Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 18 in Hindi Biography by Suraj Prakash books and stories PDF | चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 18

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 18

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

18

उत्सुकता और चिंता से भरा मैं लॉस एंजेल्स पहुँचा और ग्रेट नार्दर्न में एक छोटे से होटल में कमरा ले कर टिक गया। पहली ही शाम को मैंने एक बसमैन होलिडे का टिकट लिया और एम्प्रेस में दूसरा शो देखा। यहीं पर कार्नो कम्पनी अपने प्रदर्शन कर चुकी थी। एटेडेंट ने मुझे पहचान लिया और बाद कुछ ही पल बाद मुझे यह बताने के लिए आया कि मिस्टर सेनेट और मिस मॉबेल नोर्माड मुझसे दो कतारें पीछे बैठे हुए हैं और पूछ रहे हैं कि क्या मैं उनके साथ बैठना पसंद करूंगा? मैं रोमांचित हो गया और जल्दबाजी में, फुसफुसा कर किये गये परिचय के बाद हमने मिल कर शो देखा। शो के खत्म हो जाने के बाद, हम मेन स्ट्रीट पर कुछ कदम चल कर गये और हल्के-फुलके खाने और ड्रिंक के लिए तहखाने में बने बीयर बार में चले गये। मिस्टर सेनेट को यह देख कर धक्का लगा कि मैं इतनी कम उम्र का हूँ।

"मेरा तो ख्याल था कि तुम काफी बूढ़े आदमी होवोगे," उन्होंने कहा। उनकी आवाज़ में परेशानी का तंज था। और इस बात ने मुझे भी परेशानी में डाल दिया क्योंकि सेनेट साहब के सभी कामेडियन बुढ़ऊ से दिखने वाले शख्स होते थे। फ्रेड मेस पचास से ऊपर की उम्र के थे जबकि फोर्ड स्टर्लिंग भी चालीस के पेटे में थे।

"मैं उतने बूढ़े जैसा मेक अप कर सकता हूँ जितना आप चाहें, मैंने जवाब दिया।" अलबत्ता, नोर्माड ज्यादा आश्वस्त करने वाली थी। मेरे बारे में उसके जो भी ख्यालात थे, उसने उन्हें जाहिर नहीं होने दिया। मिस्टर सेनेट ने कहा कि मेरा काम तत्काल ही शुरू नहीं होगा। लेकिन मैं एडेन्डेल में स्टूडियो में आ सकता हूँ और वहाँ लोगों से जान पहचान बढ़ा सकता हूँ। जब हम कैफे से चले तो हम मिस्टर सेनेट की भव्य रेसिंग कार में ठुंस गये और उन्होंने मुझे मेरे होटल पर छोड़ दिया।

अगली सुबह, मैं एडेन्डेल के लिए एक स्ट्रीटकार में सवार हुआ। ये जगह लॉस एजेंल्स के एक उप नगर में थी। ये जगह बहुत बड़ी विचित्र सी दिखती थी और मैं तय नहीं कर पाया कि ये गुज़ारे लायक लोगों की रिहायशी बस्ती थी या फिर अर्ध-औद्योगिक बस्ती। इसमें छोटे-छोटे काठ कबाड़ और कबाड़ खाने थे और वहाँ उजाड़ से दिखने वाले छोटे-छोटे खेत थे जिन पर सड़क की तरफ एकाध लकड़ी के खोखे से बने हुए थे। कई जगह पूछताछ करने के बाद मैं कीस्टोन के सामने पहुँच पाया। यहाँ पर भी ढहते हुए खंडहरों वाला मामला था। उसके चारों तरफ हरी बाड़ लगी हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्ग फुट की। इसका रास्ता एक बगीचे के गलियारे से हो कर जाता था और बीच में एक पुराना बंगला पड़ता था। पूरी जगह ही एडेन्डेल की ही तरह मनहूसियत भरी लग रही थी। मैं सड़क के दूसरी तरफ खड़ा हो कर उसे देखता रहा और मन ही मन उधेड़बुन में लगा रहा कि भीतर जाऊँ या नहीं।

लंच टाइम हो रहा था और मैं औरतों, मर्दों को अपने अपने मेक अप में बंगले के बाहर आते देखता रहा। इनमें कीस्टोन के सुरक्षाकर्मी भी थे। वे सड़क पार कर सामने बने एक छोटे से जनरल स्टोर में जाते और सैंडविच और हॉट डॉग खाते हुऐ बाहर आ जाते। उनमें से कुछ लोग एक दूसरे को ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें देकर पुकार रहे थे,"...ओए हैंक, जल्दी करो, स्लिम से कहो, फटाफट आये।"

अचानक ही मैंने शर्मिंदगी महसूस की और तेजी से एक सुरक्षित दूरी पर जा कर एक कोने में खड़ा हो गया और देखने लगा कि शायद मिस्टर सेनेट या मिस नोर्माड बंगले से बाहर निकल कर आ जायें लेकिन वे नज़र नहीं आये। मैं आधे घंटे तक वहाँ खड़ा रहा और फिर मैंने फैसला कर लिया कि होटल में ही वापिस चला जाये। स्टूडियों में जाने और उन सब लोगों का सामना करने की समस्या मेरे लिए पहाड़ सी होती चली जा रही थी।

दो दिन तक मैं स्टूडियो के गेट तक आता रहा लेकिन मेरी इतनी हिम्मत नहीं थी कि भीतर तक जा सकूँ। तीसरे दिन मिस्टर सेनेट ने फोन किया और जानना चाहा कि मैंने अब तक अपनी शक्ल क्यों नहीं दिखायी है। मैंने कोई भी उलटा सीधा बहाना बना दिया। अभी ठीक इसी वक्त चले आओ। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा। उन्होंने कहा। इसलिए मैं वहाँ जा पहुँचा और धड़ल्ले से बंगले के भीतर घुसता चला गया और मिस्टर सेनेट के लिए पूछा।

वे मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मुझे सीधे ही स्टूडियों में ले गये। मेरी खुशी का पारावार न रहा। नरम, सम रौशनी पूरे सेट पर फैली हुई थी। ये रौशनी सफेद कपड़ों की बहुत बड़ी चादरों से आ रही थी जो सूर्य की रौशनी की चमक को छितरा रही थीं और इससे पूरे परिवेश को एक अलौकिक आभा सी मिल रही थी। रौशनी के इस फैलाव से दिन की सी रौशनी का आभास मिल रहा था।

एक या दो अभिनेताओं से मिलवाने के बाद मैं वहाँ चल रहे कारोबार में दिलचस्पी लेने लगा। एक दूसरे से सटे तीन-तीन सेट लगे हुए थे और उन पर तीन कॉमेडी कम्पनियाँ काम कर रही थीं। ये सब ऐसा लग रहा था मानो आप विश्व मेले में कुछ देख रहे हों। एक सेट पर माबेल नोर्माड एक दरवाजा पीट रही थीं और चिल्ला रही थी,"..मुझे भीतर आने दो।" तभी कैमरा रुक गया और सीन पूरा हो गया। तब मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था कि फिल्में इस तरह से टुकड़ों में बना करती हैं।

एक और सेट पर फोर्ड स्टर्लिंग काम कर रहे थे। मुझे उन्हीं की जगह लेनी थी। मिस्टर सेनेट ने उनसे मेरा परिचय कराया। फोर्ड साहब कीस्टोन कम्पनी छोड़ कर जा रहे थे क्योंकि वे युनिवर्सल के साथ मिल कर अपनी खुद की कम्पनी खड़ी करने वाले थे। वे जनता के बीच और स्टूडियो में सबके बीच बहुत अधिक लोकप्रिय थे। लोग बाग उनके सेट के आस-पास घेरा बनाये खड़े थे और उनके अभिनय पर खूब हँस रहे थे। सेनेट मुझे एक तरफ ले गये और अपने काम करने के तौर तरीके के बारे में बताया,"हमारे पास कोई सीनेरियो नहीं होता। हमें बस एक आइडिया आता है, और उसके बाद घटनाओं की स्वाभाविक ऋंखला चलती है और चलती रहती है और आखिर में भागा-दौड़ी में खत्म होती है। यही हमारी कॉमेडी का निचोड़ होता है।"

ये तरीका अच्छा था लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं पीछा करने के नाटक से नफरत करता था। इससे आदमी के व्यक्तित्व ही गायब हो जाता है, नास पिट जाता है उसका। अब चूंकि मैं फिल्मों के बारे में वैसे ही कम जानता था, लेकिन इतना ज़रूर जानता था कि कोई भी चीज़ व्यक्तित्व पर हावी नहीं होती।

उस दिन मैं एक सेट से दूसरे सेट के बीच भटकता रहा और कम्पनियों को काम करते देखता रहा। ऐसा लग रहा था मानों वे सब के सब स्टर्लिंग की ही नकल कर रहे हों। मैं इससे चिंता में पड़ गया, क्योंकि उनकी स्टाइल मुझे माफिक नहीं आती थी। वे एक परेशान हाल डच मेन की भूमिका कर रहे थे, और डच उच्चारण में दृश्यों के ज़रिये होठ हिलाने का अभिनय करते थे। हालांकि ये सब मज़ाक भरा होता था लेकिन मूक फिल्मों में खो जाता था। मैं इस बात को ले कर परेशान था कि मिस्टर सेनेट मुझसे क्या उम्मीद करते हैं। उन्होंने मेरा काम देखा हुआ था और जानते ही होंगे कि मैं फोर्ड टाइप की कॉमेडी के लायक नहीं था। लेकिन मेरी स्टाइल तो ठीक उसके विपरीत थी। इसके बावजूद स्टूडियो में सोची या विचारी गयी कोई भी कहानी या स्थिति सायास या अनायास ही फोर्ड साहेब को ही ध्यान में रख कर तय की जाती थी। यहाँ तक कि रोस्को ऑरबक्कल भी स्टर्लिंग की ही नकल कर रहे थे।

स्टूडियो निश्चित ही पहले कोई खेत रहा होगा। माबेल नोर्माड का ड्रेसिंग रूम दूर एक पुराने बंगले में था और इससे सटा हुआ एक दूसरा कमरा था जहाँ अभिनेत्रियों की मंडली की दूसरी महिलाओं के तैयार होने की जगह थी। बंगले के ठीक सामने ही कलाकारों की मंडली के जूनियर स्टाफ और कीस्टोन के सुरक्षा कर्मियों के लिए मुख्य ड्रेसिंग रूम था जो शायद कभी खलिहान रहा होगा। इनमें ज्यादातर लोग सर्कस के भूतपूर्व जोकर और ईनामी कुश्तीबाज रहे थे। मुझे स्टार ड्रेसिंग रूम दिया गया। इसे पहले मैक सेनेट, फोर्ड स्टर्लिंग और रोस्को ऑरबक्क्ल इस्तेमाल करते रहे थे। यह भी एक खलिहाननुमा ढांचा था जो शायद कभी अश्व सज्जा कक्ष होगा। माबेल नोर्माड के अलावा वहाँ दूसरी कई खूबसूरत लड़कियाँ भी थीं। ये सौन्दर्य और पाशविकता का अद्भुत और अनूठा संगम था।

कई दिन तक मैं स्टूडियो दर स्टूडियो भटकता रहा और हैरान परेशान होता रहा कि आखिर काम कब शुरू होगा। कई बार मैं स्टेज पर आते जाते सेनेट साहब से टकरा जाता, लेकिन वे मेरी तरफ सूनी निगाहों से देखते, और अपने ही ख्यालों में खोये रहते। मैं इस असुविधाजनक ख्याल से ही परेशान हो रहा था कि वे ये समझते होंगे कि उन्होंने मुझे रख कर गलती ही की है और वे मुझे इस हाल से निकालने के लिए कोई कोशिश भी तो नहीं कर रहे थे।

रोज़ दर रोज़ मेरी मानसिक शांति सेनेट साहब पर ही निर्भर करती थी। अगर हम कहीं एक दूसरे से रास्ते में टकरा भी गये तो वे मुस्कुरा देते और मेरी उम्मीदें बढ़ जातीं। बाकी कम्पनी का जो रुख था वह देखो और इंतज़ार करो वाला था लेकिन कुछ लोगों की निगाह में मैं फोर्ड के गलत विकल्प के रूप में ही चुन लिया गया था।

शनिवार आया तो सेनेट साहब बहुत ही उदारमना थे। उन्होंने कहा,"फ्रंट ऑफिस में जाओ और अपना चेक ले लो।" मैंने उनसे कहा कि मैं चेक के बजाये काम पाने के बारे में ज्यादा परेशान हूं। मैं फोर्ड स्टर्लिंग की नकल करने के बारे में भी बात करना चाहता था लेकिन उन्होंने मुझे ये कह कर दर किनार कर दिया,"चिंता मत करो, हम जल्दी ही तुम्हें काम भी देंगे।"

निट्ठले बैठे हुए नौ दिन बीत चुके थे और मेरा तनाव मेरी शिराओं पर आ रहा था। अलबत्ता, फोर्ड साहब मुझे सांत्वना देते, और काम के बाद अक्सर वे मुझे शहर तक लिफ्ट भी दे देते। हम रास्ते में एलेक्ज़ैंड्रा बार में ड्रिंक के लिए रुकते, उनके कई मित्रों से मिलते। उनमें से एक थे मिस्टर एल्मर एल्सवर्थ जिन्हें मैं शुरू शुरू में तो नापसंद करता रहा और उन्हें कुछ हद तक फूहड़ समझता रहा, लेकिन वे मुझ पर मज़ाक करते हुए फब्तियाँ कसते,"मेरा ख्याल है आप फोर्ड की जगह ले रहे हैं। ठीक है, आप हंसोड़ हैं क्या?"

"विनम्रता इस बात की इजाज़त नहीं देती," मैंने चुटकी ली। इस तरह ही घिसाई बहुत तकलीफदेह थी, खासकर फोर्ड साहब मौजूदगी में।

लेकिन पूरी सौम्यता से उन्होंने मुझे इस हालत से यह कह कर बाहर निकाल दिया,"क्या आपने इन्हें एम्प्रेस में शराबी की भूमिका में नहीं देखा है? बहुत हंसाया इन्होंने उसमें।"

"वैसे तो इन्होंने मुझे अब तक नहीं हंसाया है।" एल्सवर्थ बोले।

वे मोटे, बेढंगे आदमी थे जो ग्लैंडर रोग से पीड़ित दिखते थे, जिसमें नीचे का जबड़ा घोड़े की तरह सूज जाता है और नाक से पानी आने लगता है। उनका चेहरा उदासी से भरा और मनहूसियत के भाव लिये होता था। उनके चेहरे पर कोई बाल नहीं थे, उदास आँखें, और लटका चेहरा, और ऐसी मुस्कुराहट जिससे लगे कि वे साहित्य, वित्त और राजनीति पर कोई तोप चीज़ हैं। देश में सबसे ज्यादा जानकार बस, वही हैं और उन्हें हास्य बोध की खूब परख है। अलबत्ता, मुझे ये सब नहीं जमा और मैं तय किया कि मैं उनसे बचने की कोशिश करूंगा। लेकिन एलेक्जेंड्रा बार में एक रात, वे बोले,"अब तक ये जहाज पानी में नहीं उतरा है?"

"अब तक तो नहीं," मैं बेचैन हंसी हंसा।

"ठीक है, आप हंसोड़ ही बने रहो।"

इन महाशय से काफी कुछ सुन चुका था मैं। अब तक तो मैंने भी तय किया कि इनकी कड़ी खुराक का एक घूंट भी आज पिला ही दिया जाये।

"अच्छी बात है, आप जितने हंसोड़ दिखते हैं, उसके आधे में से भी मेरा काम चल जायेगा।"

"हुंह, ताने मारने वाला मज़ाक? ठीक है, ठीक है, मैं इसके बाद उनके लिए एक ड्रिंक खरीद दूंगा।"

और आखिर वे पल आ ही गये। सेनेट साहब माबेल के साथ लोकेशन पर बाहर गये हुए थे और फोर्ड स्टर्लिंग कम्पनी भी वहाँ नहीं थी। और इस हिसाब से स्टूडियो में कोई भी नहीं था। कीस्टोन के सबसे वरिष्ठ निर्देशक हेनरी लेहरमैन सेनेट के बाद एक नयी फिल्म शुरू करने वाले थे और चाहते थे कि मैं उसमें अखबार के एक रिपोर्टर की भूमिका करूं। लेहरमैन बहुत ही घमंडी किस्म के आदमी थे और इस बात पर उन्हें बहुत गर्व था कि उन्होंने मशीनी तरीके की कुछ बहुत ही सफल कॉमेडी फिल्में बनायी हैं। वे कहा करते थे कि उन्हें व्यक्तित्वों की ज़रूरत नहीं होती और वे अपने लिए हंसी का सारा सामान मैकेनिकल प्रभावों से और संपादन से पैदा कर सकते हैं।

हमारे पास कोई कहानी नहीं थी। सारा किस्सा प्रिंटिंग प्रेस के आस-पास बुना जाना था जिसमें यहाँ वहाँ हंसी के कुछ पल जुटाये जाने थे। मैंने एक हल्का फ्रॉक कोट पहना, एक टॉप हैट लगाया, और नींबू अटकाने वाली मूंछें रखीं। जब हमने काम शुरू किया तो मैं देख पा रहा था कि लेहरमेन साहब के पास नये नये विचारों का अकाल था। और ये बात भी थी कि चूंकि मैं कीस्टोन में नया था तो सुझाव देने के लिए छटपटा रहा था, परेशान था कि सुझाव दूँ या नहीं। और यहीं पर आकर मेरी लेहरमैन साहब से टकराहट शुरू हुई। एक दृश्य था जिसमें मुझे अखबार के सम्पादक का साक्षात्कार लेना था और अपनी तरफ से जितना भी सोचा जा सकता था, मैंने हँसी के पल डालने की कोशिश की। और यहाँ तक किया कि बाकी कलाकारों को भी सुझाव देने की ज़हमत भी उठायी। हालांकि फिल्म तीन दिन में पूरी हो गयी थी, मुझे लगा कि हम कुछ बहुत ही हँसी-मज़ाक की चीजें डालने में सफल रहे थे। लेकिन जब मैंने तैयार फिल्म देखी तो मेरा दिल डूब गया। इसका कारण यह था कि सम्पादक महोदय ने उसमें इतनी बुरी तरह से काट-छाँट कर दी थी कि उसे पहचाना ही नहीं जा सकता था। मेरे हँसी मज़ाक वाले सभी दृश्यों के ठीक बीच में कैंची चलायी गयी थी। मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया। और सोच-सोच कर परेशान होने लगा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया था। लेहरमैन साहब ने कई बरस बाद इस बात को स्वयं स्वीकार किया था कि उन्होंने ये सब जानबूझ कर किया था क्योंकि, उनके विचार से मैं कुछ ज्यादा ही सयाना बन रहा था।

लेहरमैन साहब के साथ जिस दिन मैंने अपना काम खत्म किया, उसके एक दिन बाद सेनेट साहब लोकेशन से वापिस आये। फोर्ड साहब एक सेट पर थे और ऑरबक्कल दूसरे सेट पर। पूरा का पूरा सेट तीनों कम्पनियों के काम के कारण व्यस्त था और वहाँ तिल धरने की जगह नहीं थी। मैं सड़क छाप कपड़ों में था और मेरे पास कोई काम धाम नहीं था। इसलिए मैं एक ऐसी जगह पर जा कर खड़ा हो गया जहाँ से सेनेट साहब की मुझ पर निगाह पड़ सके। वे माबेल के साथ खड़े थे और एक होटल लॉबी का सेट देख रहे थे और अपने सिगार का सिरा कुतर रहे थे।

"हमें यहाँ कुछ हँसी चाहिये।" उन्होंने कहा और फिर मेरी तरफ मुड़े,"कॉमेडी वाला मेक अप कर लो। कुछ भी चलेगा।"

मुझे रत्ती भर भी ख्याल नहीं था कि किस तरह का बाना धारण किया जाये। मुझे प्रेस रिपोर्टर वाला अपना गेट अप अच्छा नहीं लगा था। अलबत्ता, ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते समय मैंने सोचा कि मैं बैगी पैंट पहन लूँ, बड़े-बड़े जूते हों, हाथ में छड़ी हो, तंग कोट हो, हैट छोटा सा हो, और जूते बड़े। मैं अभी ये तय नहीं कर पाया था कि मुझे जवान दिखना चाहिये या बूढ़ा, लेकिन मुझे याद आया कि सेनेट साहब मुझसे उम्मीद कर रहे थे कि मैं काफी बूढ़ा लगूँ, मैंने छोटी छोटी मूंछें भी लगाने का फैसला किया जिससे, मेरे ख्याल से, बिना अपने हाव-भाव छुपाये मैं अपनी उम्र को ज्यादा दिखा सकता था।

मुझे चरित्र के बारे में कोई आइडिया नहीं था। लेकिन ज्यों ही मैं तैयार हुआ, कपड़ों से और मेक अप से मुझे पता चल गया कि इस बाने से किस किस्म का व्यक्ति बन चुका है। मैं उसे जानने लग गया और जब तक मैं स्टेज तक चल कर आता, उस व्यक्तित्व का पूरी तरह से जन्म हो चुका था। जब मैं सेनेट साहब के सामने आया तो मैंने चरित्र को ही जीना शुरू कर दिया और रौब से चलने लगा। अपनी छड़ी का हिलाते हुए और उनके आगे चहल कदमी करते हुए मेरे दिमाग से हँसी भरी स्थितियों और मज़ाकों का सोता सा फूटने लगा।

मैक सेनेट की सफलता का राज़ ये था कि उनमें गज़ब का उत्साह था। वे एक बहुत ही बेहतरीन श्रोता थे और जो बात भी उन्हें मज़ाकिया लगती, उस पर खुल कर हँसते थे। वे खड़े-खड़े तब तक खिलखिलाते रहे जब तक उनका पूरा शरीर हिलने डुलने नहीं लग गया। उन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाया और मुझे चरित्र समझाया,"तुम जानते हो कि इस आदमी के व्यक्तित्व के कई पहलु हैं। वह घुमक्कड़, मस्त मौला है, भला आदमी है, कवि है, स्वप्नजीवी है, अकेला जीव है, हमेशा रोमांस और रोमांच की उम्मीदें लगाये रहता है। वह तुम्हें इस बात की यकीन दिला देगा कि वह वैज्ञानिक है, संगीतज्ञ है, डाकू है, पोलो खिलाड़ी है, अलबत्ता, वह सड़क पर से सिगरेटें उठा कर पीने वाले और किसी बच्चे से उसकी टॉफी छीन लेने वाले से ज्यादा कुछ नहीं। और हाँ, यदि मौका आये तो वह किसी भली औरत को उसके पिछवाड़े लात भी जमा सकता है, लेकिन बेइंतहा गुस्से में ही।

मैं दस मिनट या उससे भी ज्यादा देर तक यही करता रहा, और सेनेट साहब लगातार हँसते रहे, खिलखिलाते रहे,"ठीक है, उन्होंने कहा,"चले जाओ सेट पर और देखो कि तुम क्या कर सकते हो।"

लेहरमैन की फिल्म की ही तरह मैं इस फिल्म के बारे में भी कुछ भी नहीं जानता था सिवाय इसके कि माबेल नोर्माड अपने पति और अपने प्रेमी के बीच फंस जाती है।

किसी भी कॉमेडी में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है नज़रिया। लेकिन हर बार नज़रिया ढूंढना आसान भी नहीं होता। अलबत्ता, होटल लॉबी में मैंने यह महसूस किया कि मैं छलिया हूँ जो कि किसी मेहमान की तरह पोज़ कर रहा है, लेकिन वास्तविकता में मैं एक ट्रैम्प था जो थोड़ा बहुत आश्रय चाहता है। मैं प्रवेश करता हूं और एक महिला के पैर से ठोकर खा जाता हूँ, मैं मुड़ता हूँ और जैसे माफी माँगते हुए अपना हैट उठाता हूँ और फिर मुड़ता हूं और इस बार एक पीकदान से टकरा जाता हूँ। और इस बार मैं पीकदान के आगे हैट उठाकर माफी मांगता हूँ। कैमरे के पीछे वे लोग हँसने लगे।

वहाँ पर काफी भीड़ जमा हो गयी थी। वहाँ न केवल उन दूसरी कम्पनियों के कलाकार अपना अपना काम छोड़ कर वहीं जुट आये थे बल्कि स्टेज पर काम करने वाले बढ़ई और वार्डरोब में काम करने वालों ने भी अच्छी खासी भीड़ जुटा ली थी। और ये सबसे बड़ा पुरस्कार था। और जब तक हमने रिहर्सल खत्म की, हमारे आस-पास बहुत बड़ी संख्या में दर्शक खड़े हुए हँस रहे थे। जल्दी ही मैंने फोर्ड साहब को दूसरे लोगों के कंधों के पीछे से उचक कर देखते हुए देखा। और जब ये सब खत्म हुआ तो मैं जानता था, मैं किला फतह कर चुका हूँ।

दिन के अंत में जब मैं अपने ड्रेसिंग रूम में गया तो फोर्ड स्टर्लिंग और ऑरबक्कल अपने-अपने मेकअप उतार रहे थे। बहुत कम बातें हुई लेकिन पूरे माहौल में एक लहर चल रही थी। फोर्ड तथा रोस्को, दोनों ने मुझे पसंद किया। लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो वे दोनों ही किसी भीतरी संघर्ष से जुझ रहे थे।

ये एक लम्बा दृश्य था जो पूरे पिचहत्तर फुट तक चला। बाद में लेहरमैन और सेनेट साहब में बहस होती रही कि क्या इस पूरे दृश्य को ज्यों का त्यों जाने दिया जाये क्योंकि उस समय अमूमन हँसी मज़ाक के दृश्यों की लम्बाई मुश्किल से दस फुट हुआ करती थी।

"ये अच्छा मज़ाक भरा है," मैंने कहा,"क्या लम्बाई से वाकई फर्क पड़ता है?" तब उन्होंने तय किया कि इस पूरे दृश्य को जस का तस पिचहत्तर फुट की लम्बाई तक जाने दिया जाये। चूँकि मेरे कपड़े मेरे चरित्र से मेल खा रहे थे, मैंने तभी और उसी वक्त ही तय कर लिया कि भले ही कुछ भी हो जाये, मैं अपनी इसी ढब को बनाये रखूँगा।