलिए इंसान नहीं जानते अभी लेकिन नासिन्न जान पाएं हैं।और अभी भी पृथ्वी यहां से कई प्रकाश वर्ष दूर है।
तो उस समय जब सबने अपनी शक्ति एक साथ कर रहें थे,तब तुम बहुत छोटी थी और अपने घुटनों के बल सरकते सरकते उस किनारे पहुंच गई जहां पर इनका और हमारा ग्रह एकदुसरे को सबसे ज्यादा आकर्षित करते हैं। और इस कंगन के प्रभाव से तुम प्रकाश की गति से भी तेज गति से पृथ्वी पर पहुंच गई।
मेरी खुशकिस्मती लगाओ या बदकिस्मती उसी समय मैं भी अपनी रिसर्च के लिए वहां था। उस वजह से तुम वहां और मैं यहां पहुंच गया। लेकिन इस रास्ते की एक खूबी है कि यह दरवाजा एक तरफ से एक बार ही खुल सकता था। इस तरफ से तुमने इसको एक बार प्रयोग में ला चुकी थी,इसका मतलब कि कोई यासिन्न ही अब इसे पृथ्वी की तरफ से खोल सकता था।इसलिए तुम्हारा कंगन वहां की जमीन से छूने की वजह से इनको तरंग सन्देश मिला होगा और ये रास्ता फिर से खुल गया होगा।"
नेत्रा:" लेकिन अगर आपके अनुसार मैं यहां से वहां पहुंची हूं तो मुझे तो नॉर्थ पोल के आसपास ही मिलना चाहिए था,लेकिन मैं तो वहां से बहुत दूर पली बढ़ी हूं।"
मैक्सी:" मैं दावे से तो नहीं कह सकता ,लेकिन शायद तुम मेरी ही बनाई ' मीली" मशीन जो प्रकाश की गति से कुछ ही गति से चलती थी, उसमें जा गिरी होंगी ,क्यूंकि मैं वहां उसको साथ लेकर ही आया था,परीक्षण के लिए।तुम्हारे बैठते ही वो एक्टिवेट हो गई होगी और तुम कहीं ओर पहुंच गई होगी।मतलब मेरी मीली काम कर रही थी।" चेहरे पर हल्की सी जीत के भाव बिखेरते हुए कहता है।
नेत्रा:" हां बड़ी मां ने भी कुछ ऐसा ही कहा था कि मैं किसी अजीब सी दिखने वाली टोकरी में ही मिली थी उन्हें।"
मैक्सी:"इसका मतलब नासिन्न अब फिर से अपनी शक्तिया साथ कर सकते हैं,क्यूंकि जबतक सब कंगन साथ ना हो तब तक ये संभव नहीं था। अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। सब बच जाएंगे। लेकिन..." किसी किसी सोच में डूब ते हुए कहते हैं।
नेत्रा:" लेकिन क्या??"
मैक्सी:" लेकिन बहुत दिन तुम्हारे और कंगन के धरती पर रहने की वजह से तुम दोनों की ही शक्तियां बहुत क्षीण हो गई है। जिनको दोबारा पाना बहुत मुश्किल है।"
नेत्रा:" अगर मेरे ऐसा करने से दो दुनिया बच सकती हैं तो मैं उन शक्तियों को वापिस लाने के लिए कुछ भी करूंगी ।"
मैक्सी:" लेकिन ऐसा करने के बाद तुम फिर कभी पृथ्वी पर नहीं जा पाओगी। क्यूंकि फिर तुम पूरी तरह नासिन्न बन जाओगी।इसलिए तुम इस बारे में एक बार आराम से सोच लेना और फिर जवाब देना।"
नेत्रा:" मैंने सोच कर ही जवाब दिया है।
मैंने सही कहा ना ??"
कल्कि और यूवी की तरफ देख कर बोलती है। वो दोनों भी हां में सिर हिला देती है।

to be continue......

दोस्तो ,अब आगे क्या क्या नया देखने को मिलता है वो तो अगले भाग में ही पता चलेगा।और ये भाग आप सबको कैसा लगा हमें समीक्षा करके जरुर बताएं।आप सबकी समीक्षा का इंतजार रहेगा।

jagGu parjapati ✍️☺️🥰🙏