लघुकथा
अस्मत
राजनारायण बोहरे
सब ठीक है न खेताsss नौनीता दादा हाट से लौटते हुए दूर से टेर लगा कर पूछ रहा था।
हाँ कक्काsss! बीस साल के नौजवान खेता ने आत्म विश्वास से जवाब दिया था।
भाँय । भाँय । उतरते घाम में भी लू के बबूले हवा में तैर रहे हैं ।
आज शनीचर है बरखेड़ा की हाट थी सो सारी लेबर हाट करने गई थी । चार साल के अकाल की वजह से परेशान पच्चीस बीघा जोत के किसान बलबान सिंह का मजूरी करने आया इकलौता बेटा खेता अकेला साईट पर बचा था नहीं तो साइट पर किसी दिन ऐसा निर्जन सन्नाटा नहीं रहता । इस बरस यदि सूखा न पड़ता तो उसका ब्याह होना था । इसी बरखेड़ा गाँव की तो है लड़की । उसने देख रही है -बिन्दो नाम है उसका । सगाई तो कई बरस पहले हो गई थी । हाट में गया तो एक- दो बार टकराई है । एकदम गोरी भक कबूतरी-सी है । बात-बात पर फक्क से हँसती है तो चेहरा एकदम लाल हो जाता है ।
नौनीता ने पास आके फिर आवाज लगाई -खेता रे…
हओ कक्का ! --…-खेता आगे बढ़ा ।
नौनीता जहाँ खड़ा था वहीं पाँच-छह औरत मर्द खड़े थे सहमें सकुचाए से । आगे ही बिन्दो की उम्र की लड़की खड़ी थी -नए घँघरा-घरिया पहने । वह मुस्कुरा उठा । दूसरी औरतों ने अपने सिर का पल्लू खींचकर उसे पर्दा कर लिया । सब खेता को जानती होंगी।
खेता को लगा जैसे बिन्देा ही आ गई है-वैसा ही भोला और अबोध चेहरा वैसी ही पन्द्रह-सोलह बरस की अनजान उम्र ] वैसे ही टुकुर-टुकुर देखना । खेता को रोमांच -सा हो उठा । साथ आए एक आदमी ने परिचय दिया -भैया हम सब तुम्हारी ससुराल बरखेड़ा के रैया हैं । सावन - भादों के महीने में भी कैसी लू चल रही है । सूरज ऐसा तप रहा है कि जेठ-आषाढ़ के घाम भी फीके लगे। ऐसे में न फसल होती है ]न किसान की सालाना आमदनी । दो साल से सूखा पड़ रहा है इस बिचारी के बड़े भाई-भाभी बीमार हैं । घर में कोई था नहीं सो मजूरी करने आई है ।
खेता चुपचाप खड़ा उनकी बातें सुनता रहा । अचानक खन्ना साब की कार सर्र से पास आकर रुकी थी । वह आगे बढ़ा - क्यूँ न इनकी मजूरी दिलाने की बात करूँ ।
खन्ना साहब भी उसे देख चुके थे । कार से उतरते हुए बोले खेता सुन जरा !
जी ! वह आगे बढ़ा ।
सुन जरा ! आज डाकबँगले में पार्टी है । काम करने को एक रेजा की जरूरत है । ये तो शायद बरखेड़ा की लेबर है न।। खैर तू इनमें से ही एक रेजा-----ठहर---- इसको ले आना ! बाकी सबको कह देना सबको मजूरी देंगे और ---!
खन्ना साब जाने क्या-क्या कहते रहे । उसे कुछ सुनाई नहीं दिया । खन्ना साहब गए तो जैसे खेता को शाप देकर पत्थर का बना गए थे ।
वह युवती अभी भी खेता की ओर टकटकी लगाए किसी आदेश की प्रतीक्षा में खड़ी थी- ।
खेता समझ नहीं रहा खन्ना साहब का कहना माने या नहीं । दोनों बातों का परिणाम उसे पता है । एक विचार आया कि पहले भी तो ले गया है अब इस युवती को डाकबँगला ले जाने में क्या हर्ज है । कौन लगती है यह लडकी दूसरा बिचार आया कि डाकबँगला से लौटकर पिछली दफा उसने आगे किसी रेजा को डाकबँगला न ले जाने का तय किया था आज इस युवती की जगह यदि बिन्दो आई होती तेा पहला बिचार हावी हुआ- यह लड़की बिन्दो थोड़े ही है। सोचते-सोचते उसका माथा गरम हो उठा । कनपटी की नसें तड़क उठीं हाथों की मुट्ठियाँ कसने लगीं । पटेल कक्का कह रहे थे कि सिरकार अकाल से पिटे गाँव वालों की मदद कर रही है और हर पांच किलोमीटर सडक पर काम खोल रही है । काम के बदले अनाज मिलेगा और पैसा भी । तो यहां न सही पांच किलोमीटर दूर तो काम मिलेगा] कम से कम यह अबोध और इसकी इज्जत आबरू बल्कि बिन्दो की ही अस्मत बच जाएगी।
काफी देर तक वह वैसा ही बैठा रहा था ] कभी धरती पर आड़ी तिरछी लकीरें बनाता और कभी कंकड़ हाथ में लेकर उन्हें उछालता फेंकता हुआ । तब अँधेरा फैलने लगा था । वह एकाएक घुटनों पर हाथ रखकर खड़ा हुआ ।युवती को पीछे आने का संकेत कर साईट के घेरे के दायें दरवाजे की तरफ बढ़ा । बरखेड़ा के दूसरे लोग उन्हें आस्वस्ति के भाव से उन्हें देख रहे थे जबकि कल्लू और नौनीता आँखों-ही-आँखों में बतियाते उन दोनों को देखकर मक्कारी से हँसे थे ।
खेता ने शान्त भाव से ड्रामों की बाउंड्री पार की फिर एकाएक मुड़ा और खन्ना साहब के केबिन की ओर देखकर गुस्से में चीखा- मादर--- ! तेरी लाश में कीरा पडे! आक्क थू!
जैसे अब फुरसत में हो गया हो ! चेहरे और शान्त भाव और इत्मीनान से वह घूमकर फिर अपने रास्ते चल दिया था । अब युवती की कलाई उसके मजबूत हाथ में थी । उसके दृढ और सन्तुलित कदम बरखेड़ा जाने बाली पगडण्डी पर बढ़ रहे थे ।
......