** जाग उठा है रे इन्सान **
जाग उठा है रे इन्सान
भगा दे अपने अंदर का शैतान
छिपा है तुजमे अखुट ज्ञान
यही है तेरी सच्ची पहेचान
इसलिए तू है सबसे महान
महेलो का तू होगा दिवान
दीवारों के भी होते है कान
तोल मोल के बोल अपना विधान
फिसल न पाए कभी तेरी जुबान
उजाला करके भगा अपना अज्ञान
किधर रहेता है तेरा ध्यान
तोड़ दे पहाड़ो की हर चट्टान
खुद में खोज शक्तियों का तूफान
तीर लगा तेरे लिए तैयार है कमान
इस जग की तू इकलौती संतान
गवाह हे इसका सारा आसमान
तुज बिन धरती है वीरान
प्रेम की मिट्टी का है तू किसान
जग को करता है तू धान का दान
रत्नो से भी किमती है तेरी खान
यही है तेरा सबसे बड़ा एहसान
इस भूमि का है तू नौजवान
हर वक्त मुश्किलों का एलान
हर दिन रक्त से करता हे तू स्नान
सब से अनोखा हे तेरा खानदान
तेरे कर्ज तले बसता हर इन्सान
शूरवीर बनके मार दे सारे हैवान
खफा न हो कभी जो हो अपमान
जगमे तू ही तो है सबसे बुद्धिमान
फिर क्यों होता है हर वक्त परेशान
किराए पे मत ले सबसे अहेसान
तेरा भगवान रहेता तुजपे महेरबान
मिला है तुझको सबसे बड़ा वरदान
धरती पर तेरे लिए बिछा है गुलिस्तान
अपनी गलतियों का है तुजे अनुमान
होता है सबका खून एक समान
ना तू हिन्दू है ना तू है मुसलमान
तेरा पहेला मजहब है तेरा ईमान
इतना क्यों होता है हैरान
फ़ैसला करले जीवन के दौरान
थोड़े में से थोड़ा करदे दान
यही हे उपरवाले का फरमान
तेरा ज़मीर करेगा तेरा आहवान
जवांमर्द है तू तेरी जेब में कफ़न
जज्बा ना होगा तेरा कभी दफन
तकदीर का रहेगा तुजपे दमन
खून पसीना बहाके भीगा दे बदन
तरक्की पे होगी तेरी सबको जलन
इस तन का है तू महेमान
मुश्किलों से मत हो परेशान
ईश्वर का तू ही तो है अभिमान
जान से भी प्यारा है तुजे स्वाभिमान
अपने लक्ष पे तान दें निशान
एक मौका देगा तुजे न्याय विधान
जगवाले देंगे तुजे सभी प्रलोभन
खुला होगा तेरे लिए हर आंगन
भले ही चला जाये सारा धन
इज्जत पर न लगने देना लांछन
खुद से खुद का करवादे मिलन
फिर हर जगा होगा तेरा शासन
कटेगा तेरे कर्मो का चलान
भरनी होगी तुजे निति की लगान
साथ लेके आया तक़दीर का समान
ऊपर के दरबारमे होगा तेरा भुगतान
शायद इसी बात से तू है अनजान
इसी मिट्टी में करना है अग्निस्नान
चाहे किसीके तन का हो मकान
फिर किस बात का है तुजे गुमान
एक बार कहदे तेरे लिए हाजिर है जान
उपरवाले ने जिन्दी दी हे हसीन
बैठें मत रहना नहीं आएगा कोई जिन
एक बार बजाके तो देख ले बिन
फिर देखता जा तू एक दो तीन
तन और मन का मेल ही है जीवन
करनी ऐसी कर के कायम रहे अमन
जहां सुकून से रह सके हर सुमन
दुखी मत हो भले चला जाये सारा कंचन
विश्वास रखते है तुजपे जग के कंगन
इस जग के मेले में हरले सबका मन
तेरे लिए तो रोज बरसेगा सावन
कभी न हो ऐसा की जुक जाय नैनन
दिल से निकले बस प्यार के कंपन
दुनिया हर वक्त करेगी तेरा वज़न
लेकिन तू भगवान पे रखना पूरी लगन
सफलता का करता जा भजन
विश्वास का तुजसे जुड़ा हे बंधन
तेरे साथ हो जब कोई भी उल्जन
फिर भी दिल को रखना सदैव प्रसन्न
अंगारो पर चलेगा हर दिन
बस चलता ही जाऐ प्रतिदिन
आदत डाल दे ये कमसीन
जिंदगी हो जाएगी तेरी हसीन
तेरी मुस्कान पे होती हे खंजन
अपने मष्तिष्क पे लगा दे तू चंदन
दिल से देखा तो सब मिले सज्जन
जाक कर देखा तो मिला मुझे स्वजन
प्यार से करता हु में उने वंदन
देवगण ने कियाथा समुद्रमंथन
तू कम से कम करले आत्ममंथन
तेरे पास एक ही होगा चिंतन
तेरी मुरली में भी दिखेगा मोहन
छलांग लगाके चूमले गगन
तेरे लिए खुला है हर चमन
दिल को भाता है तेरा वतन
जान की बाजी लगाके करुंगा जतन
एक बार दिखादे अपना जूनून
फिर मिलेगा तुजे बड़ा सुकून
शायद यही है कुदरत का कानून
तन से नहीं बनना मुझे पहलवान
मनसे तो जरूर बनूँगा बलवान
करुणा से भरा ये जिगर है दयावान
यही है तेरी आन-बान-और शान
फिर ये जग करेगा तेरा बहुमान
स्नेह की ऊँगली का चटादे मख्खन
साथ निभाना है तो बनजा लखन
वरना तुजसे बहेतर था विभीषन
यही तो है सबके मन की उल्जन
अपने अंदर खोज ले भगवान
तेरा काम हो जायेगा आसान
गीता में समाया हुआ हर समाधान
इसे पढके तू बनजा अर्जुन सा प्रधान
इसे ही कहेते हे सच्चा ब्रम्हज्ञान
अब फिरसे जाग उठा है रे इन्सान
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-- भावेश लखानी