इज्जत के रहबर
सारा कस्बा सन्न रह गया ।
पुलिस के जासूस लगातार तलाश रहे थे कि यह वारदात किसने की ? लेकिन कहीं से कोई सूत्र नहीं मिल रहा था। बल्लू भी चकित था। जाने क्यों वह खो जाता है सांझ से , बार-बार कहीं अतीत में।
उसे लग रहा था कि इस वारदात का संबंध उस घर से तो नहीं...!
उस घर से उनका रिश्ता तब पता चला था उसे , जब बृहन्नला सोफिया की टोली शादी का शगुन लेने ऐसे घर में गयी , जिस घर में उसने कभी जाते नहीें देखा। वे लोग श्रीलाल के घर को मंजिल बना कर निकले थे उस दिन। दूर से ही ऐसे चिन्ह दिख रहे थे कि इस घर में तत्काल कोई ब्याह हुआ है। सोफिया की बातों से अंदाजा लगा था कि वह इस घर को बहुत निकट से जानती है। सोफिया ने ही किसी से कहा था कि आज श्रीलाल की खुशी का पारावार नही है । उनके छोटे भाई विशम्भर का विवाह जो हुआ था। अम्माँ - बाबूजी की मृत्यु के बाद उन्होंने ही भाई को पाला और कोई तकलीफ नहीं होने दी। विशम्भर अपने बड़े भाई श्रीलाल से उम्र में बहुत छोटा है , इसलिये उन्होंने उसे बेटे की तरह स्नेह दिया है ।
घर में खुशी का माहौल था। सब तरफ चहल-पहल और खूब कोलाहल था। नई बहू आ जाने से रौनक में और अधिक इजाफा हो गया था। आंगन में से ढोलक की थापों के साथ महिलाओं के गाने के स्वर गूँज रहे थे। बधाये और दादरे गाये जा रहे थे....
आज दिन सोने को महाराज,
सोने केा सब दिन सोने की रात
सोने के पलका धरइयो महाराज.....
बारात से लौटे रिश्तेदार समधियाने की खातिरदारी की तारीफ कर रहे थे शायद और सुन- सुनकर श्रीलाल का दिल बल्लियों उछल रहा था। रात की खुमारी अभी तक सबकी आँखों से उतरी नहीं थी..., श्रीलाल का मन व्यवस्थाओं में उलझ रहा था कि अचानक बाहर तालियाँ पीटने की आवाजें सुनाई पड़ीं । स्त्री पुरूष के मिले - जुले अजीब से स्वरों के साथ तेज आवाजें सुनी तो श्रीलाल ने बाहर आकर देखा कि अपने पूरे फौज- फाटे के साथ शबनम मौसी की हमजात सोफिया तालियाँ फटकारती हुई बाहर मौजूद थी।बल्लू को लगभग धकेलती हुए सोफिया बोली - ‘‘चल बल्लू उधर बैठ तो।’’
सोफिया तालियाँ पीटते हुए कह रही थी , ‘‘ हाय - हाय.........हाय हमें तो शगुन चाहिये। लड़के का ब्याह है.... कोई मजाक नहीं।’’ फिर वही तालियों की फट् - फट् गुंजाती बोली, ‘‘ ..... लड़के के ब्याह के नेग ल्याओ,... दो हजार एक का रेट चल रहा है... छोटू की भाभी !..... नया साड़ी - ब्लाउज चाहिए और देखो मिठाई- विठाई ,अनाज बगैरह भी लेती आना। ’’
तालियों की चट - चटाहट सुनकर दूसरे लोग भी बाहर निकल आये। सबके चेहरे पर मुस्कान की रेखा पसरी हुई थी। उन्हें देखते ही सोफिया पहले से भी अधिक तेज आवाज में तालियाँ पीटती हुई बोली .‘‘ हाय...हाय....हाय... अच्छे खाते-पीते हो.... तुम लोग ! इतना नहीं दोगे तो गरीब बेचारा क्या देगा, ... हाय...हाय...हाय... हमारा पेट कैसे पलेगा।’’
कहते हुए उसने पेट पर पड़े साड़ी के पल्ले को झटके से हटाकर इस अदा से अपना पेट दिखाया कि उसके गोरे गुदाज पेट के साथ - साथ बदन का ऊपरी हिस्सा भी दिख गया। ऊपरी हिस्सा यानि साइज में छोटा और खूब कसा हुआ ब्लाउज ...जिसकी दोनों कटोरियाँ भीतर के दबाव के कारण फट पड़ने को आतुर हो रहीं थीं।
बल्लू को जरा भी हैरत नहीं हुई। वहाँ खड़े पुरूष जरूर एक-दूसरे को अश्लील इशारा करके हँस दिये। उन लोगों के भाव ताड़कर श्रीलाल ने छोटे बच्चों को अन्दर जाने का आदेश सुना दिया। बल्लू ने देखा कि श्रीलाल सोफिया से कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन उसने उन्हें बोलने का जरा भी मौका नहीं दिया। वे बार - बार कुछ कहते लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दबकर रह जाती।
उन लोगों में सोफिया ही मुखिया थी। उसने अपने साथियों को आदेशित किया ‘‘ अरे री ! गाओ रे गाओ... ऐ बल्लू बजा तो ढोलक। ऐ संगीता..., ऐ रबीना... लगा तो ठुमका । अरी ओ रम्भा..., ओ सुल्ताना ...निकाल तो घुँघरू।’’
देखते ही देखते उनका पिटारा खुला। रबीना और संगीता ने पाँवों में बड़े - बड़े घुँघरू बाँध लिये। रम्भा ने मंजीरे संभाल लिए, सुल्ताना ने ढपली पकड़ ली । बल्लू ने लपक कर ढोलक घुटनों के नीचे दबाकर अपने हाथ ढोेलक पर साध लिये और सोफिया की ओर देखने लगा। सोफिया ने गाना शुरू कर दिया - ‘‘ कांटा लगा....’’
एक खास तरीके से हाथ नचाते हुये संगीता मटकती हुई घूम रही थीं और श्रीलाल के मेहमान ध्यान से उन लोगों का नाचना देख रहे थे। रबीना दांये तरफ झुककर अपना पल्लू नीचे गिराती हुई उत्तेजित अदायें दिखा रही थी। सोफिया पैरों को आगे- पीछे कर कदमताल करके नाच रहीं थी। वह बांये हाथ से अनोखे अंदाज में साड़ी की प्लेटें बीच में से ऊपर को उठाये, दूसरे हाथ को नचा-नचाकर घूम रही थी। वे कभी -कभी लम्बा घूँघट डाल लेती,ं तो कभी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा कर अपने तने हुए उरोजों और कूल्हों को झटके के साथ मटका देती थीं ।
बल्लू सोच रहा था, ...होली हो या दीवाली सब त्यौहारों पर सोफिया बस्ती के सब घरों से शगुन लेती हैैै, शादी - ब्याह हो या बच्चे का जनम, सबके लिये उनके अलग - अलग रेट चलते है । ...बाजार में दुकानवालों से भी खूब रुपये लेती है। उन्हें रिझाती है, पटाती है उनकी फरमाइश पर नये नये गीतों पर एक अलग तरह से कदम ताल के ठुमके लगाती हैं। टी. वी देख -देखकर हीरोईनों जैसा नाचने की कोशिश भी करती हैं। अब तोे रेल में भी ये लोग सवारियांे से पैसो के लिये जिरह करने लगी हैं।
बल्लू वैसे तो इन लोगों की इन हरकतों का आदी हो गया है लेकिन फिर भी इन लोगों का अपने नकली उरोजों वाले सपाट सीने से बार -बार पल्ला हटा लेना और साड़ी घुटनों के ऊपर तक खींच कर असफल मादकता पैदा करना ,उसके मन में कभी- कभी जुगुप्सा भर देती है। जुगुप्सा तो और भी तमाम आदतों से होने लगती है, मसलन इनमें से कोई - कोई बीड़ी सिगरेट पीतीं, ...कोई तम्बाकू खाती थीं। कोई शराब की चुस्कियों की शौकीन है तो कोई अफीम की पीनक लगाये पड़ी रहती है। ...ज्यादातर की आदत है कि अपने डेरे के भीतर घुसते ही साड़ी निकाल कर फेंक देती हैं, सिर्फ पेटीकोट-ब्लाउज में ही घर में रहती हैं । ... एक दूसरे से ऐसी अश्लील और उत्तेजक बातें करती हैं कि बातों ही बातों में आपा खो देना और एक दूसरे से गुथ जाना रोज के नजारे हैं।
इनमें से कुछ जरूर बहुत संयमित रहती हैं, नये-नये डिजायन के जनाना कपड़े व आर्टिफिशियल जेवर पहनना उनकी पसन्द में शुमार था । उनकी आईब्रो तराशी हुई रहतीं । होठों पर चकाचक लिपिस्टिक लगी होती थी। सीने पर रुई के पैड वाली ब्रा से उत्तेजक उभार दे देती थीं। चेहरे नीट एण्ड क्लीन होते थे और ख्ुाद को ब्यूटी क्वीन समझती थीं । इनमें भी दो तरह के लोग हैं- एक वे जो पैदा होते वक्त मर्द थे और अब स्त्री के रूप में रहना उनकी मजबूरी या शौक हो गया था, दूसरी वे जो पैदाइश के समय से स़्त्री हैं लेकिन जिनमें सेक्स का अभाव रहा हमेशा। जो स्त्री जैसी होती थीं उनके चेहरे और पेट पर बाल नहीं होते थे वे शायद औरत के रूप में जन्म लेकर भी अधूरी रही होती थीं ।
बल्लू आज तक नहीं समझ पाया कि इनमें से कौन किस कौम की है ? उनके नाम भी अजीब होते हैं ...सलमा बी ,बड़ी बी, जगीरा, सुनयना आदि । ये जरूरी नहीं था कि जिस कौम से वे आयी हैं वैसा ही नाम रखा जाये । इस खेमे में आकर नये नाम पा लेने से इनका भूतकाल समाप्त हो जाता है। साम्प्रदायिक सद्भाव की अनोखी मिसाल थी इनकी टोली में । हिन्दू के मुस्लिम नाम और मुस्लिमों के हिन्दू नाम रखे जाते थे । अधिकांश ने तो हीरोईनों के नाम पर अपने नाम रख लिये थे, जैसे माधुरी, रानी, डिम्पल, रवीना, रम्भा वगैरह ।
इन सबके साथ में ढोलक बजाने वाला प्रायः पुरूष ही रहता था। वह भी ढोलक का उम्दा खिलाड़ी होता था, उसकी बजायी ढोलक की गमक ऐसी होती कि सुनने वाले का ही मन नाचने को हो जाये।
बल्लू तेरह-चौदह साल का बालक है । उसकी मूछों की रेखें निकलना शुरू हो गई थीं। बल्लू को याद आया लोग कहते हैं कि चौदह साल पहले एक पागल कहीं बाहर से घूमती फिरती इस मोहल्ले में आ गई थी, इसी गली के घरों से मिलते रोटी के टुकड़ों पर पलने लगी थी। वह युवती अचानक गर्भवती हुई और कुछ महीनों बाद उस पगली के एक बच्चा पैदा हुआ था। सब चिन्तित थे कि पगली उस बच्चे को कैसे पालेगी ? लेकिन मोहल्ले के किसी परिवार ने इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि उस बच्चे को पाल सकें। तब पांडुरंगा जिंदा थे। उनकी टोली ने ही यह जिम्मा ले लिया था। उन दिनों श्रीलाल के मन में इन लोगों के प्रति अपार श्रद्धा उमड़ आयी थी। बल्लू उसी पगली का लड़का है । अब तो खूब बड़ा हो गया है और बड़ी मुस्तैदी से ढोलक बजाना भी सीख गया है।
रात मंे बल्लू दालान मंे सोता था। पहले वह सब लोगांे के साथ भीतर हॉल में सोता तब सभी लोग उसे अपने पास लिटाने को आतुर रहतीं थीं। शुरू मंे तो वह समझता था कि सब उसे बच्चे की तरह बेहद प्यार करती हैं। लेकिन धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा कि रात में नींद का बहाना कर कोई उस पर अपना पैर रखकर सीने से सटाकर सो जाती । कभी रात में बल्लू के शरीर पर किसी का हाथ रेंगने लगता । उनके हाथांे का स्पर्श उसे अच्छा लगता और वह भी बेहद उत्तेजित हो अंततः स्खलित हो जाता। एक अलग होती तो दूसरी पास सरक आती। एक रात जब एक के बाद एक चार लोगों ने उसे परेशान किया तो वह चीख उठा। तब से सोफिया ने उसे बाहर दालान मंे सुलाना शुरू कर दिया। उसने सबको हिदायत भी दे दी कि वह पांडुरंगा की अमानत है इसलिये उसे अपनी टीम से अलग करना नहीं चाहती अन्यथा अब बल्लू की उमर अलग रहकर खाने कमाने की हो चुकी है । उसने गुस्से में कहा कि बल्लू के साथ किसी ने भी बदसलूकी की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
वह दालान में सोता लेकिन उसे रात्रि में अब भी कमरे से सिसकारियाँ और लम्बी सांसोे की आवाजें सुनाई देती रहती ं। उसका मन मादक हो उठता इच्छा होती कि वह किबाड की दरार मंे से झांके लेकिन उस रात की घटना याद आते ही वह पस्त हो जाता।
अब सोफिया दूसरा गाना गाने लगी थी....
सासुल पनिया कैसे जाऊँ रसीले दोऊ नैना.....
...गाने की एक लाइन सोफिया गा रही थी फिर उसी लाइन को सुल्ताना और रम्भा दोहरा देती थीं। इन दोनों मेे से जो भी लाइन को गलत दोहरा देती ,उसी की तरफ सोफिया आँखें तरेर देती थी। बल्लू ने रबीना पर एक नजर डाली, वह नाच कम रही थी... अपने कंधे हिलाकर उरोजों को ज्यादा मटका रही थी । उसने अपना ध्यान वहाँ से हटा लिया ।
वह सोच रहा था कि ये मोहल्ले वाले भी अजीब होते हैं । पड़ोस में किसी के भी यहाँ बच्चा पैदा हो तुरन्त इन लोगों को खबर कर देते हैं। वे तमाशा देखना चाहते है कि हमारे घर से जितना लिया था पड़ोस वाली श्रीवास्तवनी उतना देती है या नहीं ? मोहल्ले का कोई भी शुभ चिंतक एसएमएस की तरह तुरन्त सोफिया की टीम को सूचित कर देता । ये मोहल्ले वाले आपस में कितनी ईर्ष्या करते हैं ।
सोफिया जब बच्चे के जन्म पर नेग मांगने आती है तो अलग ढंग से नाचती है । इनमें से एक जन नये बच्चे को गोद में लेकर नाचती है ।दान में मिले अनाज के कुछ दाने बच्चे की माँ की गोद में डालकर कई आशीष दे डालती है.ं...‘‘ दूधो नहाओ , पूतो फलो.... ,बच्चा जुग-जुग जिये......, बच्चा कलेक्टर बने....., गाड़ियों में घूमे...., खूब नाम कमाये। ’’
‘‘जरा एक मिनट मेरी बात तो सुन लो सोफिया , ‘‘ अबकी बार श्रीलाल की आवाज सुनते ही अचानक सोफिया ने गाना बन्द कर दिया। बल्लू के हाथ रुक गये। रवीना और संगीता के भी पैर थम गये। वे कह रहे थे, ‘‘देखो सोफिया बहन दो हजार एक का नेग तो ज्यादा है। हमारी हैसियत के हिसाब से लो।’’
सोफिया ने धमकी भरे स्वर में कहा -‘‘ देखो श्रीलालजी जो सबसे लेते हैं वह आपसे लेंगे । यदि नेग नहीं दोगे तो हम अभी नंग-नाच दिखाते हैं।’’
बल्लू को मालूम था कि मनमाफिक या बँधे रेट के मुताबिक शगुन न मिलने पर सोफिया नंगे होने की धमकी देती है। इन लोगांे के नंगे हो जाने में पता नहीं कौन- सा शाप समाया हुआ था कि धमकी देने से ही सब लोग डर जाते हैं। बल्लू ने तो कई बार नंग नाच हाते देखा है, कयोंकि अनेक लालची और जिद्दी लोग किन्नरों को कुत्ते की तरह दुत्कार के भगाना चाहते है, तब वे नाराज होकर निस्संकोच एक-एक करके कपड़े उतारना शुरू करते हैं और हर कपड़े के साथ नाच का एक चक्कर और ताली की फटकार के साथ ऐसी मर्दाना-अश्लील गाली कि सुनने वाले शर्मिन्दा हो उठें।
श्रीलाल ने सभी बच्चांे को घर के अंदर भेज दिया था । वे कहने लगे, ‘‘देखो सोफिया बहन ! तुम्हें तो सब मालूम है पांड्डरंगा मामू जब तक जिंदा थे कभी यहाँ शगुन लेने नहीं आये, ...वे हमारी मँां को बहन मानते थे न....। उनके बाद सोफिया बहन तुम वारिस बनीं। इसलिये मामू का धर्म तुम्हें निभाना चाहिये...।’’
सोफिया गुस्से में बोल उठी-‘‘हाय-हाय-हाय अब वो जमाना गया। अब ऐसा नहीं चलेगा।’’ उसने तालियों की आवाज फटकारी, ’’ घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या ?’’
श्रीलाल ने तर्क दिया-‘‘वो रिश्ता भुला दोगी क्या जो पांडुरंगा मामा के जमाने से चला आ रहा है....।’’
रिश्ते की बात सुनकर सोफिया को तैश आ गया। वह बोली-‘‘तुमने रिश्ता माना होता तो हम भी निभाते। रिश्ता तुमने तोड़ दिया है ...। हाय-हाय-हाय..... शादी के न्यौता देने के समय हम कोई नहीं थी। हमंे भी कार्ड देते तो मानते।’’ उसकी तालियांे की आवाज फट-फट कर गूँजी। वह बोली ‘‘ अभी तक हर मौके पर बुलावा आता रहा सो हम भी रिश्ता निभा रही थीं। अब तुमने रिश्ता तोड़ा है तो तुम्हें भुगतान तो करना पड़ेगा।’’
श्रीलाल ने बातों में खुद को घिरता देखा तो फिलहाल सोफिया को टालने के उद्देश्य से तर्क दिया-‘‘परसों आ जाना बहू के लिबउआ आयंेगे तुम्हें लड़की वालों से नेग दिला देंगे।’’
सोफिया खीझतीं हुई बोली-‘‘हमारे भी कुछ उसूल हैं लालजी। लड़की की शादी मंे लड़की वालों से शगुन नहीं लेते, लड़के वालांे से लेते हैं। ...और जिसके यहाँ गमी हो जाती है उसके यहाँ से साल भर तक नेग दस्तूर नहीं लेते। ...पहली लड़की पैदा होने पर नेग लेते हैं। ...दूसरी लड़की होने पर जिद नहीं करते। ...गरीबांे को कम पैसों में बख्स देते हैं।’’
बल्लू उन लोगांे की जिरह होते देख रहा था। रुपये के मामले में सोफिया केा गुस्से मंे देखकर वह निर्णय नहीं ले पा रहा था कि ये इसका असली रूप है या वो असली रूप था जो कारगिल युद्ध के समय फौजियों के वास्ते दान देने के लिये कलेक्टर को सबसे पहले पाँच हजार का चैक देते वक्त दिखा था। ...और उस दिन सड़क पर खून से लथपथ व्यक्ति को जब कोई नहीं उठा रहा था तो सोफिया ही थी जो उसे अस्पताल पहुँचा आई थी। डॉक्टर से उसने कहा था कि खून की जरूरत हो तो हमारा ले लो, बस यह बच जाये बेचारा। हाँ इतनी जांच कर लेना कि कहीं उसे कोई बीमारी न हो जाये । हम जैसा श्राप न लग जाये बेचारे को।
श्रीलाल ने कई हील- हवाले दिये, मान-मनोवल किया और माफी मांगी। तब कहीं जाकर सोफिया का गुस्सा ठण्डा हुआ। इस बार वह शादी का नेग लेने आयी थी , नेग लेना तो उसके नियम में था । हाँ इतना जरूर हुआ कि एक साड़ी और पाँच सौ एक रुपये मंे सोफिया सहमत हो गयी ।
अंदर से नई बहू को बुलाया गया। सोफिया ने नई बहू की बलायें लेते हुये कई आशीष दिये। पांडुरंगा के नाम से बहू के हाथ मंे इक्यावन रुपये मुँह दिखाई के भी दिये। फिर दुल्हन के पास खड़ी एक जवान लड़की की ओर इशारा करके श्रीलाल से बोली-‘‘हमारी बिटिया भी सयानी हो गई हैै,... इसके हाथ कब पीले कर रहे हो ? अबकी बार बुलावा देना मत भूलना। क्या नाम है इसका ?’’
श्रीलाल ने संक्षिप्त उत्तर दिया-‘‘प्रतिभा।’’
‘‘अब तो कॉलेज मंे पढ़ रही होगी ?’’
‘‘हाँ।’’
बल्लू ने देखा नई बहू से सटकर खड़ी प्रतिभा शर्म की गठरी बनी जा रही थी।
फिर ब्याह की बची मिठाई खाकर पानी पिया और वे लोग आपस में मस्ती करती लौट पड़ीं।
दो महीने बाद की बात है....
अगस्त का महीना शुरू हो गया था। कई दिनों से पानी बरस रहा था।
दोपहर का समय था। बल्लू का नियम था कि वह बारह बजे बाहर निकलता और पास की गली में नुक्कड़ पर रखी गुमटी में बने होटल पर चाय और टोस्ट खाता था। उस दिन कुछ ज्यादा ही बारिश हो रही थी। फिर भी उसे चाय की तलब ने बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया और वह चाय पीने चल दिया। आज होटल बंद था। निराश होकर वह लौट ही रहा था कि उसने देखा श्रीलाल की बेटी प्रतिभा कॉलेज से आ रही थी। यूं तो वह छाता लगाये थी लेकिन फिर भी पूरी तरह भींग गई थी। उसके कपड़े बदन से चिपक गये थे और वह कांप रही थी। वह जल्दी घर पहुँचना चाहती थी, शायद इसीलिये शॉर्टकट के चक्कर मंे ,वह गली मंे घुस गईं। बल्लू ने देखा कि उसी समय उसके पीछे-पीछे प्रतिमा के मोहल्ले का लड़का छिंगा भी गली मंे चला गया। क्षण भर को बल्लू को सन्देह तो हुआ लेकिन फिर प्रतिभा से किसी तरह का लगाव न होने के कारण वह निर्पेक्ष सा घर लौट आया।
शाम हो चली थी। टीम की सदस्य घर लौटने लगी थीं। यकायक बाजार से लौटी रबीना बदहवास- सी सोफिया के पास आई और बोली, ‘‘सोफिया बी तुमने कुछ सुना ? ’’ उसका सीना धांेकनी के समान चल रहा था।
सोफिया ने कहा, ‘‘जरा दम ले ले फिर बताना।’’
रबीना ने दम लिया फिर बोल पड़ी, ‘‘मैं श्रीलाल के मोहल्ले से आ रही हूँ । सुनकर आयी हूँ कि आज दिन दहाड़े किसी ने उसकी लड़की की इज्जत लूट ली।’’
बल्लू पास ही खड़ा था, वह चौंक कर बोला- ‘‘कब ?’’
‘‘...आज दिन में। वो होटल वाली गली मंे।’’
बल्लू सकते में आ गया। कांपती सी आवाज में बोला,‘‘दिन मंे तो मैंने उसे देखा था गली मंे जाते।...हाँ उसके पीछे-पीछेे एक लड़का भी गया था उसी के मोहल्ले का दादा छिंगा !’’
सोफिया ने उसे पकड़कर झिंझोड़़ दिया और बोली, ‘‘बता और क्या देखा था तूने ?’’
वह घबराकर बोला,‘‘ कुछ नहीं मैं तो वापस आ गया था।’’
सोफिया ने यकायक गुस्से में भरकर बल्लू को दो चांटे जड़ दिये और चीख कर बोली, ‘‘ अरे हिजड़े, तूने श्रीलाल के घर से हमारे ऐसे निजी संबंध होने के बाद भी प्रतिभा पर नजर नहीं रखी। तू सिर्फ पीछे-पीछे गली में चला जाता तो...........’’
फिर सोफिया रबीना की ओर मुखातिख होकर बोली-श्रीलाल ने पुलिस मंे रिपोर्ट लिखवा दी होगी, मरेगा साला छिंगा अपने आप।
रवीना बोली, ‘‘वही तो ! उन्होने रिपोर्ट नहीं लिखवाई है.....’’
सुनते ही सोफिया ने बल्लू का हाथ पकड़ा और दनदानाती हुई श्रीलाल के यहाँ पहुँच गई।
श्रीलाल घर पर नीचा सिर किये बैठे थे। उनका चेहरा बुझा हुआ था। सोफिया ने जाते ही प्रश्न दागा, ‘‘आपने रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई ?’’
श्रीलाल पहले तो चौंके कि इन्हंे कहाँ से मालूम पड़ गया। फिर बोले-‘‘देखो जो होना था सो हो गया। अभी तो बात घर की घर मंे है। पुलिस मंे जाने से बात पूरे शहर में फैल जायेगी। फिर उससे शादी कौन करेगा ...? ’’
सोफिया ने कहा- ‘‘बात घर की घर मंे नहीं रह गई पूरे मोहल्ले मंे खबर हो गई है। सात ताले के भीतर भी लड़की की इज्जत की चटकन और थाली की खनक सबको मालूम पड़ जाती है।’’
बल्लू ने देखा, प्रतिभा चुपचाप बैठी है। सोफिया ने प्रतिभा से पूछा, ‘‘क्यांे छिंगा ही था ना ?’’
उसने हाँ मेें सिर हिलाया और उसकी आँखांे से अँासू बह निकले।
सोफिया ने श्रीलाल पर जोर डालते हुये कहा-‘‘देखो लालजी चलो तुम रिपोर्ट लिखाने चलो। जरूरत पड़ी तो बल्लू देगा गवाही।’’
श्रीलाल ने कहा-‘‘देखो सोफिया बहन होना जाना कुछ नहीं है। वो गुण्डा बदमाश है।’’
सोफिया उलाहना देने वाले स्वर में बोली, ‘‘तुम लोग औरतांे को आगे बढ़ाने की बातें तो बड़ी-बड़ी करते हो। लेकिन जब कुछ करने की बारी आती हैं तो पीछे हट जाते हो। सच्ची बात ये है कि आज भी तुम्हारी मानसिकता नहीं बदली है।’’
वह देर तक मनाती रही लेकिन श्रीलाल टस से मस नहीं हुये। सोफिया पैर पटकती घर वापस आ गई।
घटना का पाँचवा दिन था आज। सांझ को होटल वाली उसी गली मंे छिंगा बेहोश पड़ा मिला था। पुलिस आई ..., तफ्तीश हुई और उसे अस्पताल मंे भर्ती करा दिया गया है। जल्द ही यह खबर सब जगह फैल गई कि किसी ने उस लड़के का गुप्तांग काट दिया है। उसकी हालत ठीक नहीं ।
कस्बे के साथ बल्लू खुद स्तब्ध है ेे!
अचानक सोफिया की टोली अस्पताल पहुँची। डॉक्टर से बात करके पता लगा कि पंद्रह दिन में आराम मिल पायेगा। सोफिया अपने डेरे पर लौट आयी।
सोफिया बीच-बीच मंे छिंगा को देख आती थी। जिस दिन वह स्वस्थ हुआ सोफिया पूरे फौज-फाटे के साथ अस्पताल पहुँच गई। दरअसल वे उसे अपनी बिरादरी मंे शामिल करना चाहती थी। अस्पताल में एक सिपाही तैनात था, उसने तुरंत अपने दरोगा का बुला लिया । पुलिस दरोगा ने सोफिया से कहा-‘‘ उसकी मर्जी के बिना तुम उसे अपने समूह में सम्मिलित नहीं कर सकतीं । फिर वैसे भी अभी हमारी तफ्तीश चल रही है इसलिये वह अभी अस्पताल में ही रहेगा।’’
यह सुनकर सोफिया मायूस हो वापस आ गई।
क्वांर का महीना शुरू हो गया था। जगह-जगह दुर्गा प्रतिमा बिठाई जा रही थीं । सोफिया की सभी साथिनें अलग-अलग मुहल्ले मंे उगाहनी के लिये निकल गई। सोफिया बल्लू को साथ लेकर श्रीलाल के मोहल्ले में चल दी। श्रीलाल घर पर ही मिल गये। उन्हांेने चाय पानी के बाद सोफिया से भेदती निगाहों में पूछा-‘‘सब लोगांे को शक है कि तुम लोग बिरादरी में अपनी संख्या बढ़ाने के लिये लोगांे के अंग-भंग कर रही हो।’’
सोफिया बड़े ऊँचे स्वर में बोली- ‘‘नहीं लालजी हमारी संख्या तो ईश्वर बढ़ाता है। खुदा न करे वह और अधिक संख्या बढ़ाये। हमंे कितना कष्ट है इस योनि में होने का , ये तो हम ही जानती हैं। हाँ हमे उस चीज पर बड़ा गुस्सा जरूर है जिसके होने पर ये नाशमीटे दम भरते हैं और हमारी बहू बेटियांे की इज्जत से खेलते हैं।’’
सोफिया के चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे। कुछ देर शांत रहकर वह फुसफुसाते स्वर में बोली-‘‘हाँ यही सच है कि ये काम हमने किया है लेकिन अपनी संख्या बढ़ाने के लिये नहीं, बल्कि तुम जैसे भीरू लोगांे में चेतना जगाने के लिये। जिस दिन बलात्कारियांे को ये सजा मिलने लग जायेगी उस दिन से कोई भी गुंडा औरतांे की इज्जत लूटने की हिम्मत नहीं कर सकेगा।’’
श्रीलाल विस्फारित नेत्रों से सोफिया को ताके जा रहे थे।
सोफिया श्रीलाल को शांत देखकर विषाक्त स्वर मंे बोली , ‘‘ ...अलबत्ता पहले तो माँ -बाप इज्जत के डर से रिपोर्ट लिखाते नहीं हैं। यदि रिपोर्ट लिखा भी दें ...तो केस साबित नहीं हो पाता। मुल्जिम के रुपयों की भरमार से सबूत के बिना केस रफा-दफा हो जाता है।...वैसे आखिर में जुर्म साबित भी हो जाये तो कितने साल की सजा होगी? ...पांच साल की, ...सात साल की ,बस...!’’ जमीन पर हाथ मारते हुये वह बोली, ‘‘हरामियांे को ऐसी सजा मिले जो हमने दी है। तो कोई बहू-बेटियों की तरफ आँख उठाने की हिम्मत न करे।’
सहसा बल्लू को याद आया कि प्रतिभा से बलात्कार होने के पाँच दिन बाद की बात है, उस रात तेज बारिश में सोफिया पाँच छह लोगांे को लेकर कहीं जाती हुई दिखी तो उसने भी चलने की जिद की थी , उसे घर में रहने का कह कर वे लोग भींगते हुए चल पड़ी थीं। बल्लू धीरे से उनके पीछे बाहर निकला। बाहर कफर्यू की तरह सन्नाटा फैला था। होटल बंद हो गया था। बल्लू होटल की बैंच पर बैठ गया । सहसा उसने देखा कि सुल्ताना और रम्भा पास वाली उसी गली में चली गई थी। वह भीगता कांपते हुए बैठा रहा ।
अचानक गली से तेज चीख आई। कुछ देर बाद बल्लू को डर लगा तो वह उठा और डेरे पर वापस आ गया। जब तक उसने कपड़े बदले वे सभी वापस आ गई थीं। उसने सोफिया से कई बार पूछा था कि-‘‘क्या हुआ। वो चीख कैसी थी ?’’
लेकिन उसे कुछ नहीं बताया गया। आज उसे समझ आया कि क्या माजरा था।
सोफिया की बात सुनकर बल्लू के मन में कभी-कभी उन लोगांे के प्रति आ जाने वाले क्रोध, नफरत, उपेक्षा के भाव समाप्त हो गये। उसे लग रहा था कि संवेदना और विरोध करने की हिम्मत तो इन लोगांे में है जो अधूरे कहे जाते हैं और दूसरांे पर आश्रित रहते हैं । संवेदना श्रीलाल जैसांे मंे कहाँ है। इज्जत से तो यह लोग जीते हैं। समाज में रहने वाले ग्रहस्थेां की इज्जत तो मौके-बैमौके उधड़ती रहती है, उतरती रहती है। इज्जत के रहनुमा कहे जाने वाले दरसल गुण्डों से डरते हैं और अन्जाने में रहबर बन जाते हैं, जिसका अन्जाम भुगतती हैं उनके घर की बहन-बेटियाँ !
बल्लू के मन में सोफिया की पूरी बिरादरी पर श्रद्धा उमड़ आई थी।
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