Kaisa ye ishq hai - 12 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 12)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 12)

जब जब मैं मिलता हूँ तुमसे !! तुम मुझे बिल्कुल अलग सी लगती हो !! कभी नये से रंग में दिखती हो तो कभी नये से ढंग में मिलती हो॥


कुछ तो बात है मिस अर्पिता तुम में।कहते हुए प्रशांत वापस हॉल में आ जाता है।चित्रा प्रशांत श्रुति और परम ये चारों ही मूवी का आनंद लेने लगते हैं।


वहीं उसी मॉल के दूसरे हिस्से में अर्पिता किरण बीना जी के पास पहुंचती है।बीनाजी दोनो को वहां देख उनसे पूछ्ती है , “ अरे तुम दोनो अपनी शॉपिंग कर आ गयी”।


अपनी मां की बात सुन कर किरण अर्पिता से फुसफुसाते हुए कहती है, तेरा ही कहना था कि मासी के साथ शॉपिंग करनी है तो अब मां की बात का जवाब भी तुम ही दोगी।ओके।


ठीक है तुम ज्यादा चिंता न करो हम सम्हाल लेंगे कहते हुए अर्पिता बीना जी से कहती है मासी वो हमने सोचा कि पहले आपके साथ ही शॉपिंग कर लेते है बाकि बाद में एक साथ हम सब कुछ न कुछ खरीद ही लेंगे।


तो ये बात है।बीना जी अर्पिता के सिर पर प्यार से हाथ रखती है और कहती है मेरी प्यारी बच्ची। बस एसे ही रिश्तो को सहेज कर रखना।


कुछ ही देर में उनकी खरीद दारी पूरी हो जाती है और वो किरन तथा अर्पिता की तरफ देखती है। अर्पिता जिसके चेहरे पर शिकन का नामोनिशान नही होता है और किरण जिसके मुख से उदासी झलक रही है। जिसे देख बीना जी कहती है अब मै तो थक गयी हूँ अब मुझसे तो और शॉपिग नही होनी अब आप दोनो ही जाइए और अपने लिये जो भी खरीद्ना है वो खरीद लिजिये मै वहाँ रखी हुई चेयर पर बैठती हूँ।


मासी आप थक गयी है तो हम घर चलते हैं।वैसे भी सब जरुरी सामान तो लगभग खरीद ही लिया है। बाकी शॉपिंग तो हमलोग बाद में भी करते रहेंगे।क्यूं किरण।


हाँ ये सही है मां।वैसे भी आज मेरा मन नही है कुछ खरीद्ने का।मै तो जब से आई हूँ तब से मुझे बोरियत ही महसूस हो रही थी। किरण ने कहा और धम्म से वहीं खाली पडी जगह पर बैठ जाती है।


मासी और किरण आप दोनो ही थक गये हैं तो फिर यहाँ मत बैठिये आप हमारे साथ वहाँ कैंटीन एरिया की तरफ चलिये वहाँ बैठ कर आप लोग अपनी पसंदीदा अदरक वाली चाय की एक ताजगी भरी चुस्की ले लीजियेगा जिससे ये जो थकान हो रही है न आप दोनो को वो कहाँ छूमंतर हो जायेगी आपको पता भी ना चलेगा।


अरे हाँ अर्पिता तुमने भी तो कहा था न कि तुम्हे यहाँ खाना खाना है तो फिर चलते हैं बीना जी ने कुर्सी से उठते हुए कहा।


तीनो कैंटीन पहुंचती है जहाँ अर्पिता बीना जी और किरण के लिये चाय का ऑर्डर करती है और अपने लिये एक कैपिचीनो मंगवाती है।


कुछ ही देर में इनकी चाय और कॉफी दोनो आ जाते है। तीनो बैठ कर एंजोय करने लगते हैं।बीना जी अर्पिता से अपनी पसंद का कुछ ओर्डर करने के लिये कहती है लेकिन अर्पिता मना कर देती है।और तीनो से घर चलने को कहती है। बीना जी अर्पिता और किरण तीनो घर आ जाते हैं।जहाँ आवश्यक कार्य करने के बाद अर्पिता और किरण दोनो अपने कमरे में चली जाती है।


अर्पिता आज शाम को हुइ मुलाकात के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा रही होती है। वहीं किरण अपनी किताब लेकर बैठी हुई होती है। पढते पढते किरण अचानक से हंसने लगती है उसकी हंसी का स्वर कमरे में फैली खमोशी को तोड़ता है।


अचानक ही किरण को हंसता हुआ देख अर्पिता उसे हैरानी से देखती है।




अर्पिता – किरण! क्या हो गया अब ये अचानक से क्यू हंस रही हो।


किरण – कुछ नही अर्पिता ! कुछ सोच कर हंसी आ गयी।


एसा क्या याद आ गया किरण हमें बताओगी।


तुम जानना चाहती हो तो मै बताती हूँ आज शाम की घटना याद आ गयी यार्। जब मै तुम्हारी दोस्त के भाई से टकराई।क्या सीन था नई।एकदम पहली नजर के प्यार वाला। बॉल मेरे ही सामने आकर रुकी और मै लड़्खड़ाते हुए उससे जा टकराइ और फिर नीचे धड़ाम से गिर गयी।तो मै सोच रही थी कि काश मै नीचे न गिर कर उसकी बान्हो में गिरती तो बिल्कुल वही फीलींग आती एकदम फिल्मी।कहते हुए किरण खो जाती है और इस बात की कल्पना करने लगती है।


ओह तो इसीलिये किरण को हंसी आ गयी।वैसे क्या पता तुम जिससे टकराई वही तुम्हारा स्पेशल वन हो।अर्पिता ने कहा।


मजे ले रही हो मेरे क्यूं ? किरण ने अर्पिता की ओर देख कर कहा। अच्छा वैसे शुरुआत भी तुमने ही तो की थी किरण । जो हुआ वो सन्योग था अब तुम इसे अपनी इमेजिनेशन बना रही हो तो फिर हमने सोचा कि अब आग लग ही गई है तो क्यूं न हम भी थोड़ा सा घी डाल ही देते हैं।क्या पता इसमे कोई खिचडी पक ही जाये। अर्पिता ने इतनी ढलती हुई आवाज में कहा जिसे सुन किरण हंसने लगती है।अरे हाँ खिचड़ी से मुझे याद आया आजकल खिचड़ी कहीं और ही पक रही है। वो भी पुराने (बीरबल) तरीके वाली यानी धीमी आंच वाली।तुम्हे खबर है इस बारे में कुछ किरण ने अर्पिता की ओर देख कर कहा।क... क्या हम कुछ समझे नही।अर्पिता ने अन्जान बनते हुए कहा जैसे कि वो उसकी बात का अर्थ समझी ही नही हो॥किरण की बात सुन कर अर्पिता के चेहरे के भाव बदल जाते हैं।वो किरण की ओर देखने लगती है।


किरण उसके चेहरे के पास आती है और धीमे से उससे कहती है रिलेक्स अर्पिता !! घबराओ नही डियर हम किसी से कुछ नही कहेंगे। अब मैं चली सोने सो शुभ् रात्रि।




किरण की बात सुन कर अर्पिता सवालिया नजरो से उसकी ओर देखती है।और किरण थोड़ी मस्ती के मूड में तुमको देखा तो ख्याल आया... गुनगुनाते हुए वहाँ से सोने चली जाती है।


किरण के गाने को सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए अपना सर पीट लेती है।ये लड़की भी न ..... कहते हुए अर्पिता लाइट्स ऑफ कर सपनो की दुनिया मे चली जाती है।


दिन बीना जी थोड़ा जल्दी उठ जाती है और घर की साफ सफाई कर हॉल में रखे सोफे, और पर्दो के कवर बदल देती है। हेमंत जी ताजे फूल ले आते है जिन्हे बीना जी गमले में सजा देती है।दया जी भी अपने कमरे से बाहर आ जाती है और बीना जी को कार्य करने के लिये निर्देश देने लगती है।




हे भगवान ! दिन चढ आया है और अभी तक सारा कार्य नही हुआ है मैंने सुना है कि वो लोग समय के बड़े पाबंद है ठीक बारह बजे वो सभी यहाँ पहुंच जायेंगे। और आपने किरण से बात करी इस बारे में। कहीं ऐसा न हो कि पिछली बार की तरह इस बार भी किरण कुछ ऐसा कर दे जो सही नही हो।बीना जी ने नीचे फर्श पर कार्पेट बिछाते हुए हेमंत जी से कहा जो इस काम में उसकी मदद कर रहे थे।


हेमंत जी ‌- नही इस बार ऐसा कुछ नही होगा क्युंकि पिछली बार किरण अकेली थी इसीलिये नर्वस हो गयी थी बीना जी। इस बार तो यहाँ अर्पिता भी मौजूद है और अर्पिता का स्वभाव तो तुम जानती ही हो किरण को सम्हालना उसे बखूबी आता है। और किरण से बात मै अभी जाकर करता हूँ और अर्पिता के सामने करता हूँ जिससे वो सारी बात समझ कर किरण को समझा सके।




हाँ ये भी सही रहेगा।आप अभी जाकर बात करिये कहीं ऐसा न हो कि वो दोनो अपने कॉलेज जाने के लिये तैयार हो जाये और कॉलेज निकल जाये।


अरे यार अच्छा अच्छा बोलो न अभी समझाया था न कि वैसा कुछ भी नही होगा।सब अच्छा होगा तुम बेकार में डर रही हो।मै जा रहा हूँ और किरण से बात कर उसे मना कर ही लौटूंगा।ठीक कह हेमंत जी के कदम सीढियो से किरण के कमरे की ओर बढ गये।दरवाजे के पास पहुंच कर उनके कदम ठिठक जाते है क्युंकि दरवाजे के उस तरफ किरण और अर्पिता दोनो बहने कॉलेज जाने के लिये तैयार हो रही थी।किरण हंसते मुस्कुराते हुए अर्पिता को छेड़ते हुए तैयार हो रही है।किरण और अर्पिता के चेहरे की मुस्कुराहट देख हेमंत जी भावुक हो जाते हैं।उनकी आंखे भर आती है और किरण की शरारतो के दृश्य उनकी आंखो के सामने से गुजरने लगते हैं।




समय कितनी जल्दी गुजर जाता है न मेरी नन्ही सी गुडिया आज इतनी बडी हो गयी कि उसके लिये मैने ग़ुड्डा तलाशना भी शुरू कर दिया।मेरी नन्ही राजकुमारी। हेमंत जी अपनी आंखे पोंछते है और अंदर चले आते है।


पापा आप किरण हेमंत जी की ओर देख कर कहती है और चुपके से अर्पिता की ओर देखने लगती है।


हाँ किरण मै ही हूँ आप हैरान इसीलिये हो रहीं है क्यूंकि मै कभी आपके कमरे में आता नही हूँ।“जी पापा” किरण ने संक्षिप्त में कहा और चुप हो गयी। हेमंत जी भी कुछ क्षण के लिये खामोश हो जाते है और सोचते हैं आखिर बच्ची ने कुछ गलत तो नही कहा।कमरे में दो पल के लिये खमोशी पसर जाती है जिसे हेमंत जी ये कहकर तोड़ते है बहुत दिन हो गये आपसे कुछ पल चैन से बैठ कर बात नही की “सोचा आज आपसे कुछ गुफ्तगू कर ली जाये”।






किरण ने हेमंतजी की ओर देखा जो उसके यू अचानक से देखने पर थोड़ा सा झिझक गये थे।फिर खुद को सयत कर उन्होने एक हल्की सी मुस्कुराहट अपने चेहरे पर रखी और किरण से कहने लगे।


किरण मेरे यहाँ आने का जो कारण आप समझ रही है वो सही है।आपका अनुमान बिल्कुल सही है।मै यहाँ उसी समबन्ध में बात करने आया हूँ। बेटे इस समाज में रहने के कुछ नियम कायदे होते हैं जो सभी पर लागू होते हैं।हम पर भी है।लेकिन आप ये मत समझिये कि हमारी तरफ से कोइ जोर जबरदस्ती की जायेगी आपके साथ्। नही बेटे, आप एक बार सबसे मिले जाने परखे उसके बाद कोई निर्णय ले।और आपका वो निर्णय हम सभी को मान्य होगा।बस मिलने के लिये ही तो कह रहा हूँ मै आपसे। बाकि आगे का निर्णय तो आपका होगा।आप पर कोई दवाब नही है।आप समझ रही है न मेरी बात को।हेमंतजी की बात का किरण कोई जवाब नही देती है।जिसे देख अर्पिता कहती है। “ हम बीच में बोल रहे है उसके लिये हम माफी चाहेंगे मौसा जी हम आपकी बात का अर्थ समझ गये है और आप निश्चिंत रहिये किरण सबसे अवश्य मिलेगी”। हम उसे नीचे ले आयेंगे।अर्पिता की बात सुन कर किरण ने चुभती हुई निगाहो से उसे देखा और फिर अपनी नजरे फेर कर चुप चाप बैठी रही।


उसकी चुप्पी देख हेमंत जी अर्पिता की ओर देखते है उनकी आंखो में उम्मीद की किरण को देख अर्पिता पलको के साथ गर्दन झुका कर अपनी सहमती व्यक्त करती है।हेमंत जी हल्का सा मुस्कुराते है और किरण के सिर पर हाथ रख वहाँ से नीचे चले आते हैं।




बीना जी जो थोडी सी परेशान होकर इधर से उधर करते हुए सारे कार्य कर रही है।हेमंत जी को आया हुआ देख फौरनउनके पास चली आती है और बैचेन निगाहो से उनके चेहरे को देखने लगती है जैसे उनके चेहरे को पढने की कोशिश कर रही हो।हेमंत जी कुछ क्षण सोचते है फिर बीना जी की ओर देख कहते है, “ बीना जी, किरण ने अभी कुछ नही कहा है लेकिन अर्पिता ने आश्वस्त किया है कि वो किरण से इस बारे में बात करेगी।




मै समझ सकती हूँ किरण के मन में चल रहे उफान को।उसका कुछ न कहना स्वाभाविक ही तो है।हमने भी तो उसे उस समय बताया है जब लड़के वाले उसे देखने ही आ रहे हैं।पिछली बार भी यही हुआ।ये सारे प्रोग्राम तो पहले से बनाये जाते है न कि जिस दिन आना हो उसी समय शाम को फोन कर कह दिया कि मां तैयारी कर रखना कल लड़के वाले किरण को देखने आ रहे हैं।ये भला क्या बात हुई।और मां जी भी बिल्कुल सुबह बताने बैठी कल शाम को ही बता देती तो किरण से बात कर सारी सिचुएशन ही सामने रख देते तो शायद वो खुद को थोड़ा बहुत तैयार कर लेती लेकिन नही सीधा सिर पर आकर ही बम फोड़ना है।


बीनाजी खुद से ही कहे जा रही है जिसे हेमंतजी उनकी तरफ देख मुस्कुराते हुए कहते हैं बीनाजी तुम आज भी नही बदली। हेमत जी की बात सुन बीना जी आंखे तरेरते हुए कहती है, “ जी और अब नही बदलूंगी” ठीक अब परे हटो अपना बचा हुआ काम करो..।जब कुछ न सूझा तो लगे मसखरी करने..कितना सारा काम पड़ा है।बीना जी झूठ मूठ का गुस्सा कर वहाँ से रसोइ में चली जाती है।और हेमंत जी वहाँ से बाजार के लिये निकल जाते हैं।...

क्रमश....