विनायक बाबू के घर शादी की तैयारी बड़े ही धूमधाम से हो रही थी धीरे-धीरे मेहमान आ रहे थे कई प्रकार की उपहार से कमरा भरा दिखाई दे रहा था, लेकिन इस खुशी की माहौल में कभी-कभी विनायक बाबू की आँखें नम हो जाती थी, और ऐसा हो भी क्यों ना?....
एकलौती पुत्री है सरोज,जिसे विनायक बाबू ने बड़े ही लाड़-प्यार से पाला था उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद फिर दोबारा शादी नहीं की और सरोज को माँ-पिता दोनों का प्यार दिया पेशे से हाई स्कूल के अध्यापक होने के बावजूद भी उन्होंने सरोज को शिक्षा और संस्कार दोनों से संवारा था,लेकिन अब उनकी पुत्री उनसे दूर हो जाएगी,फिर पंछियों सी चहकने वाली और कलियों सी मुस्कुराने वाली सरोज को देखने के लिए भी उनको वक्त निकालना पड़ेगा और यह आंगन,यह घर सब सूना-सुना दिखाई पड़ेगा उफ....
यह कैसी रिवाज है?यह कैसी दुनियादारी है?जिसको पाल-पोसकर बड़ा किया उसे ही पराये के घर भेजना पड़ता है
यह सब सोचते ही उनकी आँखें भर आती थी,हालांकि शादी अगले सप्ताह थी फिर भी,विनायक बाबू यह नहीं चाहते थे की किसी भी बात की कमी महसूस हो सके,इसलिए उन्होंने सब चीज की व्यवस्था कर थी और खाना बनाने वाले रसोइयों को सख्त हिदायत दी गई थी की खाना में कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है?यह किसने सोचा था की खुशनुमा वातावरण में भी दुःख की बदली घिर आएगी और हँसते-मुस्कुराते चेहरे पर किसी कली की भांति सुख जाएंगे
चुकी,खाना बनाने के बाद रसोईया अपने घर चला गया और मेहमानों को खाते-पीते रात को एक बजे गए इसके बाद धीरे-धीरे सारे मेहमान अपनी-अपनी सुविधानुसार बिस्तर पर सोने के लिए चले गए विनायक बाबू को भी नींद आ रही थी
दिन भर की थकावट से उनकी बदन टूट रही थी, इसलिए वे भी अपने कमरे में सोने के लिए चले गए
ठीक दो घंटे बाद विनायक बाबू को प्यास लगी वे पानी पीने के लिए आंगन में में गए,लेकिन यह क्या?आंगन के पास वाले कमरें में धुँआ और तेज रौशनी दिखाई दे रही थी, मानो जैसे आग लग गई हो यह देखते ही उनको धक्का सा महसूस हुआ वे जल्दी से उस कमरे का दरवाजा खोले और अंदर का
दृश्य.... बहुत ही खौफनाक, लेकिन उस दृश्य को देखकर विनायक बाबू के मुंह से बहुत ही तेज चीख निकली"आग....आग लग गई है"और,वे बेहोश होकर गिर पड़े सुबह जब उनको होश आता तो उनकी बेटी सरोज,कुछ रिश्तेदार और गांव के मुखिया जी बैठे हुए थे उनको सबको देखकर विनायक बाबू की आँखों से कुछ बूंदे टपक पड़े
यह देखकर सरोज बोली"यह क्या पिताजी?आप रो रहे है जो कुछ हुआ है उसमें तो किसी का कोई दोष नहीं है"लेकिन, विनायक बाबू कुछ नहीं बोले उन्हें चुप देखकर मुखिया जी बोले"विनायक जी,सरोज बिटिया की शादी में अब कुछ दिन शेष रह गए हैं और यह बड़ी घटना हो गई है, फिर भी आप परेशान मत होइए सारा गांव आपके साथ है,और सारा गांव आपके साथ हैं, और सरोज भी तो हमारी ही बेटी के समान है और बेटी चाहे किसी भी की हो वह तो गाव की प्रतिष्ठा होती है अतः जितनी संपति का नुकसान हुआ,उतना तो हुआ ही है अब हम के पास जितने भी रुपये-पैसे है,सब लगाकर सरोज बिटियाँ की शादी करेंगे"
हालांकि, मुखिया जी बातों का कुछ असर विनायक बाबू को हुआ,इसलिए वे बिस्तर पर उठ गए,लेकिन ....अंदर ही अंदर सरोज की चिंता उन्हें खाए जा रही थी उसी दिन शाम को वे चुपचाप कमरे में बिल्कुल निराश,थका हुआ चेहरा उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो,हँसते-खिलखिलातें हुए बच्चे से किसी ने खिलौना छीन लिया है तभी उनकी दूर की रिश्तेदारी की बहन शोभा आई,जो विनायक बाबू से उम्र में छोटी थी अतः वह बोली"भैया, कब तक यूँ उदास बैठे रहोगे?बिटियाँ की शादी है, हम सब हैं ना!"शोभा की बातें सुनकर विनायक बाबू बोले"शोभा, मैं जानता हूँ तुम सब मेरे साथ हो
मुखिया जी भी मेरे साथ है, लेकिन सोचो दहेज में मैने जिन वस्तुओं को देने का वादा किया था अगर वह नहीं दिया तो..."
इतना कहकर उनका गला रुधं गया और आँखों से आसूँ की धारा बहने लगी
"तो क्या?...बताइए,विनायक जी"एक परिचित आवाज विनायक बाबू की कानो में सुनाई पड़ी आवाज सुनते ही उन्होंने अपनी सिर को उठाकर देखा तो उनकी भावी समधी यानी लड़के के पिताजी रामदरशबाबू और गावं के मुखिया जी खडे मुस्कुरा रहे थे उनको देखकर विनायक बाबू हैरानी के साथ खड़े होकर बोले"अरे आप सब कब आए?"और फिर वह शोभा की तरफ मुखातिब होकर बोले"अरे शोभा,इनके लिए जरा जलपान की व्यवस्था करो"
उनकी बातें सुनकर रामदरश बाबू बोले"अरे!रहने दीजिए साहब,आइए थोड़ा काम की बातें हो जाए" इतना कहकर मुखिया जी और रामदरश बाबू उसी कमरे में पास रखी हुई कुर्सियों पर बैठ गए और, फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ,हालांकि विनायक बाबू थोड़ा डरे हुए थे और उनके चेहरे का रंग चिंता के कारण सफेद पड़ गया उनकी इस अवस्था को देखकर मुखिया जी बोले"अरे साहब,आप बेकार इतना डर रहे है हमारे रामदरश बाबू की बातों को जरा सुनिए तो सही,यह क्या कह रहे है"और इसके साथ ही मुखिया जी की बात समाप्त हुई विनायक बाबू चिंतित होकर बोले"मैं क्या कहूँ?रामदरश जी,सारे सपनो पर पानी फिर गया,और दुःख की बात है की दहेज में मैं आपको कुछ नहीं दे सकता सिवा अपनी बेटी की"
विनायक बाबू की बातें सुनकर रामदरश बोले"आपके बारे में मुखिया जी,हमें सब कुछ बता चुके है और वैसे भी बेटी से बढ़कर कोई दहेज है ही नहीं, आपकी बेटी पढ़ी लिखी है, गुणवती और सुंदर है और मुझे क्या चाहिए, और मेरा बेटा भी यही चाहता है आपकी बेटी ही उसकी पत्नी बने समझे"
इतना सुनते ही विनायक बाबू हैरानी के साथ रामदरश बाबू की तरफ देखने लगे उनको विश्वास ही नहीं हो रहा था की इस युग में भी इतने देवता जैसे इंसान मिल सकते है जो बेटी को इतना सम्मान देते है और दहेज लोभियों को इनसे सबक लेनी चाहिए अतः उनकी बात सुनकर विनायक बाबू बोले"ऐसा कहकर आपने मेरी सारी दुविधा को दूर कर दिया है काश!सभी लोग आपकी तरह सोचते तो आज समाज मे बहु-बेटियां प्रताड़ित नहीं होती" इतना कहकर उन्होंने अपनी आँखों से छलकते हुए आसुंओ को पोछा तभी शोभा मिठाई लेकर आई और बोली"भैया मिठाई" यह सुनकर सभी लोग उसकी तरफ देखने लगे
:कुमार किशन कीर्ति