akshy ashram-anagpal singh anang in Hindi Book Reviews by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" books and stories PDF | अक्षय आश्रय - अनंग पाल सिंह

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अक्षय आश्रय - अनंग पाल सिंह

अक्षय आश्रय उपन्यास

अनंग पाल सिंह अनंग

समीक्षा-वेदराम प्रजापति मनमस्त

जीवन के अहाने है , बदले ये जमाने है

वृद्धों के अयन अब तो, अक्षय आश्रय के ठिकाने है।

पहले जो तपोवन थे, अक्षय आश्रय में बदल डाले।

पुत्रों को सर्भी अिर्पत , जाते है खुशियां पाले ।

बदला है समय यह तो, जीवन की-भी परिभाषा

कटता है बुढापा अब , जीवन के लिए छाले।

देखा तो बुढापा ये , मजबूरी का मंजर है,

दुनिया की उदासी संग, झेलता कई ताने है। 1

अक्षय आश्रय के कथानक ने, जमाना-ही किया नंगा।

राम लाल के वहाने से , कह डाले सभी दंगा।

अनंग जी की विरासत में, पुस्तक ये धरोहर-सी।

दर्दों की लिए हलचल , बहती है नई गंगा।

लगता है यही सब को , निस्सार ये जीवन है,

सम्बन्ध है झूठे से , बेकार फसाने है। 2

ठहराव, ढल गया दिन, गीता सौरभ, जीवन-ज्वाला ।

सूखी सॉंसे, श्री राम संक्षेपिका,बुढापा समाधान बाला।

नारी जो ठगी जा रही, सफलता के सोपान, नहीं ,

स्व-प्रबंधन, समाज के ध्न, गुरू-गीता-गाय पाला।

अनंग-दोहा दरवार लिए, कुण्डलियॉं लिखी प्यारी,

त्रय-त्रय की करो गिनती, अक्षय आश्रय न्यिाने है। 3

चिन्तन की सभी आहट, मानस को बदलती है।

इक्कीस सौपानो में , वा-खूबी मचलती है।

रचना की बुनावट में , भाषा की सरलता-भी,

प्यारी-सी कहनि सब कुछ, जीवन को दहलती है।

व्यास से भी कहीं आगें, उन्नीस-शास्त्र लिख दए,

सम्मान मिलें कर्इ्रएक , मनमस्त तराने है। 4

अनंग जी ने इस आश्रम के वारे में अपनी पहल को इस प्रकार भी दर्शाया है- जिसमें अक्षय आश्रम की दरवाजे पर खुद का और द्वारपाल की चर्चा का मार्मिक चित्रण है-

भटक गये क्या मित्र हुआ कैसे यहॉं आना

अंदर जाना तभी उम्र अपनी बतलाना।।

कई आश्रम देख नया एक आश्रम आया,

वृद्ध आश्रय यही, सोच ने सोच जगाया।

यह कैसा दरवार देख लो चल कर भाई,

पहरेदार ने रोक हमें ऐसे समझाया।

सठीया गये क्या आप सोचकर कदम बढाना।।5।।

कोउ न पूछें जिन्हें खुदी ही से खुद बतयाने।

सठीयाने थे कई, कई थे वासठियाने

होगए थे बेकार समय का फेर यही था-

अपनी ढपली अपना राग, आपने ही थे गाने

कई निठल्ले लगे, कई पत पत्नी जाना।।6।।

र्चचाओं से पता चला ये हैं सब बेचारे,

कोउ नहीं है घरे चले आये यही द्वारे।

कई एक थे, बहु बेटा से पटी न नैकउ-

कई एक के बहु बेटा परदेश पधारे।

उच्च स्तर बहु बेटा नहीं इनको पहचाना।।7।।

कई एक के बहु बेटा पैसे जमा कर गये,

हम तो रहे परदेश सही सब बात कह गये।

कर देना संस्कार नहीं हम आपायेंगे-

आकर करे हिसाब शेष जो कुछ भी रह गये ।

अभी जनाजा जो निकला, अब क्या समझाना।।8।।

पहले डंका के बजत चाय नाश्ता पान।

दूजा सुनते ही सभी भोजन को आजाये ।

भोजन को आजाये तीसरी संगत जाने

चिंतन मनन बिचार प्रकट कर सुख अनुमाने।

कहें मनमस्त बिचार शाम को सब मिल टहलें।

चौथा भोजन मान पहुचते सबही पहले।।9।।

ऐसिन का दरवार यही है मेरे भाई।

आजाना उस हाल, जबही नंम्बर आजाये

समझ गये क्या बात, और क्सा अब समझाना,

अक्षय आश्रय यही, रहे तुम को समुझाई

क्या सोचो मनमस्त लौट लो अपये ठिकाना।।10।।

इस प्रकार-

आक्षय आश्रय सत्य सा, जीवन दसतावेज।

वर्तमान का आयना,करना नहीं परहेज।

करना नहीं परहेज, मान इसको जीवन घर

रात लाल की कथा गुजर रही है अब घर घर

वर्तमान परिवेश, इसी का लेलो आश्रय।

गुजरेगें दिन रैन चल पडो अक्षय आश्रय।।11।।

आज नहीं तो कल सही, जाना सब है अनंग।

कितनीउॅं जोडो सम्पत्ति, नहीं चलेगी संग।

नहीं चलेगी संग यही तो है नाटक घर।

राम लाल से पढो जिन्दगी को जीवन भर।

लोगो का क्या सोच? यही तो है अनंग राज।

अक्षय आश्रय चलो सीघ्र से, काल नहीं आज।।

पुस्तक के अध्याय सब कहते जीवन सार

खान पान के संग में चाल चलन व्यवहार।

चाल चलन व्यवहार , निरा संसार जानिये

कोई किसी का नहीं व्यर्थ सम्बंध मानिये।

सम्पति के सब यार जिन्दगी देरही दस्तक।

हो मनमस्त होसियार, पढो उन्नीसहु पुस्तक।।

सरल भाव भाषा सरल, अक्षर भी टकसाल।

कहनि माधुरी पर चुभत, बदले जीवन हाल।

बदले जीवन हाल, अनूठी बात निराली।

जीवन के व्यवहार, लगें सब जाली जाली।

कर मनमस्त विचार, चलैं न कोई चहल पहल।

पढ अनंग के काव्य, चाहता जो जीवन सरल।

सम्पर्क सूत्र-गायत्री शक्ति पीठ रोड

गुप्ता पुरा डबरा ग्वालियर म.प्र.

मो. 9981284867