Haunted Boys Hostel in Hindi Horror Stories by आयुषी सिंह books and stories PDF | हॉन्टेड ब्वॉयज हॉस्टल

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हॉन्टेड ब्वॉयज हॉस्टल

वह कोई गर्मियों की रात रही होगी। शहर के एक प्रतिष्ठित एमबीए कॉलेज के बॉयज हॉस्टल की छत पर चार दोस्त बैठे हुए थे और हाथ में एक एक एपी फिज़ की बॉटल थी मगर उनके हाव भाव से लग रहा था शायद उस एपी फिज की बॉटल में शराब भी थी।

"भाई बस ये दो दिन और बीत जाएं, प्लेसमेंट्स भी सही से हो जाएं तब तो सब सेट, सब अपनी अपनी जॉब में बिज़ी हो जाएंगे, सबको ऐसे हॉस्टल की छत पर बैठना, दुनिया भर की बातें करना, जूनियर्स की रैगिंग लेना, यह सब बहुत याद आने वाला है" रजनीश ने विनोद को देखते हुए कहा।

"हां भाई जब जिंदगी पूरी तरह निर्धारित हो जाती है तब यह कॉलेज लाइफ बहुत याद आती है" देवेश ने विनोद और रजनीश के कंधो पर हाथ रखते हुए कहा।

"मगर सालों क्या हम सब कभी वह भूल पाएंगे जो उस दिन हुआ था?" रजत ने कहीं शून्य में देखते हुए कहा।

"साले मनहूस तेरा हर वक़्त ऐसी बातें करना क्या जरूरी है, कभी तो उस बात को भूल जाया कर और हमें भी भूल जाने दिया कर" विनोद ने रजत को घूरते हुए कहा।

"वह बात हमारी जिंदगी का एक ऐसा कड़वा सच है जिसे हम चाहकर भी नहीं बदल सकते" रजत ने कहा।

अंधेरी रात में जब चांद भी बादलों के पीछे कहीं दुबका पड़ा था, उस दो मंजिला, भव्य हॉस्टल के सामने वाली सड़क से लगी रोडलाइट ही थी जो अंधेरे को मिटाने की कोशिश कर रही थी मगर अचानक वह भी ऑन ऑफ, ऑन ऑफ होने लगी और पास से घिर्र घिर्र की आवाज़ें आने लगीं।

"चलो भाई मौसम खराब हो रहा है नीचे चलते हैं, इस रजत की बातें सुनने से बेहतर है सब अपने अपने बिस्तर पर जाकर सो जाएं" देवेश ने कहा। इसके बाद वे चारों छत पर रखी बड़ी सी पानी की टंकी के दाईं ओर लगी लोहे की सीढ़ी से नीचे उतर गए। सबकुछ शांत हो गया था मगर काले आसमान में बिजली चमक उठी और पानी की टंकी की ओट में एक बड़ा सा काला साया खड़ा नजर आया जिसकी एक जोड़ी बिल्लौरी आंखें चमक रही थीं और अगले ही पल वह गायब हो गया।

रात के दो बज रहे थे। दूसरी मंज़िल के बड़े से गलियारे के दोनों ओर छह - छह कमरे थे और उस गलियारे से ही निकलता हुआ गलियारा बाईं ओर मुड़ गया था जहां फिर दोनों ओर छह - छह कमरे थे। पहले वाले गलियारे के अंत में एक बड़ी सी वॉल क्लॉक लगी हुई थी और उसके बाईं ओर बाथरूम व दाईं ओर स्टोररूम था। वॉल क्लॉक से आगे बढ़ते हुए देवेश और रजनीश का कमरा दूसरे नंबर का था व उसके सामने वाला कमरा विनोद और रजत का था। गलियारे में लगा छोटा सा पीला बल्ब केवल एक इशारा था कि यहां जिंदा लोग हैं अन्यथा वहां शमशान से भी अधिक डरावनी खामोशी पसरी हुई थी। रजनीश और देवेश अपने कमरे में अपने अपने बिस्तर पर सो रहे थे और उनके ही बगल वाली कमरे में रजत और विनोद घोड़े बेचकर सोए हुए थे। रोडलाइट के ऑन ऑफ होने की तरह ही अब गलियारे में लगा बल्ब भी ऑन ऑफ होने लगा। पूरे हॉस्टल में किसी लड़के के फफक फफक कर रोन की आवाज़ें गूंजने लगीं। रजनीश की आंखे खुली और नींद में ही एक भद्दी सी गाली देता हुआ वह बोला "कौन साला बहन... लड़कियों की तरह रोए जा रहा है रात के समय?" और वह नींद में ही चलता हुआ बाहर गलियारे में पहुंचा मगर वहां कोई भी नहीं था, हां बल्ब जरूर अब भी जल बुझ रहा था। रजनीश ने पूरा द्वितीय मंज़िल छान मारा मगर कहीं कोई नहीं मिला। थक कर वह वापस अपने कमरे में सोने के लिए जा ही रहा था कि तभी रोने की आवाज़ और तेज़ हो गई। इस बार ध्यान से सुनने पर रजनीश को वह आवाज़ बाथरूम से आती हुई महसूस हुई।

"कौन रो रहा है लड़कियों की तरह?" उसने बाथरूम ने झांक कर देखा तो कोई भी नजर नहीं आया मगर अब गलियारे में लगे उस पीले बल्ब के साथ साथ बाथरूम की लाइट्स भी जलने बुझने लगी थीं। रोने की आवाज़ अब पूरी तरह से बन्द हो गई थी। इस बार वह थोड़ा सकपका गया मगर डरा नहीं। उसने सोचा जब यहां आ ही गया हूं तो हल्का होकर ही चलता हूं और वह अपना काम निपटाने लगा। उसे लगा कि कोई है जो उसकी पीठ को घूर जा रहा है और अचानक ही उसने अपना सिर झटका मानो अपने दिमाग में आने वाले विचारों को झटक रहा हो और सामने लगे शीशे को देखने लगा पर सामने देखते ही तो उसकी रीढ़ की हड्डी में एक ठंड की लहर दौड़ गई। शीशे में उसे वही काला साया नज़र आया जिसकी सिर्फ आंखें चमक रही थीं... बिल्ली जैसी डरावनी आंखें। वे आंखें धीरे धीरे रजनीश के करीब आ रही थीं और करीब आती गईं।

"क... क... कौन?" रजनीश उन आंखों को पहचान चुका था मगर उसे यह यकीन नहीं हो रहा था कि यह साया वही है।

"पहचान तो तू गया ही है, अब देर मत कर, चल मेरे साथ" उस काले साए ने आवाज़ में एक अलग ही लचक के साथ कहा।

"न... न हीं.... नहीं मैं कहीं नहीं जाऊंगा.... औ...र... और त... तू लौट कैसे आया साले?" कहता हुआ रजनीश उस साए को मारने के लिए पलटा मगर उसने रजनीश को दूर धक्का दे दिया और अपने बाईं और लगे वाशबेसिन को उखाड़ कर उसके सर पर फेंक दिया, खून का एक फव्वारा निकला और अगले ही पल सब शांत। वह साया गायब हो चुका था।

अगली सुबह तक पुलिस, वार्डन और हॉस्टल के लड़के उस बाथरूम में खड़े हुए थे। रजनीश की लाश को पहचानना मुश्किल हो चुका था। इधर देवेश, विनोद और रजत का चेहरा पीला पड़ चुका था आखिर उनका दोस्त अब उनके बीच नहीं था और जिस बेरहमी से उसका खून किया गया था उस देखकर तो कोई भी डर जाता।

उन तीनों का वह दिन जितनी मुश्किल से बीता था, रात उससे भी ज्यादा मुश्किल से बीतने वाली थी। रात हो गई थी, तीनों ने बमुश्किल खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए। उन्हें अब भी यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिस रजनीश के साथ बैठकर वे बीती रात अपने आगामी भविष्य की योजना बना रहे थे वही रात, रजनीश की आखिरी रात थी। विनोद और रजत तो अपने कमरे में साथ थे जैसे तैसे उनका समय कट रहा था मगर देवेश अपने कमरे में अकेला था। उसे रह रहकर रजनीश की डरावनी लाश याद आ रही थी। जैसे तैसे आंखें मूंदकर वह सोने की कोशिश करने लगा। रात के किसी पहर उसकी नींद दरवाजे पर हुई दस्तक के कारण खुल गई।

"देवेश...." उस आगंतुक ने बाहर से आवाज़ दी। वह आवाज़ तो विनोद की थी मगर उसमें जो लचक थी उससे देवेश अनजान न था।

"वि... विनोद?" देवेश ने घबराते हुए पूछा।

"दरवाज़ा खोल" वह आवाज़ अब अपनी लचक खोकर भयानक और डरावनी हो गई थी। देवेश के कमरे की लाइट भी बन्द हो चुकी थी। अब उस समझ आ गया था कि उसके कमरे के बाहर वह आगंतुक कौन था।
"खोल दरवाज़ा" वही भयानक आवाज़ फिर गूंजी। अब देवेश दर से चिल्लाने लगा था, इधर उधर भागने लगा था, भड़ाक की आवाज़ हुई और दरवाज़ा टूटकर ज़मीन पर गिर चुका था।

"ज...ज...य...जय त...तू" देवेश का डरा हुआ स्वर निकला।

"हां मैं, क्या गलती थी मेरी? तुम लोगों ने मुझे किस गलती के लिए इतना जलील किया था? जीते जी तो मुझमें ताकत नहीं थी तुम सबको जवाब देने की मगर अब मरने के बाद मुझमें ताकत भी है और शक्ति भी, अब बदला मैं लूंगा" उस साए ने कहा जिसे अभी अभी देवेश ने "जय" कहकर संबोधित किया था। वह एक झटके में ही देवेश के सामने आ खड़ा हुआ और देवेश डर से कांपने लगा।

"म...म...मुझे छोड़ दे जय मैंने वह सब जानबूझकर नहीं किया था... जाने दे न भाई... जय प्लीज़ मुझे छोड़ दे" देवेश घिघियाता हुआ जय की सामने हाथ जोड़कर खड़ा था।

"कभी मैं भी ऐसे ही घिघियाया था.... तुमने छोड़ा था मुझे" जय ने गुस्से में गरजते हुए कहा। वह अब भी एक साए के रूप में ही था। उस घुप्प अंधेरे में सिर्फ उसकी बिल्लौरी आंखें चमक रही थीं।

"जय मुझे छो....ड़.... दे..." देवेश का वाक्य पूरा होने से पहले ही एक गुलाबी रंग का दुपट्टा हवा में उड़ता हुआ आया और उसका एक सिरा देवेश के गले के चारों ओर गोल गोल लिपटता गया और दूसरा सिरा पंखे में जाकर बन्ध गया। देवेश हवा में झूल गया, उसकी जीभ बाहर लटक गई थी और गर्दन एक ओर मुड़ गई थी। जय जा चुका था.... अपना एक और बदला लेकर। दरवाज़ा वापस अपनी जगह लग गया था बिल्कुल पहले की तरह।

अगली सुबह जब देवेश बहुत देर तक भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकला तो रजत और विनोद ने वार्डन को बुला लिया और इसके बाद जब देवेश के कमरे का दरवाज़ा तोड़ा गया तो सब सन्न रह गए। देवेश की लाश पंखे से लटकी हुई थी और उसमें सफेद रंग के कीड़े रेंग रहे थे। लाश पूरी तरह से सड़ चुकी थी।

अब पूरे हॉस्टल में दहशत फैल चुकी थी। किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह कौन है जो एक एक कर हॉस्टल के लड़कों की जान ले रहा है और इससे भी बड़ा सवाल... आखिर क्यों?

चारों दोस्तों में से अब रजत और विनोद ही बचे थे। देवेश के गले में लटके उस गुलाबी दुपट्टे को देखकर, रजत और विनोद को अब कुछ कुछ अंदेशा होने लगा था कि वह कौन है जिसने देवेश और रजनीश दोनों की जान ली है।

"भाई मुझे लगता है जय वापस आ गया है" रजत ने कहा।

"तू चुप हो जा रजत बिना बात की बात मत कर" विनोद ने डर और गुस्से के मिले जुले भावों से कहा।

"मैं सच कह रहा हूं विनोद, तुझे याद नहीं वह गुलाबी दुपट्टा? वह दुपट्टा अंतिम समय में जय के पास था" यह कहते हुए रजत का चेहरा सफेद पड़ चुका था।

"हमने उसे नहीं मारा" विनोद ने चिल्लाते हुए कहा।

"तेरे चिल्लाने से सच नहीं बदल जाएगा। हां मान लेता हूं कि हमने उसे नहीं मारा मगर उसके मरने की वजह तो हम ही थे।" रजत ने विनोद को हिकारत से देखते हुए कहा।

"मैंने कहा ना साले चुप हो जा" कहते हुए विनोद ने रजत को एक मुक्का मार दिया, रजत जमीन पर गिर पड़ा था और विनोद, वह अलमारी से अपनी शराब की बोतल निकाल कर गुस्से में हॉस्टल की छत पर चला गया।

"अकेला मत जा विनोद" रजत ने उठने की कोशिश करते हुए कहा मगर तब तक विनोद ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर के जा चुका था। रजत ने उठकर बाहर जाने की कोशिश की मगर वह अपने ही कमरे में बन्द हो चुका था।लाख कोशिशों के बाद भी वह दरवाज़ा नहीं खोल पा रहा था।

दूसरी ओर विनोद गुस्से में शराब पीता जा रहा था और सीढ़ियां चढ़ता हुआ जय को भद्दी गालियां देता जा रहा था।

अंधेरे में आगे बढ़ते हुए विनोद को लगा कि पानी की टंकी के पास कोई है। मगर उधर झांक कर देखने पर वहां उसे कोई नज़र नहीं आया। वह आगे की ओर बढ़ गया और सामने लगी रेलिंग पर हाथ रखकर नीचे देखने लगा। सामने लगी रोडलाइड के तारों पर पैर लटकाए बैठे जय के साए पर उसकी नजर पड़ते ही वह डर के मारे खुद ही पीछे की ओर गिर पड़ा। शराब की बोतल उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गई थी जिससे बहती शराब की आवाज़ ही सन्नाटे को तोड़ रही थी। विनोद के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल पा रहा था। वह छत के फर्श पर गिरा हुआ केवल पीछे की ओर ही रेंगते रेंगते ज रहा था। सामने रोडलाइट्स के तार पर बैठा जय का साया उसे ऐसे दहशत में देखकर ज़ोर ज़ोर से डरावनी हंसी हंस रहा था। विनोद पीछे रखी पानी की टंकी से सटकर रुक गया अब वह और पीछे नहीं जा सकता और आगे जाने का तो सवाल ही नहीं था। तारों पर बैठा जय का साया अगले ही पल विनोद के सामने आकर खड़ा हो गया अब वह स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उसका चेहरा बिल्कुल सफेद था, उसकी आंखों में गहरा काजल, माथे पर बड़ी सी बिंदी और होठों पर गहरी गुलाबी लिपस्टिक लगी हुई थी। वह एक गुलाबी रंग का सूट पहने हुए था और उसके गले में पड़े हुए गुलाबी दुपट्टे पर बीती रात मरे हुए देवेश के खून के कुछ छींटे थे। जय के इस रूप को देखकर विनोद का डर से बुरा हाल था उस अपने सिर की नसें फटती हुईं लग रहीं थीं।

"डर क्यों रहा है विनोद, मेरा यह रूप तो तुम लोगों को बहुत पसंद था न तो आज क्यों डर रहा है?" इतना कहते हुए जय आगे बढ़ा और विनोद की कॉलर पकड़ ली। विनोद की कंपकंपी छूट रही थी मगर बचने का कोई रास्ता नहीं था।

म...म...मुझे छोड़ दे जय हम लोगों ने वह सब जानबूझकर नहीं किया था... जाने दे न जय मुझे... जय प्लीज़ मुझे छोड़ दे... देख तू दो को तो मार चुका है, मुझे छोड़ दे जय... प्लीज़ जय" विनोद भी बिल्कुल देवेश की ही तरह जय के सामने गिड़गिड़ाने लगा।

"नहीं विनोद कभी नहीं, मेरे भी कुछ सपने थे अपने भविष्य को लेकर मगर वे सब तुम चारों की वजह से बर्बाद हो गए और तू कहता है मैं तुझे छोड़ दूं... कभी नहीं विनोद कभी भी नहीं.... " दहाड़ते हुए जय ने विनोद को छत से नीचे फेंक दिया। विनोद नीचे ज़मीन पर गिरा हुआ था और उसके चारों ओर खून ही खून था।

इधर रजत अब भी अपने कमरे में कैद था और मदद के लिए पुकार रहा था मगर बाहर जैसे कोई उेस सुन ही नहीं रहा था। वह रात बीत गई। अगली सुबह सबने विनोद की लाश देखी। अब रजत को यकीन था कि वह जय ही है जो सबको मार था है, सबसे अपनी मौत का बदला के रहा है और अब वह उसे भी नहीं छोड़ेगा।

दो दिन आराम से बीत गए। उस सुबह सबके प्लेसमेंट्स होने थे। रजत भी थोड़ा खुश था कि वह बच गया है और अब प्लेसमेंट मिलते ही वह इस जगह से, इस हॉस्टल से दूर चला जाएगा जहां जय उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वह सुबह सुबह प्लेसमेंट में जाने के लिए तैयार हो रहा था। आइने के आगे वह अपने बाल संवार ही रहा था कि उसका खुद पर कोई काबू नहीं रहा। अचानक से एक बिंदी का पैकेट उसके सामने आया और न चाहते हुए भी उसे एक बिंदी अपने माथे पर लगानी पड़ी। जो कपड़े उसने पहने थे उन्हें खुद ही उतारकर वह एक सूट पहन चुका था। आंखों में गहरा काजल और होठों पर गहरी लिपस्टिक लगा कर वह अपने कमरे से बाहर निकला तो सब उस देखकर हंस रहे थे। वह कहीं भाग जाना चाहता था मगर उसका खुद पर कोई काबू ही नहीं रह गया था। वह लड़खड़ाती मगर एक लचक भरी चाल के साथ हॉस्टल की छत पर चला गया और उसके पीछे पीछे बाकी के लड़के भी जाने लगे जो उसकी इस हरकत पर ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे, उन्हें लग रहा था ऊपर जाकर और एंटरटेनमेंट होने वाला है।

जब रजत ऊपर पहुंचा तो जय उसके सामने खड़ा था, न सिर्फ रजत बल्कि वे सभी लड़के जो ऊपर आए थे, वे सब जय को देख पा रहे थे।

"तू तो बहुत पहले से ही डरते डरते अपनी मौत का इंतजार कर रहा था रजत, आज मैं तुझे उससे मिलवा ही देता हूं" जय ने मुस्कुराते हुए गर्दन टेढ़ी करते हुए कहा।

"नहीं जय... मुझे छोड़ दे" रजत ने कहा। इस बीच हॉस्टल के बाकी लड़के कभी जय को देखते तो कभी रजत को देखते।

"कभी मैं भी ऐसे ही गिड़गिड़ाया था। मुझे जाने दिया था तुम लोगों ने? मुझे छोड़ा था क्या तुम लोगों ने? नहीं न... गलती क्या थी मेरी बस यही कि मैं तुम लोगों जैसा नहीं था। अगर मैं एक समलैंगिक था तो इसमें मेरी क्या गलती? मैं भी यहां कुछ सपने ही लेकर आया था मगर तुम लोगों ने मेरा मज़ाक उड़ा उड़ाकर धीरे धीरे मेरे हर सपने को तोड़ दिया। मैं जीना चाहता था मगर तुम चारों अंदर ही अंदर मुझे मार रहे थे। अरे मुझे गर्व था अपने समलैंगिक होने पर भी कम से कम तुम लोगों की तरह किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश तो नहीं की थी। तुम जैसे लोग किसी को भी सुकून से नहीं रहने दे सकते। उस दिन भी मैं अपने रास्ते जा रहा था मगर वहां भी तुम लोगों ने अपनी टांग अड़ा दी। मेरा मजाक उड़ाया सो उड़ाया मुझे जबरदस्ती यह कपड़े पहनाए, यह काजल, यह बिंदी, यह लिपस्टिक लगा कर तुम सब बहुत खुश हो रहे थे न। अरे इतने से भी जिंदा रह जाता मैं मगर तुम लोगों ने मेरा वीडियो बनाया , उसे वायरल किया। रास्ता ही क्या था मेरे पास सिवाय आत्महत्या के?" जय की आंखों से खून के आंसू टपक रहे थे। सब स्तब्ध थे, शायद उसकी आत्महत्या की असली वजह बाकी सबको आज पता चली थी।

"जय मैंने तुझे नहीं मारा, मुझे जाने दे जय" रजत ने हाथ जोड़कर कहा।

"क्यों रजत ताकि फिर कभी कोई जय तुझसे टकरा जाए तो तू उसे भी मेरी तरह मरने को विवश कर दे? अब मैं किसी और जय को मारने के लिए तुझे जैसे इंसान को जिंदा नहीं छोड़ सकता" इतना कहकर जय ने रजत के अंदर प्रवेश किया और जाकर रोडलाइट में उसका सिर दे मारा। एक ज़ोरदार धमाके के साथ सब खत्म हो चुका था। रजत मर चुका था, ठीक वैसे ही जैसे जय की लाश मिली थी सबको , रोडलाइट में उलझी हुई।
इसके बाद उस हॉस्टल को हमेशा के लिए बन्द कर दिया गया......